ADS468

ADS

भारतीय राजनीति और सरकार UNIT 8 SEMESTER 2 THEORY NOTES सामाजिक आंदोलन : मजदूर, किसान, पर्यावरण और महिला आंदोलन DU. SOL.DU NEP COURSES

भारतीय राजनीति और सरकार UNIT 8 SEMESTER 2 THEORY NOTES सामाजिक आंदोलन : मजदूर, किसान, पर्यावरण और महिला आंदोलन DU. SOL.DU NEP COURSES

परिचय

सामाजिक आंदोलन समाज में दृष्टिकोण, व्यवहार और संबंधों में बदलाव लाने के लिए लोगों के संगठित और सामूहिक प्रयास हैं। ये गैर-संस्थागत माध्यमों से सामाजिक व्यवस्था में बदलाव का प्रयास करते हैं। आमतौर पर यह आंदोलन असंतोष, वंचना, और संस्थागत समस्याओं के कारण उत्पन्न होते हैं और दीर्घकालिक और संगठित होते हैं।

 कृषक आंदोलन (Peasant Movements) 

  • कृषि पर निर्भरता और संरचनात्मक बदलाव: स्वतंत्रता के पाँच दशकों के बाद भी भारत की 63% आबादी कृषि पर निर्भर है। सामंती संरचना से पूँजीवादी संरचना तक बदलाव आया है। 1960 के दशक से कृषि उत्पादन बाज़ार अभिमुखी हुआ, जिससे ग्रामीण-शहरी विभाजन कमजोर हुआ और कृषक समाज की संरचना, वर्ग, और चेतना में महत्वपूर्ण बदलाव आए।
  • किसान और कृषि श्रमिक वर्गीकरण: कृषि पर निर्भर लोग भूमि स्वामित्व के आधार पर भिन्न हैं, जैसे अनुपस्थित जमींदार, भूस्वामी-खेतिहर, बटाईदार, काश्तकार, और भूमिहीन श्रमिक। अंग्रेज़ी में "Peasant" शब्द का उपयोग किसानों के लिए किया गया है, लेकिन इसका अर्थ अलग संदर्भों में भिन्न होता है।
  • कृषि मजदूरों की समस्याएँ: समकालीन भारत में कृषि मजदूर एक ही स्वामी से बंधे नहीं होते। पूँजीवादी कृषि में श्रमिक वर्ग के आपसी संबंध कमजोर हुए हैं। हाल के दशकों में कृषि मजदूर अधिक वैतनिक श्रम पर निर्भर हो गए हैं, लेकिन उनके जीवन और कार्य की स्थितियाँ नियंत्रित करने वाले नियोक्ताओं से उनके संबंधों में गिरावट आई है।


 वर्गीकरण (Classification) 

भारत में कृषक आंदोलनों को उनके समय के आधार पर मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है:

  • पूर्व-स्वतंत्रता काल: यह वह समय था जब किसान ब्रिटिश शासन के दौरान शोषण और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करते थे। इन आंदोलनों में ज़मींदारी प्रथा और आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष शामिल थे।
  • उत्तर-स्वतंत्रता काल: उत्तर-स्वतंत्रता काल को मुख्यतः तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है: पूर्व और उत्तर नक्सलवाद काल, पूर्व और उत्तर हरित क्रांति काल, और इसके बाद पूर्व और उत्तर आपातकाल काल। इन विभिन्न चरणों में किसानों के अधिकारों, भूमि सुधार, और न्यूनतम वेतन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आंदोलनों ने जोर दिया।

उत्तर-स्वतंत्रता काल की विशेषताएँ:

स्वतंत्रता के पहले और बाद के आंदोलनों में लक्ष्यों और मुद्दों में स्पष्ट अंतर देखा गया। ए. आर. देसाई ने उपनिवेशी भारत को तीन हिस्सों में विभाजित किया: रैयतवारी क्षेत्र, जमींदारी क्षेत्र, और जनजातीय क्षेत्र, जिनमें प्रत्येक क्षेत्र के संघर्ष अलग-अलग थे। उत्तर-स्वतंत्रता काल में आंदोलन का मुख्य केंद्र गरीब किसान और मजदूर वर्ग बने, जो अपने अधिकारों और समस्याओं के समाधान के लिए संघर्षरत थे।

लक्ष्य एवं उद्देश्य (Aims and Objectives)

1. पूर्व-स्वतंत्रता काल के उद्देश्य

  • सामंती व्यवस्था का अंत।
  • किसानों को आर्थिक शोषण से मुक्ति।
  • किसानों को आर्थिक और राजनीतिक अधिकार देना

2. महत्वपूर्ण आंदोलन

  • सन्थाल और नील विद्रोह: 19वीं शताब्दी के प्रमुख किसान विद्रोह।
  • चम्पारन सत्याग्रह (1917): गाँधी जी ने नील की खेती करने वाले किसानों के लिए आंदोलन किया।
  • खेरा सत्याग्रह (1918): भूमि कर वसूली के खिलाफ।
  • बारडोली सत्याग्रह (1928): सरदार पटेल द्वारा भूमिकर कानून का विरोध।

2. उत्तर-स्वतंत्रता काल के उद्देश्य

  • भूमि सुधारों के लिए प्रयास।
  • किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाना।
  • कृषि और औद्योगिक वस्तुओं के दाम में संतुलन बनाना।
  • कृषि श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करना।


 महिला आंदोलन (Women Movement) 

भारतीय समाज में महिलाओं की समस्याएँ जाति, वर्ग, धर्म, और नृजातीय विविधताओं के कारण भिन्न-भिन्न हैं। परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया महिलाओं पर अलग-अलग प्रभाव डालती है। इस असमान समाज में महिला आंदोलन की आवश्यकता महसूस हुई। प्रारंभिक सुधारवादी आंदोलनों का नेतृत्व पुरुष सुधारकों ने किया, जबकि उत्तर-स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व महिलाओं ने किया।

  • प्रारंभिक सुधारवादी आंदोलन: 19वीं शताब्दी में राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों ने महिलाओं के सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, और संपत्ति अधिकार जैसे मुद्दों पर आवाज उठाई। उनके प्रयासों से विधवाश्रम, कन्या विद्यालय, और कानूनों का निर्माण हुआ।
  • वर्गीकरण: नीरा देसाई और गेल ओमवेड्ट ने महिला आंदोलनों को "समानता के लिए आंदोलन" और "स्वतंत्रता के लिए आंदोलन" के रूप में वर्गीकृत किया। जाना ईवरेट ने इसे "निगमित नारीवाद" और "उदारवादी नारीवाद" में विभाजित किया।
  • स्वतंत्रता-संघर्ष और महिलाएँ: महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल किया। महिलाओं ने प्रभात फेरियों, भूमिगत कार्यकर्ताओं की सहायता, और जेल यात्राओं जैसे कार्यों में भाग लिया।
  • उत्तर-स्वतंत्रता महिला आंदोलन: स्वतंत्रता के बाद, महिलाओं की कानूनी समानता सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए गए। प्रमुख महिला संगठन जैसे AIWC, NFIW, और AIDWA ने महिलाओं के मुद्दों को उठाया।
  • पर्यावरण-नारीवादी आंदोलन: उत्तराखंड का चिपको आंदोलन महिलाओं की सक्रिय भागीदारी का उदाहरण है, जिसमें महिलाओं ने वनों की कटाई रोकने में अहम भूमिका निभाई।
  • चुनौतियाँ: महिला आंदोलन असमानता के मूलभूत ढाँचों को चुनौती देता है, जिससे बाहरी और आंतरिक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। लेकिन इन आंदोलनों ने महिलाओं की स्थिति सुधारने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।


 श्रमिक आंदोलन (Workers Movement) 

  • औद्योगीकरण और श्रमिक वर्ग का विकास: 19वीं शताब्दी में पश्चिमी तकनीक पर आधारित उद्योगों का आगमन भारत में हुआ। पहली कपड़ा मिल 1855 में बंबई में शुरू हुई, और जूट का कारखाना कलकत्ता में स्थापित हुआ। 20वीं शताब्दी तक सूती और जूट उद्योग, चाय की खेती, और रेलवे जैसे क्षेत्रों में लाखों श्रमिक कार्यरत थे।
  • पूर्व-स्वतंत्रता काल में श्रमिक आंदोलन: श्रमिक आंदोलन की शुरुआत 20वीं शताब्दी में हुई। 1920 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई। श्रमिकों ने बेहतर वेतन, कार्य स्थिति में सुधार और अधिकारों के लिए हड़तालें कीं। गांधीजी के नेतृत्व में अहमदाबाद के कपड़ा श्रमिक संघ और 1920 में जमशेदपुर में TISCO श्रमिकों की हड़तालें प्रमुख रही। 1926 के ट्रेड यूनियन अधिनियम ने पंजीकृत संघों को कानूनी दर्जा दिया।
  • स्वतंत्रता संघर्ष और श्रमिक वर्ग: 1920-30 के दशकों में श्रमिक वर्ग ने स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश राज के खिलाफ हड़तालें कीं।
  • उत्तर-स्वतंत्रता काल में श्रमिक आंदोलन: स्वतंत्रता के बाद, श्रमिक आंदोलन ने राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को उठाया। 1950 और 1960 के दशकों में श्रमिकों ने औद्योगिक नीतियों, वेतन, और महँगाई के खिलाफ हड़तालें कीं। 1974 की रेलवे हड़ताल सबसे बड़ी हड़तालों में से एक थी, जिसमें वेतन बढ़ाने और अन्य सुविधाओं की माँग की गई।
  • राजनीतिक दल और श्रमिक संगठन: AITUC, हिंद मजदूर सभा (HMS), और भारतीय मजदूर संघ (BMS) जैसे संघों का विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंध रहा। DMK और ADMK जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी श्रमिक संघ बनाए।


 प्रमुख पर्यावरण आंदोलन (Major Environmental Movements) 

1972 में स्टॉकहोम के संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन ने पर्यावरण संरक्षण और सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। 1980 के दशक में "ग्रीन मूवमेंट" और "इको-ग्रीन्स" जैसे आंदोलनों ने भारत सहित विश्व में पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया। इस समय पर्यावरणीय मुद्दों पर अनुसंधान और जागरूकता बढ़ाने के लिए कई संस्थानों और समूहों की स्थापना हुई।

  • चिपको आंदोलन: 1970 के दशक में उत्तराखंड के तेहरी क्षेत्र में वनों की कटाई रोकने के लिए चिपको आंदोलन शुरू हुआ। इसका नेतृत्व सुंदरलाल बहुगुणा और महिलाओं ने किया। इसका मुख्य उद्देश्य वनों की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण करना था।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन: मेधा पाटेकर के नेतृत्व में नर्मदा नदी पर बांध निर्माण के विरोध में यह आंदोलन शुरू हुआ। इसका उद्देश्य विस्थापन और पर्यावरण विनाश के खिलाफ संघर्ष करना था। इस आंदोलन ने बड़े बांधों की आवश्यकता पर सवाल उठाया।
  • तरुण भारत संघ (राजस्थान): 1986 में जल संरक्षण के लिए यह आंदोलन शुरू किया गया। जोहाद (रोकबांध) के निर्माण से जल संकट के समाधान में मदद मिली।
  • साइलेंट वैली आंदोलन: यह आंदोलन केरल की साइलेंट वैली परियोजना के खिलाफ शुरू हुआ। इसका उद्देश्य विशिष्ट पारिस्थितिकी को बचाना था।
  • सुलभ आंदोलन: यह आंदोलन शौचालय निर्माण और स्वच्छता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया।
  • मत्स्य समुदाय आंदोलन (कर्नाटक): 1989 में समुद्री प्रदूषण के खिलाफ यह प्रदर्शन हुआ। इसका उद्देश्य समुद्री पर्यावरण और मत्स्य समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना था।



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.