परिचय
सीमा विवाद, जातीय संघर्ष, और सीमा पार आतंकवाद विकासशील राज्यों में आम समस्याएँ बन गई हैं, जिनसे निर्दोष नागरिक सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। भारत, जो दक्षिण एशिया के कई देशों के साथ सीमा साझा करता है, इन समस्याओं का सामना करता रहा है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और भू-राजनीतिक कारणों से भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच संबंध जटिल रहे हैं।चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और नेपाल जैसे देशों के साथ सीमा विवाद और जल साझाकरण जैसे मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों में घर्षण पैदा करते हैं। हालाँकि, भारत ने 'पड़ोस पहले' और 'एक्ट ईस्ट नीति' जैसी पहल के माध्यम से अपने संबंध सुधारने के प्रयास किए हैं। सीमा संबंधी अध्ययन सीमाओं की संरचना, कार्य, और सामाजिक विभाजन को समझने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति में महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत-चीन सीमा विवाद और भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का इतिहास 1960 के दशक से जुड़ा है, जब प्रधानमंत्री नेहरू और झोउ एनलाई ने पहली बार औपचारिक बातचीत की। हालांकि, यह वार्ता असफल रही और 1962 के युद्ध ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया।
मुख्य घटनाएँ और वार्ता का क्रम:
- 1960: झोउ एनलाई की भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली, बीजिंग, और रंगून में चर्चा।
- 1981-1987: सात दौर की वार्ताएँ बिना ठोस परिणाम के।
- 1988: संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) का गठन।
- 1993: सीमा शांति और स्थिरता समझौता (बीपीटीए)।
- 2003: विशेष प्रतिनिधि (एसआर) तंत्र की स्थापना।
- मुख्य मुद्दे: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का मुख्य कारण वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर मतभेद है। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक दृष्टिकोण और औपनिवेशिक विरासत को लेकर असहमति भी विवाद को और जटिल बनाती है।
- सफलताएँ: 2005 में भारत और चीन के बीच राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसने सीमा विवाद समाधान की दिशा में प्रगति की। इसके अलावा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिरता बनाए रखने के प्रयासों ने क्षेत्रीय शांति को सुनिश्चित किया।
भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद:
भारत और बांग्लादेश की सीमा का इतिहास 1947 के विभाजन और 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता से जुड़ा है।
- विभाजन और सीमांकन: 1947 में भारत के विभाजन के दौरान रैडक्लिफ रेखा का निर्धारण किया गया, जिसमें कई त्रुटियाँ थीं। इसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच भूमि और समुद्री सीमाओं का निर्धारण विवादास्पद और जटिल बना रहा।
- मुख्य विवाद: भारत और पाकिस्तान के बीच 4069 किलोमीटर लंबी सीमा पर सीमांकन में कई त्रुटियाँ थीं। इनमें प्राकृतिक बाधाओं और स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों की अनदेखी ने विवादों को और जटिल बना दिया।
- सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव: विभाजन ने उपमहाद्वीप की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को गहरा आघात पहुँचाया। इसके बाद, बांग्लादेश के गठन ने यह साबित कर दिया कि धर्म, राष्ट्र निर्माण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।
प्रवासियों की वापसी और पूर्वोत्तर भारत का संकट
प्रवास और विद्रोह का प्रभाव
पूर्वोत्तर भारत में प्रवासन और विद्रोह की समस्या एक लंबे इतिहास का परिणाम है। इस क्षेत्र में अस्थिरता के कई राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक कारण हैं। ये कारक क्षेत्र में विद्रोह और संघर्ष की स्थिति को प्रज्वलित करते हैं, जिससे स्थानीय जनता और प्रवासियों के बीच गहरा असंतोष उत्पन्न होता है।
प्रमुख मुद्दे:
- अवैध प्रवासन: असम और त्रिपुरा जैसे राज्य अवैध प्रवास के मुख्य केंद्र बने हुए हैं। बांग्लादेश से आए 15 मिलियन से अधिक प्रवासियों ने सीमावर्ती राज्यों में बसेरा किया, जिससे जनसांख्यिकीय असंतुलन और सामाजिक-राजनीतिक तनाव उत्पन्न हुए।
- जनसांख्यिकीय असंतुलन: स्थानीय समुदायों की पहचान, आजीविका और संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। साथ ही, राज्यों की राजनीति में प्रवासियों का प्रभाव बढ़ने से सामाजिक अस्थिरता भी बढ़ी।
- विद्रोह और असुरक्षा: क्षेत्र में उग्रवादी समूहों की सक्रियता ने प्रवास के कारण स्वदेशी समुदायों को हाशिए पर धकेला, जिससे उनके अधिकारों का हनन हुआ।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: प्रवासन ने आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न किए हैं। नियामक ढाँचे की कमी के कारण शरणार्थियों और आर्थिक प्रवासियों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।
मुख्य चुनौतियाँ
- अवैध प्रवासियों का नियंत्रण: सीमाओं पर निगरानी की कमी और राष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों का अभाव भारत को अवैध प्रवासन पर प्रभावी नियंत्रण करने में बाधा डालता है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक तनाव: प्रवासियों की बड़ी संख्या ने पूर्वोत्तर राज्यों के सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रभावित किया है, जिससे स्थानीय और प्रवासी समुदायों के बीच तनाव और संघर्ष बढ़े हैं।
- आर्थिक दबाव: सीमित संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या का बोझ और आर्थिक अवसरों पर प्रवासियों का नियंत्रण स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक अस्थिरता का कारण बना है।
समाधान और सुझाव
- सीमाओं की सख्त निगरानी: भारत-बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा को कड़ा करने और तकनीकी निगरानी के उपाय, जैसे ड्रोन और निगरानी कैमरों का उपयोग, सुनिश्चित करना।
- राष्ट्रीय शरणार्थी कानून: शरणार्थियों और प्रवासियों के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित करना। वास्तविक शरणार्थियों के लिए सहायता प्रणाली बनाकर उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करना।
- स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण: स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके लिए आर्थिक और सामाजिक अवसरों को बढ़ावा देना।
- राजनीतिक स्थिरता: उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए संवाद और सुलह के प्रयास करना। साथ ही, स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाकर शासन को प्रभावी बनाना।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी और BIMSTEC की भूमिका
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी: 1991 में शुरू हुई लुक ईस्ट पॉलिसी का उन्नत संस्करण, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ कनेक्टिविटी, व्यापार, और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना है।
- BIMSTEC: बंगाल की खाड़ी क्षेत्रीय सहयोग का प्रमुख मंच, जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के सात देशों (भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, और थाईलैंड) को जोड़ता है। यह एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ावा देता है।
1.BIMSTEC की प्रासंगिकता
- भौगोलिक और रणनीतिक लाभ: BIMSTEC का भौगोलिक स्थान भारत को अपने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच संपर्क स्थापित करने में मदद करता है। यह एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी को जोड़ने वाला एक "प्राकृतिक मंच" है।
- उद्देश्य और प्राथमिकता: BIMSTEC क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, तटीय शिपिंग, ऊर्जा सहयोग और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। साथ ही, आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सामूहिक प्रयास करता है।
- भारत का नेतृत्व: भारत BIMSTEC में अग्रणी भूमिका निभाते हुए कनेक्टिविटी परियोजनाओं का वित्तपोषण और नेतृत्व करता है। BBIN पहल और भारत-म्यांमार-थाईलैंड (IMT) राजमार्ग परियोजना इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
2. सार्क की तुलना में प्रभावशीलता
- BIMSTEC आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सामूहिक सहमति और साझा दृष्टिकोण अपनाने में अधिक सक्षम है, जो सार्क में संभव नहीं हो पाया।
3. चीन के प्रभाव का मुकाबला
- BIMSTEC, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव का संतुलन बनाने में मदद करता है, जिससे क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ता है।
2.चुनौतियाँ
- असमान विकास: BIMSTEC सदस्य देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक विकास की विषमता।
- वित्तीय और प्रशासनिक बाधाएँ: परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तपोषण और प्रभावी प्रशासन की कमी।
- धीमी प्रगति: कनेक्टिविटी और व्यापार परियोजनाओं का धीमा क्रियान्वयन।
4. आगे का मार्ग
- बहुपक्षीय सहयोग: सदस्य देशों के बीच अधिक सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा देना।
- कनेक्टिविटी और व्यापार: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाना।
- चीन के प्रभाव का मुकाबला: रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से BIMSTEC को सुदृढ़ बनाकर चीन के प्रभाव को संतुलित करना।