तुलनात्मक सरकार और राजनीति UNIT 3 SEMESTER 4 THEORY NOTES निर्वाचन प्रणालियाँ फर्स्ट पास्ट द पोस्ट, आनुपातिक प्रतिनिधित्व और मिश्रित प्रणालियाँ DU SOL DU NEP COURSES

तुलनात्मक सरकार और राजनीति UNIT 3 THEORY NOTES निर्वाचन प्रणालियाँ फर्स्ट पास्ट द पोस्ट, आनुपातिक प्रतिनिधित्व और मिश्रित प्रणालियाँ  DU SOL DU NEP COURSES


परिचय 

चुनाव प्रणाली किसी देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आधार होती है, जो वोटिंग प्रक्रिया, जनमत संग्रह, और परिणामों को निर्धारित करती है। गेलघर के अनुसार, यह नियमों का एक ढाँचा है, जो वोटों को सीटों में बदलने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। इसमें तीन मुख्य तत्त्व शामिल हैं: मतपत्र संरचना, निर्वाचन क्षेत्र संरचना, और चुनावी नियम।चुनावी प्रणाली का चयन किसी राज्य के राजनीतिक जीवन को गहराई से प्रभावित करता है और यह लंबे समय तक स्थिर रहती है। चुनावी प्रणालियाँ विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करती हैं, जैसे फर्स्ट पास्ट द पोस्ट, आनुपातिक प्रतिनिधित्व, और मिश्रित प्रणाली। इस इकाई में इन प्रणालियों और उनके मार्गदर्शक सिद्धांतों पर चर्चा की जाएगी।

 निर्वाचन प्रणालियों के सिद्धांत 

किसी भी चुनावी प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कुशलता, प्रभावशीलता और स्थिरता के साथ एक मजबूत व्यवस्था बनाना है। इसमें सुसंगत गठबंधन बन सकते हैं, लेकिन गिने-चुने मजबूत राजनीतिक दल होते हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व या फर्स्ट पास्ट द पोस्ट जैसी चुनावी प्रणालियों में कुछ सामान्य सिद्धांत होते हैं:

  • प्रतिनिधित्व (Representation): निर्वाचन प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य मतों को सीटों में बदलना है, जो मतदाताओं की इच्छा का सही प्रतिनिधित्व करती हो। इसमें भौगोलिक और वैचारिक प्रतिनिधित्व जैसे कारक शामिल हैं।
  • पारदर्शिता (Transparency): राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के बीच भ्रम और अविश्वास को रोकने के लिए पारदर्शिता आवश्यक है। यह चुनाव प्रणाली की वैधता और समीक्षा प्रक्रिया को मजबूत करती है।
  • समावेश (Inclusiveness): चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्ष और व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करना। समावेश में सभी मतदाताओं को समान अधिकार, समझने में आसान प्रक्रिया, और सुलभ मतदान केंद्रों की स्थापना शामिल है।


फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली (FPTP)

फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP), जिसे 'बहुलवादी प्रणाली' कहा जाता है, एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में लागू होती है। सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार विजयी होता है, चाहे वह कुल मतों के आधे से कम हो। यह प्रणाली भारत और ब्रिटेन जैसे देशों में प्रचलित है।

गुण (Advantages):

  • दो प्रमुख दलों का समर्थन: यह प्रणाली द्विदलीय प्रणाली को बढ़ावा देती है, जिससे मतदाताओं को स्पष्ट विकल्प मिलता है।
  • सरल और प्रभावी: इसका सरल ढाँचा और भौगोलिक प्रतिनिधित्व इसे सुगम बनाता है।
  • स्थिर सरकार:एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना अधिक रहती है, जिससे गठबंधन की जरूरत कम होती है।
  • व्यक्तिगत उम्मीदवार का महत्व: मतदाता पार्टी के बजाय उम्मीदवार के व्यक्तिगत प्रदर्शन पर ध्यान देते हैं।
  • स्थानीय जवाबदेही: यह प्रणाली निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके निर्वाचन क्षेत्र से जोड़ती है।
  • मजबूत विपक्ष: यह प्रणाली सशक्त विपक्ष को जन्म देती है, जो सत्तारूढ़ दल की गतिविधियों पर नजर रखता है।

दोष (Disadvantages):

  • छोटे दलों का नुकसान: अल्पसंख्यक और छोटे दलों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।
  • अल्पसंख्यक दृष्टिकोण की अनदेखी: यह प्रणाली बहुसंख्यक संस्कृति पर केंद्रित है और अल्पसंख्यकों के विचारों को नजरअंदाज करती है।
  • गैर-प्रतिनिधिक परिणाम: वोट प्रतिशत और सीटों की संख्या में बड़ा अंतर हो सकता है।
  • वोट विभाजन: छोटे दलों को मिलने वाले वोट अंततः बड़े दलों को लाभ पहुँचाते हैं।
  • परिसीमन पर निर्भरता: निर्वाचन क्षेत्रों के आकार और सीमाएँ परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे गड़बड़ी (Gerrymandering) और असमानता (Malapportionment) की संभावना रहती है।


आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation)

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) प्रणाली का विकल्प है, जिसमें दलों को उनके प्राप्त मतों के अनुपात में सीटें दी जाती हैं। यह प्रणाली विविधता और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता देती है।

गुण (Advantages):

  • अल्पसंख्यकों और छोटे दलों को अवसर: छोटे दलों और अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।
  • विचारधारा का समायोजन: यह प्रणाली विविध विचारों और समाज के विभिन्न समूहों का समावेश करती है।
  • समान प्रतिनिधित्व: मत प्रतिशत और सीटों के बीच सीधा संबंध होने से जनता की इच्छा बेहतर तरीके से प्रतिबिंबित होती है।
  • समावेशी और स्थिर निर्णय: निर्णय प्रक्रिया अधिक समावेशी होती है, और सामाजिक बँटवारे वाले लोकतंत्रों के लिए यह अधिक उपयुक्त है।

दोष (Disadvantages):

  • गठबंधन सरकारों की अस्थिरता: गठबंधन सरकारें अक्सर अस्थिर होती हैं और नीति निर्धारण में कठिनाई होती है।
  • दलीय विखंडन: छोटे दलों को अधिक शक्ति मिलने से राजनीतिक व्यवस्था विखंडित हो सकती है।
  • स्पष्टता की कमी: गठबंधन सरकारों की नीतियाँ अकसर अस्पष्ट होती हैं, जिससे मतदाता भ्रमित हो सकते हैं।
  • शासन में जटिलता: चुनाव प्रक्रिया और गठबंधन निर्माण जटिल हो सकते हैं, जिससे प्रशासन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • इतिहास से सबक: वाईमर जर्मनी जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अस्थिरता को जन्म दे सकती है।


मिश्रित प्रणाली (Mixed Electoral System)

मिश्रित प्रणाली बहुलवादी (FPTP) और आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) के तत्वों को मिलाकर बनाई गई चुनाव प्रणाली है। यह मतदाताओं को दोनों प्रकार की प्रणालियों के लाभ प्रदान करती है और राजनीतिक दलों को वोट और सीटों के अनुपात में बेहतर प्रतिनिधित्व देती है।

मुख्य विशेषताएँ:

1. द्वि-स्तरीय प्रणाली

  • बहुलवादी घटक: क्षेत्रीय प्रतिनिधियों का सीधा चुनाव।
  • आनुपातिक घटक: राष्ट्रीय या क्षेत्रीय सूची के आधार पर सीटों का आवंटन।

2. प्रमुख प्रकार

  • समानांतर मतदान (Parallel Voting): FPTP और PR को स्वतंत्र रूप से लागू करता है।
  • मिश्रित सदस्य आनुपातिक (MMP): PR के माध्यम से FPTP की त्रुटियों को ठीक करता है।
  • वैकल्पिक वोट प्लस (Alternative Vote Plus): वैकल्पिक वोटिंग और अतिरिक्त सदस्य प्रणाली का संयोजन।
  • स्कोपोरो (Scorporo): FPTP और PR के बीच असमानता को संबोधित करता है।
  • बहुमत लाभांश (Majority Bonus): लोकप्रिय दलों को बहुमत सीटों का अतिरिक्त लाभ।
  • द्वि-सदस्यीय आनुपातिक (Dual Member Proportional): प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में दो प्रतिनिधियों का चयन।

3. मिश्रित प्रणाली के उदाहरण

  • जर्मनी और न्यूजीलैंड: MMP का उपयोग।
  • जापान और रूस: समानांतर मतदान।
  • इटली और ग्रीस: बहुमत लाभांश प्रणाली।

लाभ (Advantages)

  • झूठे बहुमत से बचाव: वोट और सीटों के अनुपात में असमानता को कम करता है।
  • वोट की बर्बादी में कमी: छोटे और क्षेत्रीय दलों को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
  • स्थानीय संपर्क: क्षेत्रीय प्रतिनिधि और स्थानीय स्तर पर बेहतर जुड़ाव सुनिश्चित करता है।
  • निर्वाचन गुणवत्ता: निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार और पारदर्शिता लाता है।

दोष (Disadvantages)

  • दो प्रकार के प्रतिनिधि: कुछ सांसदों का निर्वाचन क्षेत्रों से सीधा संबंध नहीं होता।
  • दल के नियंत्रण में वृद्धि: दलों की भूमिका और प्रभाव अधिक बढ़ जाता है।
  • जटिल मतपत्र: प्रक्रिया जटिल होने के कारण मतदाता हतोत्साहित हो सकते हैं।
  • महंगा चुनाव: अन्य प्रणालियों की तुलना में अधिक खर्चीला।


 चुनावी प्रणाली की प्रवृत्तियाँ 

  • प्रारंभिक बहुलवादी प्रणाली: प्रारंभ में चुनावी प्रणाली बहुलवादी सिद्धांत (FPTP) पर आधारित थी, जो सरल और प्रभावी थी। 19वीं शताब्दी में यह प्रणाली व्यापक रूप से लोकप्रिय हुई।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व का उदय: 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, मजदूर वर्ग और समाजवादी समूहों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनाई गई।
  • प्रथम प्रयोग: आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को सबसे पहले ब्रिटिश संसद ने अपनाया। इसके बाद अन्य देशों ने भी इस प्रणाली का अनुसरण किया।
  • अन्य देशों का अनुसरण: आयरलैंड, तस्मानिया, और ऑस्ट्रेलिया के ऊपरी सदन ने एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली (STV) को अपनाया, जिससे यह प्रणाली और अधिक प्रचलित हुई।
  • 20वीं शताब्दी का पुनरुत्थान: 20वीं शताब्दी में निर्वाचन प्रणाली में सुधार और नई लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की स्थापना हुई। पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासन के पतन के बाद लोकतंत्र विकसित हुआ, और न्यूजीलैंड ने बहुलवादी प्रणाली छोड़कर आनुपातिक प्रणाली अपनाई, जिससे लोकतंत्र अधिक समावेशी बना।
  • मिश्रित प्रणाली का उदय: इटली और जापान जैसे देशों ने जटिल मिश्रित प्रणाली को अपनाया, जो FPTP और PR के लाभों का संतुलन प्रदान करती है। यह प्रणाली जटिल होते हुए भी प्रतिनिधित्व और समावेशिता में सुधार करती है।
  • आधुनिक रुझान: आनुपातिक निर्वाचन प्रणाली की लोकप्रियता में निरंतर वृद्धि हो रही है। साथ ही, मिश्रित प्रणाली का प्रसार हो रहा है, ताकि चुनावी व्यवस्थाओं के विभिन्न लाभों का उपयोग किया जा सके।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.