भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 4 CHAPTER 8 SEMESTER 4 THEORY NOTES मुगल चित्रकला DU.SOL.DU NEP COURSES

भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 4 CHAPTER 8 THEORY NOTES मुगल चित्रकला DU.SOL.DU NEP COURSES

परिचय

मुगल चित्रकला भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य के दौरान उभरी एक अनूठी कला परंपरा है, जो अपने जीवंत रंगों, बारीकी, और फारसी, मध्य एशियाई व भारतीय शैलियों के संयोजन के लिए प्रसिद्ध है। 16वीं से 19वीं सदी के बीच अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ जैसे शासकों के संरक्षण में इस कला का उत्कर्ष हुआ।मुगल चित्रकला में दरबारी जीवन, ऐतिहासिक घटनाएँ, धार्मिक और साहित्यिक विषय प्रमुख हैं। काइरोस्कोरो और परिप्रेक्ष्य तकनीकों का उपयोग इसकी खासियत है। प्रमुख कलाकारों में बसावन, दसवंत और बिशन दास शामिल हैं। मुगल चित्रकला ने कला और संस्कृति को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।


 बाबर (1526-1530) 

  • बाबर ने भारत में फारसी कला और संस्कृति की शुरुआत की। तैमूरी वंशज बाबर, एक विद्वान और प्रकृति प्रेमी, फारसी चित्रकला में रुचि रखते थे। हालाँकि, अपने छोटे शासनकाल और राजनीतिक प्राथमिकताओं के कारण वे कला के विकास को बढ़ावा नहीं दे सके।


 हुमायूँ (1530-1556) 

  • हुमायूँ ने फारस में निर्वासन के दौरान फारसी कला और चित्रकला में रुचि विकसित की। उन्होंने दो प्रमुख कलाकारों, मीर सैय्यद अली और अब्द-अल-समद को भारत बुलाकर मुगल चित्रकला की नींव रखी। उन्होंने "दास्तान-ए-अमीर हमजा" जैसे महाकाव्यों के चित्रण की शुरुआत की, जिसे उनके उत्तराधिकारी अकबर ने पूरा किया।


 अकबर (1556-1605): मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग 

  • अकबर का शासन और कला का विकास:अकबर ने 13 वर्ष की उम्र में गद्दी संभाली और 50 वर्षों तक शासन किया। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया। अकबर ने हिंदू और फारसी संस्कृति के समन्वय पर जोर दिया। उन्होंने हिंदू महाकाव्यों और धार्मिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद और सचित्र प्रस्तुतीकरण करवाया, जिससे कला और साहित्य को नया आयाम मिला।

1. चित्रकला में योगदान

  • शाही चित्रशाला (अटेलियर): अकबर ने शाही अटेलियर की स्थापना की, जहाँ हिंदू और फारसी कलाकारों को आमंत्रित किया गया। मीर सैय्यद अली, अब्द-अल-समद, बसावन, दसवंत, और मिस्किन जैसे प्रमुख कलाकारों ने "हमजानामा," "रामायण," और "महाभारत" जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों को सचित्र बनाया।
  • सहयोगात्मक चित्रण प्रक्रिया: अकबर के शासनकाल में चित्रकला एक सहयोगात्मक प्रक्रिया थी, जहाँ कई कलाकार मिलकर चित्र बनाते थे। एक कलाकार रेखाचित्र तैयार करता, दूसरा रंग भरता और अन्य कलाकार पृष्ठभूमि या आकृति को उकेरते, जिससे चित्र में सामंजस्य और जटिलता आती।
  • यथार्थवादी शैली: अकबर ने यथार्थवादी चित्रण को बढ़ावा दिया, जो उनके समय की कला का मुख्य आकर्षण बना। चित्रों में प्रकृति, मानव जीवन, और राजदरबार के दृश्य इतने जीवंत बनाए जाते थे कि वे यथार्थ के निकट लगते थे।

2.  प्रमुख कृतियाँ

  • हमजानामा
  • रज्मनामा (महाभारत)
  • रामायण
  • अकबरनामा


 जहाँगीर (1605-27) 

1. चित्रकला में योगदान

  • शाही चित्रशाला (अटेलियर): अकबर ने शाही अटेलियर की स्थापना की, जहाँ हिंदू और फारसी कलाकारों को आमंत्रित किया गया। मीर सैय्यद अली, अब्द-अल-समद, बसावन, दसवंत, और मिस्किन जैसे प्रमुख कलाकारों ने "हमजानामा," "रामायण," और "महाभारत" जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों को सचित्र बनाया।
  • सहयोगात्मक चित्रण प्रक्रिया: अकबर के शासनकाल में चित्रकला एक सहयोगात्मक प्रक्रिया थी, जहाँ कई कलाकार मिलकर चित्र बनाते थे। एक कलाकार रेखाचित्र तैयार करता, दूसरा रंग भरता और अन्य कलाकार पृष्ठभूमि या आकृति को उकेरते, जिससे चित्र में सामंजस्य और जटिलता आती।
  • यथार्थवादी शैली: अकबर ने यथार्थवादी चित्रण को बढ़ावा दिया, जो उनके समय की कला का मुख्य आकर्षण बना। चित्रों में प्रकृति, मानव जीवन, और राजदरबार के दृश्य इतने जीवंत बनाए जाते थे कि वे यथार्थ के निकट लगते थे।

2. चित्रकला की विशेषताएँ

  • मुराक्का (एल्बम): जहाँगीर ने मानक आकार के चित्रों से बने मुराक्का तैयार करवाए। हर पृष्ठ सुलेख और सजावटी सीमाओं से सुशोभित होता था।
  • प्रकृति प्रेम: फूलों, पक्षियों और पशुओं का यथार्थवादी चित्रण उनकी रुचि का मुख्य केंद्र था। कलाकारों को भ्रमण पर ले जाकर प्राकृतिक दृश्यों को चित्रित करने का आदेश दिया।
  • दरबारी जीवन और समूह चित्रण: समूह चित्र, दरबार के दृश्य, और उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ चित्रित की गईं। उदाहरण: गुलाब-पाशी उत्सव और शाहजहाँ को विदाई के दृश्य।

3. महत्त्वपूर्ण कृतियाँ

  • गुलाब-पाशी उत्सव: सम्राट के चारों ओर दरबारियों का सजीव चित्रण।
  • मुराक्का एल्बम: शिकार, पक्षियों, फूलों, और समकालीन जीवन का दस्तावेज़।
  • टर्की कॉक का चित्रण: जीवंत पंख और पृष्ठभूमि में गहराई।
  • जेब्रा और गिरगिट का चित्रण: फारसी शैली और भारतीय यथार्थवाद का मिश्रण।

4. जहाँगीर की विशेष रुचियाँ

  • जहाँगीर ने अपने चित्रों में प्रतीकवाद को महत्त्व दिया, जो उनकी गहरी विचारशीलता को दर्शाता है।
  • वे रहस्यवाद और सूफी संतों के प्रति अत्यधिक आकर्षित थे और उन्हें अक्सर उनके साथ दर्शाया गया।
  • जहाँगीर को "सुपर ह्यूमन" के रूप में चित्रित करने वाले चित्र उनकी महत्वाकांक्षाओं और सार्वभौमिक शासन के स्वप्न को प्रकट करते हैं।


 शाहजहाँ (1627-1658)

  • शाहजहाँ का शासन वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन उन्होंने चित्रकला का संरक्षण जारी रखा।
  • कला में परिष्कृत शैली अपनाई गई, जिसमें सोने और पेस्टल रंगों का प्रयोग अधिक था।
  • प्रमुख चित्र: मयूर सिंहासन पर शाहजहाँ।
  • इस काल में रात्रि दृश्यों और सियाही कलम से चित्रण का चलन शुरू हुआ।


औरंगजेब (1658-1707)

  • औरंगजेब, कट्टर और रूढ़िवादी होने के कारण कला के प्रति उदासीन था, जिससे मुगल कला और संस्कृति ने अपनी जीवंतता खो दी। हालाँकि, उनके अंतिम वर्षों में कुछ चित्रण मिले हैं, जिनमें उन्हें दाढ़ी वाले बुजुर्ग के रूप में दिखाया गया है, जो शिकार कर रहे हैं या कुरान लिए हुए हैं।


 लोकप्रिय मुगल स्कूल 

  • दिल्ली के शाही अटेलियर: मुगल काल में दिल्ली का शाही अटेलियर उत्तरी भारत के सैकड़ों चित्रकारों के लिए एक प्रमुख केंद्र था। जो कलाकार शाही मानकों को पूरा नहीं कर सके, उन्हें अन्य कुलीनों के महलों में काम करने का अवसर दिया गया।
  • हिंदू कुलीनों का योगदान: हिंदू कुलीनों ने कलाकारों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में नियुक्त किया। इन चित्रकारों ने रामायण, महाभारत, नल-दमयंती, और रागमाला जैसे हिंदू साहित्य से प्रेरित चित्र बनाए।
  • लोकप्रिय मुगल शैली: इस शैली की कृतियाँ, जैसे कामकंदला और माधवनला श्रृंखला, शाही अटेलियर की तकनीकी गुणवत्ता और परिशुद्धता से मेल नहीं खाती थीं। इसके बावजूद, इनमें भारतीयता की एक विशिष्ट जीवंतता और आकर्षण था।
  • मानक रूपांकन: चित्रों में कई मानक रूपांकन बार-बार दिखाई देते थे, जो इस शैली की पहचान बन गए।


 प्रांतीय मुगल स्कूल 

  • मुगल शैली का विस्तार: मुगल शैली का प्रभाव दिल्ली के शाही अटेलियर तक सीमित नहीं था; यह देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गया। दिल्ली में प्रशिक्षित युवा चित्रकार अपने-अपने राज्यों में जाकर इस शैली को लोकप्रिय बनाते थे।
  • शाही कलाकारों की भूमिका: शाही कलाकारों ने अपने अनुभव और कौशल का उपयोग करके इस शैली को विभिन्न क्षेत्रों में पहुँचाया।
  • स्थानीय और मुगल शैली का मिश्रण: मुगल शैली और स्थानीय परंपराओं के मेल से प्रांतीय मुगल स्कूल अस्तित्व में आया। इसका अनोखा मिश्रण प्रांतीय कला में परिलक्षित होता है।
  • प्रमुख केंद्र: इस शैली के प्रमुख केंद्र फैजाबाद, मुर्शिदाबाद, हैदराबाद, अवध, और लखनऊ थे। यहाँ की प्रांतीय मुगल शैली में स्थानीय तत्त्वों और मुगल शैली की परिष्कृत सुंदरता का अद्वितीय संयोजन देखा जा सकता है।





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