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भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 1 CHAPTER 2 SEMESTER 4 THEORY NOTES मुगल साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण एवं विस्तार : शाहजहाँ और औरंगजेब DU.SOL.DU NEP COURSES

भारत का इतिहास 1550-1700 UNIT 1 CHAPTER 2 THEORY NOTES मुगल साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण एवं विस्तार : शाहजहाँ और औरंगजेब DU.SOL.DU NEP COURSES




परिचय 

शाहजहाँ और औरंगजेब मुगल साम्राज्य के प्रमुख शासक थे। शाहजहाँ ने दक्षिण भारत के राज्यों को मुगल साम्राज्य में शामिल करने और कांधार पर कब्जा करने की कोशिश की। औरंगजेब ने स्थानीय शासकों के विरोध को दबाकर मुगल सत्ता को मजबूत किया। राजपूतों, सिक्खों, मराठों और दक्षिण के राज्यों से संघर्ष के बावजूद, वह साम्राज्य को संगठित और सशक्त बनाए रखने में सफल रहा।


 शाहजहाँ (खुर्रम) 

  • प्रारंभिक उपलब्धियाँ: शाहजहाँ, जिसे राजकुमार खुर्रम के नाम से जाना जाता था, ने अपने पिता जहाँगीर के शासनकाल में अपनी सैन्य और प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया। मेवाड़, दक्षिण के राज्यों, और कांगड़ा जैसे अभियानों में उनकी सफलताओं ने उन्हें एक कुशल सेनापति और योग्य उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित किया।
  • राजकुमार के रूप में सफलताएँ: 1614 ई. में मेवाड़ अभियान में खुर्रम ने राणा अमर सिंह को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर अपनी पहली बड़ी विजय प्राप्त की। दक्षिण में मलिक अंबर के खिलाफ उनकी रणनीति और कूटनीति ने उन्हें 1617 ई. में "शाह" की उपाधि दिलाई। 1621 ई. में, खुर्रम ने दक्षिण में पुनः मुगल प्रभुत्व स्थापित किया, जिससे उनकी शक्ति और प्रभाव और अधिक बढ़ गए।
  • उत्तराधिकार संघर्ष: जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने अपने दामाद शहरयार को सिंहासन पर बैठाने की कोशिश की। दूसरी ओर, खुर्रम ने अपने ससुर आसफ खाँ के सहयोग से स्थिति को संभाला। खुर्रम ने दावरबख्श को अस्थायी सम्राट घोषित किया और अमीरों को अपने पक्ष में कर लिया।
  • राज्यारोहण: शहरयार के खिलाफ लाहौर के पास हुए युद्ध में आसफ खाँ ने उसे हराकर कैद कर लिया। खुर्रम ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को समाप्त कर 4 फरवरी 1628 ई. को आगरा में शाहजहाँ के रूप में मुगल सिंहासन संभाला। उन्हें "अबुल मुजफ्फरसिहबुद्दीन शाहजहाँ बादशाह गाजी" की उपाधि से नवाजा गया।

 शाहजहाँ और आंतरिक विद्रोह 

  • जुझार सिंह का विद्रोह: शाहजहाँ को गद्दी पर बैठते ही बुंदेला सरदार जुझार सिंह के विद्रोह का सामना करना पड़ा। जुझार सिंह, ओरछा का शासक था, जिसने मुगल अधिकारियों के विरोध के चलते विद्रोह कर दिया। प्रारंभिक हार और क्षमा याचना के बाद भी 1634 ई. में उसने गोंडवाना पर हमला कर मुगल अधिकार को चुनौती दी। शाहजहाँ ने औरंगजेब के नेतृत्व में सेना भेजी, जिससे जुझार सिंह और उनके पुत्र विक्रमादित्य मारे गए।
  • खानजहाँ लोदी का विद्रोह: खानजहाँ लोदी, एक अफगान सरदार, ने दक्षिण में मुगल प्रभुत्व को चुनौती दी। 1629 ई. में शाहजहाँ ने खुद अभियान का नेतृत्व किया और मराठों को अपने पक्ष में किया। अहमदनगर से समर्थन न मिलने के कारण खानजहाँ हार गया और 1631 ई. में सिहोदा (उत्तर प्रदेश) में युद्ध में मारा गया।
  • पुर्तगालियों की समस्या: बंगाल में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा अत्याचार, जबरन धर्म परिवर्तन, और लूटपाट ने शाहजहाँ को उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाने पर मजबूर किया। 1632 ई. में हुगली पर आक्रमण कर पुर्तगालियों को पराजित किया गया। उनकी बस्तियों को नष्ट कर हजारों बंदियों को मुक्त कराया गया। हालांकि, धार्मिक उन्माद के कारण ईसाई बंदियों के साथ क्रूर व्यवहार और गिरजाघरों को नष्ट करना शाहजहाँ की आलोचना का कारण बना।


 शाहजहाँ का सैन्य अभियान 

आंतरिक विद्रोहों को दबाने के बाद, शाहजहाँ ने अपने सैनिक अभियानों का केंद्र मध्य एशिया और दक्कन बनाया। उन्होंने कांधार को पुनः प्राप्त करने और अहमदनगर, बीजापुर, और गोलकुंडा पर नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास किए।

शाहजहाँ की प्रमुख सफलताएँ

1. उत्तर-पूर्व भारत

शाहजहाँ ने उत्तर-पूर्व भारत के छोटे राजाओं और जमींदारों को मुगल अधीनता स्वीकारने पर बाध्य किया।
  • मालवा: भागीरथ भील (1632) और भरवी गोंड (1644) ने मुगल सत्ता स्वीकार की।
  • पलामू: 1642 में राजा प्रताप ने समर्पण किया।
  • तिब्बत: जफर खाँ के नेतृत्व में 1637-38 ई. में तिब्बती शासक ने मुगलों की अधीनता मानी और हर्जाना चुकाया।
  • असम: 1628-39 तक संघर्ष चला, जिसके बाद व्यापार और कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए।

2. कांधार का अभियान (1638)

  • कांधार, जो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, को ईरानी शाह अब्बास प्रथम की मृत्यु के बाद अराजकता का लाभ उठाकर मुगलों ने पुनः प्राप्त किया। अली मर्दान खाँ ने शाहजहाँ के संरक्षण में कांधार का किला मुगलों को सौंप दिया।

3. बल्ख और बदख्शां का अभियान (1645-46)

शाहजहाँ ने बल्ख और बदख्शां पर कब्जा करने के लिए अपने पुत्र मुराद को भेजा।
  • मुराद की सफलता: बल्ख और ऑक्सस नदी के तिर्मिज क्षेत्र पर कब्जा।
  • औरंगजेब का प्रशासन: मुराद के लौटने के बाद औरंगजेब को इन क्षेत्रों का प्रशासन सौंपा गया।
  • असफलता: रसद की कमी और उजबेकों के हमलों के कारण मुगल सेना को पीछे हटना पड़ा।


 शाहजहाँ की दक्कन नीति 

शाहजहाँ ने दक्कन क्षेत्र में आक्रामक नीति अपनाई। उनका मुख्य उद्देश्य अहमदनगर को समाप्त करना और बीजापुर तथा गोलकुंडा पर नियंत्रण स्थापित करना था।

1. अहमदनगर पर आक्रमण

शाहजहाँ ने अहमदनगर के खिलाफ अपने अभियान में राजनैतिक और सैन्य रणनीतियों का उपयोग किया।

  • शुरुआती अभियान: शाहजहाँ ने खानजहाँ लोदी को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया, लेकिन उनके विद्रोह के बाद यह जिम्मेदारी महावत खाँ को सौंपी गई। उन्होंने मराठा सरदार शाहजी भोंसले और बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह को अपने पक्ष में कर लिया।
  • मलिक अंबर के पुत्र फतह खाँ का विश्वासघात: फतह खाँ ने निजामशाह की हत्या कर मुगलों से समझौता कर लिया। अहमदनगर में शाहजहाँ के नाम का खुतबा पढ़ा गया, लेकिन शाहजी भोंसले ने निजामशाही को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
  • अंतिम विजय:शाहजहाँ ने अहमदनगर पर पुनः अधिकार किया। 1633 ई. में निजामशाही का अंत हुआ, और अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

2. बीजापुर से संघर्ष

बीजापुर के सुल्तान ने अहमदनगर के विभाजन को मानने से इनकार कर दिया।

  • आक्रमण और संधि: मुगल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण किया, जिससे सुल्तान आदिलशाह ने संधि कर ली। इस संधि के तहत बीजापुर ने मुगल अधीनता स्वीकार की और सभी विरोधी सरदारों को अपदस्थ कर दिया।

3. गोलकुंडा से संधि

  • 1636 ई. में संधि: शाहजहाँ ने 1636 ई. में गोलकुंडा के सुल्तान कुतुबशाह से संधि की।
  • संधि के परिणाम: कुतुबशाह ने मुगल संप्रभुता स्वीकार करते हुए शाहजहाँ के नाम का खुतबा पढ़वाया। इसके साथ ही, उन्होंने वार्षिक कर के रूप में 2 लाख हुण देने का वचन दिया।


  औरंगजेब  

1. राज्यारोहण

  • 1657 में शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उत्तराधिकार युद्ध छिड़ गया। शाहजहाँ ने दाराशिकोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, लेकिन औरंगजेब ने सामूगढ़ के युद्ध (1658) में दाराशिकोह को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। अपने अन्य भाइयों को भी मारकर औरंगजेब ने स्वयं को सम्राट घोषित किया और "आलमगीर" की उपाधि धारण की। शाहजहाँ को आगरा के किले में कैद कर दिया गया।

2. प्रारंभिक सैन्य अभियान

उत्तर-पूर्व और पूर्वी भारत

  • असम और कूच बिहार: मीरजुमला और शाइस्ता खाँ ने 1661-62 में अहोमों और कूच बिहार पर मुगल शासन स्थापित किया।
  • पलामू: 1661 ई. में दाऊद खाँ ने पलामू को पुनः मुगल शासन में शामिल किया।

विद्रोहों का दमन

शाहजहाँ और औरंगजेब के शासनकाल में कई विद्रोहों को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए गए।

  • जाट विद्रोह: 1669 ई. में मथुरा में गोकुल के नेतृत्व में जाटों ने विद्रोह किया। गोकुल को पराजित कर मार दिया गया, लेकिन जाटों ने हार नहीं मानी और राजाराम व चुड़ामन के नेतृत्व में स्वतंत्र भरतपुर राज्य की स्थापना की।
  • सतनामी विद्रोह: 1672 ई. में नारनौल में सतनामियों ने विद्रोह किया। औरंगजेब ने इस विद्रोह को कठोरता से दबा दिया।
  • बुंदेला विद्रोह: छत्रसाल बुंदेला ने विद्रोह कर पूर्व मालवा में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, जिससे मुगल सत्ता को चुनौती मिली।

पुर्तगालियों का दमन

  • पुर्तगाली और आराकानी समुद्री डाकुओं ने बंगाल में अशांति फैलाई। 1666 ई. में शाइस्ता खाँ ने चटगाँव पर अधिकार कर समुद्री मार्गों को सुरक्षित किया।

3. दक्षिण नीति

  • बीजापुर पर अधिकार: बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने मराठों के साथ गठबंधन कर मुगलों को चुनौती दी। 1665 ई. में जयसिंह के नेतृत्व में किए गए प्रारंभिक प्रयास विफल रहे। अंततः 1686 ई. में औरंगजेब ने स्वयं अभियान का नेतृत्व किया और बीजापुर पर विजय प्राप्त कर उसे मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया।
  • गोलकुंडा पर अधिकार: 1687 ई. में औरंगजेब ने सुल्तान अब्दुल हसन की कमजोरी और संधि उल्लंघन का लाभ उठाते हुए गोलकुंडा पर आक्रमण किया। इस अभियान में विजय प्राप्त कर औरंगजेब ने गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया।


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