परिचय
संस्थान राजनीतिक प्रक्रियाओं और परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं। राजनीतिक अभिकर्ता इन संस्थानों के भीतर अपनी प्राथमिकताओं को विकसित करने की स्वतंत्रता रखते हैं, जो आधिकारिक नियमों, अलिखित परंपराओं, और सामान्य समझ से संचालित होते हैं। संस्थाएँ कानून बनाने, लागू करने, और विवादों के समाधान के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
संवैधानिकता व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए सीमित सरकार और शक्तियों के पृथक्करण को सुनिश्चित करती है। विधायिका, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों का निकाय है, बहुमत का प्रतिनिधित्व करती है और कानून निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। लोकतंत्र का आधार माने जाने वाले राजनीतिक दल शासन के विकल्प और जवाबदेही को सुनिश्चित करते हैं। साथ ही, नागरिक समाज और मीडिया राज्य की शक्ति को संतुलित करने और जवाबदेह सरकार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संविधानवाद (Constitutionalism)
संविधानवाद एक ऐसी व्यवस्था है जो सरकार की तानाशाही को रोकने और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार को सीमित करती है। यह सरकार को विवेकाधिकार से काम करने से रोकने और शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है।
संविधानवाद की दो मुख्य परंपराएँ
- राजनीतिक संविधानवाद (Political Constitutionalism): राजनीतिक संविधानवाद का उद्देश्य सरकार को जनता के हितों के प्रति उत्तरदायी बनाना है। यह स्वेच्छाचारी शासन को रोकने के लिए शक्ति संतुलन स्थापित करता है। इसकी संरचना चुनावी प्रणाली, सत्ता के वितरण, और शक्ति के साझेदारी मॉडल पर आधारित होती है। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक समानता सुनिश्चित करना और समाज के सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखना है।
- कानूनी संविधानवाद (Legal Constitutionalism): कानूनी संविधानवाद का मुख्य उद्देश्य अधिकारों की रक्षा और शक्तियों के पृथक्करण को सुनिश्चित करना है। इसमें न्यायिक समीक्षा के माध्यम से संविधान की सुरक्षा की जाती है। इसके तहत शक्तियों का विभाजन तीन मुख्य अंगों में किया जाता है: विधायिका, जो कानून बनाती है; कार्यपालिका, जो उन कानूनों को लागू करती है; और न्यायपालिका, जो कानूनों की व्याख्या करती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य तानाशाही को रोकना और समाज में कानून के शासन को बनाए रखना है।
मुख्य सिद्धांत: शक्ति का संतुलन यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति या समूह पूरी सत्ता पर कब्जा न कर सके, जिससे स्वेच्छाचारी शासन की संभावना समाप्त हो। न्यायिक समीक्षा के माध्यम से अदालतें यह तय करती हैं कि सरकार के कार्य संविधान के अनुरूप हैं या नहीं, जिससे सरकार की गतिविधियों पर नियंत्रण रहता है। समानता का सिद्धांत सभी नागरिकों को एक समान कानून के अधीन रखता है, जिससे समाज में न्याय और निष्पक्षता बनी रहती है।
संविधानवाद की मुख्य विशेषताएँ
- लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty): लोकप्रिय संप्रभुता का विचार यह मानता है कि सरकार की सभी शक्तियाँ जनता से उत्पन्न होती हैं। जनता ही सरकार को वैधता प्रदान करती है और चुनावों के माध्यम से निर्णय लेने में भागीदार बनती है। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण प्रतिनिधि चुनाव प्रणाली है, जहाँ जनता अपने प्रतिनिधि चुनकर सरकार का गठन करती है।
- शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers): संविधानवाद के तहत सरकार की शक्तियाँ तीन अंगों में विभाजित होती हैं: विधायिका (कानून बनाने वाली), कार्यपालिका (कानून लागू करने वाली), और न्यायपालिका (कानून की व्याख्या करने वाली)। यह विभाजन शक्ति के दुरुपयोग और तानाशाही को रोकने के लिए आवश्यक है। प्रत्येक अंग अपनी सीमाओं के भीतर काम करता है, जिससे स्वतंत्रता और संतुलन बनाए रखा जा सके।
- उत्तरदायी एवं जवाबदेह सरकार (Responsible and Accountable Government): संवैधानिक सरकार में, शासकों को जनता के प्रति उत्तरदायी और जवाबदेह बनाया जाता है। यह जवाबदेही चुनाव, जनमत संग्रह, वित्तीय लेखांकन, और अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है। जनता को यह अधिकार होता है कि वह सरकार की नीतियों और कार्यों पर सवाल उठा सके।
- कानून का शासन (Rule of Law): कानून का शासन का मतलब है कि सरकार और जनता दोनों कानून के अधीन हैं। कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं है। कानून की सर्वोच्चता यह सुनिश्चित करती है कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार हो और सरकारी अधिकारी अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करें।
- स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary): एक स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। यह सुनिश्चित करती है कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए और सरकार कानून के तहत काम करे। न्यायपालिका को राजनीतिक दबावों से मुक्त रखा जाता है ताकि यह निष्पक्षता और स्वतंत्रता से न्याय कर सके।
- व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान (Respect for Individual Rights): संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को शामिल करना एक आवश्यक विशेषता है। यह अधिकार सभी लोगों के लिए समान हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना मान्यता प्राप्त हैं। मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का संरक्षण संविधानवाद का प्रमुख लक्ष्य है।
- आत्मनिर्णय का अधिकार (Right to Self-Determination): आत्मनिर्णय का मतलब है कि लोग अपने क्षेत्र की राजनीतिक और कानूनी स्थिति तय करने का अधिकार रखते हैं। यह अधिकार उन्हें यह निर्णय लेने में सक्षम बनाता है कि वे नया राज्य बनाना चाहते हैं या किसी मौजूदा राज्य में शामिल होना चाहते हैं।
- सेना पर नागरिक नियंत्रण (Civilian Control over Military): संविधानवाद सेना पर नागरिक नियंत्रण को सुनिश्चित करता है। सैन्य योजनाओं और रक्षा से जुड़े निर्णय नागरिक प्राधिकरण द्वारा लिए जाते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सेना लोकतांत्रिक ढांचे के अधीन रहे और उसकी शक्ति का दुरुपयोग न हो।
- कानून और न्यायिक नियंत्रण द्वारा शासित पुलिस (Law-Governed Police): पुलिस को कानून के अनुसार काम करना चाहिए और सभी नागरिकों के अधिकारों, गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। अपराधियों और संदिग्धों को भी उचित न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार प्राप्त होता है। यह सुनिश्चित करता है कि कानून और न्यायपालिका के निर्देशों के तहत पुलिस कार्य करे।
विधायिका और विधान
विधायिका (Legislature)
विधायिका सरकार की वह शाखा है, जो कानून बनाने, राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने, और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का कार्य करती है। इसे आमतौर पर संसद या विधानमंडल कहा जाता है। विधायिका लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की आधारशिला है, जहाँ जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कानून निर्माण करते हैं और सरकार की नीतियों पर नियंत्रण रखते हैं।
विधायिका के प्रकार
- एकसदनीय विधायिका: एकसदनीय विधायिका में केवल एक ही सदन होता है, जहां सभी विधायी कार्य किए जाते हैं। यह प्रणाली आमतौर पर छोटे या संघीय राज्यों में अपनाई जाती है, क्योंकि यह सरल, कम खर्चीली और त्वरित निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करती है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं चीन, न्यूजीलैंड, तुर्की और पुर्तगाल।
- द्विसदनीय विधायिका: द्विसदनीय विधायिका में दो सदन होते हैं—एक उच्च सदन और एक निम्न सदन। यह प्रणाली बड़े और संघीय राज्यों में पाई जाती है, जहां संतुलित प्रतिनिधित्व और विविध हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। उच्च सदन आमतौर पर राज्यों या क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि निम्न सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं भारत (राज्यसभा और लोकसभा) और अमेरिका (सीनेट और प्रतिनिधि सभा)।
भारत में विधायिका
भारत में विधायिका की संरचना
- केंद्रीय स्तर पर: भारत में केंद्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका है, जिसमें दो सदन शामिल हैं:
1. लोकसभा (निम्न सदन): जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधियों का सदन।
2. राज्यसभा (उच्च सदन): राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों का सदन।
- राज्य स्तर पर:
1. एकसदनीय विधानमंडल: अधिकांश राज्यों में केवल एक विधान सभा होती है।
2. द्विसदनीय विधानमंडल: छह राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना—में विधान सभा (निम्न सदन) और विधान परिषद (उच्च सदन) दोनों होते हैं।
विधायिका के मुख्य कार्य
- कानून निर्माण : कानून निर्माण विधायिका का मुख्य कार्य है। यह जनभावनाओं और राष्ट्रीय आवश्यकताओं के आधार पर ऐसे कानूनों का निर्माण करती है जो समाज के विकास और सुचारु संचालन में सहायक हों। विधायिका द्वारा बनाए गए ये कानून समाज के हर क्षेत्र में लागू होते हैं, जिससे शासन व्यवस्था में संतुलन और प्रभावशीलता बनी रहती है।
- निर्णय निर्माण: निर्णय निर्माण विधायिका का एक महत्वपूर्ण कार्य है, जिसके तहत राष्ट्रीय मुद्दों और समस्याओं पर चर्चा और निर्णय लिए जाते हैं। विधायिका के मंच पर होने वाली बहसें न केवल समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं, बल्कि जनता को शिक्षित और जागरूक करने में भी सहायक होती हैं। ये बहसें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती हैं।
- कार्यपालिका पर नियंत्रण: विधायिका कार्यपालिका की कार्यवाही पर निगरानी और नियंत्रण रखती है ताकि सरकार को जवाबदेह बनाया जा सके। यह कार्य अविश्वास प्रस्ताव, प्रश्नकाल, और चर्चा जैसे संसदीय उपकरणों के माध्यम से किया जाता है। इन उपायों से कार्यपालिका की पारदर्शिता और जनहित के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है।
- राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक: विधायिका राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक होती है और सरकार के बजट को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार होती है। यह नए कर लगाने, मौजूदा करों को हटाने या उनमें संशोधन करने की अनुमति प्रदान करती है। साथ ही, वित्तीय लेन-देन और सरकारी खर्चों पर निगरानी रखती है ताकि संसाधनों का सही और पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
- जनता के अधिकारों का संरक्षण: विधायिका का एक महत्वपूर्ण कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करें। यह कानून निर्माण और निगरानी की प्रक्रिया के माध्यम से यह सुनिश्चित करती है कि सरकार या अन्य संस्थाएं नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न करें, जिससे लोकतंत्र और न्याय की भावना बनी रहे।
विधान (Legislation)
विधान वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से सक्षम प्राधिकरण (विधायिका) द्वारा नियम और कानून बनाए जाते हैं। इसका उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना, अधिकारों की रक्षा करना और राज्य की कार्यवाहियों को व्यवस्थित करना है।
विधान की उत्पत्ति: लैटिन शब्द ‘Legis’ (कानून) और ‘Laterm’ (बनाना, स्थापित करना) से ‘विधान’ शब्द बना है। इसे कानून बनाने या स्थापित करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है।
विधान के प्रकार
- सर्वोच्च विधान: सर्वोच्च विधान वह विधायी शक्ति है जो राज्य की संप्रभुता से उत्पन्न होती है। इसे किसी अन्य निकाय द्वारा निरस्त, परिवर्तित, या नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यह विधायिका की उच्चतम शक्ति का प्रतीक है। इसका उदाहरण संसद द्वारा बनाए गए कानून हैं, जो देश के संविधान के तहत सर्वोच्चता रखते हैं।
- अधीनस्थ विधान: अधीनस्थ विधान वह विधान है जो राज्य की संप्रभु शक्ति के अधीन संस्थाओं या प्राधिकरणों द्वारा बनाया जाता है। यह सर्वोच्च विधान के अनुरूप होना अनिवार्य है और उसकी सीमाओं के भीतर कार्य करता है। इसका उद्देश्य मुख्य कानून के कार्यान्वयन और स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करना है। उदाहरण: नगरपालिका के उपनियम, कार्यकारी आदेश, और प्रशासनिक नियम।
अधीनस्थ विधान की श्रेणियाँ
- औपनिवेशिक विधान: अतीत में शाही सभाओं द्वारा उपनिवेशों में बनाए गए कानून।
- कार्यकारी विधान: कार्यपालिका द्वारा सीमित विधायी शक्तियों का उपयोग करके बनाए गए कानून।
- न्यायिक विधान: न्यायालयों द्वारा बनाए गए नियम और व्यवस्थाएँ, जैसे उच्च न्यायालय द्वारा अपनी प्रक्रिया नियंत्रित करने के नियम।
- नगरपालिका विधान: स्थानीय प्रशासन और नगरपालिकाओं द्वारा बनाए गए उपनियम।
- स्वायत्तशासी विधान: स्वायत्त संस्थाओं (कॉलेज, निगम) द्वारा अपने मामलों को संचालित करने के लिए बनाए गए नियम।
राजनीतिक दल
राजनीतिक दल उदार लोकतंत्र का एक आवश्यक घटक है। यह समान विचारधारा वाले व्यक्तियों का समूह है जो राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देने, चुनाव लड़ने और सत्ता प्राप्त करने के लिए संगठित होते हैं। एडमंड बर्क ने इसे "एक ऐसा निकाय" कहा जो साझा राजनीतिक विचारों के आधार पर एकजुट होकर राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है।