परिचय
इस इकाई में, हम मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में इस्लाम के उदय और उसके प्रभाव को समझेंगे। यह इकाई दो हिस्सों में विभाजित है—पहला, पूर्व-इस्लामिक अरब की स्थितियाँ और इस्लामी राज्य का निर्माण; दूसरा, पहले चार खलीफाओं और उमय्यद व अब्बासिड शासन के दौरान हुए सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन। साथ ही, बाइजेंटाइन साम्राज्य की संरचना का अध्ययन करेंगे, जिसमें उसकी मजबूत राजशाही, यूनानी रूढ़िवादी चर्च और पूर्वी यूरोप, तुर्की व उत्तरी अफ्रीका के सामाजिक-धार्मिक बदलाव शामिल हैं। यह अध्ययन इस्लाम और बाइजेंटाइन साम्राज्य के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा।
इस्लाम-पूर्व अरब का जनजातीय समाज
इस्लाम के उदय से पहले अरब समाज अनूठी सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं वाला था। जनजातियों में विभाजित यह समाज अपनी परंपराओं और प्राकृतिक परिस्थितियों के आधार पर विकसित हुआ। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- मध्य पूर्व का परिदृश्य: 6वीं शताब्दी में अरब क्षेत्र दो महाशक्तियों—बाइजेंटाइन और ससानियन साम्राज्य—के बीच स्थित था। बाइजेंटाइन साम्राज्य का धर्म ईसाई था और राजधानी कॉन्स्टेंटिनोपल, जबकि ससानियन साम्राज्य पारसी धर्म का पालन करता था और उसकी राजधानी सीटेसिफ़ोन थी। अरब क्षेत्र व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क के माध्यम से इन साम्राज्यों से प्रभावित था।
- प्राकृतिक परिस्थितियाँ: अरब मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्र था, जहाँ कठोर जीवन और पानी की कमी आम थी। बसे हुए अरब कृषि और व्यापार पर निर्भर थे और नखलिस्तानों, जैसे मक्का और दक्षिण अरब में रहते थे। दूसरी ओर, बेडौइन खानाबदोश जनजातियाँ पशुपालन, व्यापार और लूटपाट से जीवनयापन करती थीं।
- जनजातीय संगठन: जनजातियाँ कई कुलों से बनी थीं और स्वायत्त थीं। जनजातियों का प्रमुख उम्र, कुलीनता और युद्ध-कौशल के आधार पर चुना जाता था। चरागाहों और जल संसाधनों के लिए अक्सर झगड़े होते थे।
- आर्थिक और सामाजिक जीवन: आर्थिक जीवन बेडौइन और बसे हुए अरबों के बीच व्यापार पर आधारित था। बेडौइन ऊँटों के माध्यम से सामान का परिवहन करते, जबकि बसे हुए अरब खाद्य सामग्री और हथियारों का आदान-प्रदान करते थे। मक्का व्यापार और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र था
- धार्मिक मान्यताएँ: अरब समाज बहुदेववादी था, जहाँ हर जनजाति के अपने देवता होते थे। मक्का स्थित काबा प्रमुख धार्मिक स्थल था। इसके अलावा, ईसाई, यहूदी और पारसी धर्मों का सीमित प्रभाव था, लेकिन व्यापक स्वीकृति नहीं मिली।
- जनजातीय समाज की विशेषताएँ: जनजातीय समाज स्वतंत्रता और सुरक्षा पर आधारित था। कोई केंद्रीय सरकार नहीं थी, और हर जनजाति स्वतंत्र राजनीतिक इकाई थी। जनजातियों के बीच झगड़े आम थे, लेकिन मक्का का काबा धार्मिक एकता का प्रतीक था।
इस्लाम का उदय
सातवीं शताब्दी में, जब बाइजेंटाइन और ससानियन साम्राज्य अपनी शक्ति के चरम पर थे, अरब में इस्लाम का उदय हुआ। यह न केवल एक धार्मिक आंदोलन था, बल्कि इसने अरब समाज के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को भी बदल दिया।
1.कारण और पृष्ठभूमि
अरब समाज में सामाजिक असमानता, खानाबदोश जनजातियों के बीच संघर्ष, और बाइजेंटाइन व ससानियन साम्राज्यों के संघर्ष ने इस्लाम के उदय के लिए आधार तैयार किया। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता और जनजातियों को एकजुट करने की आवश्यकता ने इस्लाम के विकास में भूमिका निभाई।
2. मोहम्मद का जीवन और इस्लाम का प्रसार
मोहम्मद (570 ई.) का जन्म कुरैश जनजाति के हाशिम परिवार में हुआ। व्यापारिक यात्राओं के दौरान उन्होंने यहूदी और ईसाई एकेश्वरवाद के विचारों को आत्मसात किया।
- 40 वर्ष की आयु में: उन्होंने अल्लाह के दूत होने का दावा किया और "अल्लाह के सिवा कोई ईश्वर नहीं है" का संदेश फैलाया।
- 622 ई. में हिजरा: मक्का के विरोध के कारण मोहम्मद मदीना चले गए, जहाँ इस्लामी समुदाय (उम्मा) की स्थापना हुई।
3. इस्लामिक राज्य का गठन और विस्तार
मदीना में इस्लामिक राज्य का गठन हुआ, और मोहम्मद धार्मिक व राजनीतिक नेता बने।
- 630 ई. में मक्का की विजय: मक्का इस्लाम का केंद्र बन गया। मक्का के लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए, और अरब जनजातियों का एकीकरण हुआ।
4. मोहम्मद की मृत्यु और इस्लाम का विस्तार
632 ई. में मोहम्मद की मृत्यु तक, अधिकांश अरब जनजातियाँ इस्लाम में परिवर्तित हो चुकी थीं। उनके उत्तराधिकारियों (खलीफा) ने फारस, सीरिया, मिस्र आदि क्षेत्रों में इस्लाम का विस्तार किया, जिससे यह दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक बन गया।
इस्लाम की उम्माह: धार्मिक और राजनीतिक समुदाय
उम्माह इस्लाम का विश्वासियों का समुदाय था, जिसमें मुसलमानों के अलावा वे गैर-मुस्लिम भी शामिल थे जिन्होंने इस्लाम अपनाया या सुरक्षा के बदले कर अदा किया। उम्माह ने धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक एकता को बढ़ावा दिया।
- उम्माह का गठन: 622 ई. में मोहम्मद ने मदीना में उम्माह की स्थापना की, जो 'मदीना के संविधान' पर आधारित थी। इसमें दो समूह शामिल थे—मुहाजिरुन (प्रवासी) और अंसार (स्थानीय समर्थक)। मक्का की विजय (630 ई.) के बाद इस्लाम पूरे अरब में फैल गया, जिससे एकजुट समाज की नींव रखी गई।
- एकेश्वरवाद और उम्माह: मोहम्मद के एकेश्वरवाद ने जनजातीय विभाजनों को खत्म कर अरबों को एकजुट किया। इस्लाम में धर्म और राजनीति का मेल था, जिससे सामाजिक समानता और न्याय की व्यवस्था बनी।
- कुरान और सामाजिक मूल्य: कुरान उम्माह का आधार था, जिसमें पाँच स्तंभ (सलात, जकात, हज, उपवास, और शहादा) और समानता व भाईचारे पर जोर दिया गया। उम्माह के सदस्य समाज के हित में कार्य और न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित थे।
- सामूहिक जीवन: उम्माह ने सामाजिक समानता और एकजुटता को बढ़ावा दिया। यह विश्वास, न्याय और सामूहिक सहयोग पर आधारित एक संगठित समाज का प्रतीक बना। उम्माह ने इस्लाम को एक मजबूत धार्मिक और राजनीतिक संगठन में बदल दिया।
खलीफा और इस्लामिक साम्राज्य का राजनीतिक इतिहास
632 ई. में पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद, उम्माह के नेतृत्व का प्रश्न उठ खड़ा हुआ, जिसे खलीफा की संस्था ने हल किया। खलीफा न केवल राजनीतिक नेता थे, बल्कि धार्मिक प्रमुख भी, क्योंकि इस्लाम के धार्मिक और राजनीतिक पहलू अविभाज्य थे।
1. खलीफा का पद और शर्तें
खलीफा का चयन या तो चुनाव द्वारा होता था या किसी शासक द्वारा उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया जाता था। पद के लिए प्रमुख शर्तें थीं:
- कुरैश वंश से होना।
- न्यायपूर्ण और धार्मिक चरित्र।
- शरीयत का ज्ञान।
- शारीरिक और मानसिक सुदृढ़ता।
2. रशीदून खलीफा (632-661 ई.)
रशीदून खलीफा "राइटली गाइडेड" कहे जाते थे और इस्लामिक राज्य की नींव मजबूत की।
- अबू बक्र (632-634 ई.): अरब प्रायद्वीप में मदीना का नेतृत्व स्थापित किया और सीरिया में बाइजेंटाइन सेना को हराया।
- उमर (634-644 ई.): मेसोपोटामिया, फारस, सीरिया और मिस्र पर विजय। प्रशासनिक ढांचे और इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत की।
- उस्मान (644-656 ई.): साम्राज्य का विस्तार किया, लेकिन भ्रष्टाचार और उमय्यद परिवार के पक्षपात के कारण विद्रोह बढ़े।
- अली (656-661 ई.): मोहम्मद के दामाद। उनके शासनकाल में गृहयुद्ध (फितना) हुआ। उनकी मृत्यु के साथ उमय्यद वंश ने सत्ता संभाली।
3. वंशानुगत राजशाही और उमय्यद साम्राज्य
अली की मृत्यु के बाद, उमय्यद वंश ने इस्लामिक साम्राज्य को वंशानुगत राजशाही में बदल दिया। उमय्यदों ने साम्राज्य का विस्तार जारी रखा, लेकिन आंतरिक विरोध और धार्मिक विभाजन भी बढ़े।