प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 1 CHAPTER 1 SEMESTER 3 THEORY NOTES प्रारंभिक आधुनिक यूरोप : प्रमुख अवधारणाएँ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि History DU. SOL.DU NEP COURSES

 
प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 1 CHAPTER 1  SEMESTER 3 THEORY NOTES  प्रारंभिक आधुनिक यूरोप  : प्रमुख अवधारणाएँ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि History DU. SOL.DU NEP COURSES

परिचय

वैश्विक इतिहास में प्रमुख सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करते समय 'प्रारंभिक आधुनिक' शब्द का उपयोग अक्सर किया जाता है। 1970 के दशक में पीटर बर्क, एम.एस. एंडरसन, और नताली जेमन डेविस जैसे विद्वानों ने इस लेबल को लोकप्रिय बनाया। यह शब्द यूरोपीय इतिहास में मध्ययुगीन और आधुनिक काल के बीच के संक्रमणकालीन चरण को समझने की आवश्यकता से प्रेरित था।

 प्रारंभिक आधुनिकता 

प्रारंभिक आधुनिकता यूरोपीय इतिहास की वह अवधि है जो मध्य युग के बाद शुरू हुई और फ्रांसीसी और औद्योगिक क्रांतियों (18वीं शताब्दी) तक चली। इसका आरंभ पुनर्जागरण से हुआ, जो 1350 के दशक में इटली में शुरू हुआ। यह आंदोलन मध्यकालीन धारणाओं को चुनौती देते हुए साहित्यिक और कलात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से नए विचार लेकर आया। 1500 तक पुनर्जागरण के विचार उत्तरी यूरोप तक फैल गए और ईसाई मानवतावाद का उदय हुआ।

  • प्रमुख सामाजिक और आर्थिक बदलाव: इस काल में सामंती व्यवस्था से पूंजीवादी व्यवस्था का विकास हुआ। हस्त-निर्मित शिल्पकला को मशीन-आधारित उत्पादन ने स्थान दिया। ऊर्जा के नए स्रोतों का उपयोग, धार्मिक सुधार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदय हुआ। भूमि-आधारित कर व्यवस्था और किसान-प्रधान अर्थव्यवस्था में बदलाव आया।
  • पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन: पुनर्जागरण ने साहित्य और कला पर अधिक ध्यान दिया, जबकि सुधार आंदोलन ने धर्म के क्षेत्र में व्यापक प्रभाव डाला। प्रोटेस्टेंट सुधार ने धार्मिक विभाजन उत्पन्न किया और चर्च की कई प्रथाओं को चुनौती दी।
  • वैज्ञानिक क्रांति और आविष्कार: 16वीं और 17वीं शताब्दियों में वैज्ञानिक क्रांति ने ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया। निकोलस कोपरनिकस ने सौरमंडल के केंद्र में सूर्य की स्थिति का सिद्धांत दिया। जोहान्स गुटेनबर्ग ने 1450 में मुद्रण प्रणाली विकसित की, जिससे ज्ञान का प्रसार तेजी से हुआ।
  • औपनिवेशिक विस्तार: समुद्र यात्राओं और खोजों ने यूरोप के बाहर के क्षेत्रों में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की प्रक्रिया शुरू की। क्रिस्टोफर कोलंबस जैसे नाविकों ने नए क्षेत्रों की खोज की, जिसने सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया।
  • राजनीतिक विकास: राजनीतिक दृष्टि से यह काल नगर-राज्यों और क्षेत्रीय साम्राज्यों का रहा। निरंकुश राष्ट्र राज्यों का उदय हुआ, लेकिन इनमें से कोई भी पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाया। चर्च और राज्य के बीच शक्ति-संघर्ष एक आम घटना बन गई।
  • बौद्धिक और सांस्कृतिक बदलाव: इस काल में यूनानी और रोमन शास्त्रों में रुचि बढ़ी। उदार मानवतावाद का विचार विकसित हुआ, जिसमें व्यक्ति को अपने भाग्य का निर्माता माना गया। प्रकृति को समझने और अवलोकन आधारित ज्ञान को महत्व दिया गया।
  • आलोचनाएँ: 'आधुनिकता' को केवल पश्चिम से जोड़ना और पूरे यूरोप को समान रूप से आधुनिक मानना एक सीमित दृष्टिकोण है। यह काल केवल यूरोप तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखने को मिले। आधुनिकता को समझने के लिए इसे वैश्विक संदर्भ में रखना आवश्यक है, जिसमें अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों के योगदान और प्रभावों को भी शामिल किया जाए।
  • विद्वानों का योगदान: लियोनार्ड डिगेज ने 'आधुनिक' शब्द का उपयोग करके इस विचार को विस्तार दिया, जिससे इस काल की विशिष्टताओं को परिभाषित करने में मदद मिली। वहीं, पीटर बर्क ने यूरोपीय इतिहास को 'प्रारंभिक आधुनिक' काल के रूप में वर्गीकृत किया, जिससे इस अवधि के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।


 इतिहास में सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य  

1. दार्शनिक और बौद्धिक विकास

व्यक्ति और सामूहिक स्वतंत्रता का टकराव: प्रारंभिक आधुनिक युग में, "व्यक्ति की खोज" और "सामूहिक स्वतंत्रता" के बीच टकराव देखा गया। व्यक्ति की अवधारणा ईसाई चर्च की व्यक्तिगत मुक्ति से प्रेरित थी, जिसने पश्चिमी नैतिकता और दर्शन को प्रभावित किया। इस विचार ने उदारवाद और पूँजीवाद को जन्म दिया और धार्मिक सुधार के दौरान "कॉलिंग" की धारणा में स्पष्ट हुआ, जिसमें हर कार्य को दैवीय दृष्टिकोण से जोड़ा गया।

  • "कॉलिंग" और प्रोटेस्टेंट सुधार: "कॉलिंग" का मतलब जीवन के दिव्य उद्देश्य से है। मैक्स वेबर ने इसे प्रोटेस्टेंट सुधार और पूँजीवाद से जोड़ा। यह विचार व्यवसाय और कार्य को नैतिक और दैवीय मान्यता प्रदान करता था, जिससे पूँजीवादी सोच को बढ़ावा मिला।
  • धार्मिक समूहों का योगदान: कैल्विनिस्ट, प्रेस्बिटेरियन, हुगुएनोट्स, और प्यूरिटन जैसे धार्मिक समूहों ने "कॉलिंग" को अपने विचारों में शामिल किया। इन समूहों ने नैतिकता और धार्मिकता के साथ आर्थिक और सामाजिक बदलाव को भी प्रेरित किया।


2. वैश्विक अभिविन्यास की ओर यात्राएँ और अन्वेषण

  • वैश्विक दृष्टिकोण का विकास: प्रारंभिक आधुनिक काल में यूरोप ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य अपनाते हुए समुद्री यात्राओं और अन्वेषणों को बढ़ावा दिया। इन यात्राओं ने यूरोपीय समाज को अन्य संस्कृतियों के साथ संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अवसर प्रदान किए। कुछ यात्राएँ सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से थीं, जबकि अन्य का मुख्य उद्देश्य उपनिवेशीकरण और राजनीतिक-आर्थिक नियंत्रण स्थापित करना था।
  • तकनीकी प्रगति और अन्वेषण: प्रारंभिक आधुनिक काल में तकनीकी प्रगति ने अन्वेषणों को संभव और प्रभावी बनाया। नौकायन तकनीकों में सुधार, जैसे त्रिकोणीय पाल (कैरवेल), एस्ट्रोलैब, और चुंबकीय दिक्सूचक ने समुद्री यात्राओं को आसान और सुरक्षित बनाया। कोलंबस की अमेरिका की खोज ने उपनिवेशवाद और वैश्विक इतिहास में स्थायी परिवर्तन किया। इस दौरान स्पेन और पुर्तगाल ने सोना, चाँदी, मसालों की खोज और ईसाई धर्म के प्रसार के उद्देश्य से नई भूमि का अधिग्रहण किया।
  • उपनिवेशवाद और सांस्कृतिक प्रभाव: प्रारंभिक आधुनिक काल में यूरोपीय उपनिवेशों और व्यापार केंद्रों ने वैश्विक व्यापार को तेज़ी से बढ़ावा दिया। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए यूरोप ने अपनी आर्थिक और बौद्धिक समृद्धि में इज़ाफा किया। हालांकि, उपनिवेशीकरण के कारण मूल निवासियों को शोषण, संघर्ष, और महामारी का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी जनसंख्या में भारी कमी आई और उनके समाज पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • दास-व्यापार और श्रम का शोषण: प्रारंभिक आधुनिक काल में गन्ना बागानों और अन्य कृषि कार्यों के लिए अफ्रीकी दासों की बड़े पैमाने पर आपूर्ति की गई। सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी के बीच लगभग 10 मिलियन अफ्रीकी दासों को अमेरिका ले जाया गया। इस दास-व्यापार ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ पहुंचाया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ और दासों को अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
  • आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव: प्रारंभिक आधुनिक काल में बढ़ते व्यापार ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया और व्यापारिकता (मर्केंटलिज्म) को प्रोत्साहन दिया। यूरोप, एशिया, अफ्रीका, और अमेरिका के बीच व्यापारिक नेटवर्क का निर्माण हुआ, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार दिया। इस युग का आदर्श वाक्य "गॉड, गोल्ड, एंड ग्लोरी" (ईश्वर, स्वर्ण, और महिमा) बना, जो उपनिवेशवाद, धर्म के प्रसार, और आर्थिक लाभ की महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है।


 3.विचारों की भूमिका, प्रिंटिंग प्रेस और सूचना का नेटवर्क 

  • प्रिंटिंग प्रेस का उदय: गुटेनबर्ग के प्रिंटिंग प्रेस और जंगम टाइप के आविष्कार ने ज्ञान और विचारों के प्रसार को पूरी तरह से बदल दिया। इस तकनीक से पुस्तकों और पैम्फलेटों की बड़े पैमाने पर छपाई संभव हुई, जिससे विचार तेज़ी से और दूर-दूर तक पहुँचने लगे। प्रिंटिंग प्रेस ने ज्ञान को अभिजात वर्ग तक सीमित रखने के बजाय इसे सभी वर्गों के लिए सुलभ बनाया, जिससे शिक्षा और बौद्धिक जागरूकता को नया आयाम मिला।
  • ज्ञान का लोकतंत्रीकरण: प्रोटेस्टेंट विचारधारा और सामाजिक सुधार प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से व्यापक स्तर पर फैले। पहले ज्ञान केवल हस्तलिखित पांडुलिपियों और श्रमसाध्य मैन्युअल प्रतिलिपियों तक सीमित था, लेकिन मुद्रण तंत्र ने इसे आमजन तक पहुँचाया। इस क्रांति ने साक्षरता को बढ़ावा दिया और पढ़ने की रुचि में उल्लेखनीय वृद्धि की, जिससे समाज में शिक्षा और सुधार के लिए नई संभावनाएँ पैदा हुईं।
  • साक्षरता और पाठक समुदाय: प्रिंटिंग प्रेस के प्रभाव से साक्षरता में वृद्धि हुई, जिससे एक नए पाठक समुदाय का उदय हुआ। हालांकि, लिंग, वर्ग, और व्यवसाय के आधार पर साक्षरता के स्तर में असमानताएँ बनी रहीं। उत्तर और उत्तर-पश्चिम यूरोप में साक्षरता का स्तर अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक था, जहां शिक्षा और मुद्रण सामग्री की पहुँच बेहतर थी। यह परिवर्तन सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता में वृद्धि का प्रमुख कारण बना।
  • सूचना का नेटवर्क और सामाजिक प्रभाव: प्रिंटिंग प्रेस ने पश्चिमी यूरोप में सूचना के प्रसार के नेटवर्क को मजबूत किया, जिससे यह क्षेत्र तेज़ी से प्रगति कर सका। इसके परिणामस्वरूप लेखकों की नई श्रेणियाँ उभरकर सामने आईं, और पुस्तकालयों व सूचना केंद्रों की स्थापना हुई। इन संस्थाओं ने समाज में बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया, जिससे ज्ञान और विचारों का आदान-प्रदान अधिक संगठित और व्यापक हुआ।
  • आधुनिकता पर प्रभाव: मुद्रण तंत्र ने विचारों और ज्ञान के लोकतंत्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे ज्ञान तक सभी वर्गों की पहुँच संभव हुई। इसने आधुनिकता की बुर्जुआ संस्कृति को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सूचना के इन नेटवर्कों ने न केवल ज्ञान का प्रसार किया, बल्कि यूरोपीय समाज को बौद्धिक और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का आधार भी तैयार किया।


4.सामाजिक संरचना

  • मध्ययुगीन यूरोप की सामाजिक संरचना में पादरी, कुलीन, और किसान या कारीगर शामिल थे। यह सामंती व्यवस्था धन और शक्ति के आधार पर वर्गों में विभाजित थी। प्रारंभिक आधुनिक काल में कुलीनता प्रभावी रही, लेकिन व्यापारी और बैंकर उभरकर सामने आए। दासता (सर्फडम) कमजोर हुई, और समाज में धीमे बदलाव हुए। समाज पितृसत्तात्मक था, लेकिन धनी महिलाएँ कभी-कभी संपत्ति का प्रबंधन करती थीं।


5. शहरीकरण और वाणिज्य

  • प्रारंभिक आधुनिक काल में शहरीकरण तेजी से बढ़ा। 900 ई. में 1% शहरी आबादी 1500 ई. तक 8% हो गई। व्यापार का विस्तार हुआ, और बैंक, संयुक्त स्टॉक कंपनियाँ, और वाणिज्यिक संस्थान विकसित हुए। व्यापारी ऋण और समुद्री अनुबंधों ने लंबी दूरी के व्यापार को बढ़ावा दिया।


6. शिक्षा के केंद्र

  • 11वीं शताब्दी से विश्वविद्यालयों की स्थापना शुरू हुई, और अगले चार शताब्दियों में 50 से अधिक विश्वविद्यालय बने। ये कला, धर्मशास्त्र, कानून, और चिकित्सा में शिक्षा के केंद्र बने, लेकिन व्यावहारिक विषय लोकप्रिय नहीं थे। विश्वविद्यालय डिग्रियों को अभी व्यापक स्वीकृति नहीं मिली थी।


 शास्त्रीय और मध्यकालीन विरासत का अवलोकन 

प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव मध्ययुगीन सामंती संरचना से प्रेरित थे। व्यापारी, शिल्पकार, और श्रमिक जैसे नागरिक समाज समूहों ने निरंकुश शासकों को सत्ता साझा करने पर बाध्य किया। सामंती प्रणाली में सत्ता विकेंद्रीकृत थी, जिससे संतुलन बना रहा। मार्क ब्लॉख ने इसे "हर आदमी दूसरे आदमी का आदमी" और पेरी एंडरसन ने "संप्रभुता का विभाजन" कहा। इसने निरंकुशता को सीमित कर नागरिक आंदोलनों और लोकतांत्रिक सोच को प्रोत्साहित किया।

  • चर्च और मध्ययुगीन विरासत: मध्यकाल में चर्च का भौतिक और आध्यात्मिक संसाधनों पर बड़ा नियंत्रण था। चर्च शक्तिशाली जमींदार के रूप में उभरा, जो अक्सर अन्य राजनीतिक शक्तियों के साथ टकराव का कारण बना। मैक्स वेबर ने इस काल में चर्च के अधिकार को चुनौती देने के कारण यूरोप में बुद्धिवाद के उदय का विश्लेषण किया।
  • पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन: पुनर्जागरण और सुधार जैसे आंदोलन तत्काल अतीत से अलगाव के प्रतीक बने। प्राचीन संस्कृति के पुनर्जन्म की इच्छा ने हाल के अतीत को तोड़ते हुए नई विचारधारा और प्रगति को जन्म दिया। 17वीं से 19वीं शताब्दी के दौरान यूटोपियन आंदोलनों ने भविष्य के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण विकसित किया।
  • निरंतरता और अनिरंतरता: यूरोप के प्रारंभिक आधुनिक काल में कई निरंतरताएँ और अनिरंतरताएँ थीं। अतीत की विरासत, जैसे नागरिक समाज की मांगें और शक्तियों का संतुलन, इस काल में उभरते लोकतांत्रिक और प्रगतिशील विचारों के मूल में रही। यह काल शास्त्रीय और मध्यकालीन विरासत को नई दिशा देने का एक महत्त्वपूर्ण चरण साबित हुआ।


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