तुलनात्मक सरकार और राजनीति UNIT 4 SEMESTER 4 THEORY NOTES दलीय व्यवस्था एक-दलीय, द्वि-दलीय एवं बहु-दलीय व्यवस्था DU SOL DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakजनवरी 14, 2025
प्रस्तावना
राजनीतिक दल ऐसे समूह होते हैं जो चुनावी प्रतिस्पर्धा के माध्यम से सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं। ये दल एक विचारधारा, मुद्दों और जनता के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजनीतिक दल जनता को अपने एजेंडा और नीतियों पर विश्वास दिलाने का प्रयास करते हैं और सरकार बनाने के लिए जनता की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। दलीय व्यवस्था लोकतंत्र में जाँच और संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। किसी भी राजनीतिक दल में तीन प्रमुख घटक होते हैं: नेता, सक्रिय सदस्य, और अनुयायी। ये घटक मिलकर राजनीतिक दलों को संगठित और प्रभावी बनाते हैं।
नेता (Leaders):नेता किसी भी राजनीतिक दल के सबसे महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। वे जनता तक दल की विचारधारा और एजेंडा पहुँचाने का कार्य करते हैं। करिश्माई व्यक्तित्व वाले नेता दल को मजबूत बनाते हैं और राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं। उदाहरण के तौर पर, नरेंद्र मोदी ने भाजपा की छवि और राजनीतिक स्थिति को बदलने में अहम भूमिका निभाई।
सक्रिय सदस्य (Active Members): सक्रिय सदस्य राजनीतिक दल के महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं में शामिल होते हैं, जो दल की नीतियों और उद्देश्यों को जनता तक पहुँचाने में मदद करते हैं। ये सदस्य अपने व्यक्तिगत लाभ से अधिक दल के विकास और विस्तार पर ध्यान देते हैं। उदाहरण के रूप में, चीनी साम्यवादी दल के सक्रिय सदस्य लगातार दल की विचारधारा को जीवित और प्रासंगिक बनाए रखने में मेहनत करते हैं।
अनुयायी/समर्थक (Followers): अनुयायी या समर्थक किसी भी राजनीतिक दल की सबसे मजबूत नींव होते हैं। ये दल की विचारधारा और नीतियों पर विश्वास करते हैं और उनके क्रियान्वयन की उम्मीद रखते हैं। समर्थकों की भागीदारी और विश्वास दल को मजबूती और विस्तार प्रदान करता है।
राजनीतिक दलों के कार्य
चुनाव लड़ना: राजनीतिक दल चुनाव में उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं। अमेरिका में उम्मीदवारों का चयन दल के सदस्यों और समर्थकों द्वारा किया जाता है, जबकि भारत में उम्मीदवारों का चयन मुख्य रूप से दल के नेता करते हैं।
नीतियाँ और कार्यक्रम: प्रत्येक दल की अलग नीतियाँ और कार्यक्रम होते हैं, जिनके आधार पर मतदाता अपना विकल्प चुनते हैं।
सरकार बनाना: राजनीतिक दल सरकार बनाते हैं और अपने नीतिगत एजेंडे को लागू करते हैं।
विपक्ष की भूमिका: असफल दल विपक्ष बनते हैं, सरकार की आलोचना करते हैं और जनता को सरकार की नीतियों के बारे में जागरूक करते हैं।
जनमत निर्माण: राजनीतिक दल जनमत बनाने और दबाव समूहों के माध्यम से जन-कल्याणकारी नीतियों को लागू करने में मदद करते हैं।
कल्याणकारी योजनाएँ: स्थानीय दल जनता और सरकारी अधिकारियों के बीच संवाद स्थापित करते हैं और कल्याणकारी योजनाओं में सहयोग करते हैं।
राजनीतिक दलों के प्रकार
राजनीतिक दलों की व्यवस्था मुख्य रूप से तीन प्रकारों में विभाजित है, जो केवल किसी राज्य में दलों की संख्या पर ही नहीं, बल्कि उनकी विशेषताओं पर भी आधारित है:
1. एक-दलीय व्यवस्था (One-Party System) एक-दलीय व्यवस्था में केवल एक राजनीतिक दल को मान्यता प्राप्त होती है, और विपक्षी विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं होता। यह व्यवस्था लोकतांत्रिक संघर्ष और बहुलवाद को सहन नहीं करती।
2. द्वि-दलीय व्यवस्था (Two-Party System) द्वि-दलीय व्यवस्था में दो प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं, जो सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह व्यवस्था बहुलवादी समाज में राजनीतिक संघर्ष और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती है।
3. बहु-दलीय व्यवस्था (Multi-Party System) बहु-दलीय व्यवस्था में कई राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं। यह व्यवस्था लोकतंत्र की विविधता, बहुलवाद, और विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती है।
एक-दलीय व्यवस्था (One-Party System)
एक-दलीय व्यवस्था में केवल एक राजनीतिक दल को मान्यता प्राप्त होती है, जो सरकार बनाने का अधिकार रखता है। अन्य दलों को चुनाव में सीमित भागीदारी या प्रतिबंधित किया जाता है। यह व्यवस्था सत्तारूढ़ दल के प्रभुत्व और विपक्ष की अनुपस्थिति को दर्शाती है। सोवियत संघ और चीन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
1. एक-दलीय व्यवस्था के गुण/लाभ
शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता: विरोधाभासों के अभाव में निर्णय जल्दी लिए जाते हैं, जिससे शासन में दक्षता आती है।
राजनीतिक स्थिरता: लंबे समय तक एक ही सरकार के कारण स्थिरता बनी रहती है।
संसाधनों की बचत: चुनावी अभियानों में धन और समय की बर्बादी कम होती है।
राष्ट्रीय एकता: एक विचारधारा से बंधे होने के कारण राष्ट्रीय एकता बनाए रखना सरल होता है।
मजबूत शासन: गुटबंदी के अभाव में सुदृढ़ शासन की स्थापना होती है।
2. एक-दलीय व्यवस्था के दोष/नुकसान
प्रतिनिधित्व की कमी: सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।
चयन का अभाव: जनता के पास मतदाता के रूप में किसी अन्य दल का विकल्प नहीं होता।
अल्पसंख्यकों की उपेक्षा: अल्पसंख्यक वर्गों को मुख्यधारा की नीतियों से बाहर रखा जाता है।
तानाशाही प्रवृत्ति: सरकार जवाबदेही और पारदर्शिता से वंचित रहती है।
लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन: नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों पर सीमाएं लगती हैं।
3. द्वि-दलीय व्यवस्था (Two-Party System)
द्वि-दलीय व्यवस्था में दो प्रमुख राजनीतिक दल सत्ता के केंद्र में होते हैं। इनमें से एक सरकार बनाता है, जबकि दूसरा विपक्ष की भूमिका निभाता है। यह व्यवस्था संयुक्त राज्य अमेरिका, माल्टा, और जिम्बाब्वे जैसे देशों में प्रचलित है। छोटे दलों की भूमिका सीमित रहती है। मौरिस डूवर्जर ने इसे ऐसी प्रणाली बताया जो विजेता को अधिकतम नियंत्रण प्रदान करती है।
1. द्वि-दलीय और अन्य व्यवस्थाओं की तुलना
बहु-दलीय व्यवस्था बनाम द्वि-दलीय व्यवस्था: बहु-दलीय व्यवस्था में दो से अधिक प्रभावी राजनीतिक दल होते हैं और गठबंधन सरकारें आम हैं, जबकि द्वि-दलीय व्यवस्था में केवल दो प्रमुख दल होते हैं और गठबंधन सरकारें दुर्लभ होती हैं।
एक-दलीय व्यवस्था बनाम द्वि-दलीय व्यवस्था: एक-दलीय व्यवस्था में केवल एक राजनीतिक दल को मान्यता प्राप्त होती है, जैसे चीन या क्यूबा, जहाँ विपक्ष नहीं होता। इसके विपरीत, द्वि-दलीय व्यवस्था में सत्ता दो प्रमुख दलों के बीच लगातार बदलती रहती है।
2. द्वि-दलीय व्यवस्था के गुण
स्थिरता और केंद्रवाद: द्वि-दलीय व्यवस्था राजनीतिक स्थिरता और केंद्रवाद को प्रोत्साहित करती है। यह सरकार को जनभावनाओं और जनकल्याण के प्रति अधिक जिम्मेदार बनाती है।
सरलता और स्पष्टता: कम विकल्प होने से मतदाताओं के लिए निर्णय प्रक्रिया आसान हो जाती है। इस प्रणाली में त्रिशंकु संसद की संभावना कम रहती है।
संगठित विपक्ष: विपक्षी दल सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना करते हैं, जिससे प्रशासन अधिक प्रभावी और बेहतर बनता है।
3. द्वि-दलीय व्यवस्था के दोष
प्रतिस्पर्धा की कमी: यह मतदाताओं को कम विकल्प प्रदान करती है, जिससे लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा सीमित होती है।
अंतर-दलीय समझौते: दो प्रमुख दलों के बीच समझौते से छोटे मुद्दों की अनदेखी हो सकती है।
अल्पसंख्यक विषयों की अनदेखी: छोटे या विशेष हितों वाले दलों की आवाज प्रभावी रूप से नहीं उठ पाती।
बहु-दलीय व्यवस्था (Multi-Party System)
बहु-दलीय व्यवस्था में कई राजनीतिक दल सरकार बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह प्रणाली नए मुद्दों के राजनीतिकरण, वैचारिक नवाचार, और समावेशी राजनीतिक संस्थानों को बढ़ावा देती है। भारत, जर्मनी, और न्यूजीलैंड जैसे देशों में यह प्रचलित है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में, बहु-दलीय व्यवस्था सभी दलों को समान अवसर देती है और गठबंधन सरकारों को प्रोत्साहित करती है।
1. बहु-दलीय व्यवस्था के गुण
विविधता का प्रतिनिधित्व: विभिन्न विचारधारा वाले दलों को अवसर देकर समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है।
अधिक विकल्प: मतदाताओं को कई राजनीतिक विकल्प प्रदान करती है।
समावेशी और पारदर्शी: यह समाज के विभिन्न वर्गों की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होती है।
प्रतिस्पर्धा और लोकतंत्र: स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करती है और तानाशाही को रोकती है।
जनता की राय के प्रति उत्तरदायी: जनता की बदलती प्राथमिकताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करती है।
2. बहु-दलीय व्यवस्था के दोष
अस्थिरता: गठबंधन सरकारें प्रायः निर्बल और अस्थायी होती हैं, जिससे त्रिशंकु संसद की स्थिति पैदा होती है।
नीति निर्माण में कठिनाई: विभिन्न दलों की उपस्थिति से निर्णय लेने और नीतियों को लागू करने में बाधा उत्पन्न होती है।
सौदेबाजी और भ्रष्टाचार: सरकार बनाने के लिए सौदेबाजी और पारदर्शिता की कमी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
क्षेत्रीय हितों का प्रभुत्व: क्षेत्रीय या भाषाई दलों की प्राथमिकता क्षेत्र विशेष के विकास पर अधिक होती है, जिससे राष्ट्रीय विकास प्रभावित हो सकता है।