भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 3 CHAPTER 6 SEMESTER 4 THEORY NOTES 17वीं सदी का संक्रमण : सिख साम्राज्य (1550 CE से 1700 CE तक) DU.SOL.DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakजनवरी 08, 2025
परिचय
पंजाब, अफगानिस्तान और गंगा के मैदानों के बीच स्थित, दक्षिण एशिया के ऐतिहासिक राज्य निर्माण में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। 16वीं-17वीं शताब्दी में यह सिखों, अफगानों, और मुगलों के बीच जटिल गतिशीलता का केंद्र बना। बाबर की 1526 ई. की विजय से पहले यह व्यापारिक मार्गों का प्रमुख केंद्र था। मुगल काल में पंजाब की "बारों" को कृषि भूमि में बदला गया, जिससे यहाँ सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक बदलाव आए। 15वीं शताब्दी के अंत में सिख धर्म का उदय हुआ, जो गुरु नानक से शुरू होकर गुरु गोबिंद सिंह और गुरु ग्रंथ साहिब तक विकसित हुआ।
सिख साम्राज्य का उद्भव और विस्तार
1. सिख धर्म का उदय
सिख धर्म की शुरुआत 15वीं शताब्दी में गुरु नानक जी ने की। उस समय भारत में हिंदू और इस्लाम धर्म के बीच तनाव था। गुरु नानक ने इन दोनों धर्मों के बीच सेतु का काम किया। उन्हें "हिंदू का गुरु और मुसलमान का पीर" कहा गया।
सिख धर्म की खास बातें
धार्मिक सहिष्णुता: सिख धर्म सभी धर्मों को समान मानता है। गुरुद्वारों में सभी धर्मों के लोगों का स्वागत होता है।
सामाजिक समानता: जाति और भेदभाव का विरोध करता है। लंगर में सभी एक साथ बैठकर खाना खाते हैं।
शिक्षा और सेवा: शिक्षा और गरीबों की सेवा को सिख धर्म में खास महत्त्व दिया गया है।
आर्थिक योगदान: सिख समुदाय खेती और व्यापार में अग्रणी है।
2. गुरु नानक का जीवन और संदेश
गुरु नानक (1469-1539) का जन्म तलवंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ। बचपन से ही वे ध्यान और भक्ति में रुचि रखते थे।
गुरु नानक की शिक्षाएँ
तीन सिद्धांत:
1. नाम जपना: हमेशा ईश्वर का नाम लेना।
2. कीर्ति करनी: ईमानदारी से मेहनत करना।
3. वंड चकना: अपने कमाए हुए को दूसरों के साथ बांटना।
समानता: गुरु नानक ने "संगत" और "पंगत" की परंपरा शुरू की, जहाँ सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ बैठते थे।
एकता का संदेश:उन्होंने सिखाया कि जाति, धर्म, और लिंग से ऊपर उठकर सभी को समान समझना चाहिए।
3.सिख समाज की स्थापना
गुरु नानक ने "करतारपुर" गाँव की स्थापना की, जहाँ उन्होंने सिख समाज के मूल सिद्धांतों को विकसित किया। उन्होंने सामूहिक प्रार्थना, सामुदायिक रसोई (लंगर), और बिना जाति-धर्म के भेदभाव के सभी का स्वागत करने की परंपरा शुरू की। करतारपुर का यह मॉडल सिख समाज का आधार बना, जो समानता, सेवा, और भाईचारे पर आधारित था।
4. सिख साम्राज्य का विस्तार
सिख साम्राज्य की स्थापना महाराजा रणजीत सिंह ने की। 19वीं शताब्दी में उन्होंने पंजाब में एक मजबूत राज्य बनाया।
धर्मनिरपेक्ष शासन: उनके राज्य में हर धर्म को समान अधिकार थे।
सैन्य ताकत: उन्होंने एक संगठित और मजबूत सेना बनाई।
मुगल और सिख धर्म गुरु
मुगल-सिख संबंध: मुगल साम्राज्य और सिख गुरुओं के बीच संबंध पंजाब में राजनीतिक और धार्मिक तनावों के बीच विकसित हुए। अकबर ने पंजाब को अपने नियंत्रण में लाने और सिख धर्म से सहयोग करने का प्रयास किया। लेकिन अकबर की मृत्यु के बाद यह सहयोग कमजोर पड़ गया और सिखों और मुगलों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
सिख गुरुओं का योगदान: गुरु नानक ने सिख धर्म की नींव रखी और समानता और एकता का संदेश दिया। गुरु अर्जुन देव ने 1604 में आदि ग्रंथ का संकलन किया, जिसमें सिख गुरुओं, भक्ति संतों और सूफी कवियों की शिक्षाएँ शामिल थीं। इस ग्रंथ की स्थापना हरमंदिर साहिब में की गई, जिसकी नींव सूफी संत मियां मीर ने रखी।
गुरु अर्जुन देव और संघर्ष: गुरु अर्जुन देव ने सिख समुदाय को स्वतंत्र पहचान दी, जिससे जहाँगीर के शासनकाल में उनका अहिंसात्मक विरोध घातक साबित हुआ। उनकी शहादत के बाद गुरु हरगोबिंद ने सिखों को संगठित कर उग्र परंपरा की शुरुआत की।
सिख-मुगल संघर्ष का प्रभाव: जहाँगीर से औरंगजेब के शासनकाल तक सिखों और मुगलों के बीच संघर्ष बढ़ा। 18वीं सदी में सिख समुदाय ने मुगल सत्ता के खिलाफ संगठित होकर अपनी स्वतंत्रता की नींव रखी, जिससे पंजाब का राजनीतिक और धार्मिक परिदृश्य बदल गया।
सिख-मुगल संघर्ष
सिख धर्म और मुगलों के बीच संघर्ष का इतिहास धार्मिक, राजनीतिक, और सामाजिक टकरावों से भरा रहा। सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह से लेकर दसवें गुरु गोविंद सिंह तक, सिख समुदाय ने अपनी स्वतंत्रता, आत्मसम्मान, और धर्म की रक्षा के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ीं।
गुरु हरगोबिंद सिंह और सिख सामाज का सशक्तिकरण: गुरु हरगोबिंद सिंह ने सिख समुदाय में एकता और आत्मरक्षा की भावना जगाई। उन्होंने जातिवाद और असमानता को समाप्त करने के लिए सामूहिक आयोजन और धार्मिक यात्राओं का प्रचलन शुरू किया। उन्होंने सिखों को सामाजिक और धार्मिक रूप से संगठित किया और एक शक्तिशाली समुदाय के रूप में उभरने के लिए प्रेरित किया।
गुरु तेग बहादुर और उनकी शहादत: गुरु तेग बहादुर ने सिख समुदाय को संगठित करने और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए कई प्रयास किए। धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होंने सिखों में एकता की भावना को मजबूत किया। उनकी शहादत ने सिख समुदाय को मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ और अधिक संगठित होने के लिए प्रेरित किया।
गुरु गोविंद सिंह और खालसा पंथ की स्थापना: गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की, जो सिखों की सामूहिक पहचान का प्रतीक बना। उन्होंने सिखों को पाँच ककार (केश, कंघा, कड़ा, कच्छा, कृपाण) धारण करने और क्षत्रिय पहचान अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा ने सिखों को धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तैयार किया।
मुगल-सिख टकराव और खालसा पंथ का उत्थान:
1. मुगल शासकों और सिखों के बीच लगातार संघर्ष जारी रहा।
2. 1688-1705: आनंदपुर की घेराबंदी और मुक्तसर के युद्ध जैसे संघर्ष सिखों की साहसिकता के प्रमाण हैं।
3. 1704: आनंदपुर छोड़ने के बाद गुरु गोविंद सिंह ने कठिन समय का सामना किया। उनके पुत्रों की शहादत ने सिखों के साहस और एकता को और मजबूत किया।
बंदा बहादुर और सिख संघर्ष का विस्तार: गुरु गोविंद सिंह के शिष्य बंदा बहादुर ने सिखों के संघर्ष को जारी रखा। उन्होंने मुगल अत्याचारों के खिलाफ युद्ध किया और सिखों को एक सशक्त और स्वतंत्र समाज के रूप में स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सिख राज्य की प्रारम्भिक स्थापना
सिख राज्य की स्थापना गुरु गोविंद सिंह और उनके शिष्य बंदा बहादुर के नेतृत्व में हुई, जो मुगलों के अत्याचारों और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया।
गुरु गोविंद सिंह का योगदान: गुरु गोविंद सिंह ने सिख समुदाय को संगठित किया और उन्हें धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदि ग्रंथ को गुरु का दर्जा दिया और खालसा पंथ की स्थापना की, जिसने सिखों को एक मजबूत सामुदायिक पहचान दी। उन्होंने मुगलों के साथ समझौते का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे।
बंदा बहादुर का नेतृत्व: बंदा बहादुर ने सिख समुदाय का नेतृत्व किया और अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह छेड़ा। उन्होंने 1707 में सरहिंद के किले को लूटकर मुगलों को बड़ा झटका दिया। उन्होंने लोहगढ़ में अपनी राजधानी स्थापित की, सिक्के जारी किए, और स्वयं को सच्चा पातशाह घोषित किया। उनकी सेना में जाट, निम्न जातियों, और अन्य वर्गों के लोग शामिल थे, जो सामाजिक न्याय और मुगलों के अत्याचार के खिलाफ खड़े हुए।
मुगल-सिख संघर्ष: मुगल शासक बंदा बहादुर के बढ़ते प्रभुत्व से चिंतित थे। लाहौर के प्रशासक अब्दुस समद खान ने 1715 में बंदा और उनके अनुयायियों को गुरुदासपुर में घेर लिया। दिसंबर 1715 में बंदा को पकड़ लिया गया, और 1716 में दिल्ली में उनकी शहादत हुई। इस घटना ने सिख राज्य के पहले प्रयास को समाप्त कर दिया, लेकिन सिख संघर्ष जारी रहा।
सिख राज्य का पुनरुत्थान: मुगल साम्राज्य की कमजोरी और फारुखसियर की मृत्यु के बाद सिख समुदाय ने अपनी शक्ति को पुनः संगठित किया। 1765 में जस्सा सिंह अहलूवालिया और अन्य मुखियाओं ने लाहौर में सार्वभौमिकता की घोषणा की। उन्होंने मिस्लों और गुरुमाता जैसी संस्थाओं के माध्यम से सिख समुदाय को एकजुट किया। शक्तिशाली मिस्लें, जैसे अहलूवालिया, भांगी, कन्हैया, और रामगढ़िया, सिख समाज के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रंजीत सिंह का योगदान: रंजीत सिंह ने कमजोर मिस्लों को संगठित कर सिख राज्य को मजबूत किया। उन्होंने पंजाब में खालसा राज स्थापित किया, जो सामाजिक उत्थान और गुरुओं की शिक्षाओं पर आधारित था। उन्होंने धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को संरक्षित करते हुए एक स्थिर और संगठित राज्य की नींव रखी।
खालसा पंथ से पूर्व और पश्चात की सिख पहचान
प्रारंभिक सिख आंदोलन: सिख पहचान "नानक पंथ," "निर्मल पंथ," और "गुरुमुख मार्ग" जैसे शब्दों से परिभाषित थी। यह गुरु नानक की शिक्षाओं पर आधारित एक भक्ति और समानता पर केंद्रित समाज था।
साहित्य और इतिहास: सिख गुरुओं के आदर्शों को प्रचारित करने में जन्म साखियाँ, गुरबिलास, और रहितनामा जैसे ग्रंथ महत्त्वपूर्ण थे। भाई गुरुदास भल्ला जैसे विद्वानों ने विचारधारा को संगठित किया।
सामाजिक संरचना: सिख समाज जातिवाद और भेदभाव का विरोध करता था। यह मुख्यतः आध्यात्मिक और सामाजिक सुधारों पर केंद्रित था, जो खालसा पंथ में विकसित हुआ।
खालसा पंथ की स्थापना (1699): गुरु गोविंद सिंह ने बैसाखी पर खालसा पंथ की स्थापना की, जिसमें पाँच ककार (केश, कंघा, कड़ा, कच्छा, कृपाण) को खालसा की पहचान बनाया। खालसा सिख "गुरुमुख" और अन्य "मनमुख" कहे गए।
सिख समुदाय का विस्तार: खालसा ने सिखों को सैन्य शक्ति और संगठन दिया। सहजधारी सिखों ने समाज को व्यापक और विविध बनाया।
आधुनिक सिख पहचान: खालसा, निहंग, अमृतधारी, और सहजधारी जैसे उपसमूहों में सिख पहचान विभाजित हुई, लेकिन खालसा पंथ ने एकता और समानता का संदेश बनाए रखा।
खालसा पंथ का प्रभाव:
सामाजिक समानता: जातिवाद का विरोध और समानता की स्थापना।
सैन्य संगठन: सिखों ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और साम्राज्य की नींव रखी।
संस्थागत पहचान: खालसा ने सिख धर्म को संगठित और विशिष्ट पहचान दी
सुधार आंदोलन
सिख धर्म में 17वीं शताब्दी से पहले धार्मिक और सामाजिक सुधार हुए, जिनमें गुरु नानक और उनके उत्तराधिकारियों ने सिख धर्म की नींव रखी। इन सुधारों ने प्रचलित प्रथाओं को चुनौती दी और सिख धर्म की विशिष्ट पहचान को आकार दिया।
अनुष्ठानों और जाति व्यवस्था का विरोध: गुरु नानक ने कर्मकांडीय प्रथाओं और जातिगत भेदभाव को खारिज कर एक ईश्वर की भक्ति और सभी मनुष्यों की समानता पर जोर दिया।
समानता और सामाजिक न्याय: सिख धर्म ने जाति, पंथ, और लिंग के भेदभाव को नकारा और समाज में न्याय और निष्पक्षता का समर्थन किया।
सामुदायिक सेवा और लंगर: मानवता की सेवा और लंगर की प्रथा को अपनाया गया, जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया गया।
सादगी और सामुदायिक जीवन: गुरुओं ने सरल, ईमानदार, और विनम्र जीवन जीने की शिक्षा दी, जिसमें अनावश्यक अनुष्ठानों को हतोत्साहित किया गया।
भजनों के माध्यम से शिक्षाएँ: गुरुओं ने भजनों की रचना कर आध्यात्मिक ज्ञान और नैतिकता पर बल दिया। यह शिक्षाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित की गईं।
अंतर्धार्मिक संवाद: गुरु नानक ने विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के साथ संवाद कर धार्मिक सहिष्णुता और सौहार्द को बढ़ावा दिया।
समाज पर प्रभाव
गुरु नानक द्वारा 15वीं शताब्दी में स्थापित सिख धर्म ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। इसके प्रभाव के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
धार्मिक बहुलवाद और सहिष्णुता: सिख धर्म सभी मनुष्यों की समानता और ईश्वर की एकता पर जोर देता है। गुरुद्वारों में सभी धर्मों के लोगों को लंगर के माध्यम से मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।
सामाजिक समानता और जाति व्यवस्था का विरोध: सिख धर्म ने जातिवाद और भेदभाव को नकारा। लंगर की प्रथा सभी सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ बैठाकर समानता का संदेश देती है।
सैन्य परंपरा और अधिकारों की रक्षा: गुरु हरगोबिंद और गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को सैन्य संगठन दिया, जिसने समुदाय और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा में योगदान दिया। खालसा पंथ ने अन्याय के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व किया।
सिख वास्तुकला और शहरी नियोजन: अमृतसर का स्वर्ण मंदिर सिख वास्तुकला और शहरी विकास का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है।
शैक्षिक योगदान: सिख गुरुओं ने शिक्षा को बढ़ावा दिया। खालसा स्कूल और कॉलेज, जैसे अमृतसर का खालसा कॉलेज, शिक्षा में सिख समुदाय के योगदान का प्रमाण हैं।
आर्थिक योगदान और उद्यमिता: सिख समुदाय कृषि, व्यापार और उद्योग में अपनी उद्यमशीलता के लिए प्रसिद्ध है, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी।
सामाजिक कल्याण पहल: गुरुद्वारे लंगर जैसी सामाजिक सेवा गतिविधियों के माध्यम से सामुदायिक सेवा और भूख उन्मूलन में योगदान करते हैं।
राजनीतिक प्रभाव: सिख नेताओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत में सिख अधिकारों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सांस्कृतिक प्रभाव: सिख त्योहार, संगीत (कीर्तन), और साहित्य (गुरबानी) भारतीय संस्कृति और कला को समृद्ध करते हैं।
सिख गुरुओं का संक्षिप्त विवरण
1.गुरु नानक (1469-1539): सिख धर्म के संस्थापक
सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक, ने धार्मिक समानता, आध्यात्मिकता, और सामाजिक न्याय की नींव रखी। उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार किया और जातिवाद व धार्मिक भेदभाव का विरोध किया।
2. गुरु अंगद (1539-1552): गुरुमुखी लिपि के प्रणेता
गुरु नानक के उत्तराधिकारी, गुरु अंगद ने सिख समुदाय को संगठित किया और गुरुमुखी लिपि को प्रचलित किया। उन्होंने सिख शिक्षा को बढ़ावा दिया और गुरुओं की कविताओं का संकलन किया।
3. गुरु अमर दास (1552-1574): समानता के प्रचारक
उन्होंने सामाजिक सुधारों, जैसे सती प्रथा का विरोध और लंगर प्रथा का विस्तार, को बढ़ावा दिया। उन्होंने 22 मंजियों का गठन किया और महिलाओं को भी प्रचारक बनाया।
4. गुरु राम दास (1574-1581): अमृतसर के संस्थापक
गुरु राम दास ने अमृतसर शहर की स्थापना की और सिख विवाह रीति (आनंद कारज) का प्रारंभ किया। उन्होंने सामाजिक सुधारों पर जोर दिया और अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए।
5. गुरु अर्जुन देव (1581-1606): आदि ग्रंथ के संकलक
उन्होंने अमृतसर में हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण करवाया और आदि ग्रंथ की रचना करवाई। गुरु अर्जुन देव को जहाँगीर के शासनकाल में शहीद कर दिया गया।
6. गुरु हरगोबिंद (1606-1644): मिरी-पीरी के प्रणेता
उन्होंने सिखों को सैन्य शक्ति से सुसज्जित किया और अमृतसर में अकाल तख्त की स्थापना की। उन्होंने सिखों को आत्मरक्षा और सामाजिक न्याय के लिए तैयार किया।
7.गुरु हर राय (1644-1661): दयालु और दृढ़ नेतृत्वकर्ता
उन्होंने सिख समुदाय को संगठित किया और मुगल शासकों के साथ संवाद बनाए रखा।
8. गुरु हरकिशन (1661-1664): सबसे युवा गुरु
आठ वर्ष की आयु में गुरु बने और चेचक के दौरान लोगों की सेवा करते हुए शहीद हुए।
9. गुरु तेग बहादुर (1664-1675): धर्म की रक्षा के लिए शहीद
उन्होंने जजिया कर और जबरन धर्मांतरण का विरोध किया। उनकी शहादत धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बनी।
10. गुरु गोबिंद सिंह (1675-1708): खालसा पंथ के संस्थापक
उन्होंने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की, सिख समुदाय को संगठित किया, और सिखों को साहस, समानता और सेवा के सिद्धांतों पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का शाश्वत गुरु घोषित किया।