भारत में सार्वजनिक संस्थान UNIT 5 SEMESTER 4 THEORY NOTES भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) DU SOL DU NEP COURSES

भारत में सार्वजनिक संस्थान UNIT 5 THEORY NOTES भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) DU SOL DU NEP COURSES


परिचय

मानवाधिकार व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग है, जिसकी सुरक्षा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राज्य मानवाधिकार आयोग सुनिश्चित करते हैं। ये संस्थाएँ जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के संरक्षण में अहम भूमिका निभाती हैं। इस अध्ययन में आयोग की संरचना, कार्यशैली, नियुक्ति प्रक्रिया, शक्तियों और सीमाओं का विश्लेषण किया जाएगा। साथ ही, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 और 2019 के संशोधन के प्रभाव की तुलना और आयोग की कार्यक्षमता, चुनौतियों, व सुधार की आवश्यकता पर चर्चा की जाएगी, ताकि यह न्यायपूर्ण और भरोसेमंद बना रहे।

 मानवाधिकार 

1.मानवाधिकार का कानूनी अर्थ

  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अनुसार, मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्ति के जीवन, आज़ादी, समानता और सम्मान से जुड़े हैं। ये भारतीय संविधान में दिए गए हैं और अदालतों द्वारा लागू किए जा सकते हैं।

2.अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में मानवाधिकार

मानवाधिकारों में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत शामिल अधिकार भी आते हैं, जैसे:
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकार।
  • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार।
  • इन समझौतों को 16 दिसंबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपनाया।

3.मानवाधिकार आयोग का उद्देश्य

  • मानवाधिकार आयोग का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन, सम्मान, आज़ादी और बराबरी की रक्षा करना है। यह धर्म, भाषा, लिंग, जाति, नस्ल, या राष्ट्रीयता के आधार पर किसी भी भेदभाव को खत्म करने के लिए काम करता है।


 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का प्रावधान 

  • संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार चार्टर (1948): संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई, जिसका उद्देश्य सभी देशों में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। 10 दिसंबर 1948 को मानवाधिकार चार्टर तैयार किया गया, जिसे सभी देशों ने अपनाया। हालांकि, इसमें 5 विकसित देशों को वीटो शक्ति दी गई। देशों को इस चार्टर को अपने संविधान में शामिल करना अनिवार्य किया गया।
  • भारत की भूमिका और मानवाधिकार आयोग की स्थापना: भारत ने मानवाधिकार चार्टर को अपनाते हुए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मानवाधिकार आयोग बनाए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को 1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत 12 अक्टूबर 1993 को वैधानिक दर्जा मिला।
  • संविधान में मानवाधिकार प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 19, 20, 21, 23, 24, 39, 43 और 45 न्याय, समानता, स्वतंत्रता और सम्मान की गारंटी देते हैं।
  • राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और 2021 में इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा थे। राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन राज्यपाल द्वारा किया जाता है। वर्तमान में 26 राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग स्थापित हैं। राज्य आयोगों के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अनंत मनोहर बदर (सेवानिवृत्त) हैं।


 मानवाधिकार आयोग: संरचना, भूमिका और प्रक्रिया 

मानवाधिकार आयोग एक महत्वपूर्ण संस्था है, जो राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मानवाधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करती है। इसकी संरचना, भूमिका और प्रक्रिया का विवरण निम्न प्रकार से है।

1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

(i) अध्यक्ष और सदस्य:

  • प्रथम अध्यक्ष : न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र।
  • अध्यक्ष का पद भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को दिया जाता है।
  • 5 पूर्णकालिक और 7 डीम्ड सदस्य।
  • कार्यकाल: 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु (जो पहले हो)।

(ii) नियुक्ति प्रक्रिया:

  • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति।
  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति की सिफारिश पर।

(iii) चयन समिति में शामिल सदस्य:

  • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
  • लोकसभा अध्यक्ष
  • केंद्रीय गृह मंत्री
  • राज्यसभा उपसभापति
  • विपक्ष के नेता (लोकसभा और राज्यसभा)।

2.राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC)

(i) संरचना:

  • एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य।

(ii) नियुक्ति प्रक्रिया:

  • मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्ति।

(iii) समिति में शामिल सदस्य:

  • मुख्यमंत्री (अध्यक्ष)
  • विधानसभा अध्यक्ष
  • गृह मंत्री
  • विधानसभा में विपक्ष के नेता।

3.पद से इस्तीफा और हटाने की प्रक्रिया

(i) इस्तीफा:

  • अध्यक्ष या सदस्य अपने हस्ताक्षर सहित राष्ट्रपति को लिखित सूचना देकर पद छोड़ सकते हैं।

(ii) पद से हटाने का आधार:

  • कदाचार या असमर्थता
  • सर्वोच्च न्यायालय की जांच और सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

(iii) अन्य आधार:

  • दिवालिया घोषित होना।
  • पद के कर्तव्यों के बाहर सवेतन कार्य करना।
  • मानसिक या शारीरिक अयोग्यता।
  • विकृतचित्त घोषित होना।
  • नैतिक अधमता वाले अपराध में दोषी ठहराया जाना।


 मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक, 2019 बनाम 1993 का  

  • संशोधन की पृष्ठभूमि: गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 8 जुलाई 2019 को लोकसभा में मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया गया, जिसे 19 जुलाई को लोकसभा और 22 जुलाई को राज्यसभा ने पारित किया। यह विधेयक 1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में बदलाव करने के लिए लाया गया था।
  • अध्यक्ष की पात्रता: 1993 के अधिनियम में केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता था। 2019 के संशोधन के तहत, अब मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी अध्यक्ष बनने के पात्र हैं।
  • सदस्यों की संख्या और प्रतिनिधित्व: पहले आयोग में मानवाधिकारों का ज्ञान रखने वाले दो सदस्य शामिल किए जाते थे। संशोधन में इसे बढ़ाकर तीन कर दिया गया है, जिसमें एक महिला और विभिन्न क्षेत्रों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिला, बाल अधिकार और विकलांगता आयोग के चेयरपर्सन को शामिल किया गया है।
  • राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की पात्रता: 1993 के अधिनियम में राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष केवल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो सकता था। संशोधन के बाद, अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
  • कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति: पहले अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता था और पुनर्नियुक्ति की 5 वर्ष की सीमा थी। 2019 के संशोधन में कार्यकाल घटाकर 3 वर्ष कर दिया गया है, और पुनर्नियुक्ति की समयसीमा को हटा दिया गया है।
  • प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ: 1993 के अधिनियम के तहत, सेक्रेटरी जनरल और सेक्रेटरी को केवल सीमित कार्य दिए जाते थे। संशोधन में इन्हें चेयरपर्सन के नियंत्रण में प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिससे उनका अधिकार बढ़ गया है।
  • केंद्र और राज्य आयोग के बीच शक्तियों का बँटवारा: 1993 के अधिनियम में केंद्रशासित प्रदेशों के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था। 2019 के संशोधन के तहत, केंद्र सरकार को राज्य मानवाधिकार आयोग को केंद्रशासित प्रदेशों के मामलों की जिम्मेदारी सौंपने का अधिकार दिया गया है। दिल्ली में मानवाधिकार मामलों की जिम्मेदारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दी गई है।


 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग: कार्य, सफलता और कमियाँ 

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने और उनकी सुरक्षा के लिए कार्य करता है। इसके कार्यों में शामिल हैं:
  • उल्लंघन के मामले: मानवाधिकार उल्लंघनों में मनमानी गिरफ्तारी, हिरासत, यातना, न्यायेतर हत्याएँ, बाल श्रम, तस्करी, यौन हिंसा, और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन शामिल हैं। LGBTQ समुदाय, अनुसूचित जाति, जनजाति, विकलांग, और श्रमिक अधिकारों के साथ-साथ सिर पर मैला ढोने जैसी प्रथाओं का उन्मूलन भी प्रमुख चिंताएँ हैं।
  • NHRC की सफलताएँ: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हिरासत में यातना और अन्याय पर सख्त कदम उठाए हैं। बाल श्रम और तस्करी के खिलाफ जनजागरूकता बढ़ाई है। न्यायेतर हत्याओं पर रिपोर्ट और सिफारिशें दी हैं। साथ ही, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई है।
  • NHRC की कमियाँ और सीमाएँ:

1. कार्यवाही पर प्रतिबंध: एक वर्ष से पुराने मामले और गुमनाम शिकायतें स्वीकार नहीं होतीं; सशस्त्र बलों के मामलों में हस्तक्षेप निषिद्ध।

2. संसाधन की कमी: निधि, मानव संसाधन और नौकरशाही बाधाओं से कार्यक्षमता प्रभावित।

3. सीमित अधिकार क्षेत्र: पेंशन, मजदूरी और गैर-लोक सेवा मामलों पर विचार नहीं।


 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग: उद्धरणों के माध्यम से भूमिका का विश्लेषण 

NHRC की भूमिका और चुनौतियाँ

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) मानवाधिकारों की रक्षा और उल्लंघनों पर कार्रवाई करता है, लेकिन भारत में गरीबी, भूख, और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करता है। संयुक्त राष्ट्र और इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, देश की बड़ी आबादी भूख, पानी की कमी, और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है।

  • शरणार्थी और राज्यविहीन व्यक्तियों की समस्या: शरणार्थियों के मामले NHRC के लिए बड़ी चुनौती हैं। असम ने शरणार्थियों को शरण देने से इनकार किया, जबकि अरुणाचल प्रदेश में चकमा-हजोंग समुदाय को नागरिकता दी गई, जिससे सामाजिक असंतोष उत्पन्न हुआ।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली की समस्याएँ: NHRC के अनुसार, अपराधों की जाँच, कुशल अभियोजन, और अदालतों में न्याय देने में देरी जैसी समस्याएँ आपराधिक न्याय प्रणाली को कमजोर करती हैं। कश्मीर जैसे क्षेत्रों में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं, जहाँ हजारों मामले लंबित हैं।
  • सफलताएँ और कमियाँ: NHRC ने कई क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाई है, जैसे बाल श्रम, महिलाओं के अधिकार, और यौन हिंसा पर कार्रवाई। लेकिन कमीशन को वित्तीय संसाधनों की कमी, निर्णय प्रक्रिया में देरी, और आयोग में विविधता की अनुपस्थिति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • सार और सुधार की आवश्यकता: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, अपनी भूमिका के बावजूद, गरीबी, भूख, और मूलभूत अधिकारों की कमी जैसी समस्याओं के समाधान में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए कुछ प्रमुख कदम उठाने की आवश्यकता है, जैसे:

1.भोजन का अधिकार सुनिश्चित करना।

2. शिक्षा का अधिकार और बाल शोषण पर रोक।

3.महिलाओं को घरेलू हिंसा और शारीरिक शोषण से सुरक्षा।

4. प्रवास और धार्मिक हिंसा से रक्षा।





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.