प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 4 CHAPTER 4 SEMESTER 3 THEORY NOTES नई दुनिया की विजयः भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू History DU. SOL.DU NEP COURSES

प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 4 CHAPTER 4  SEMESTER 3 THEORY NOTES नई दुनिया की विजयः भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू  History DU. SOL.DU NEP COURSES


परिचय

पुनर्जागरण एक सांस्कृतिक परिवर्तन का युग था जिसने आधुनिक दुनिया के विकास को गहराई से प्रभावित किया। इस समय, स्पेन और पुर्तगाल के औपनिवेशिक विस्तार और प्रोटेस्टेंट सुधार ने यूरोपीय इतिहास को स्थायी रूप से बदल दिया। 1490 से 1520 के बीच, यूरोपीय सभ्यता ने धर्मयुद्ध और समुद्री यात्राओं के जरिए दुनिया भर में उपनिवेश स्थापित किए, जिससे यूरोप और वैश्विक इतिहास में बड़ा बदलाव आया।


 नई दुनिया की विजय 

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में भूगोलिक अभियानों और अनदेखे क्षेत्रों की खोज ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की नींव रखी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था का विस्तार किया। इस प्रक्रिया में सबसे पहले पुर्तगाल और स्पेन ने अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका में अपने औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किए। बाद में, उत्तरी और पश्चिमी यूरोपीय देशों ने भी उपनिवेश बनाने में भाग लिया। औपनिवेशिक शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा ने सशस्त्र संघर्षों को जन्म दिया। इन उपनिवेशों की स्थापना ने यूरोपीय सत्ता और वैश्विक प्रभुत्व को मजबूत किया।


1. पश्चिमी यूरोप का विदेशी विस्तार

15वीं शताब्दी के अंत और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में, पश्चिमी यूरोप ने विदेशी विस्तार और नई जगहों की खोज की शुरुआत की। इस दौर में समुद्र के रास्ते व्यापार और विजय की प्रेरणा ने यूरोप को दुनिया के बड़े हिस्से पर अपना प्रभाव जमाने का मौका दिया।

1. तुर्की का दबदबा और यूरोपीय प्रतिक्रिया: 1453 में तुर्कों ने कस्तुनतूनिया (कॉन्स्टैंटिनोपल) पर कब्जा कर लिया, जो पहले ईसाई सभ्यता के लिए एक मज़बूत सुरक्षा दीवार थी। इसके बाद सर्बिया (1459) और अल्बानिया (1470) भी तुर्की साम्राज्य का हिस्सा बन गए। 1480 में तुर्कों ने इटली के ओट्रान्टो पर हमला किया, जहां की आधी आबादी का नरसंहार हुआ। इन घटनाओं ने यूरोप में भय का माहौल बना दिया।

पोप पायस II ने तुर्कों के खिलाफ यूरोप को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। हालांकि, एक तरफ जहां तुर्कों का दबदबा बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी यूरोप समुद्री रास्तों से नई जगहों की खोज में जुटा था।

2. समुद्री यात्राओं की शुरुआत: पुर्तगाल और स्पेन इस दौर के सबसे बड़े समुद्री खोजकर्ता बने।

  • 1482 में पुर्तगालियों ने घाना में अपनी पहली व्यापारिक चौकी बनाई और अफ्रीका के 'गोल्ड कोस्ट' पर व्यापार का नियंत्रण हासिल किया।
  • 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने वेस्ट इंडीज की खोज की, जिसने अमेरिका की खोज का रास्ता खोला।
  • 1500 में पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तट पर व्यापारिक चौकी बनाई।
  • 1519-1521 में स्पेनिश विजेता हर्नान्डो कोटेंस ने मैक्सिको के अज्टेक साम्राज्य पर कब्जा किया।

3. प्रभाव और विस्तार: इन समुद्री यात्राओं और विजयों ने पश्चिमी यूरोप को नई जमीनें, संसाधन और व्यापारिक मार्ग दिलाए। इसने यूरोप को एक नई शक्ति बना दिया, जिसने धीरे-धीरे वैश्विक राजनीति और व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया।


2. यूरोपीय समुद्री यात्राओं की व्याख्या: क्यों और कैसे?

15वीं और 16वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों द्वारा किए गए समुद्री अभियानों ने वैश्विक इतिहास को नया मोड़ दिया। इन यात्राओं के पीछे क्या कारण थे, और यह इतने कम समय में कैसे संभव हो सका? इस पर दो प्रमुख दृष्टिकोण हैं: 'पुनर्जागरण स्कूल' और 'मध्यकालीन तैयारियों का सिद्धांत'।

1. पुनर्जागरण स्कूल का दृष्टिकोण

  • पुनर्जागरण और समुद्री यात्राओं का संबंध: पुनर्जागरण ने नई खोजों और यात्राओं को प्रेरित किया, क्योंकि जिज्ञासा, व्यावहारिकता और आत्मनिर्भरता जैसे इसके मूल्य यूरोपीय खोजों के लिए जिम्मेदार माने गए। इस दृष्टिकोण के अनुसार, क्रिस्टोफर कोलंबस और लियोनार्डो दा विंची जैसे समकालीन व्यक्तित्वों के उदाहरण यह दर्शाते हैं कि पुनर्जागरण संस्कृति ने समुद्री यात्राओं को संभव बनाया। हालाँकि, अधिकांश खोजकर्ता जेनोआ जैसे क्षेत्रों से आए, जो पुनर्जागरण के केंद्र नहीं थे।
  • कमज़ोरियां: यह मान लेना कि मध्यकालीन लोग जिज्ञासु या व्यावहारिक नहीं थे, गलत है। प्रमुख पुनर्जागरण राष्ट्रों ने इन यात्राओं का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं किया। इसलिए, यह दृष्टिकोण समुद्री यात्राओं की पूरी व्याख्या करने में असमर्थ है।

2. मध्यकालीन तैयारियों का सिद्धांत

यह सिद्धांत मानता है कि समुद्री यात्राओं की तैयारी और प्रेरणा मध्यकालीन युग में ही शुरू हो गई थी। मध्यकालीन यूरोप में एशियाई मसाले और विलासिता की वस्तुएं, धार्मिक उद्देश्य, और तकनीकी प्रगति इस प्रक्रिया के प्रमुख कारण थे।

  • एशियाई मसाले और विलासिता की वस्तुएं: मसाले जैसे लौंग, अदरक, काली मिर्च, जायफल, और दालचीनी मध्यकालीन यूरोप में अत्यधिक मूल्यवान थे। ये मसाले भोजन को संरक्षित और स्वादिष्ट बनाने में उपयोगी थे। भूमि मार्ग से आयात महंगा और जोखिम भरा होने के कारण समुद्री मार्गों की खोज आवश्यक हो गई।
  • धार्मिक प्रेरणा: गैर-ईसाई लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने और इस्लाम के खिलाफ सहयोगी खोजने की इच्छा ने समुद्री यात्राओं को प्रोत्साहन दिया।
  • तकनीकी प्रगति: जहाज निर्माण और नौवहन तकनीकों में सुधार 14वीं शताब्दी में ही हो चुका था। उदाहरण के लिए, पुर्तगाली नाविक 1350 तक अज़ोरेस द्वीप समूह तक पहुंच चुके थे। 1291 में जेनोआ के विवाल्डी भाइयों ने पश्चिमी मार्ग से एशिया तक पहुंचने का प्रयास किया।

3. समुद्री यात्राओं के आर्थिक और तकनीकी कारण

समुद्री यात्राओं को प्रेरित करने में आर्थिक और तकनीकी कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिनकी वजह से व्यापार मार्ग बेहतर और सुरक्षित बने।

  • आर्थिक कारण: भूमि मार्गों की अनुपयुक्तता: मध्य एशिया की राजनीतिक अस्थिरता और कठिनाइयों के कारण भूमि मार्ग अव्यवहारिक हो गए, जिससे समुद्री मार्ग अधिक उपयुक्त और सुरक्षित बन गए।
  • सस्ता और सुरक्षित जल परिवहन: समुद्री परिवहन न केवल अधिक किफायती था, बल्कि लंबी दूरी के व्यापार के लिए भी यह सबसे उपयुक्त साधन था।
  • तकनीकी कारण: मध्यकालीन ज्ञान और मानचित्र: 12वीं शताब्दी के बाद, यूरोप में पृथ्वी के गोल होने का विचार व्यापक रूप से मान्य हुआ, जिसने समुद्री खोजों को प्रेरित किया।
  • नौवहन तकनीक में सुधार: उन्नत मानचित्र और बेहतर नौवहन तकनीकों ने यूरोपीय नाविकों को नए व्यापार मार्गों की खोज में मदद की।

3. खोज (डिस्कवरी) की यात्राओं का समय

पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दियों में हुई समुद्री खोज यात्राओं के पीछे कई आर्थिक, तकनीकी, और राजनीतिक कारण थे। इन अभियानों ने नई दुनिया की खोज और व्यापार मार्गों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रमुख कारण और चुनौतियाँ

  • चौदहवीं शताब्दी में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता: चौदहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा था। इस दौर में आर्थिक मंदी और फ्रांस व इंग्लैंड के बीच शतवर्षीय युद्ध जैसे संघर्षों ने महंगे समुद्री अभियानों में बड़ी बाधाएं उत्पन्न कीं। हालांकि, इन कठिनाइयों के बावजूद, पुर्तगाल ने अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक सक्रियता दिखाई। पुर्तगाली नाविकों ने साहसिक प्रयासों के तहत अज़ोरेस और मदीरा जैसे द्वीपों पर उपनिवेश स्थापित किए, जो समुद्री अभियानों के विस्तार और नए व्यापार मार्गों की खोज में एक अहम कदम साबित हुए।
  • पुर्तगाली अभियानों की अग्रणी भूमिका: पुर्तगाली अभियानों ने समुद्री खोज और व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाई। 1418-1460 के बीच प्रिंस हेनरी 'नेविगेटर' ने नौवहन अभियानों का नेतृत्व किया, जिसमें अफ्रीका के पश्चिमी तट पर सोने और दास व्यापार के लिए कई प्रयास किए गए। 1487 में बार्थोलोम्यू डायस ने 'केप ऑफ गुड होप' की खोज की, जिसने एशिया के लिए एक समुद्री मार्ग खोलने का आधार तैयार किया। इसके बाद, 1497-1499 के दौरान वास्को डी गामा ने भारत तक समुद्री मार्ग स्थापित किया, जिससे पुर्तगाल को मसालों के व्यापार में बढ़त मिली और वह वैश्विक व्यापारिक शक्ति बन गया।
  • स्पेन का कोलंबस का समर्थन: पुर्तगाल की समुद्री सफलताओं से प्रेरित होकर, स्पेन ने क्रिस्टोफर कोलंबस के पश्चिमी मार्ग से एशिया तक पहुँचने के प्रस्ताव को समर्थन दिया। 1492 में कोलंबस ने अपनी ऐतिहासिक यात्रा में वर्तमान बहामास और हिसपनिओला की खोज की, हालांकि वह इसे एशिया का हिस्सा मानता रहा। 1500 तक यह स्पष्ट हो गया था कि कोलंबस ने एक नए महाद्वीप की खोज की थी, जिसे बाद में अमेरिगो वेस्पुसी के नाम पर 'अमेरिका' कहा गया। इस खोज ने स्पेन को नई दुनिया के संसाधनों और व्यापार मार्गों पर दावा करने का अवसर दिया।
  • फर्डिनेंड मैगेलन और दुनिया की परिक्रमा: 1519 में फर्डिनेंड मैगेलन के नेतृत्व में एक ऐतिहासिक अभियान ने यह साबित किया कि पृथ्वी गोल है और दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे, जिसे अब 'स्ट्रेट ऑफ मैगेलन' कहा जाता है, के माध्यम से एशिया तक पहुँचना संभव है। यह अभियान समुद्री खोजों में एक बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि, इस यात्रा में भारी नुकसान हुआ, जिसमें मैगेलन की मृत्यु भी शामिल थी। अभियान के अंत में केवल एक जहाज और 18 चालक दल के सदस्य जीवित वापस लौटे, लेकिन उन्होंने दुनिया की पहली सफल परिक्रमा पूरी कर इतिहास रच दिया।
  • खोज यात्राओं का महत्व: खोज यात्राओं का ऐतिहासिक महत्व अतुलनीय है। इन अभियानों के माध्यम से नई दुनिया की खोज हुई और मसालों के व्यापार के लिए समुद्री मार्ग स्थापित किए गए, जो यूरोपीय शक्तियों के लिए आर्थिक और राजनीतिक लाभ का आधार बने। इन यात्राओं ने यूरोपीय देशों को नई बस्तियाँ स्थापित करने और एक वैश्विक व्यापार नेटवर्क विकसित करने में सक्षम बनाया। हालांकि, इन अभियानों में अनेक कठिनाइयाँ थीं, जैसे कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ, खराब मौसम, और जानलेवा बीमारियाँ। बावजूद इसके, इन यात्राओं ने आधुनिक वैश्विक इतिहास की नींव रखी और दुनिया को एक नए युग में प्रवेश कराया।


 4. विजेताओं (कोंक्विस्टाडोर्स) ने सोने के लिए नई दुनिया को लूटा 

नई दुनिया यानी अमेरिका महाद्वीप को खोजने के पीछे मुख्य उद्देश्य धन और सोना था। जब कोलंबस ने सबसे पहले अमेरिका की खोज की, तो सोने के छोटे-छोटे नमूनों ने यूरोप में एक बड़े भंडार की संभावना को जन्म दिया। इस उम्मीद ने स्पेन और पुर्तगाल के विजेताओं को अपनी किस्मत आज़माने और महाद्वीप के गहरे हिस्सों में जाने के लिए प्रेरित किया।

  • सोने की खोज और विजय की शुरुआत: स्पेनिश विजेताओं ने अमेरिका के विशाल साम्राज्यों को मात दी। हर्नान्डो कोर्टेस ने 1519-1521 के बीच मेक्सिको के एज़्टेक साम्राज्य को केवल 600 सैनिकों के साथ हराया। इस विजय के बाद एज़्टेक साम्राज्य की पूरी संपत्ति स्पेन के कब्जे में आ गई। इसके बाद, 1533 में फ्रांसिस्को पिजारो ने 180 सैनिकों की मदद से पेरू के इनका साम्राज्य को लूट लिया।
  • विजेताओं की रणनीति और क्रूरता: इन विजयों के पीछे सैन्य कौशल, साहस और रणनीतिक छल प्रमुख थे। हालांकि, इन कृत्यों में क्रूरता और नैतिकता की कमी स्पष्ट रूप से झलकती थी। छोटे समूहों ने विशाल साम्राज्यों को अपने अधीन किया, लेकिन उनके तरीकों में क्रूरता और लालच ने मानवता को शर्मसार किया।
  • स्पेन और पुर्तगाल का औपनिवेशिक प्रशासन: स्पेन और पुर्तगाल ने अमेरिका में अपने उपनिवेशों को व्यवस्थित करने के लिए सुदृढ़ प्रशासनिक ढांचे की स्थापना की। स्पेन ने "वायसराय" नामक अधिकारियों के माध्यम से अपने साम्राज्य का संचालन किया। ये वायसराय राजा के प्रत्यक्ष एजेंट होते थे और क्षेत्रीय प्रशासन को नियंत्रित करते थे। शुरुआत में केवल दो वायसराय (न्यू स्पेन और पेरू) थे, लेकिन बाद में इनकी संख्या चार हो गई।
  • चर्च की भूमिका: स्पेनिश औपनिवेशिक व्यवस्था में कैथोलिक चर्च की भूमिका भी अहम रही। चर्च ने जनता को सम्राट और उनके प्रतिनिधियों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। स्थानीय आबादी ने अपने पारंपरिक धर्मों को छोड़कर कैथोलिक धर्म अपना लिया। चर्च ने धर्मांतरण को बढ़ावा दिया और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में सहायता की।
  • संघर्ष और विजय का विस्तार: अर्जेंटीना और चिली जैसे क्षेत्रों में स्वदेशी आबादी के प्रतिरोध के कारण संघर्ष और लंबा चला। 1580 तक स्पेन ब्यूनस आयर्स पर नियंत्रण स्थापित कर पाया। वहीं, पुर्तगाल ने भी ब्राज़ील में 1549 तक एक स्थिर औपनिवेशिक शासन की स्थापना कर ली।
  • निरंकुश शासन की छाप: स्पेनिश प्रशासन ने अपने उपनिवेशों में निरंकुशता और पितृसत्तात्मक सिद्धांतों का पालन किया। हालांकि भ्रष्टाचार को रोकने के प्रयास किए गए, लेकिन यह समस्या पूरी तरह से हल नहीं हो पाई।
  • स्पेन और पुर्तगाल के साम्राज्य का प्रभाव: स्पेन और पुर्तगाल ने 100 वर्षों के भीतर अमेरिका में ऐसे विशाल साम्राज्य खड़े किए, जिनका आकार आधुनिक संयुक्त राज्य अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक था। इन साम्राज्यों के निर्माण ने लैटिन अमेरिका के इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला, जिसकी छाया आज भी वहाँ महसूस की जाती है।


5. पितृसत्ता और वाणिज्यवाद

1. पितृसत्तावाद और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था: पितृसत्तावाद स्पेनिश और पुर्तगाली उपनिवेशों की आर्थिक व्यवस्था का आधार था, जिसमें अमेरिकी भूमि को सम्राट की निजी संपत्ति माना गया। वाणिज्यवाद (Mercantilism) के सिद्धांतों ने इस व्यवस्था को मजबूत किया। इन सिद्धांतों के अनुसार, उपनिवेशों का मुख्य उद्देश्य मातृ देश की समृद्धि को बढ़ाना था।

स्पेन और पुर्तगाल ने अपने उपनिवेशों को आर्थिक लाभ के केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया। उपनिवेशों से प्रमुख उत्पादों का उत्पादन और निर्यात किया गया, जैसे:

  • मेक्सिको और बोलिविया से चांदी और सोना
  • वेस्ट इंडीज से चीनी
  • ब्राजील से लकड़ी और वन उत्पाद
  • स्थानीय उत्पादन और उद्योगों को हतोत्साहित किया गया, ताकि उपनिवेश मातृ देश पर निर्भर रहें।


2. एन्कोमेंडा प्रणाली: स्पेनिश उपनिवेशों में "एन्कोमेंडा" प्रणाली लागू की गई, जो श्रम और भूमि के उपयोग का साधन थी। इस प्रणाली के तहत:

  • एंकोमेन्डरो (भूमि के अधिकारधारी) को स्थानीय श्रमिकों पर नियंत्रण दिया गया।
  • स्थानीय श्रमिक कर और श्रम के लिए बाध्य थे, जिससे उनकी स्थिति वास्तविक दासता जैसी हो गई।
  • सैद्धांतिक रूप से यह प्रणाली ईसाई धर्म और सभ्यता को फैलाने के लिए थी, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह शोषण का माध्यम बनी।

3. सामाजिक संरचना: स्पेनिश और पुर्तगाली उपनिवेशों में सामाजिक संरचना अत्यधिक भेदभावपूर्ण और अर्ध-सामंती थी:

  • उच्च वर्ग: सैन्य नेता, राजशाही के अधिकारी, और धार्मिक अधिकारी।
  • क्रेओल्स: इबेरियन मूल के अमेरिकी, जिन्होंने कृषि और व्यापार से संपत्ति अर्जित की, लेकिन उच्च प्रशासनिक पदों से वंचित रहे।
  • मेस्टिजोस और मामेलुकोस: यूरोपीय और स्थानीय लोगों की मिश्रित संतान, जो सामाजिक मान्यता के लिए संघर्ष करते रहे।
  • स्थानीय मूल निवासी और अफ्रीकी गुलाम: सामाजिक पदानुक्रम के निचले स्तर पर, जिनकी स्थिति दासता जैसी थी।

4. क्रेओल्स और स्वतंत्रता आंदोलन: क्रेओल्स ने राजशाही के प्रतिबंधों के खिलाफ असंतोष व्यक्त किया, जिससे औपनिवेशिक स्वतंत्रता आंदोलनों की शुरुआत हुई। इन क्रांतियों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन सबसे अधिक लाभ क्रेओल्स ने ही उठाया।

5. गुलामी और दमन

  • स्थानीय मूल निवासी: उनके शोषण ने उनकी संस्कृति और समाज को नष्ट कर दिया।
  • अफ्रीकी गुलाम: वेस्ट इंडीज और ब्राजील में उनका अमानवीय शोषण हुआ। उनकी संख्या कम थी, लेकिन उनके साथ की गई क्रूरता अधिक थी।










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