परिचय
वैज्ञानिक क्रांति और प्रबोधन दो प्रमुख ऐतिहासिक कालखंड थे, जिन्होंने आधुनिक विज्ञान और विचारधारा की नींव रखी। वैज्ञानिक क्रांति (16वीं-17वीं शताब्दी) में भौतिकी, खगोलशास्त्र, जीव विज्ञान, गणित और रसायन विज्ञान में नई खोजें हुईं, जिन्होंने पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती दी। प्रबोधन (17वीं-18वीं शताब्दी) एक बौद्धिक आंदोलन था, जो तर्क, विवेक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित था। पुनर्जागरण, मुद्रण प्रेस, वैश्विक अन्वेषण, और धार्मिक सुधार ने इन दोनों आंदोलनों को बढ़ावा दिया। वैज्ञानिक क्रांति ने प्रबोधन की नींव रखी, जबकि प्रबोधन ने तर्क और विज्ञान को समाज और मानव व्यवहार में लागू करने पर जोर दिया।
प्रबोधन की विशेषताएँ
- प्रगति की धारणा: प्रबोधन ने मानवता की खुशहाली और प्रगति पर जोर दिया, वैज्ञानिक और भौतिक प्रगति को प्रोत्साहित किया, और युद्ध व धर्म को प्रगति की बाधाएँ माना।
- विज्ञान एवं धर्म: धर्म के अंधविश्वास और रहस्यों की आलोचना की गई, देववाद के माध्यम से समानता और सहिष्णुता को बढ़ावा दिया गया।
- मनुष्य और समाज: सत्ता और परंपराओं के अंधसमर्पण का विरोध किया, और विज्ञान व नए विचारों से समाज में सुधार व असमानता का उन्मूलन किया।
- विज्ञान और ज्ञान: विज्ञान ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और अर्थव्यवस्था में सुधार कर जीवन स्तर ऊँचा किया और समानता, न्याय, व सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।
ब्रह्मांड और पदार्थ का एक नया दृष्टिकोण
1.आधुनिक विज्ञान की जड़ें
- मध्यकालीन विचारधारा: 1500 ई. से पहले, सत्य और झूठ का निर्धारण प्राचीन ग्रीक या रोमन लेखकों के लेखन और बाइबिल की व्याख्याओं के आधार पर किया जाता था।
- भूकेन्द्रित सिद्धांत: यह सिद्धांत मानता था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। इसे यूनानी दार्शनिक अरस्तू और खगोलशास्त्री टॉलेमी ने प्रचलित किया। सूर्य, चंद्रमा, और ग्रहों की परिक्रमा को पूर्णतः वृत्ताकार माना गया। ईसाई मिशनरियों की शिक्षाओं ने इसे धार्मिक रूप से समर्थन दिया।
- वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत: 1500 के दशक के मध्य में विद्वानों ने प्राचीन धारणाओं और चर्च के सिद्धांतों को चुनौती देना शुरू किया, जिससे वैज्ञानिक क्रांति का उदय हुआ।
- नया दृष्टिकोण: वैज्ञानिकों ने प्रकृति की प्रत्यक्ष जाँच, पारंपरिक मान्यताओं पर सवाल उठाना और सावधानीपूर्वक अवलोकन पर आधारित अनुसंधान को अपनाया।
- पुनर्जागरण और खोज: यूरोपीय खोजकर्ताओं ने अफ्रीका, एशिया, और अमेरिका में नई प्रजातियों और संस्कृतियों का सामना किया। यह एहसास हुआ कि सच्चाई की खोज अभी शेष है।
- प्रिंटिंग प्रेस: प्रिंटिंग प्रेस ने विचारों और नई जानकारियों के प्रसार में मदद की और बौद्धिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया।
- खगोल विज्ञान और गणित में उन्नति: समुद्री अन्वेषण के लिए बेहतर उपकरणों की आवश्यकता ने खगोल विज्ञान और गणित में अनुसंधान को बढ़ावा दिया।
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
- वैज्ञानिक पद्धति का विकास: कॉपरनिकस, केप्लर, और गैलीलियो के प्रयासों से वैज्ञानिक सोच ने वैज्ञानिक पद्धति का रूप लिया। यह पद्धति अवलोकन से उत्पन्न प्रश्नों की पहचान, परिकल्पना निर्माण, और प्रयोगों या डेटा विश्लेषण के माध्यम से परीक्षण के चरणों पर आधारित है। निष्कर्षों का मूल्यांकन प्रारंभिक परिकल्पना की पुष्टि या खंडन करता है।
- गैलीलियो का वैज्ञानिक योगदान: गैलीलियो गैलीली ने खगोल विज्ञान में दूरबीन का उपयोग करके महत्वपूर्ण खोजें कीं। उन्होंने 1609 में अपनी दूरबीन बनाई और बृहस्पति के चार चंद्रमा, सूर्य के धब्बे, और चंद्रमा की असमान सतह का अवलोकन किया। उनकी खोजों ने अरस्तू की धारणा को खारिज कर, कॉपरनिकस के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान की।
- चर्च अधिकारियों के साथ संघर्ष: गैलीलियो की खोजों ने चर्च के स्थापित सिद्धांतों को चुनौती दी। 1616 में, चर्च ने उन्हें हेलियोसेंट्रिज्म का समर्थन करने से मना किया। 1632 में, उनके द्वारा कॉपरनिकस सिद्धांत का समर्थन करते हुए प्रकाशित पुस्तक ने उन्हें चर्च के गुस्से का सामना करने पर मजबूर किया।
- न्यायिक जाँच और आत्मसमर्पण: 1633 में गैलीलियो ने न्यायिक जाँच के तहत कॉपरनिकस सिद्धांत से अपना समर्थन वापस ले लिया। यह घटना वैज्ञानिक अन्वेषण और धार्मिक रूढ़िवाद के बीच संघर्ष का प्रतीक है, जो इस युग के वैज्ञानिकों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है।
3. प्रायोगिक विधि की शुरुआत
- वैज्ञानिक पद्धति का विकास: शुरुआती वैज्ञानिकों ने अवलोकन, प्रयोग, और प्राकृतिक घटनाओं के व्यवस्थित वर्गीकरण पर जोर दिया। गैलीलियो ने त्रुटियों को पहचानने और परिणामों को सत्यापित करने के लिए प्रयोगों को दोहराने की प्रक्रिया विकसित की।
- अनुभवजन्य दृष्टिकोण: फ्रांसिस बेकन ने अनुभवजन्य अनुसंधान और आगमनात्मक तर्क की पद्धति विकसित की, जिसमें विशेष उदाहरणों से सामान्य सत्य की स्थापना की जाती है। विलियम गिल्बर्ट ने चुंबकत्व पर विस्तृत प्रयोग किए, जिससे अनुभववाद को बल मिला।
- कॉपरनिकस का योगदान: निकोलस कॉपरनिकस ने सूर्य-केंद्रित मॉडल का प्रस्ताव देकर ब्रह्मांड की पारंपरिक भू-केंद्रित धारणा को चुनौती दी। उनके सिद्धांतों ने खगोलीय घटनाओं को सरलता से समझाया, जिससे खगोलीय अध्ययन में क्रांति आई।
- टाइको ब्राहे का कार्य: टाइको ब्राहे ने बिना दूरबीन के तारों और ग्रहों के विस्तृत अवलोकन किए। उन्होंने एक विशिष्ट मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, और सूर्य पृथ्वी की। उनके सटीक आँकड़े खगोलीय अध्ययन में मील का पत्थर साबित हुए।
- जोहान्स केप्लर की अण्डाकार कक्षाएँ: केप्लर ने ग्रहों की गति के तीन नियम स्थापित किए। उन्होंने पाया कि ग्रह अण्डाकार कक्षाओं में चलते हैं और सूर्य के पास आने पर तेज गति करते हैं। उनके नियमों ने खगोलीय गणनाओं को एक नई दिशा दी।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रभाव: प्रायोगिक विधि के विकास ने वैज्ञानिक अध्ययन को व्यवस्थित और तार्किक बनाया। इससे खगोल विज्ञान, भौतिकी और अन्य विज्ञानों में प्रगति हुई, जो आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की नींव बनी।
4. न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का रहस्य
- आधारभूमि: 1600 के दशक में कॉपरनिकस, केप्लर, और गैलीलियो की खोजों ने खगोल विज्ञान और भौतिकी के पुराने सिद्धांतों को तोड़ दिया। इसी काल में आइजैक न्यूटन ने गति और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों को एकीकृत कर क्रांतिकारी योगदान दिया।
- न्यूटन का योगदान: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विद्वान न्यूटन ने माना कि सभी भौतिक संस्थाएँ समान शक्तियों का अनुभव करती हैं। उनका प्रमुख सिद्धांत यह था कि आकाशीय और सांसारिक गति एक ही शक्ति, सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण, द्वारा नियंत्रित होती हैं।
- गुरुत्वाकर्षण का नियम: न्यूटन के अनुसार, ब्रह्मांड में हर वस्तु अन्य वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण बल लगाती है। यह बल वस्तुओं के द्रव्यमान और उनके बीच की दूरी पर निर्भर करता है।
- प्रमुख रचना: 1687 में न्यूटन ने अपनी पुस्तक "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत" प्रकाशित की। उन्होंने ब्रह्मांड को एक विशाल घड़ी तंत्र के रूप में चित्रित किया, जिसमें हर घटक गणितीय नियमों से सटीक रूप से समन्वित है।
- न्यूटन की दृष्टि: न्यूटन ने यह भी माना कि ब्रह्मांड की यह जटिल संरचना ईश्वर की रचना है, जो इसे गति में स्थापित करने वाला मुख्य वास्तुकार है। उनकी खोजों ने भौतिकी और खगोल विज्ञान में नई राहें खोलीं।
वैज्ञानिक पद्धति पर चिंतन
1.विज्ञान का संस्थानीकरण:
- शुरुआती गतिविधियाँ: 17वीं शताब्दी में शिक्षित मध्यम वर्ग और शिल्पकारों ने सर्वेक्षण, धातु विज्ञान, इंजीनियरिंग, और उपकरण निर्माण में वैज्ञानिक प्रगति की।
- रॉयल सोसाइटी: 1645 में अनौपचारिक रूप से शुरू हुई और 1662 में औपचारिक रूप से गठित हुई, वैज्ञानिक खोजों को वाणिज्यिक और औद्योगिक समस्याओं के समाधान में केंद्रित किया।
- फ्रांसीसी रॉयल अकादमी: कोलबर्ट द्वारा प्रेरित, इसने खगोल विज्ञान, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, और रसायन विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा दिया।
- फ्रांसिस बेकन का योगदान: उनकी पुस्तक "द न्यू अटलांटिस" (1627) ने प्रयोगशालाओं और शोध संस्थानों की अवधारणा दी, जो विज्ञान के व्यावसायीकरण का आधार बनी।
- विज्ञान का प्रचार: बर्नार्ड डी फॉटनेले ने अपने लेखन के माध्यम से आम जनता में विज्ञान को लोकप्रिय बनाया।
2. प्रमुख वैज्ञानिक प्रगति
- भौतिकी और यांत्रिकी: