मध्ययुगीन समाज : वैश्विक परिप्रेक्ष्य UNIT 1 CHAPTER 2 SEMESTER 2 THEORY NOTES सांस्कृतिक पैटर्न, पदानुक्रम का क्रिस्टलीकरण (विकास): मध्यकालीन जीवन और विचार HISTORY DU. SOL.DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakदिसंबर 25, 2024
परिचय
यूरोपीय इतिहास में 600 से 1500 ई. तक का समय 'मध्य युग' कहलाता है। इसे 'प्रारंभिक' और 'उत्तर मध्य युग' में बांटा गया है। इस काल में ईसाई धर्म ने समाज में गहरी पकड़ बना ली, और 'यूरोप' को अक्सर 'ईसाईजगत' कहा जाने लगा। 1050-1300 ई. के बीच ईसाई चर्च ने राज्य के साथ कई संघर्षों का सामना किया, जिससे उसकी संरचना में बड़े बदलाव आए।
मध्ययुगीन यूरोप का सांस्कृतिक विकास
1. सांस्कृतिक पैटर्न
प्रारंभिक मध्ययुगीन काल: प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में ईसाई मान्यताओं का प्रमुख प्रभाव देखा गया। पश्चिमी यूरोप में राजनीतिक अस्थिरता के कारण सांस्कृतिक विकास धीमा रहा, जबकि बाइजेंटाइन साम्राज्य में कला, साहित्य, और वास्तुकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय उन्नति हुई। इस समय इस्लामी दुनिया और विदेशी व्यापार का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इसके साथ ही जन-प्रवास ने विभिन्न संस्कृतियों के संश्लेषण में अहम भूमिका निभाई।
उत्तर मध्यकालीन काल (उच्च मध्य युग): उत्तर मध्यकालीन काल, जिसे उच्च मध्य युग के रूप में जाना जाता है, साहित्य और कला में तेजी से प्रगति का दौर था। इस समय इस्लामी दुनिया से शास्त्रीय ग्रंथ, जैसे अरस्तू के लेख, यूरोप पहुंचे, जिसे "बारहवीं शताब्दी का पुनर्जागरण" कहा गया। शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हुआ, और विश्वविद्यालय तथा स्कूल जैसे शिक्षा केंद्र स्थापित किए गए। चौदहवीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप ने शिक्षा और कला के क्षेत्र में नेतृत्व करना शुरू कर दिया।
2.साहित्यिक और बौद्धिक विकास
साहित्यिक और बौद्धिक विकास के क्षेत्र में ईसाई पादरियों ने ग्रीक और लैटिन भाषाओं को बढ़ावा दिया, जबकि फ्रेंच और जर्मन जैसी स्थानीय भाषाओं का भी विकास हुआ। शारलेमेन ने विद्वानों और शिक्षा को संरक्षण देकर इस प्रक्रिया को गति दी। बाइजेंटाइन साहित्य ने ग्रीक परंपराओं को बनाए रखा और उस समय की कविताएँ व साहित्य मुख्य रूप से धार्मिक और नैतिक शिक्षाएँ देने पर केंद्रित थे।
3.कला और वास्तुकला
पूर्व और पश्चिम के योगदान में पश्चिमी कला मुख्य रूप से ईसाई धर्म से प्रेरित थी, जबकि बाइजेंटाइन वास्तुकला में यूनानी प्रभाव स्पष्ट था। कैरोलिंगियन और बाइजेंटाइन काल में चर्च और स्मारकों का निर्माण महत्वपूर्ण रहा। इस अवधि में रोमनस्क्यू और गॉथिक शैलियों का विकास हुआ। रोमनस्क्यू शैली में गोल मेहराब और मोटी दीवारें प्रमुख थीं, जबकि गॉथिक शैली की पहचान नुकीले मेहराब, ऊँची इमारतें, और रंगीन काँच की खिड़कियाँ थीं।
4. तकनीकी नवाचार
कृषि: मध्यकालीन काल में कृषि में लोहे की नोक वाले हल, घोड़ों की नाल, और अन्य नए उपकरणों का विकास हुआ, जिससे खेती की उत्पादकता में सुधार हुआ। साथ ही, पनचक्की और पवनचक्की के बढ़ते उपयोग ने कृषि और अन्य संबंधित कार्यों को अधिक प्रभावी बनाया।
युद्ध: मध्यकालीन युद्ध के क्षेत्र में रकाब, प्लेट कवच, और गनपाउडर का उपयोग एक बड़ी प्रगति थी, जिसने सैन्य तकनीकों को और प्रभावी बनाया। इस दौरान तोप और क्रॉसबो जैसे नए हथियारों का आविष्कार भी हुआ, जिससे युद्ध की रणनीतियों में बदलाव आया।
समुद्री उद्योग: मध्यकालीन काल में समुद्री उद्योग में मजबूत पतवार, त्रिकोणीय पाल, कम्पास, और एस्ट्रोलैब जैसे उपकरणों का उपयोग शुरू हुआ, जिससे समुद्री यात्रा और व्यापार अधिक सुरक्षित और प्रभावी हुआ। इस दौरान वेनिस जहाज निर्माण का एक प्रमुख केंद्र बन गया, जहाँ जहाज निर्माण तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति हुई।
मध्यकालीन यूरोप में धर्म
मध्यकालीन यूरोप (11वीं से 15वीं शताब्दी) न केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलावों का दौर था, बल्कि यह धर्म के प्रभाव और शक्ति के विस्तार का भी युग था। ईसाई धर्म ने यूरोप के समाज, राजनीति और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। आइए इस रोचक कालखंड की प्रमुख विशेषताओं को समझें।
1. पोपतंत्र का उदय
मध्यकालीन यूरोप में पोपतंत्र (पैपसी) एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा।
ईसाई धर्म का प्रसार: चर्च ने उपदेश, स्वीकारोक्ति, तीर्थयात्रा और प्रार्थना के जरिए धर्म को समाज में गहराई से स्थापित किया।
धर्मयुद्ध (क्रूसेड्स): मुसलमानों से यरूशलेम जैसे पवित्र स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष हुए। हालांकि, इन संघर्षों ने पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच भी मतभेद बढ़ाए।
चर्च बनाम राज्य: राजाओं और पोप के बीच सत्ता को लेकर लगातार खींचतान रही, जिसने यूरोपीय राजनीति को प्रभावित किया।
2. चर्च सुधार: नैतिकता और शक्ति का संघर्ष
चर्च की गिरती साख ने सुधार आंदोलनों को जन्म दिया।
क्लूनी सुधार: मठों को रईसों के हस्तक्षेप से मुक्त कर गरीबी और शुद्धता का पालन किया गया।
ग्रेगोरियन सुधार: पोप ग्रेगरी VII ने चर्च को धर्मनिरपेक्ष हस्तक्षेप से बचाने के लिए कई कड़े कदम उठाए।
अलंकरण संघर्ष: यह विवाद चर्च और राजाओं के बीच बिशपों की नियुक्ति को लेकर था, जिसे वर्म्स का कॉनकॉर्ड (1122 ई.) ने हल किया।
3. धर्मयुद्ध और उनका प्रभाव
धर्मयुद्ध ने समाज पर गहरा प्रभाव डाला।
धार्मिक संघर्ष: ईसाइयों और मुसलमानों के बीच यरूशलेम और अन्य धार्मिक स्थलों पर अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी गई।
सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव: मध्यकालीन काल में यूरोपीय समाज कमजोर होता गया, क्योंकि ईसाई और मुस्लिम राज्यों के बीच लंबे समय तक संघर्ष जारी रहा। इन संघर्षों ने संसाधनों को प्रभावित किया और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ाई। स्पेन और इबेरियन प्रायद्वीप की विजय ने बाद में नई दुनिया (अमेरिका) की खोज का मार्ग प्रशस्त किया, जो वैश्विक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
4. विधर्मी आंदोलन: एक चुनौती
चर्च सुधारों के बाद कई धार्मिक आंदोलन उभरे।
कैथारिज्म और वाल्डेंसियनवाद: चर्च की आलोचना करने वाले इन आंदोलनों को विधर्मी घोषित कर दबा दिया गया।
डोमिनिकन और फ्रांसिस्कन:ये आंदोलन चर्च के प्रति वफादार रहे, लेकिन स्वैच्छिक गरीबी और समाज सेवा पर जोर दिया।इन आंदोलनों ने शहरी समाज में गहरी जड़ें जमाईं।
महिला पूजा का उदय: वर्जिन मैरी को 'आवर लेडी' के रूप में सम्मानित किया गया, और उनके नाम पर चर्च बनाए गए।
5. धर्म और समाज का संबंध
मध्यकालीन समाज की संरचना पर धर्म का गहरा प्रभाव था। चर्च केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं था, बल्कि यह शिक्षा, कला, और संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र बन गया। इस अवधि में धार्मिक सुधारों और आंदोलनों ने सामंती समाज की परंपराओं को चुनौती दी। धर्मयुद्ध और विधर्मी आंदोलनों ने यूरोपीय समाज में नए बदलावों का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन आए।