भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 5 CHAPTER 9 SEMESTER 4 THEORY NOTES समाज, संस्कृति और धर्म : सूफीवाद, नक्शबंदी DU.SOL.DU NEP COURSES

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प्रस्तावना

सूफीवाद इस्लाम की रहस्यमय परंपरा है, जिसका उद्देश्य आत्मा और ईश्वर के बीच सीधे संबंध स्थापित करना है। हालांकि सूफीवाद शरिया को मान्यता देता है, यह उसके औपचारिक पालन से अलग रहते हुए, ईश्वर से आंतरिक संवाद पर जोर देता है।भारत ने सूफीवाद को एक सुरक्षित और पोषित वातावरण प्रदान किया, जहाँ विभिन्न सूफी सिलसिले विकसित हुए। मुगल काल में नक्शबंदी सिलसिला विशेष रूप से प्रभावशाली था, जिसने धर्म, समाज, संस्कृति और राजनीति को प्रभावित किया।यह पाठ सूफीवाद की उत्पत्ति, भारत में इसके विस्तार, और विभिन्न सूफी सिलसिलों, विशेषकर नक्शबंदी सिलसिले की शिक्षाओं और प्रभावों का वर्णन करता है। साथ ही, नक्शबंदी सिलसिला से जुड़े विवादों और आलोचनाओं को भी समाहित किया गया है।


 भारत में सूफीवाद: ऐतिहासिक संदर्भ 

  • प्रारंभिक आगमन और स्थापित सूफी संत: सूफीवाद की भारत में शुरुआत अल हुजविरी (1088 ई.) से मानी जाती है, जिनकी कब्र लाहौर में स्थित है। उन्होंने सूफीवाद पर एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ कश्फ-उल महजूब की रचना की, जो सूफी सिद्धांतों पर प्रकाश डालता है।
  • 13वीं शताब्दी में सूफीवाद का विस्तार: दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ 13वीं शताब्दी में सूफीवाद का प्रसार हुआ। मंगोल आक्रमण के कारण भारत एक सुरक्षित क्षेत्र बन गया, जिससे सूफी संतों और शरणार्थियों का आगमन बढ़ा।
  • सूफी खानकाहों की स्थापना: 13वीं-14वीं शताब्दी में भारत में सूफी खानकाहों की स्थापना हुई। पंजाब, देवगिरि, मुल्तान और बंगाल सूफी गतिविधियों के मुख्य केंद्र बन गए। 14वीं शताब्दी तक दिल्ली और आसपास 2000 से अधिक खानकाहें अस्तित्व में थीं, जो सूफी संस्कृति के प्रसार का प्रतीक थीं।
  • भारतीय विचारों का प्रभाव: भारतीय परंपराओं और मूल्यों ने सूफीवाद को सहिष्णुता, सामंजस्य और आध्यात्मिकता से समृद्ध किया। यह इस्लामी आदर्शों और स्थानीय संस्कृति के मेल से विकसित हुआ, जो भारतीय समाज में गहराई से जुड़ गया।


 सूफीवाद के सिलसिले 

सूफी सिलसिलों का उद्देश्य इस्लामी सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों का प्रचार था। वे अपने सरल जीवन और उच्च सोच से स्थानीय निवासियों को प्रभावित करते थे। कई लोग उनके उपदेश सुनकर और उनके आदर्शों से प्रेरित होकर सूफी सिलसिलों में शामिल हो गए। इन सिलसिलों ने समाज में सूफी आदर्शों पर आधारित एक अनुकूल वातावरण बनाया।

भारत में सूफी सिलसिलों में निम्न प्रमुख थे:

1. चिश्ती सिलसिला

2. कादरिया सिलसिला

3. सुहरावर्दी सिलसिला

4. नक्शबंदी सिलसिला


 नक्शबंदी सिलसिला 

नक्शबंदी सिलसिला की स्थापना ख्वाजा बहा-उल-दीन नक्शबंद ने की थी। इस सिलसिले को भारत में बाबर ने लाया। अन्य सूफी सिलसिलों जैसे चिश्ती और कादिरी की तुलना में यह कम सहिष्णु था। नक्शबंदी सिलसिला अपनी उत्पत्ति इस्लाम के पहले खलीफा अबू बकर से मानता है, जबकि अन्य सूफी सिलसिले अली से अपनी उत्पत्ति मानते हैं। इस सिलसिले ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाने का सुझाव भी दिया।

1. धार्मिक दर्शन

  • धार्मिक दर्शन में वहदत-उल-वजूद और वहदत-उल-शाहूद जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल हैं। वहदत-उल-वजूद, जिसे इब्न-उल-अरबी ने प्रतिपादित किया, अस्तित्व की एकता का सिद्धांत है। दूसरी ओर, शेख अहमद सरहिंदी ने वहदत-उल-शाहूद का विचार दिया, जो उपस्थिति की एकता पर आधारित है। इन दोनों सिद्धांतों के बीच विवाद ने नक्शबंदी सिलसिले में मतभेद उत्पन्न कर दिए।

2.भारत में प्रभाव

  • भारत में नक्शबंदी सिलसिले का प्रभाव महत्वपूर्ण रहा। इसके प्रमुख संतों में शेख अहमद सरहिंदी और शाह वली उल्ला शामिल हैं। शेख अहमद सरहिंदी ने अकबर की 'सुलह-ए-कुल' नीति का विरोध किया, जबकि शाह वली उल्ला ने वहदत-उल-वजूद और वहदत-उल-शाहूद के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया। मुगल दरबार में नक्शबंदी संतों की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जहां उन्होंने राजाओं को इस्लामी शासन और न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की सलाह दी।

3.सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान

  • धार्मिक: धार्मिक सद्भाव में नक्शबंदी सिलसिले ने विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और आपसी समझ को बढ़ावा दिया। ख्वाजा बाकी बिल्लाह जैसे संत अपने उदार दृष्टिकोण के कारण सभी धर्मों में समान रूप से लोकप्रिय थे। उनकी शिक्षाओं ने समाज में शांति और सौहार्द का वातावरण बनाया।
  • सांस्कृतिक: नक्शबंदी सिलसिले का सांस्कृतिक योगदान साहित्य, संगीत, वास्तुकला, सुलेख, और उर्स उत्सव में दिखाई देता है। शेख अहमद सरहिंदी की मकतूबात साहित्य में प्रसिद्ध है। कव्वाली और सूफी समा ने आध्यात्मिक संगीत को बढ़ावा दिया। सूफी दरगाहें सादगी और विनम्रता का प्रतीक बनीं। सुलेख कला में कुरान की आयतों और सूफी कविताओं का कलात्मक प्रस्तुतीकरण हुआ। उर्स त्योहार सूफी संतों की पुण्यतिथि पर श्रद्धा से मनाया जाता है।

4.आध्यात्मिक अभ्यास 11 सिद्धांत:

  • श्वास पर ध्यान (हश दार दम)।
  • कदमों पर नजर (नजर ब कदम)।
  • आत्मनिरीक्षण (सफर दार वतन)।
  • शांति और ध्यान (खल्वत दर अंजुमन)।
  • स्मृति और ध्यान (याद करदा)।
  • संयम (बाज गश्त)।
  • सतर्कता (निगार दास्तां)।
  • सकारात्मक स्मृति (याद दास्तां)।
  • समय का उपयोग (उकुफ जमानी)।
  • दिक्र का अभ्यास (उकुफ अदानी)।
  • हृदय शुद्धि (उकुफ कल्बी)।

5.समकालीन प्रभाव

  • वैश्विक पहचान: नक्शबंदी सिलसिला आज भी दुनिया भर में फैला हुआ है।
  • महत्व: यह इस्लामी रहस्यवाद और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।


 नक्शबंदी सिलसिला: आलोचना और विवाद  

  • अन्य सूफी सिलसिलों से आलोचना: नक्शबंदी सिलसिले की मौन ध्यान और आंतरिक आध्यात्मिकता की परंपरा की चिश्ती और कादिरी सिलसिलों ने आलोचना की, क्योंकि वे सामूहिक और अभिव्यक्तिपूर्ण प्रथाओं (जैसे नृत्य और जोरदार धिक्र) पर जोर देते थे।
  • गैर-इस्लामी प्रथाओं की निंदा: शेख अहमद सरहिंदी ने गैर-इस्लामी और रहस्यमय प्रथाओं की सख्त आलोचना की। कुछ ने इसे सराहा, लेकिन कई ने इसे विभाजनकारी और सख्त माना।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: नक्शबंदी संतों द्वारा मुगल दरबार में राजनीतिक मामलों को प्रभावित करने पर आलोचना हुई। इसे सूफीवाद की तटस्थता और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए खतरा माना गया।
  • आंतरिक विवाद: नेतृत्व और शिक्षाओं की व्याख्या को लेकर गुटबाजी और विवाद उत्पन्न हुए, जिससे सिलसिले की एकता और प्रभाव कमजोर हुआ।
  • पृथक अभ्यासों की आलोचना: व्यक्तिगत ध्यान और आध्यात्मिक प्रथाओं ने सामुदायिक पूजा से दूरी बनाई, जिससे समाज और समुदाय से अलगाव की आलोचना हुई।
  • व्यक्तित्व पर जोर: व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास पर जोर देने से सांस्कृतिक एकीकरण और सामाजिक सहयोग कमजोर हुआ।
  • राजनीतिक शक्तियों के साथ संबंध: मुगल शासकों से संबंधों ने उनकी आध्यात्मिक स्वायत्तता पर सवाल खड़े किए। राजनीतिक हस्तक्षेप से उनके उद्देश्यों के राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग होने का डर पैदा हुआ।




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