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भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 6 CHAPTER 11 SEMESTER 4 THEORY NOTES मुगलकालीन अर्थव्यवस्था : व्यापार एवं वाणिज्य DU.SOL.DU NEP COURSES

भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 6 CHAPTER 11 THEORY NOTES मुगलकालीन अर्थव्यवस्था : व्यापार एवं वाणिज्य DU.SOL.DU NEP COURSES



 मुगल काल में व्यापार और वाणिज्य 

1.आंतरिक और बाह्य व्यापार

मुगल काल में आंतरिक और बाह्य व्यापार उन्नति पर था। प्राचीन काल से ही भारत का बाहरी देशों के साथ वाणिज्यिक संबंध था।

  • आंतरिक व्यापार: देश की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के बाद शेष सामग्री का बाह्य देशों को निर्यात किया जाता था।
  • बाह्य व्यापार: भारत का व्यापार प्रशांत महासागर से लेकर भूमध्यसागर तक फैला हुआ था।
  • मार्ग: युद्ध के समय विशाल सेनाएँ इन मार्गों से गुजरती थीं, और व्यापारी यातायात के लिए सुरक्षित मार्गों का उपयोग करते थे।

2. विदेशी व्यापार

  • मुख्य व्यापारिक केंद्र:मुल्तान, लाहौर, कश्मीर, कैम्बे, पटना, आगरा, हुगली, सतगाँव, और चटगाँव। समुद्री मार्ग और स्थल मार्ग दोनों का उपयोग होता था।
  • निर्यात वस्तुएँ:कपास, रेशम, अनाज, नील, चंदन, अफीम, मसाले, और काली मिर्च।
  • भारतीय वस्त्रों की जावा, सुमात्रा, अरब, और यूरोप में बड़ी माँग थी।
  • आयात वस्तुएँ: सोना, चाँदी, घोड़े, मोती, फल, और औषधीय जड़ी-बूटियाँ। अरब और फारस से खजूर, घोड़े, और रत्न।

3. समुद्री व्यापार

  • समुद्री व्यापार मुख्यतः विदेशी व्यापारियों के नियंत्रण में था। प्रमुख समुद्री मार्गों में फारस की खाड़ी मार्ग और लाल सागर मार्ग शामिल थे, हालांकि लाल सागर मार्ग खतरनाक होने के बावजूद प्रचलित था। भारत से वस्तुओं का निर्यात अफ्रीका, दमिश्क, सिकंदरिया, चीन, और इंडोनेशिया जैसे स्थानों पर होता था।

4. स्थलीय व्यापार

  • स्थलीय व्यापार के मुख्य मार्ग काबुल, मुल्तान, और खैबर दर्रे से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक थे। भारत से कपड़े, चीनी, नील, और जड़ी-बूटियाँ निर्यात होती थीं, जबकि सूखे मेवे, ताजे फल, कस्तूरी, तिब्बती गाय, और शहद आयात होते थे। नेपाल, तिब्बत, और भूटान से कस्तूरी, इलायची, ऊन, और चिरैता के बदले वस्त्र, नमक, और मसाले भेजे जाते थे।

5. व्यापार संतुलन

  • व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था, क्योंकि विदेशी व्यापारी भारतीय वस्त्र, मसाले, और औषधियों के बदले सोना और चाँदी लाते थे। इस व्यापारिक समृद्धि ने भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया और विदेशी आक्रमणकारियों को भी आकर्षित किया।


 विदेशी और भारतीय व्यापारी 

  • आंतरिक व्यापार: मुगल काल में आंतरिक व्यापार जीवंत और संगठित था। प्रमुख भारतीय व्यापारी समुदायों में गुजराती, मुल्तानी, राजपूत, मारवाड़ी बनिये, और चेट्टियों का वर्चस्व था, जबकि विदेशी व्यापारियों में अरब, तुर्क, और खुरासानी शामिल थे। व्यापारिक केंद्र मुल्तान, लाहौर, दिल्ली, पटना, कोचीन, और नागपट्टनम् जैसे स्थान थे, जहाँ अनाज, चीनी, मक्खन, नमक, और सूती कपड़े जैसी वस्तुओं का व्यापार होता था। फेरी लगाकर और चलती-फिरती दुकानों के माध्यम से व्यापार किया जाता था।
  • विदेशी व्यापार: मुगल काल में विदेशी व्यापारियों में प्रमुखता से अरब और तुर्क व्यापारी शामिल थे। वास्को-डी-गामा के आगमन के बाद पुर्तगालियों ने समुद्री व्यापार में प्रमुख स्थान हासिल किया। भारत से कपास, अनाज, मसाले, और अफीम जैसी वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं, जबकि घोड़े, सोना, चाँदी, और मोती आयात किए जाते थे। प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में पुलीकट, हुगली, कासिम बाजार, और कोचीन शामिल थे।
  • परिवहन के साधन: सड़क मार्गों का उपयोग कच्ची सड़कों के माध्यम से व्यापारिक माल ढोने के लिए किया जाता था, और यात्रियों के लिए सराय, पेड़ों की छाया, और पानी की व्यवस्था की जाती थी। राजपूताना क्षेत्र में भाट मार्गदर्शन और सुरक्षा प्रदान करते थे। नदी परिवहन सस्ता और सुविधाजनक था, जिसमें गंगा, यमुना, और झेलम प्रमुख नदियाँ थीं। व्यापारी आगरा से बंगाल और लाहौर से सिंध तक नावों का उपयोग करते थे।
  • शुल्क और सुरक्षा: व्यापार मार्गों पर विभिन्न स्थानों पर चूँगी (ढाई प्रतिशत) शुल्क लगाया जाता था, और बड़े बाजारों तथा बंदरगाहों पर अतिरिक्त शुल्क वसूला जाता था। मुगल बादशाहों ने व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डाकुओं के खिलाफ कठोर दंड दिया। व्यापारी सुरक्षा के लिए काफिलों में यात्रा करते थे।


 मुगलकालीन अंतर-प्रादेशिक व्यापार: प्रमुख केंद्र और वस्तुएं 

  • बंगाल: बंगाल से चावल, चीनी, और मक्खन समुद्री मार्ग से कराची और कोरोमंडल तक भेजे जाते थे। गुजरात को चीनी और दक्षिण भारत को गेहूँ निर्यात किया जाता था।
  • बिहार: पटना एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। यहाँ से चावल और रेशम अन्य क्षेत्रों में भेजा जाता था। बदले में गेहूँ, चीनी, और अफीम आयात होती थी।
  • आगरा: आगरा विभिन्न वस्तुओं के आयात-निर्यात का केंद्र था। यह बंगाल से सिल्क और चीनी, तथा पूर्वी प्रांतों से चावल और मक्खन प्राप्त करता था। यहाँ से उत्तम गुणवत्ता का नीला रंग, गेहूँ, और कपड़े भारत और विदेशों में भेजे जाते थे।
  • लाहौर और मुल्तान: लाहौर और मुल्तान उत्तर-पश्चिम व्यापार के प्रमुख केंद्र थे। लाहौर दरियों के लिए प्रसिद्ध था, और मुल्तान चीनी, अफीम, और ऊँटों के व्यापार के लिए।
  • गुजरात: गुजरात वाणिज्य का बड़ा केंद्र था। यहाँ से कपड़े, रुई, और तंबाकू भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया को भेजे जाते थे। अहमदाबाद और कँबे प्रमुख व्यापारिक स्थल थे।
  • बीदर: बीदर अपने बूँटेदार कपड़े और आभूषणों के लिए प्रसिद्ध था। बिदरी वेयर यहाँ की खासियत थी।
  • सिंध: सिंध से गेहूँ, जौ, और सूती कपड़े भारत के अन्य भागों में निर्यात होते थे। बदले में चावल, चीनी, मसाले, और इमारती लकड़ी मंगाई जाती थी।
  • केरल और मालाबार: केरल से काली मिर्च का निर्यात होता था। पुलीकट का छपा कपड़ा और मलाबार से नारियल, इलायची, और मसाले अन्य क्षेत्रों को भेजे जाते थे।
  • विजयनगर और कोरोमंडल: विजयनगर और कोरोमंडल का व्यापार मलाबार के व्यापारी संचालित करते थे। यहाँ से चावल और कपड़े का निर्यात होता था, जबकि धातु, मसाले, और रत्नों का आयात किया जाता था।
  • अन्य केंद्र: अजमेर, जौनपुर, बुरहानपुर, लखनऊ, और गोलकुंडा जैसे शहर भी व्यापार के प्रमुख केंद्र थे। गोलकुंडा का गोआ, मछलीपट्टम, और सूरत से सीधा व्यापारिक संपर्क था।
यह व्यापारिक नेटवर्क मुगलकालीन भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार था और स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देता था।

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