भारत में सार्वजनिक संस्थान UNIT 7 SEMESTER 4 THEORY NOTESपारदर्शिता और जवाबदेही (क) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (ख) केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) DU SOL DU NEP COURSES

भारत में सार्वजनिक संस्थान UNIT 7 THEORY NOTESपारदर्शिता और जवाबदेही (क) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (ख) केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) DU SOL DU NEP COURSES


 (क) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 


परिचय

जवाबदेही का मतलब है, कार्य की विफलता या भूलों के लिए जिम्मेदारी तय करना। यह उत्तरदायित्व (निर्णयों की जानकारी देना) और प्रवर्तन (उल्लंघन पर कार्रवाई) के माध्यम से सुनिश्चित होता है। लोकतंत्र में सरकार और संस्थाओं का जनता के प्रति जवाबदेह और पारदर्शी होना आवश्यक है। भारत में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) जैसी संवैधानिक संस्थाओं का गठन वित्तीय जवाबदेही और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए किया गया है। CAG, संविधान के अनुच्छेद 148-151 में प्रावधानित, भारत का सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्थान है जो केंद्र और राज्यों की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।


  नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के कार्य

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत, कैग के स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 149 में संसद को कैग की शक्तियों और कर्तव्यों का निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है। संसद ने डीपीसी अधिनियम, 1971 के माध्यम से कैग के कार्यों और अधिकारों को स्पष्ट किया। कैग को सरकार के व्ययों की लेखा परीक्षा का अधिकार देकर इसे एक सशक्त संस्था के रूप में स्थापित किया गया।

लेखा परीक्षा के प्रकार

  • अनुपालन लेखा परीक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि लागू कानूनों, नियमों, और प्रावधानों का सही तरीके से पालन हो रहा है या नहीं।
  • वित्तीय लेखा परीक्षा: इसमें जांचा जाता है कि वित्तीय जानकारी और रिपोर्ट नियामक ढांचे और वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों के अनुसार प्रस्तुत की गई है या नहीं।
  • प्रदर्शन लेखा परीक्षा: यह संस्थानों के कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करती है।अनुपालन और वित्तीय लेखा परीक्षा अनिवार्य हैं, जबकि प्रदर्शन लेखा परीक्षा विवेकाधीन है।

कैग की भूमिका

  • लोक वित्त का संरक्षक: कैग सरकार के व्ययों की लेखा परीक्षा कर रिपोर्ट तैयार करता है, जिससे सार्वजनिक वित्त की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
  • वित्तीय प्रशासन की निगरानी: कैग का मुख्य कर्तव्य संविधान और संसद के विधियों के तहत वित्तीय प्रशासन की निगरानी करना है।
  • कार्यकारी को जवाबदेह बनाना: कैग अपनी रिपोर्ट के माध्यम से कार्यकारी (मंत्रिपरिषद) को संसद के प्रति वित्तीय उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है।
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार: कैग सार्वजनिक वित्त के संरक्षक के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाता है।


 कैग का महत्व 

  • संसाधनों का संधारणीय उपयोग सुनिश्चित करना: भारत जैसे विकासशील देश में, संसाधनों का स्थायी और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। कैग, एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय के रूप में, यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का उपयोग भ्रष्टाचार-मुक्त तरीके से देश के विकास में हो।
  • भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश: कैग की भूमिका अन्य भ्रष्टाचार निरोधी संस्थाओं जैसे सीबीआई और सीवीसी से अधिक महत्वपूर्ण है। सीवीसी केवल ग्रुप 'ए' और बड़े अधिकारियों तक सीमित है, जबकि कैग पूरी वित्तीय प्रणाली की निगरानी करता है। कैग वित्तीय उत्तरदायित्व और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण होता है।
  • संविधान में महत्वपूर्ण स्थान: संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कैग को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी माना। यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा अनुमोदित खर्चों की सीमा का उल्लंघन न हो और धन का उपयोग केवल विनियोग अधिनियम में निर्दिष्ट मदों पर ही किया जाए।
  • घोटालों का उजागर करना: कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट के माध्यम से बोफोर्स रक्षा घोटाला, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला खनन घोटाला, और राष्ट्रीय मण्डल खेल परियोजना घोटाला जैसे कई बड़े राजनीतिक और वित्तीय घोटालों का पर्दाफाश किया है।
  • गठबंधन सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका: गठबंधन सरकार के दौर में कैग ने आर्थिक विकास की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाई, जिससे इसकी संवैधानिक महत्ता और प्रभावशीलता और अधिक बढ़ गई।
  • उच्च स्तर की शपथ और कार्यक्षेत्र: कैग को संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान शपथ दी जाती है। समय के साथ, कैग का कार्यक्षेत्र बढ़ा है और अब यह सेबी, यातायात विभाग, आवास विभाग, और महानगर विभाग जैसे बड़े उद्यमों की भी जांच करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन: कैग INTOSAI द्वारा तय अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करता है, जिससे इसकी कार्यप्रणाली और भी सटीक और प्रभावी हो जाती है।
  • संसद में कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना: कैग अपनी ऑडिट रिपोर्ट के माध्यम से संसद को कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने में मार्गदर्शन प्रदान करता है।


 जन जागरूकता 

आपका लेख संरचना में स्पष्ट और प्रभावी है। इसे संक्षेप में और सरल तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है:

  • 2014 के चुनावों में भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा: भ्रष्टाचार 2014 के लोकसभा चुनावों का केंद्र रहा। CAG की ऑडिट रिपोर्ट और अन्ना आंदोलन ने जनता को जागरूक कर भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट किया।
  • CAG ने घोटालों का पर्दाफाश किया: CAG ने कांग्रेस सरकार की वित्तीय अनियमितताओं और घोटालों को उजागर किया। इसके कारण NDA को बहुमत मिला और कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई।
  • लोकतंत्र में जनता का बदलाव: भ्रष्टाचार से नाराज जनता ने 2014 में लोकतांत्रिक तरीके से बदलाव किया, जिससे लोकतंत्र और भ्रष्टाचार के प्रति जागरूकता बढ़ी।
  • CAG की भूमिका और चुनौतियां: CAG ने वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ावा दिया। हालांकि, राजनीतिक दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, लेकिन इस संस्था ने जनता को सशक्त बनाया।

 इतिहास 

  • स्थापना और प्रारंभिक दौर: CAG की स्थापना 1858 में ब्रिटिश सरकार ने की। 1860 में सर एडवर्ड ड्रम्स पहले ऑडिटर जनरल बने। 1866 में इसे नियंत्रक महालेखा परीक्षक और 1884 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) नाम दिया गया।
  • ब्रिटिश काल के सुधार: 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने CAG को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर वैधानिक दर्जा दिया। 1935 के अधिनियम में संघीय और प्रांतीय लेखा परीक्षकों के लिए प्रावधान किया गया।
  • स्वतंत्रता के बाद का विकास: स्वतंत्रता के बाद अनुच्छेद 148 के तहत राष्ट्रपति द्वारा CAG की नियुक्ति का प्रावधान हुआ। 1971 के अधिनियम ने CAG को लेखा परीक्षा की जिम्मेदारी दी और लेखांकन कार्यों से मुक्त किया।
  • उपलब्धियां: CAG ने निष्पक्ष ऑडिट रिपोर्ट के जरिए सार्वजनिक वित्त और शासन में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित की। यह सुशासन का प्रतीक बनकर देश को वैश्विक अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करता रहा है।


 संवैधानिक स्थिति: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) 

1. संवैधानिक प्रावधान

CAG की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 के तहत की गई है।

  • अनुच्छेद 148: CAG की नियुक्ति, सेवाशर्तें और शपथ।
  • अनुच्छेद 149: CAG के कर्तव्यों और शक्तियों का विवरण।
  • अनुच्छेद 150: संघ और राज्यों के खातों का विवरण CAG की सलाह पर राष्ट्रपति के अनुसार रखा जाएगा।
  • अनुच्छेद 151: CAG की रिपोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल को दी जाएगी और संसद या विधानमंडल में पेश की जाएगी।
  • अनुच्छेद 279: CAG द्वारा प्रमाणित शुद्ध आय का प्रमाण अंतिम माना जाएगा।
  • तीसरी अनुसूची: CAG के शपथ ग्रहण का प्रावधान।

2. स्वतंत्रता और स्वायत्तता

  • CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति 6 साल या 65 वर्ष की आयु तक के लिए करते हैं। इसे केवल संविधान में लिखी प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने जैसी है। इसके सेवाशर्तों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।

3. प्रशासनिक व्यय और शक्तियां

  • CAG का खर्च भारत की संचित निधि से लिया जाता है, जिस पर संसद में केवल चर्चा हो सकती है, मतदान नहीं। CAG के अधिकारियों की सेवाशर्तें राष्ट्रपति CAG की सलाह से तय करते हैं।


 कैग की भूमिका 

1. जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना

  • कैग का मुख्य कार्य सार्वजनिक धन की निगरानी करना और यह सुनिश्चित करना है कि धन प्रभावी और ईमानदारी से खर्च किया जाए। यह वित्तीय प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

2. ऑडिट और जांच

कैग के पास विभिन्न सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के खातों की ऑडिट करने की शक्ति है, जिसमें शामिल हैं:

  • संघ और राज्यों की संचित निधि।
  • आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते।
  • सरकारी कार्यालयों के स्टोर और स्टॉक।
  • सरकारी कंपनियों और केंद्रीय निगमों के खाते।
  • समेकित निधि से वित्त पोषित प्राधिकरणों और निकायों के खाते।

3. भ्रष्टाचार उजागर करना

कैग ने कई बड़े घोटालों को उजागर किया, जैसे:

  • बोफोर्स रक्षा घोटाला।
  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला।
  • कोयला खनन घोटाला।
  • राष्ट्रमंडल खेल आयोजन घोटाला।
  • इन घोटालों की रिपोर्ट्स ने जनता को जागरूक किया और अन्ना आंदोलन जैसे राष्ट्रीय आंदोलनों का आधार बनीं।

4. लोकतंत्र और राजनीतिक बदलाव में भूमिका

  • 2014 के लोकसभा चुनावों में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बना, जिससे जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को पूर्ण बहुमत दिया। कैग की रिपोर्ट्स ने इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. चुनौतियां

  • कैग की रिपोर्ट्स ने राजनीतिक दलों द्वारा इसकी संवैधानिक स्थिति और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए, लेकिन यह संस्था अपनी निष्पक्षता और जवाबदेहिता के जरिए लोकतंत्र को सशक्त बनाती रही है।


 आलोचना 

1. प्रतिभा संकट

कैग को आज प्रतिभा की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसमें दो प्रकार की समस्याएं हैं:

  • मात्रात्मक संकट: संस्था में पर्याप्त पद भरे नहीं गए हैं, और कई पद खाली हैं।
  • गुणात्मक संकट: कर्मचारियों में कौशल और प्रशिक्षण की कमी है, जिससे उनके काम की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

2. चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव

  • कैग की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह से गोपनीय और अपारदर्शी है, जहां किसी स्पष्ट मानदंड या प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता। इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों ने पारदर्शी प्रणालियां अपनाई हैं। जैसे, यूके में प्रधानमंत्री द्वारा चयन के बाद संसद इसकी पुष्टि करती है, अमेरिका में सीनेट की सहमति के बाद नियुक्ति होती है, और कनाडा में सीनेट तथा हाउस ऑफ कॉमन्स दोनों मिलकर नियुक्ति करते हैं। भारत में ऐसी प्रणाली न होने के कारण कैग की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।

3. चयनात्मक सक्रियता

  • कैग पर यह आरोप है कि यह केवल कुछ विशेष मामलों में सक्रिय रहता है और जहां सरकार पर दबाव बढ़ सकता है, वहां अक्सर चुप्पी साध लेता है। उदाहरण के लिए, 2015 में कैग ने 55 रिपोर्ट पेश की थीं, जबकि 2020 में यह संख्या घटकर केवल 14 रह गई। ऐसे घटनाक्रमों के कारण कैग को सरकार का पक्ष लेने वाला भी कहा जाता है, जिससे उसकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर प्रश्न खड़े होते हैं।

4. रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल

  • IOSAI के अनुसार, कैग की 50% रिपोर्ट साक्ष्य आधारित नहीं होती हैं। इससे रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है और इसके निष्कर्षों को लेकर सवाल उठते हैं।

5. लोकतंत्र पर प्रभाव

  • कैग पर उठने वाले सवाल लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करते हैं। इससे भारतीय लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।



 (ख) केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) 


परिचय

अमिताभ मुखोपाध्याय के अनुसार, संसदीय लोकतंत्र उत्तर-औपनिवेशिक समाजों में उत्तरदायी सरकार के प्रति विश्वास उत्पन्न करता है, लेकिन भ्रष्टाचार और प्रभुत्व के कारण यह कलंकित हुआ है। शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व आवश्यक हैं। पारदर्शिता नागरिकों को सरकारी कार्यों और नीतियों की जानकारी तक पहुंच देती है, जिससे लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ती है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है। उत्तरदायित्व शासकों को अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह बनाता है और सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है। ये दोनों ही तत्व कुशल शासन और जनकल्याण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचाररोधी उपाय

1. भ्रष्टाचार का स्वरूप और प्रभाव

  • भ्रष्टाचार का अर्थ है सत्ता या पद का दुरुपयोग करके व्यक्तिगत लाभ उठाना। यह रिश्वत, गबन, भाई-भतीजावाद, धोखाधड़ी जैसे कई रूपों में होता है। यह संस्थानों को कमजोर करता है, जनता का विश्वास तोड़ता है और विकास में बाधा डालता है।

2. चुनावी खर्च और भ्रष्टाचार

  • भारत में चुनावी खर्च एक बड़ा कारण है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। चुनावों में खर्च की भरपाई के लिए राजनीति में अनैतिक तरीके अपनाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए चुनाव सुधार जरूरी हैं, जैसा कि दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी सुझाया है।

3. भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाएं

  • कैग (CAG): सार्वजनिक धन का सही उपयोग सुनिश्चित करता है।
  • सीबीआई (CBI): भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करता है लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण इसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
  • सीवीसी (CVC): वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों पर नजर रखता है लेकिन अपनी जांच एजेंसी न होने के कारण प्रभावी नहीं है।

4. व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014

  • यह कानून सरकारी संगठनों में गलत कामों की जानकारी देने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 2014 में लागू किए गए इस अधिनियम का उद्देश्य सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने वालों को उत्पीड़न से बचाना है। यह कानून उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है, जिससे वे बिना डर के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकें।

5. सतर्कता जागरूकता और सुधार

  • सीवीसी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए विज ई (vig EYE) परियोजना शुरू की। हर साल अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में सतर्कता जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है, जो सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित है।


 केंद्रीय सतर्कता आयोग एक ऐतिहासिक विकास 

  • इतिहास और स्थापना: 1962 में संथानम समिति ने बढ़ते भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त की और सुझाव दिया कि एक स्वतंत्र सतर्कता निकाय बनाया जाए। इस सिफारिश के आधार पर 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की स्थापना की गई। यह केंद्र सरकार के सतर्कता मामलों की निगरानी के लिए एक शीर्ष निकाय बना।
  • संरचना और नियुक्ति प्रक्रिया: CVC एक वैधानिक निकाय है जिसे 1998 में कानूनी दर्जा मिला। इसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो सतर्कता आयुक्त शामिल होते हैं। इनकी नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति (प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विपक्ष के नेता) द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल 4 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है। हटाने की प्रक्रिया केवल राष्ट्रपति द्वारा, सुप्रीम कोर्ट के जज के समान होती है। CVC का वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से लिए जाते हैं।
  • कार्य और भूमिकाएं: CVC का मुख्य उद्देश्य सरकारी प्रशासन में पारदर्शिता और नैतिकता को बढ़ावा देना है। यह केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार रोकने के उपायों पर सलाह देता है, शिकायतों की जांच करता है और कार्रवाई की सिफारिश करता है। साथ ही, यह व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करता है और सरकारी कर्मचारियों के लिए नैतिकता और ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है।
  • शक्तियां और अधिकार: CVC के पास भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच और निगरानी करने की शक्ति है। यह CBI को निर्देश दे सकता है और लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है। इसके अलावा, यह केंद्र सरकार के अधीन निगमों और संगठनों में भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की प्रगति की समीक्षा करता है।
  • सीमाएं और चुनौतियां: CVC के पास अपनी स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं है, जिससे यह CBI पर निर्भर रहता है। इसके निष्कर्षों और सिफारिशों पर पर्याप्त बहस नहीं होती, जिससे सुधारात्मक कार्रवाई में देरी होती है।


 सीमाएँ 

  • सलाहकार निकाय की सीमाएं: CVC केवल एक सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है, जिसके पास प्रत्यक्ष दंडात्मक शक्तियों का अभाव है। इसकी सलाह केंद्र सरकार के विभागों की सहमति पर निर्भर करती है, जिससे इसे लागू करने की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है।
  • सीमित अधिकार क्षेत्र: CVC का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के कर्मचारियों तक ही सीमित है। इसके पास संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ स्वतंत्र जांच शुरू करने की शक्ति नहीं है, जिससे इसके कार्यक्षेत्र में बाधा आती है।
  • निर्णय लेने में देरी: नौकरशाही प्रक्रियाओं और कानूनी जटिलताओं के कारण CVC को निर्णय लेने में देरी का सामना करना पड़ता है। इससे भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को तुरंत सुलझाने की इसकी क्षमता प्रभावित होती है।
  • स्वतंत्रता पर प्रभाव: केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति में सरकार की सीधी भागीदारी के कारण CVC की स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं। यह इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य करने से रोक सकता है।
  • संसाधनों की कमी: CVC के पास केवल 299 कर्मचारी हैं, जो केंद्र सरकार के कई विभागों को संभालने के लिए अपर्याप्त हैं। इस कारण शिकायतों पर गौर करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • आपराधिक मामलों में शक्तियों का अभाव: CVC केवल अनुशासनात्मक मामलों से निपटता है और आपराधिक मामले दर्ज करने की शक्ति नहीं रखता। इससे इसके भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।










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