परिचय
विकास प्रशासन सरकार के लक्ष्यों और योजनाओं को साकार करने का एक साधन है, जो विशेष रूप से विकासशील देशों में लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं पर केंद्रित होता है। इसका उद्देश्य योजनाओं, नीतियों, और कार्यक्रमों का निर्माण और प्रभावी कार्यान्वयन है, जिससे अर्थव्यवस्था और समाज में गुणात्मक और मात्रात्मक बदलाव लाए जा सकें। यह आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में परिवर्तन के समन्वय का प्रयास करता है। इस इकाई में विकास प्रशासन के संदर्भ में नीति आयोग के उद्भव, संरचना, कार्य और इसकी भूमिका पर चर्चा की जाएगी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में योजना आयोग और नीति आयोग ने विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ग्रेनविले ऑस्टिन (1972) ने सहकारी संघवाद को केंद्र-राज्य संसाधन साझाकरण का आधार बताया। योजना आयोग (1950-2014) ने बुनियादी ढांचे में असमानता कम करने और गरीब राज्यों में रोजगार सृजन के लिए संसाधन आवंटित किए। 2015 में स्थापित नीति आयोग सहकारी संघवाद, समावेशी विकास, और दीर्घकालिक नीति निर्माण पर केंद्रित है।
1. योजना आयोग का महत्व
- सोवियत शैली की कठोर योजना नहीं: योजना आयोग ने संकेतात्मक पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई, जो अनुदेशात्मक नहीं थीं।
- बाजार की विफलता से निपटना: बाजार सभी वर्गों की जरूरतें पूरी करने में असमर्थ है। योजनाओं के माध्यम से समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक था।
2. नीति आयोग की आवश्यकता
- योजना आयोग के समापन के बाद वैश्वीकरण आधारित अर्थव्यवस्था में बाजार की भूमिका पर जोर दिया गया। हालांकि, भारत जैसे विविध देश में समेकित योजना और जनसांख्यिकीय लाभांश के सर्वोत्तम उपयोग के लिए दीर्घकालिक नीति निर्माण की आवश्यकता बनी रही, जिसे नीति आयोग पूरा कर रहा है।
3.भारत के आर्थिक विकास का संदर्भ
- 2003-2012 के बीच भारत ने 8.4% की उच्च जीडीपी वृद्धि दर्ज की, लेकिन 2011 के बाद यह अस्थिर हो गई, जिससे विकास और जनसांख्यिकीय लाभांश पर असर पड़ा। इसके विपरीत, चीन और पूर्वी एशियाई देशों ने 15-30 वर्षों तक स्थिर उच्च वृद्धि बनाए रखकर अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का बेहतर उपयोग किया।
योजना की आवश्यकता: सैद्धांतिक और ऐतिहासिक तर्क
- बाजार और राज्य का हस्तक्षेप: औद्योगिक क्रांति से पहले बाजार अर्थव्यवस्था के निर्माण में राज्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। यूनाइटेड किंगडम में आम भूमि को बाजार अर्थव्यवस्था में शामिल करने और श्रम बाजार स्थापित करने के लिए राज्य ने हस्तक्षेप किया। औद्योगिक क्रांति के दौरान श्रम और भूमि को संगठित करने में राज्य की भूमिका निर्णायक रही।
- एडम स्मिथ का दृष्टिकोण: एडम स्मिथ ने राज्य द्वारा सार्वजनिक संस्थानों और कार्यों को खड़ा करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो समाज के वाणिज्य और सार्वजनिक उपयोगिता को सुविधाजनक बनाते हैं।
- हस्तक्षेपवादी सिद्धांत और उनका महत्व: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अहस्तक्षेप (Laissez-faire) सिद्धांत को खारिज कर हस्तक्षेपवादी नीतियों जैसे कल्याणकारी अर्थशास्त्र, कीनेसियनवाद, और विकास अर्थशास्त्र को अपनाया गया। इन सिद्धांतों ने बाजार विफलताओं को पहचानते हुए राज्य की सक्रिय भूमिका को आवश्यक बताया।
- भारत का अनुभव और समाजवाद: पंडित नेहरू और समाजवादी दृष्टिकोण: नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और राज्य का हस्तक्षेप मुख्य आधार थे।
1. इंदिरा गांधी का योगदान: 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण और सार्वजनिक उद्यमों की संख्या बढ़ाकर 'समाजवाद' को लागू किया।
2. प्रारंभिक योजनाओं ने औद्योगीकरण और आयात प्रतिस्थापन रणनीति के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया।
- चीन का दृष्टिकोण: चीन ने 1979 में बाजार सुधारों के बाद भी अपने राज्य योजना आयोग को सशक्त बनाए रखा। कृषि क्रांति और औद्योगिक नीतियों की योजना में इसका योगदान महत्वपूर्ण रहा।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था का महत्व: मिश्रित अर्थव्यवस्था ने भारत और अन्य विकासशील देशों में प्रारंभिक आर्थिक विकास को गति दी। आयात प्रतिस्थापन और राज्य-प्रेरित औद्योगिकीकरण ने विकासशील देशों के लिए एक व्यवहार्य रणनीति साबित की।
नीति आयोग (NITI Aayog)
- स्थापना: 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया। यह एक थिंक टैंक है जो "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" और 'नीचे से ऊपर' दृष्टिकोण (Bottom-Up Approach) पर आधारित है।
- भूमिका: नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों को दीर्घकालिक नीतियों और रणनीतियों की योजना बनाने में मदद करता है, साथ ही उन्हें प्रासंगिक तकनीकी सलाह प्रदान करता है। यह सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करता है।
- पृष्ठभूमि: पूर्व योजना आयोग ने 1950-2014 तक नियंत्रण और आदेश दृष्टिकोण पर कार्य किया। नीति आयोग इस मॉडल को बदलकर अधिक समावेशी और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाता है।
1. नीति आयोग की संरचना
- अध्यक्ष: भारत के प्रधानमंत्री।
- उपाध्यक्ष: प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत।
- गवर्निंग काउंसिल: राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल।
- क्षेत्रीय परिषदें: विशिष्ट मुद्दों पर कार्य हेतु अस्थायी परिषदें, जिनकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
- पूर्णकालिक सदस्य: नीति आयोग में कार्यरत सदस्य।
- अंशकालिक सदस्य: अधिकतम 2 सदस्य, किसी विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान या संबंधित संस्थान से।
- पदेन सदस्य: केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अधिकतम 4 सदस्य, जिन्हें प्रधानमंत्री नामित करते हैं।
- मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ): प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त, सचिव स्तर का अधिकारी।
- विशेष आमंत्रित सदस्य: विशेषज्ञ, व्यवसायी, और प्रासंगिक क्षेत्रों के पेशेवर।
- सचिवालय: प्रशासनिक और प्रबंधन कार्यों के लिए।
2. नीति आयोग के सात स्तंभ
नीति आयोग निम्न सात स्तंभों के आधार पर कार्य करता है:
- प्रो-पीपल (Pro-People): यह जन-समर्थक है और समाज व व्यक्तियों की आकांक्षाओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- प्रो-एक्टिव (Pro-Active): नागरिकों की जरूरतों का पूर्वानुमान लगाकर त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करता है।
- भागीदारी (Participation): आम जनता की भागीदारी को बढ़ावा देता है।
- सशक्तिकरण (Empowering): विशेष रूप से महिलाओं को उनके जीवन के सभी पहलुओं में सशक्त बनाना।
- सभी का समावेश (Inclusion of All): जाति, धर्म या लिंग की परवाह किए बिना योजनाओं के लाभ सभी को उपलब्ध कराना।
- समता (Equity): सभी को समान अवसर प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- पारदर्शिता (Transparency): सरकार को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने का प्रयास करता है।
3. नीति आयोग के प्रमुख दो हब
1.टीम इंडिया हब (Team India Hub): यह राज्यों और केंद्र के बीच समन्वय स्थापित करने और जुड़ाव सुनिश्चित करने का कार्य करता है।
2.ज्ञान और नवोन्मेष हब (Knowledge & Innovation Hub): नीति आयोग को एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करने में सहायक है और इसके थिंक टैंक कौशल को विकसित
नीति आयोग के उद्देश्य और कार्य
- राष्ट्रीय विकास के लिए साझा दृष्टिकोण: राज्यों की भागीदारी से देश के विकास की प्राथमिकताओं और योजनाओं का एक स्पष्ट और साझा दृष्टिकोण तैयार करना।
- सहकारी संघवाद को बढ़ावा: यह मानते हुए कि मजबूत राज्य ही देश को मजबूत बनाते हैं, राज्यों के साथ मिलकर सहयोग करना और संघवाद को बढ़ावा देना।
- प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण: नीतियों और योजनाओं को लागू करने में नई तकनीकों और क्षमता को विकसित करने पर जोर देना।
- समन्वय का मंच: विभिन्न विभागों और राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक मंच प्रदान करना।
- सुशासन और सतत विकास: बेहतर शासन और टिकाऊ विकास के लिए शोध करना और उसकी बेहतरीन पद्धतियों को साझा करना।
- संसाधनों का प्रबंधन और मूल्यांकन: योजनाओं के लिए जरूरी संसाधनों की पहचान करना और उनके कार्यान्वयन का सही ढंग से मूल्यांकन करना।
- नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा: विशेषज्ञों और साझेदारों के साथ मिलकर नवाचार और नए विचारों को प्रोत्साहित करना।
- लंबी अवधि की नीतियाँ बनाना: दीर्घकालिक नीतियों और योजनाओं का निर्माण करना और उनकी प्रगति की निगरानी करना।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: देश और दुनिया के थिंक टैंकों, शैक्षणिक संस्थानों और नीति शोध संगठनों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।
- विकास एजेंडे का समर्थन: देश के विकास और नीतियों को लागू करने के लिए जरूरी कदम उठाना।
नीति आयोग और योजना आयोग में प्रमुख अंतर
नीति आयोग