प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन-II UNIT 1 CHAPTER 2 SEMESTER 4 THEORY NOTES हॉब्स, लॉक का दर्शन और प्रबोधन का विचार History DU.SOL.DU NEP COURSES

प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन-II UNIT 1 CHAPTER 2 THEORY NOTES हॉब्स, लॉक का दर्शन और प्रबोधन का विचार History DU.SOL.DU NEP COURSES



परिचय

प्रबोधन का उदय (1800 ईस्वी के मध्य) फ्रांस के प्रमुख बुद्धिजीवियों और दार्शनिकों के प्रयासों का परिणाम है। इसमें वाल्टेयर, डी' अलेम्बर्ट, डाइडेरोट और मॉटेस्क्यू जैसे नाम शामिल हैं। उन्होंने "एनसाइक्लोपीडिया" जैसी परियोजनाओं पर काम किया।फ्रांस के अलावा, प्रबोधन का प्रभाव अन्य देशों में भी देखा गया। जर्मनी में क्रिश्चियन वोल्फ, इमैनुएल कांट, और स्कॉटलैंड में एडम स्मिथ, डेविड ह्यूम जैसी हस्तियां प्रमुख थीं। इस आंदोलन का प्रभाव पूरे यूरोप और अमेरिका में फैल गया। हॉब्स और लॉक इस युग के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक माने जाते हैं।

 प्रबुद्धवाद का उदय 

प्रबुद्धवाद (Enlightenment) एक जटिल ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसने आधुनिक यूरोप के बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, और आर्थिक जीवन को प्रभावित किया।

  • पुनर्जागरण का प्रभाव: 14वीं सदी में आरंभ हुए पुनर्जागरण (Renaissance) ने प्राचीन शिक्षा और मानवतावाद को पुनः जागृत किया। इसने व्यक्तिगत संभावना, तर्क, और मानव उपलब्धियों को महत्त्व देकर प्रबुद्धवाद के लिए आधार तैयार किया।
  • वैज्ञानिक क्रांति का योगदान: 16वीं और 17वीं सदी की वैज्ञानिक क्रांति ने पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दी। कॉपरनिकस, गैलीलियो, और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों के प्रयोगों और अवलोकनों ने प्रबुद्ध विचारों को विज्ञान, राजनीति, नैतिकता, और धर्म में लागू करने का मार्ग प्रशस्त किया।
  • दार्शनिकों का योगदान: रेने डेकार्ट, जॉन लॉक, और डेविड ह्यूम जैसे दार्शनिकों ने तार्किकता और प्रमाणवाद पर जोर दिया। उन्होंने आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा दिया और पुराने विश्वासों और सत्ताओं को चुनौती दी।
  • प्रिंटिंग प्रेस और विचारों का प्रसार: 15वीं सदी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने पुस्तकों, पम्फलेट्स, और समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञान और नए विचारों के प्रसार को सरल बनाया। कॉफी हाउस और सैलोन जैसे सामाजिक स्थलों ने बौद्धिक आदान-प्रदान में योगदान दिया।
  • राजनीतिक और धार्मिक उथल-पुथल: प्रोटेस्टेंट पुनर्विचार, तीस वर्षीय युद्ध, और अंग्रेजी गृहयुद्ध जैसी घटनाओं ने चर्च और राजशाही जैसी पारंपरिक सत्ताओं के प्रति अविश्वास पैदा किया। इसने तर्क, समानता, और व्यक्तिगत अधिकारों पर आधारित नए राजनीतिक और सामाजिक विचारों को जन्म दिया।
  • वैश्विक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: वैज्ञानिक खोजों और व्यापार मार्गों के विस्तार ने सांस्कृतिक विविधता और वैश्विक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। इसने जातिवादी धारणाओं को चुनौती दी और नई सोच के लिए रास्ता खोला।


 प्रबुद्धवाद और 'आधुनिकता का विचार' 

  • बुद्धि और आधुनिकता का विकास: प्रबुद्धवाद ने तर्क, ज्ञान, और प्रगति पर जोर देकर आधुनिकता को बढ़ावा दिया। इसने पुराने धर्म और सत्ता के नियमों को चुनौती देकर लोगों को स्वतंत्रता, विज्ञान, और सामाजिक बदलाव की ओर प्रेरित किया।
  • तर्क और सोचने की आज़ादी: रेने डेकार्ट जैसे विचारकों ने यह सिखाया कि तर्क और सोच के ज़रिए सच्चाई तक पहुँचा जा सकता है। इसने धार्मिक विश्वासों और परंपराओं पर सवाल उठाने का रास्ता खोला।
  • वैज्ञानिक सोच का प्रभाव: फ्रांसिस बेकन और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने अनुभव और प्रयोगों पर ज़ोर दिया। इससे न केवल विज्ञान बल्कि समाज की पुरानी परंपराओं को भी नई दृष्टि से देखने की शुरुआत हुई।
  • सामाजिक संविदा और राजनीति: थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, और रूसो ने समाज और शासकों के बीच सहमति का विचार दिया। उन्होंने कहा कि राजाओं को अपनी शक्ति जनता की सहमति से चलानी चाहिए, जिससे आधुनिक लोकतंत्र की नींव पड़ी।
  • धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहिष्णुता: वॉल्टेयर और डिडेरो ने धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचारों का विरोध किया। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्ष सोच को समाज के लिए ज़रूरी बताया।
  • समाज सुधार और प्रगति: कांट और कॉन्डोर्से जैसे विचारकों ने यह विश्वास दिलाया कि शिक्षा और सुधार के ज़रिए समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।


 थॉमस हॉब्स और प्रबुद्धवाद का प्रभाव 

  • प्रबुद्धवाद और हॉब्स का योगदान: थॉमस हॉब्स ने अपनी कृति लेवियाथन में तर्क और यथार्थवादी दृष्टिकोण के आधार पर सामाजिक अनुबंध का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने समाज में स्थिरता के लिए एक मजबूत केंद्रीकृत सत्ता की आवश्यकता पर बल दिया।
  • प्रबुद्धवादी आलोचना: हॉब्स की निरंकुश राजशाही की वकालत को जॉन लॉक और रूसो ने चुनौती दी। इन दार्शनिकों ने लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता, और अधिकारों पर जोर दिया, जो हॉब्स के विचारों से भिन्न थे।
  • तर्क और अनुभववाद: हॉब्स का दर्शन तर्क और अनुभववाद पर आधारित था, जो प्रबुद्धवाद के प्रमुख सिद्धांत थे। उन्होंने मानव स्वभाव को प्रतिस्पर्धात्मक मानते हुए सामाजिक अनुबंध की जरूरत पर जोर दिया।
  • सामाजिक अनुबंध की पुनर्व्याख्या: हॉब्स के सामाजिक अनुबंध सिद्धांत को जॉन लॉक और मॉटेस्क्यू ने सीमित सरकार, शक्तियों के विभाजन, और नागरिक स्वतंत्रता के साथ पुनर्परिभाषित किया, जो आधुनिक लोकतंत्र की नींव बने।
  • प्रासंगिकता: हॉब्स के केंद्रीकृत सत्ता के समर्थन और तर्कशील दृष्टिकोण ने प्रबुद्धवाद में गहन चर्चाओं को प्रेरित किया, जिससे आधुनिक राजनीतिक विचारधारा पर गहरा प्रभाव पड़ा।

थॉमस हॉब्स और उनका राजनीतिक दर्शन

थॉमस हॉब्स (1588-1679) एक प्रमुख अंग्रेजी दार्शनिक थे जिन्होंने लेवियाथन (1651) में सामाजिक अनुबंध का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इंग्लैंड के गृह युद्ध के अनुभवों ने उनके विचारों को गहराई से प्रभावित किया।

  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत: हॉब्स ने "प्राकृतिक अवस्था" को कानून और व्यवस्था से रहित एक अराजक स्थिति बताया, जहां जीवन "एकाकी, निर्धन, क्रूर और छोटा" होता। उन्होंने इस संकट से बचने के लिए एक शक्तिशाली, केंद्रीकृत सरकार की आवश्यकता पर जोर दिया। सामाजिक अनुबंध के तहत नागरिक अपनी स्वतंत्रता का कुछ हिस्सा छोड़ते हैं और शासक को पूर्ण सत्ता सौंपते हैं।
  • निरंकुश शासन का औचित्य: हॉब्स ने निरंकुश शासन को राजनीतिक अधिकार का आदर्श रूप माना, जो स्थिरता बनाए रख सकता है। उन्होंने राजा के प्रशासन में चर्च के हस्तक्षेप का विरोध किया और शासक को धार्मिक मामलों पर भी सर्वोच्च अधिकार देने का सुझाव दिया।
  • व्यक्तिगत अधिकार और दायित्व: हॉब्स के अनुसार, नागरिकों को सुरक्षा और व्यवस्था के बदले शासक की सत्ता का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि एक बार राजा को सत्ता सौंपने के बाद, उसके खिलाफ विद्रोह का कोई अधिकार नहीं है।

हॉब्स दर्शन के प्रभाव

  • सामाजिक अनुबंध की अवधारणा: उन्होंने सरकार की आवश्यकता और नागरिकों के कर्तव्यों को परिभाषित किया।
  • केंद्रीकृत सत्ता का समर्थन: हॉब्स का दर्शन मजबूत, नियंत्रित राज्य की वकालत करता है।
  • राजनीतिक विचारों पर प्रभाव: उनके विचारों ने आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत और दार्शनिक बहसों को प्रेरित किया।
  • सामाजिक संरचना: उनकी सोच ने शक्ति, वैधता, और समाज में व्यवस्था बनाए रखने की चर्चा को बढ़ावा दिया।

 जॉन लॉक (1632-1704) 

जॉन लॉक, इंग्लैंड के महान राजनीतिक विचारक, ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से भौतिकी और चिकित्सा की पढ़ाई की। उन्होंने गौरवशाली क्रांति (1685) के दौरान प्रोटेस्टेंट संसद का समर्थन किया, जिससे इंग्लैंड में राजा की शक्ति सीमित हुई और संसद प्राथमिक शासी निकाय बन गई।

प्रमुख विचार

  • सामाजिक समझौता: लॉक के अनुसार, शांति बनाए रखने के लिए सामाजिक समझौता आवश्यक है, लेकिन लोग अपने प्राकृतिक अधिकार—जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति—को नहीं छोड़ सकते। यदि कोई शासक इन अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो जनता को विद्रोह करने और नई सरकार बनाने का अधिकार है।
  • प्राकृतिक अधिकार: लॉक ने राजा की शक्ति को जनता के प्राकृतिक अधिकारों से सीमित माना। उन्होंने संपत्ति को सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार बताया और इसे व्यापार और सार्वजनिक भलाई से जोड़ा, जो समाज की समृद्धि के लिए आवश्यक है।
  • सरकार का लक्ष्य: लॉक के अनुसार, सरकार का प्राथमिक उद्देश्य संपत्ति की रक्षा करना, व्यापार को प्रोत्साहित करना, और जनता की भलाई सुनिश्चित करना है। उन्होंने प्रतिनिधि लोकतंत्र का समर्थन किया, लेकिन प्रतिनिधि बनने के लिए संपत्ति और व्यवसाय के स्वामित्व की शर्त को जरूरी बताया।

प्रभाव

लॉक के विचार, विशेष रूप से "टू ट्रीटीज़ ऑफ गवर्नमेंट," अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव बने। उनका दृष्टिकोण व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सरकार की सीमित शक्ति को लेकर आज भी प्रासंगिक है।

लॉक दर्शन के मुख्य बिंदु

  • सीमित सरकार: लॉक ने कानून द्वारा नियंत्रित सीमित सरकार और शक्तियों के पृथक्करण का समर्थन किया ताकि अत्याचार रोका जा सके।
  • प्राकृतिक अधिकार: जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति जैसे प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए सामाजिक अनुबंध का विचार प्रस्तुत किया।
  • लोकतांत्रिक प्रभाव: लोकतंत्र, प्रतिनिधि सरकार, और क्रांति के अधिकार को प्रोत्साहित किया, जिससे अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियाँ प्रभावित हुईं।
  • धार्मिक स्वतंत्रता: धार्मिक सहिष्णुता और चर्च-राज्य के पृथक्करण का समर्थन किया।
  • संपत्ति और अर्थशास्त्र: संपत्ति को मौलिक अधिकार मानते हुए पूँजीवाद और आर्थिक नीतियों को प्रेरित किया।

प्रबुद्धवाद का जॉन लॉक पर प्रभाव

जॉन लॉक, प्रमुख प्रबुद्धवादी विचारकों में से एक, प्रबुद्धवाद के तर्क, अनुभववाद, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आदर्शों से गहराई से प्रभावित थे। उनके विचारों ने राजनीतिक दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, और शिक्षा पर स्थायी प्रभाव डाला।

  • अनुभववाद और ज्ञान: लॉक ने "An Essay Concerning Human Understanding" में अनुभव से प्राप्त ज्ञान का सिद्धांत दिया, जो प्रबुद्धवाद के तर्क और अनुभव आधारित दृष्टिकोण से मेल खाता है।
  • राजनीतिक दर्शन: "टू ट्रीटीज़ ऑफ गवर्नमेंट" में सामाजिक समझौते और प्राकृतिक अधिकार (जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति) की सुरक्षा पर जोर दिया, जो प्रबुद्धवाद के लोकतंत्र और स्वतंत्रता के विचारों को दर्शाता है।
  • धार्मिक सहिष्णुता: लॉक ने धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया और धर्म को व्यक्तिगत चेतना का विषय बताया, जिससे प्रबुद्धवादी विचारकों को प्रेरणा मिली।
  • शिक्षा और तर्क: "एजुकेशन के कुछ विचार" में व्यावहारिक और नैतिक शिक्षा पर जोर दिया, तर्क और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी, जो प्रबुद्धवाद के आदर्शों से जुड़ा है।


 इंग्लैण्ड की गौरवशाली क्रांति एवं फ्रांसीसी क्रांति 

  • गौरवशाली क्रांति (1688-1689): इंग्लैंड में कैथोलिक राजा जेम्स द्वितीय को हटाकर उनकी प्रोटेस्टेंट बेटी मैरी और विलियम ऑफ ऑरेंज को शासन सौंपा गया। संसद को राजशाही पर अधिक नियंत्रण मिला और संसदीय लोकतंत्र की नींव पड़ी। इसे "रक्तहीन क्रांति" भी कहा जाता है।
  • फ्रांसीसी क्रांति (1789): फ्रांस में सामाजिक-आर्थिक असमानता और दैवीय अधिकार सिद्धांत की आलोचना ने क्रांति को प्रेरित किया। तीसरे एस्टेट के भारी करों और अधिकारों की कमी के कारण जनता असंतोषित थी। इस क्रांति ने समानता और लोकप्रिय संप्रभुता के विचारों को बढ़ावा दिया और प्राचीन शासन का अंत किया।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.