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मध्ययुगीन समाज : वैश्विक परिप्रेक्ष्य UNIT 1 CHAPTER 1 SEMESTER 2 THEORY NOTES सामंतवाद, चर्च तथा कुलीन वर्ग HISTORY DU. SOL.DU NEP COURSES

मध्ययुगीन समाज : वैश्विक परिप्रेक्ष्य UNIT 1 CHAPTER 1 SEMESTER 2 THEORY NOTES सामंतवाद, चर्च तथा कुलीन वर्ग HISTORY DU. SOL.DU NEP COURSES

परिचय

यह इकाई मध्यकालीन विश्व के प्रमुख परिवर्तनों पर केंद्रित है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है: पहला सामंतवाद, चर्च और कुलीनता पर, और दूसरा सांस्कृतिक विकास और जीवनशैली के परिवर्तनों पर।जर्मनिक जनजातियों के आक्रमणों से पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन हुआ, जिससे यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। रोमन संस्थाओं के प्रभाव से जनजातीय समाजों में अभिजात वर्ग, मुखिया और राजशाही का उदय हुआ। जमींदार कुलीन वर्ग और वर्गीकृत समाज की संरचना ने सामंतवाद की नींव रखी।


 सामंतवाद 

सामंतवाद एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था थी, जो पदानुक्रम (हायरार्की), निष्ठा और आपसी निर्भरता पर आधारित थी। यह मध्यकालीन युग में यूरोप और भारत जैसे कई क्षेत्रों में विकसित हुआ। हालाँकि, अलग-अलग जगहों पर सामंतवाद का स्वरूप अलग था, और इसे स्थानीय परिस्थितियों के संदर्भ में बेहतर समझा जा सकता है।

1. यूरोपीय सामंतवाद

सामंतवाद का विकास मुख्य रूप से भूमि के अनुदान और सैन्य सेवाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से हुआ। इसका एक उदाहरण फ्रांस के चार्ल्स मार्टेल है, जिन्होंने सैन्य अधिकारियों को भूमि देकर बेहतर घुड़सवार सेना का गठन किया।

मुख्य विचारधाराएँ:

  • मार्क ब्लॉख: सामंतवाद एक परस्पर निर्भरता का पिरामिड था, जिसमें राजा शीर्ष पर और किसान सबसे नीचे थे।
  • हेनरी पिरेन: व्यापार के घटने से स्थानीय 'बंद अर्थव्यवस्था' का विकास हुआ।
  • पेरी एंडरसन: इसे "संप्रभुता का विभाजन" कहा, जहाँ शक्तियाँ केंद्र से विकेंद्रित हो गईं।

2. भारतीय सामंतवाद

भारतीय सामंतवाद यूरोपीय सामंतवाद से भिन्न था। आर.एस. शर्मा ने इसे गुप्त काल के बाद भूमि अनुदान की प्रथा से जोड़ा, जिससे आत्मनिर्भर कृषि इकाइयों का विकास हुआ और केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई। बी.एन. दत्ता और डी.डी. कोसंबी ने स्थानीय भूमि-मध्यस्थों के उदय को भारतीय सामंतवाद का मुख्य कारण माना। इसके विपरीत, हरबंस मुखिया ने तर्क दिया कि भूमि अनुदान ने केंद्रीय सत्ता को कमजोर नहीं किया, बल्कि राज्य को और अधिक मजबूत बनाया।

3. गुलाम व्यवस्था से सामंतवाद का संक्रमण

प्राचीन काल में यूनान और रोम जैसे समाजों में दास श्रम मुख्य उत्पादन प्रणाली थी। दासों की कमी के कारण स्वामी ने दासों को ज़मीन से जोड़ना शुरू किया, जिससे बंधुआ किसानों (सर्फ) की व्यवस्था का विकास हुआ। यह बदलाव दासता से कृषि आधारित सामंती व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन का कारण बना।

4.यूरोपीय और भारतीय सामंतवाद

यूरोप में भू-दासता की व्यवस्था के तहत किसान भूमि से जुड़े होते थे और शारीरिक रूप से अपने स्वामी के अधीन होते थे। भारत में किसानों को भू-दास नहीं माना गया, और उनकी स्थिति स्वतंत्र श्रमिकों से अधिक जुड़ी थी। भूमि अनुदान के संदर्भ में, यूरोप में भूमि मुख्यतः सैन्य सेवाओं के लिए दी जाती थी, जबकि भारत में भूमि अनुदान मुख्य रूप से ब्राह्मणों, मंदिरों और मठों को दी जाती थी, जो शासकों को सैन्य सेवाएँ प्रदान करने के बजाय सांस्कृतिक और धार्मिक समर्थन प्रदान करते थे।


 ईसाई धर्म 

पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के बाद, ईसाई धर्म ने यूरोप को जोड़ने और जर्मनिक जनजातियों (जैसे गोथ, बैंडल, फ्रैंक्स) को आत्मसात करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रोम के बिशप (पोप) रोमन सम्राट के सांस्कृतिक उत्तराधिकारी बने। ग्यारहवीं शताब्दी तक, ईसाई धर्म पूरे यूरोप में फैल गया, और चर्च की संगठनात्मक संरचना नए राज्यों के लिए मार्गदर्शक बनी।

  • प्रमुख विशेषताएँ: ईसाई धर्म की विकेंद्रीकृत और संगठित संरचना ने इसे प्रभावी बनाया। इसका सामाजिक लचीलापन और स्पष्ट सिद्धांत इसे सभी वर्गों के लिए स्वीकार्य बनाते थे। इसके प्रसार में व्यापार, दासता, और सैन्य गतिविधियों ने अहम भूमिका निभाई, जिससे यह व्यापक क्षेत्रों में फैल सका।
  • प्रसार के परिणाम: ईसाई धर्म के प्रसार ने पूर्व और पश्चिम में दो अलग-अलग धार्मिक परंपराओं को जन्म दिया। पश्चिम में रोमन कैथोलिक चर्च पोप के नेतृत्व में स्थापित हुआ, जबकि पूर्व में रूढ़िवादी ग्रीक चर्च बाइजेंटाइन सम्राटों द्वारा समर्थित था।
  • मुख्य विभाजन: मूर्तिभंजन विवाद और 800 ई. में शारलेमेन के राज्याभिषेक ने लैटिन पश्चिम और ग्रीक पूर्व के बीच मतभेदों को गहरा किया। पश्चिम में पोप को सर्वोच्च धार्मिक नेता के रूप में मान्यता मिली, जिससे पापल वर्चस्व स्थापित हुआ और ईसाई धर्म के दोनों धड़ों के बीच स्थायी विभाजन की नींव पड़ी।


 मठवाद 

मठवाद ईसाई धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू था, जिसे सेंट बेसिल (पूर्व में) और सेंट बेनेडिक्ट (पश्चिम में) ने विकसित किया। सातवीं शताब्दी में मठवाद का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में हुआ, जहाँ नए मठ स्थापित किए गए।

  • प्रमुख विशेषताएँ: मठों को बिशपों के नियंत्रण से स्वतंत्र रखा गया। इनमें भिक्षुओं और ननों दोनों के लिए स्थान थे। शाही महिलाएँ मठों का प्रबंधन करती थीं, जो उन्हें महल की साज़िशों और उत्तराधिकार विवादों से बचने का स्थान प्रदान करता था।
  • भूमिका: मठों ने शिक्षा, धर्मांतरण, और ईसाई विचारों के प्रसार में योगदान दिया। कैंटरबरी के सेंट ऑगस्टाइन के नेतृत्व में मठों ने एंग्लो-सैक्सन इंग्लैंड का रूपांतरण किया।
  • पोप ग्रेगोरी (प्रथम): पोप ग्रेगोरी ने पश्चिमी ईसाई धर्मशास्त्र को विकसित किया। उन्होंने पापों की क्षमा और आत्मा की शुद्धि पर जोर दिया और पश्चिमी चर्च को बाइजेंटाइन नियंत्रण से स्वतंत्र किया।


 ईसाई राजशाही की विचारधारा 

ईसाई राजशाही की विचारधारा पोप ग्रेगरी (प्रथम) और कैरोलिंगियन शासक शारलेमेन के कार्यों से विकसित हुई।

  • पोप और राजा का संबंध: पोप और राजा के संबंध आपसी सहयोग पर आधारित थे। पोप ने राजा को दैवीय शक्तियों से संपन्न बताया, जिससे उनके शासन को वैधता मिली। बदले में, शारलेमेन ने पोप के चुनाव की निगरानी की और चर्च के लिए दशमांश कर का प्रावधान किया, जिससे चर्च और राज्य के बीच संबंध और मजबूत हुए।
  • राजशाही और ईसाई धर्म का संयोजन: राजशाही और ईसाई धर्म का संयोजन इस विचार पर आधारित था कि राज्य के शत्रु ईसाई धर्म के शत्रु हैं। शारलेमेन ने इस वैचारिक आधार पर बिशप और मठाधीश नियुक्त किए और चर्च की रक्षा सुनिश्चित की, जिससे राज्य और धर्म के बीच गहरा संबंध स्थापित हुआ।
  • चर्च की भूमिका: चर्च ने संपत्ति और अनुदानों के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाया। उसने रोमन प्रशासनिक कौशल और न्यायिक सिद्धांतों को मध्यकालीन यूरोप में लागू किया। इसके अलावा, पादरियों को राजा को मार्गदर्शन देने और उनके कर्तव्यों की व्याख्या करने का अधिकार मिला, जिससे चर्च और राज्य के बीच मजबूत संबंध बने।


 शूरवीर और शिष्टता की संस्कृति 

  • अभिजात वर्ग का संगठन: अभिजात वर्ग का संगठन यूरोपीय अभिजात वर्ग काउंट, ड्यूक, और अर्ल्स जैसे पदों में विभाजित था। उनकी शक्ति स्थानीय संसाधनों पर निर्भर थी। कैरोलिंगियन काल में कुछ महिलाओं को संपत्ति मिलती थी। 9वीं शताब्दी में कैरोलिंगियन साम्राज्य के पतन के बाद राजनीतिक शक्ति विकेंद्रित हो गई।
  • किलों का उदय और सामंती व्यवस्था: 11वीं शताब्दी में असुरक्षा के चलते किलों का निर्माण बढ़ा। किले सामंतों के मुख्यालय बने और सत्ता कास्टेलन के पास आई। फ्रांस में सामंती सत्ता तेजी से विकसित हुई, इंग्लैंड में किलों पर केंद्रीय नियंत्रण रहा, जबकि स्पेन और इटली में सामंती संस्थाएँ धीरे-धीरे विकसित हुईं।
  • शूरवीरों का उदय: शूरवीर रईस परिवारों या समृद्ध किसानों से आते थे। 11वीं शताब्दी तक वे घुड़सवार सैनिक थे लेकिन कुलीन वर्ग का हिस्सा नहीं थे। 12वीं-13वीं शताब्दी में उन्होंने कुलीन वर्ग में स्थान बनाना शुरू किया।
  • शिष्टता की विचारधारा: शिष्टता में बहादुरी, वफादारी, उदारता, और युद्ध कौशल शामिल थे। इसे कुलीन वर्ग ने अपनी पहचान बनाने के लिए अपनाया। फ्रांस में टूर्नामेंट के जरिए वीरता और कौशल को बढ़ावा दिया गया।
  • चर्च और शूरवीर: चर्च ने शूरवीर विचारधारा को ईसाई मूल्यों से जोड़ा और "नाइट्स" को प्रोत्साहित किया। युद्ध के नियम बदले, पराजितों का नरसंहार और बंदियों को गुलाम बनाना समाप्त हुआ।
  • नए युद्ध सिद्धांत: दैवीय गुणों वाले शूरवीर और व्यवस्थित युद्ध नियम मध्ययुगीन यूरोप की प्रमुख पहचान बन गए।


 किसान और राज्य 

  • सामंतवाद का स्वरूप: सामंतवाद एक भूमि आधारित प्रणाली थी, जहां छोटे भू-स्वामी बड़े स्वामियों से भूमि लेकर सेवाएँ देते थे। जागीर व्यवस्था में किसान भूमि से बंधे रहते और अधिशेष स्वामी को देते थे। ग्रामीण आधिपत्य स्वामी और आश्रित किसानों के संबंध पर आधारित था।
  • किसानों की स्थिति: किसान स्वामी की "डेमेसने" और अपनी "विरगेट" भूमि पर खेती करते थे। वंशानुगत जोत के कारण उनका स्वामी के साथ संबंध स्थिर था। स्वतंत्र भूमि (एलोड्स) धीरे-धीरे स्वामी के नियंत्रण में आ गई।
  • राजनीतिक संदर्भ: सामंतवाद एक विकेंद्रीकृत प्रणाली थी, जहां स्थानीय स्वामी प्रशासन, न्याय, कर संग्रह, और सैन्य व्यवस्था संभालते थे। गॉल (फ्रांस) में फ्रैंक्स के शासन में सामंतवाद विकसित हुआ और शारलेमेन ने इसे मजबूत किया।
  • कृषि उत्पादन और तकनीकी प्रगति: ग्यारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में भारी पहिए वाले हल, तीन-फ़ील्ड रोटेशन प्रणाली, और नाइट्रोजन युक्त फसलों (जैसे मटर) ने कृषि को उन्नत किया। घोड़ों और बेहतर उपकरणों का उपयोग भी बढ़ा।
  • सामंती अर्थव्यवस्था का प्रभाव: उत्पादन वृद्धि से जनसंख्या बढ़ी, लेकिन भूमि विखंडन और मुद्रा लगान का चलन शुरू हुआ। जमींदारों ने भूमि किराए पर देकर शहरों में बसना शुरू किया। कृषि विस्तार रुकने से उत्पादन में गिरावट आई।
  • पेरी एंडरसन का दृष्टिकोण: किसानों का अधिशेष उत्पादन स्वामी के राजनीतिक और कानूनी अधिकारों पर आधारित था। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पुनरुद्धार ने नकदी फसल उत्पादन को बढ़ावा दिया, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आई।


 ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि उत्पादन 

  • तकनीकी सुधार: घोड़े, रकाब, और लगाम के उपयोग ने जुताई को अधिक प्रभावी बनाया। जई (ओट्स) की खेती ने घोड़ों के चारे की लागत को कम कर कृषि कार्यों में उनकी उपयोगिता बढ़ा दी।
  • सामंती अर्थव्यवस्था और जनसंख्या वृद्धि: कृषि उत्पादकता और जनसंख्या वृद्धि से सामंती अर्थव्यवस्था स्थिर हुई, लेकिन भूमि का विखंडन बढ़ा। छोटे किसान जमींदारों की भूमि पर किराए के श्रमिक बन गए, और श्रम लगान की जगह मुद्रा लगान का प्रचलन शुरू हुआ।
  • सामंती व्यवस्था में परिवर्तन: सामंतों ने अपनी भूमि छोटे हिस्सों में बाँटकर किराए पर देना शुरू किया। श्रम सेवा और दासता में कमी आई। सामंत शहरों में बसने लगे और सम्पदा का प्रबंधन प्रतिनिधियों के माध्यम से होने लगा।
  • कृषि विस्तार की सीमा और गिरावट: तेरहवीं शताब्दी के बाद कृषि विस्तार की सीमा समाप्त होने से उत्पादन गिरा। खाद्यान्न उत्पादन घटा और नकदी फसलों का महत्व बढ़ गया। पेरी एंडरसन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पुनरुद्धार ने खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट को और तेज किया।


 सामंती संबंध और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन 

  • व्यापार का पुनरुत्थान: ग्यारहवीं शताब्दी के बाद व्यापार तेजी से बढ़ा। स्थानीय बाजार मछली, नमक, लिनन, और वस्त्रों पर केंद्रित थे, जबकि लंबी दूरी के व्यापार में रेशम और मसालों का आदान-प्रदान हुआ।
  • प्रमुख व्यापारिक केंद्र: कॉन्स्टेंटिनोपल प्रमुख व्यापार केंद्र रहा, और स्कैंडिनेवियाई व वेनेशियन व्यापारियों ने पश्चिम और पूर्व को जोड़े रखा।
  • कारण: जनसंख्या वृद्धि, मार्गों में सुधार, और घोड़ों के उपयोग से परिवहन तेज हुआ। 1135 ई. में इंग्लैंड में राजमार्गों के चौड़ीकरण ने व्यापार को और सुगम बनाया।
  • तकनीकी सुधार: घोड़े, रकाब, और लगाम के उपयोग ने जुताई को अधिक प्रभावी बनाया। जई (ओट्स) की खेती ने घोड़ों के चारे की लागत को कम कर कृषि कार्यों में उनकी उपयोगिता बढ़ा दी।
  • सामंती अर्थव्यवस्था और जनसंख्या वृद्धि: कृषि उत्पादकता और जनसंख्या वृद्धि से सामंती अर्थव्यवस्था स्थिर हुई, लेकिन भूमि का विखंडन बढ़ा। छोटे किसान जमींदारों की भूमि पर किराए के श्रमिक बन गए, और श्रम लगान की जगह मुद्रा लगान का प्रचलन शुरू हुआ।
  • सामंती व्यवस्था में परिवर्तन: सामंतों ने अपनी भूमि छोटे हिस्सों में बाँटकर किराए पर देना शुरू किया। श्रम सेवा और दासता में कमी आई। सामंत शहरों में बसने लगे और सम्पदा का प्रबंधन प्रतिनिधियों के माध्यम से होने लगा।
  • कृषि विस्तार की सीमा और गिरावट: तेरहवीं शताब्दी के बाद कृषि विस्तार की सीमा समाप्त होने से उत्पादन गिरा। खाद्यान्न उत्पादन घटा और नकदी फसलों का महत्व बढ़ गया। पेरी एंडरसन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पुनरुद्धार ने खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट को और तेज किया।



 शहरी केंद्रों का उदय 

  • शहरीकरण का महत्व: मध्यकालीन यूरोप (7वीं-14वीं शताब्दी) में कस्बों और व्यापार ने सामंती व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। कस्बों और ग्रामीण बस्तियों के बीच सहजीवी संबंध थे, और शहरी केंद्रों के बिना सामंती यूरोप की संरचना अधूरी थी।

  • शहरीकरण के कारक:

1. सामंती संरक्षण: सामंती संरक्षण के तहत, सामंतों ने व्यापारिक कस्बों को बढ़ावा दिया। धार्मिक संस्थाएँ, जैसे मठ, भी शहरीकरण के विकास में सहायक रहीं, उदाहरण के लिए, इंग्लैंड में कैंटरबरी मठ।

2. अधिशेष उत्पादन: ग्रामीण इलाकों में अधिशेष उत्पादन ने शहरी केंद्रों को निर्माण गतिविधियों का केंद्र बनाया।

3. उद्योगों का विकास: लोहा, चमड़ा, कपड़ा रंगना, जूता बनाना और ऊनी कपड़े जैसे उद्योगों का विस्तार हुआ।

4. तीर्थस्थल: तीर्थयात्रा केंद्रों ने शहरीकरण को प्रोत्साहित किया।

  • असमान शहरीकरण: असमान शहरीकरण के कारण पूरे यूरोप में शहरी विकास समान रूप से नहीं हुआ। इसके पीछे असमान जनसंख्या वितरण और क्षेत्रीय कारक मुख्य रूप से जिम्मेदार थे।
  • टाउन चार्टर्स और बुर्जुआ वर्ग: टाउन चार्टर्स के माध्यम से कस्बों को विशेष अधिकार देकर विकसित किया गया, जिससे मध्यम वर्ग (बुर्जुआ वर्ग) की नींव पड़ी। हालांकि, यह वर्ग सामंती मानसिकता और पदानुक्रम से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया।


 सामंती संकट 

1. पश्चिमी यूरोप

  • कृषि संकट और जनसंख्या गिरावट: कृषि संकट और जनसंख्या गिरावट भूमि विखंडन, उर्वरा क्षमता की कमी, और नकदी फसलों के बढ़ते जोर से हुई। 1315-16 के अकाल और 1347-50 के ब्लैक प्लेग ने जनसंख्या घटाई, जबकि श्रमिकों की कमी से मजदूरी बढ़ी।
  • आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ: जमींदारों ने खेती की उपेक्षा की और विलासिता पर खर्च बढ़ाया। बढ़ते कर और बकाया ने किसानों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया। प्रमुख विद्रोह: उत्तरी फ्रांस (1358), इटली (1380-1430), और इंग्लैंड (1381)।
  • सामंती संरचना का पतन: सामंती संरचना कमजोर होने से भूमि स्वामित्व के अधिकार और किसानों की स्वायत्तता खत्म होने लगी। किसानों का पलायन और ग्रामीण संकट सामान्य हो गया।


2. पूर्वी यूरोप

  • सामंती संरचना का विकास: सामंती संरचना का विकास कम जनसंख्या के बावजूद खेती योग्य भूमि की उपलब्धता से हुआ। जमींदारों ने किसानों को गुलाम बनाकर श्रम दायित्व बढ़ाया, जबकि पोलैंड और लिथुआनिया में कुलीन वर्ग का संसद (सेजम) पर प्रभाव रहा।
  • आर्थिक सुधार और उत्पादन: घरेलू क्षेत्र के विस्तार और अनाज उत्पादन में वृद्धि के साथ, 15वीं शताब्दी से पूर्वी यूरोप ने खाद्यान्न का निर्यात शुरू किया, जिसे हैंसियाटिक लीग ने प्रोत्साहित किया।
  • राजनीतिक शक्ति संतुलन: पूर्वी यूरोप में राजाओं को सत्ता बनाए रखने के लिए कुलीन वर्ग पर निर्भर रहना पड़ा, जिससे सामंती संरचना बनी रही, जबकि पश्चिमी यूरोप में यह पतन की ओर अग्रसर थी।




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