तुलनात्मक सरकार और राजनीति UNIT 1 SEMESTER 4 THEORY NOTES तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण की प्रकृति, विस्तार, विषय-क्षेत्र और विधियाँ DU SOL DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakजनवरी 13, 2025
परिचय
तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक विज्ञान की मुख्य शाखाओं में से एक, राजनीतिक प्रणालियों की तुलना और अध्ययन पर केंद्रित है। जीन ब्लॉण्डेल इसे दो या अधिक राजनीतिक प्रणालियों की तुलना और जांच मानते हैं, जबकि हैग, हेरोप, और एमसी कॉमिक इसे विभिन्न देशों की राजनीति और सरकार के क्रमबद्ध अध्ययन के रूप में परिभाषित करते हैं। मनोरंजन मोहंती के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति समानताओं और भिन्नताओं से आगे बढ़कर समाजों और देशों के आपसी संबंधों की गहन समझ में सहायता करती है, जिससे राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण और व्याख्या बेहतर होती है।
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति और विषय क्षेत्र
1. तुलना का उद्देश्य: तुलनात्मक राजनीति में यह समझा जाता है कि किन चीजों की तुलना उपयोगी है। कार्यात्मक तुल्यता पर जोर दिया जाता है, जो यह बताती है कि विभिन्न संरचनाएँ समान कार्य कर सकती हैं या एक ही संरचना कई कार्य कर सकती है।
2. कार्यात्मक तुल्यता का महत्व: यह दृष्टिकोण संस्थाओं की भूमिकाओं और कार्यों का विश्लेषण करता है, चाहे वे राजनीतिक हों या गैर-राजनीतिक। उदाहरण के लिए, सेना का कार्य केवल सीमाओं की सुरक्षा तक सीमित नहीं होता।
3. समाज और संस्थाओं की भूमिका: तुलनात्मक राजनीति समाज के अंगों और संस्थाओं के कार्यों का अध्ययन करती है। यह यह समझने में मदद करती है कि संस्थाएँ समाज के विकास में कैसे योगदान देती हैं।
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति
तुलना का उद्देश्य: डेनेमल केरेमानी के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजनीतिक प्रणालियों की तुलना करती है। यह न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक प्रणालियों जैसे क्षेत्रीय संगठन (सार्क, ईयू), साम्राज्य (रोमन, मुगल, ऑटोमन), और लोकतांत्रिक व सर्वसत्तावादी व्यवस्थाओं का भी विश्लेषण करती है।
तुलनात्मक राजनीति का दायरा: तुलनात्मक राजनीति का दायरा राज्यों के भीतर और बाहर की राजनीतिक इकाइयों तक फैला हुआ है। यह विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों और प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है, जो समाजों के बीच सक्रिय राजनीतिक प्रणाली की गहरी समझ प्रदान करती है।
तुलनात्मक राजनीति की तीन परंपराएँ: तुलनात्मक राजनीति में तीन प्रमुख परंपराएँ हैं। पहली परंपरा एकल देशों के गहन अध्ययन पर केंद्रित है, जो अमेरिकी दृष्टिकोण से प्रभावित है। दूसरी परंपरा कार्य पद्धति (Methodology) पर ध्यान देती है, जिसमें तुलना के लिए मानक और नियम बनाए जाते हैं। तीसरी परंपरा विश्लेषणात्मक है, जो विधियों और अनुभवजन्य विवरणों का संयोजन करती है और राजनीतिक दलों, शासन प्रणाली, और सामाजिक आंदोलनों की तुलना पर जोर देती है।
तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र
यूरो-केन्द्रित आलोचना: तुलनात्मक राजनीति को यूरो-केन्द्रित कहा गया है, जिसमें पश्चिमी मॉडल को श्रेष्ठ माना जाता है। यह दृष्टिकोण गैर-पश्चिमी देशों की राजनीतिक प्रणालियों को कम महत्व देता है और उन्हें पश्चिम की तुलना में निम्नतर दिखाता है।
रॉयसी नैक्रिडिस की आलोचना: रॉयसी नैक्रिडिस (1955) ने पारंपरिक दृष्टिकोण को 'अतुलनीय' और अधिक वर्णनात्मक बताया। उन्होंने ऐतिहासिक और कानूनी दृष्टिकोणों की सीमाओं की पहचान की, जो केवल घटनाओं के कालक्रम पर ध्यान केंद्रित करते हैं और तुलनात्मक अध्ययन के लिए सामान्य ढाँचा प्रदान करने में विफल रहते हैं।
संकुचित और तटस्थ दृष्टिकोण: नैक्रिडिस ने यह भी तर्क दिया कि पारंपरिक दृष्टिकोण संकुचित और तटस्थ है। यह परिवर्तन और विकास के कारणों को नजरअंदाज करता है और केवल किसी विशेष व्यवस्था के राजनीतिक संस्थानों पर केंद्रित रहता है।
नीरा चंडोक की आलोचना: नीरा चंडोक (1996) ने तुलनात्मक राजनीति को सामान्यीकृत और यूरो-केन्द्रित बताया। उन्होंने कहा कि यह अन्य समाजों के शासन और सिद्धांतों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देता और जटिल मुद्दों को सरल मानकों से समझने की कोशिश करता है।
व्यवहारवादी उपागम की सीमाएँ: व्यवहारवादी उपागम वैज्ञानिक तरीकों जैसे सर्वेक्षण, साक्षात्कार और सांख्यिकीय विश्लेषण पर जोर देता है। हालांकि, इस पर आरोप है कि यह स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की उपेक्षा करता है और पश्चिमी लोकतंत्र को आदर्श मानता है।
विश्लेषण की समस्याएँ: तुलनात्मक अध्ययन में देशों के चयन को पक्षपातपूर्ण कहा गया है। गैब्रियल आलमॅड और सिडनी वरबा की कृति 'नागरिक संस्कृति' को भी यूरो-केन्द्रित कहा गया, क्योंकि इसमें अमेरिका के लोकतंत्र को सर्वोत्तम बताया गया और अन्य देशों की राजनीति की उपेक्षा की गई।
तुलना क्यों?
तुलना का महत्व
तुलना मानव व्यवहार का स्वाभाविक गुण है। राजनीति जैसे महत्वपूर्ण और जटिल क्षेत्र में विभिन्न प्रणालियों, घटनाओं, और प्रक्रियाओं की तुलना करना उनकी बेहतर समझ और मूल्यांकन के लिए आवश्यक है।
1. टोड लैण्डमैन (2008) ने तुलना की चार पद्धतियों को पहचाना:
संदर्भात्मक विवरण: यह अन्य देशों की राजनीतिक प्रणालियों को समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी प्रणाली का अध्ययन संसदीय प्रणाली के लाभों और सीमाओं को उजागर करता है।
वर्गीकरण: यह जानकारी को सरल और व्यवस्थित बनाता है। उदाहरण के लिए, संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली भिन्न होते हुए भी लोकतंत्र के अंतर्गत वर्गीकृत हो सकते हैं। अरस्तु ने शासन प्रणाली को 6 वर्गों में बाँटा, जैसे राजशाही, लोकतंत्र, आदि।
परिकल्पना परीक्षण: यह कारकों और घटकों के बीच संबंध स्थापित करता है। लिजफार्ट (1971) के अनुसार, यह बेहतर सिद्धांत बनाने और जानकारी के संचय में मदद करता है।
पूर्वानुमान: तुलना के आधार पर भविष्य के परिणामों की भविष्यवाणी की जा सकती है। यह सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में भिन्न परिणामों को समझने में सहायक है।
2. तुलना के अन्य लाभ
तुलना विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्यों को समझने, राजनीतिक परिणामों की भविष्यवाणी करने, और राजनीतिक प्रणालियों के विकास का अध्ययन करने का अवसर देती है।
3. तुलना के उद्देश्य
हेग, हेरेप और मेकरिक (2016) के अनुसार, तुलनात्मक अध्ययन का उद्देश्य राजनीतिक दुनिया की समझ को विस्तृत करना और राजनीतिक परिणामों की भविष्यवाणी करना है।
4. न्यूटन और टैक का दृष्टिकोण
न्यूटन और टैक के अनुसार, अपने देश को समझने के लिए अन्य देशों की जानकारी आवश्यक है। अन्य देशों को उनके इतिहास और संस्थानों के बिना नहीं समझा जा सकता, और तुलनात्मक पद्धति के बिना सामान्यीकरण असंभव है।
तुलनात्मक पद्धति
1. हितों पर ध्यान
कुछ विचारक मानते हैं कि लोग तार्किक रूप से अपने हितों की गणना करते हैं और उसी आधार पर राजनीतिक समर्थन देते हैं। वे ऐसी शासन व्यवस्था का समर्थन करते हैं जो उनके लिए अधिक लाभकारी हो। हालांकि, केवल हितों पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं है।
2. अस्मिता (पहचान)
कई विचारकों का तर्क है कि पहचान (जैसे धर्म, जाति) राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करती है। लोग अपनी पहचान के अनुसार अपने हितों को परिभाषित करते हैं। आधुनिक समाज में नई पहचानें (जैसे लिंग, पर्यावरण) भी उभरी हैं, जो राजनीतिक संगठनों को प्रभावित करती हैं।
3. संस्थानों पर ध्यान
कुछ विचारकों के अनुसार, राजनीति को समझने में कानून और प्रक्रियाएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। संस्थाएँ राजनीतिक प्रणालियों को आकार देती हैं, और विभिन्न संस्थाएँ अलग-अलग परिणाम उत्पन्न करती हैं। उदाहरण: अमेरिका का 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' और जर्मनी का अनुपातिक चुनावी तंत्र।
4. तुलनात्मक पद्धति (J.S. Mill के अनुसार)
जे.एस. मिल ने तुलना की पाँच रणनीतियाँ दीं:
सहमति की पद्धति: समान घटनाओं में समान कारण की पहचान।
अंतर की पद्धति: विभिन्न घटनाओं में समानता का कारण।
संयुक्त पद्धति: सहमति और अंतर का संयोजन।
अवशेषों की पद्धति: ज्ञात कारणों को हटाकर शेष को कारण मानना।
सहवर्ती भिन्नताओं की विधि: घटनाओं में समानता और भिन्नता का विश्लेषण।
संयुक्त पद्धति तुलनात्मक राजनीति में अधिक प्रासंगिक है क्योंकि यह समानता और भिन्नता दोनों का विश्लेषण करती है।
5. स्थानिक और क्षैतिज तुलना
स्थानिक तुलना: समान समस्याओं वाले समाजों की तुलना।
क्षैतिज तुलना: एक ही समाज की संस्थाओं और प्रणालियों की तुलना।
उदाहरण: भारत की कांग्रेस प्रणाली और गठबंधन राजनीति।