लोकतंत्र का सिद्धांत और व्यवहार UNIT 1 CHAPTER 1 SEMESTER 3 THEORY NOTES विचार की उत्पत्ति : प्राचीन यूनान और भारत- आधुनिक विकास, प्रक्रियात्मक एवं मौलिक विवरण, समकालीन नव-परिवर्तन Political DU. SOL.DU NEP COURSES

लोकतंत्र का सिधांत और व्यवहार UNIT 1 CHAPTER 1  SEMESTER 3 THEORY NOTES विचार की उत्पत्ति : प्राचीन यूनान और भारत- आधुनिक विकास, प्रक्रियात्मक एवं मौलिक विवरण, समकालीन नव-परिवर्तन political DU. SOL.DU NEP COURSES


लोकतंत्र

लोकतंत्र, एक ऐसा शब्द है जो राजनीति में अपनी खास जगह रखता है। यह केवल एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि समानता, भागीदारी और स्वतंत्रता की भावना को दर्शाता है। लोकतंत्र का मतलब है "जनता द्वारा, जनता के लिए, और जनता का शासन।" इसका इतिहास प्राचीन यूनान से जुड़ा है, जहां इसे "डेमोस" (जनता) और "क्रेटोस" (शक्ति) से जोड़ा गया, जिसका मतलब हुआ "जनता की शक्ति।"

1. लोकतंत्र का महत्व

  • लोकतंत्र एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग खुद या अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से निर्णय लेते हैं। इसका मतलब है कि हर किसी को अपनी राय रखने का हक होता है, और सबकी राय को महत्व दिया जाता है।

2. लोकतंत्र के पहलू

  • सामूहिक निर्णय निर्माण: लोकतंत्र में सभी के लिए निर्णय बाध्यकारी होते हैं। यह परिवार, संगठनों, कंपनियों और सरकारों में भी हो सकता है।
  • समानता: हर व्यक्ति का मत समान रूप से महत्वपूर्ण होता है। यह चुनावी प्रक्रिया से लेकर विचार-विमर्श तक हर जगह लागू होता है।
  • उत्तरदायित्व: लोकतांत्रिक नेताओं को जनता के प्रति जवाबदेह होना पड़ता है।
  • सतत प्रक्रिया: लोकतंत्र सिर्फ एक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसे बनाए रखने के लिए संवाद और सहमति की जरूरत होती है।

3. लोकतंत्र क्यों जरूरी है?

  • लोकतंत्र लोगों को अपनी बात रखने और निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार देता है। यह नागरिकों और सरकार के बीच विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

4. लोकतांत्रिक व्यवस्था की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • लोकप्रिय संप्रभुता: शासन की शक्ति जनता में निहित होती है। जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: नागरिक बिना किसी दबाव या हेराफेरी के स्वतंत्र रूप से मतदान करते हैं। निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव हैं।
  • शक्तियों का विभाजन: विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन। यह संतुलन सुनिश्चित करता है और किसी एक व्यक्ति या समूह को अत्यधिक शक्ति से रोकता है।
  • विधि का शासन: कानून का पालन सभी पर अनिवार्य है, चाहे वह सरकारी अधिकारी हो या सामान्य नागरिक। कोई भी कानून से ऊपर नहीं होता।
  • व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: नागरिकों को मूलभूत अधिकार जैसे भाषण, सभा, और प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त है। यह अधिकार कानूनी संरक्षण के तहत आते हैं।
  • बहुलवाद: समाज में विभिन्न दृष्टिकोणों और हितों का सम्मान। विविधता को लोकतंत्र में मान्यता दी जाती है।
  • जवाबदेही: नेता जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। यदि वे जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल होते हैं, तो उन्हें चुनावों या अन्य तरीकों से हटाया जा सकता है।


विचार की उत्पत्ति

लोकतंत्र की शुरुआत प्राचीन यूनान में हुई। सबसे पहला ज्ञात लोकतंत्र एथेंस में पाँचवीं सदी ईसा पूर्व में स्थापित हुआ। यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र था, जिसमें नागरिक सीधे अपने फैसले खुद लेते थे।

1.एथेनियन लोकतंत्र की विशेषताएँ

  • नागरिक सभाएँ: सभी पुरुष नागरिक सभा में भाग ले सकते थे और निर्णयों में अपनी राय दे सकते थे।
  • जूरी प्रणाली: मुकदमों के फैसले के लिए नागरिकों की जूरी बनाई जाती थी।
  • राजनीतिक अधिकारी: मजिस्ट्रेट और सैन्य जनरल जैसे अधिकारियों का चुनाव जनता द्वारा होता था।
  • निर्वासन प्रक्रिया: लोकतंत्र के लिए खतरा बने व्यक्ति को नगर-राज्य से 10 वर्षों के लिए बाहर कर दिया जाता था।

2. एथेनियन लोकतंत्र की सीमाएँ

  • महिलाओं, बच्चों, दासों और विदेशियों को इसमें हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी केवल 10-20% लोग नागरिक माने जाते थे।

3. दार्शनिक दृष्टिकोण

  • प्लेटो: प्लेटो लोकतंत्र को पसंद नहीं करते थे। उनके अनुसार, यह ज्ञान के बजाय आम राय पर आधारित शासन था।
  • अरस्तू: अरस्तू लोकतंत्र को त्रुटिपूर्ण मानते थे। वे इसके अस्थिरता और बहुसंख्यक द्वारा अल्पसंख्यकों के दमन की आलोचना करते थे। उनका मानना था कि सुशिक्षित नागरिक और शक्ति का संतुलन लोकतंत्र को बेहतर बना सकते हैं।

4. आधुनिक लोकतंत्र की शुरुआत

  • एथेंस के पतन के बाद, लोकतंत्र कई सदियों तक भुला दिया गया 18वीं सदी के प्रबुद्धतावादी काल में यह विचार फिर से उभरा।
  • जॉन लॉक और जीन जैक्स रूसो जैसे दार्शनिकों ने व्यक्तिगत अधिकार और जनसंप्रभुता के विचार दिए।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका पहला आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्र बना, जिसने 1787 में संविधान अपनाया।


भारत में लोकतंत्र

भारत में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन काल तक जाती हैं। हालाँकि, यह आधुनिक लोकतंत्र से काफी अलग था। प्राचीन भारत में लोकतंत्र के रूप में ‘सभा’ और ‘समिति’ जैसे संस्थानों का उल्लेख मिलता है। ये संस्थाएँ समाज के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करती थीं और निर्णय लेती थीं।

1. प्राचीन भारत में लोकतंत्र के रूप

  • सभा और समिति: सभा वयस्क लोगों की एक परिषद थी जो समुदाय की ओर से निर्णय लेने के लिए उत्तरदायी होती थी। जबकि समिति बड़ी परिषद थी जिसमें पूरे समुदाय के लोग शामिल होते थे।
  • पंचायत व्यवस्था: पंचायतें ग्रामीण स्तर पर विवाद सुलझाने और कल्याणकारी कार्यों के लिए जिम्मेदार होती थीं। पंचायत पाँच निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनती थी। यह वैदिक काल और बाद के समय में प्रचलित रही।
  • गणराज्य: 6वीं सदी ईसा पूर्व में महाजनपद नामक गणराज्य स्थापित हुए। वैशाली (अब बिहार) दुनिया का पहला गणराज्य माना जाता है।
  • मौर्य साम्राज्य में लोकतंत्र:  सम्राट अशोक ने सामाजिक कल्याण और जनभागीदारी को बढ़ावा दिया। नगर परिषद और ग्रामीण परिषदें स्थापित की गईं।

2. मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल में लोकतंत्र

  • मध्यकालीन भारत में स्थानीय शासन की कुछ लोकतांत्रिक विशेषताएँ बची रहीं, जैसे ग्राम परिषदें।औपनिवेशिक काल में लोकतांत्रिक संस्थाएँ खत्म हो गईं और सत्ता का केंद्रीकरण हुआ।

3. आधुनिक भारत में लोकतंत्र

  • 1947 में आजादी के बाद, भारत ने 1950 में लोकतांत्रिक संविधान अपनाया। संविधान ने भारत को एक प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया।

संविधान की विशेषताएँ:

  • संघीय ढाँचा
  • द्विसदनीय संसद
  • स्वतंत्र न्यायपालिका
  • स्वतंत्र प्रेस

4. भारत: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

  • भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, नियमित और समावेशी चुनावों के लिए जाना जाता है, जहां सभी वर्गों और समुदायों की सक्रिय भागीदारी होती है। हालांकि इसे भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, फिर भी भारत ने लोकतंत्र को सफलतापूर्वक बनाए रखा है। अपने नागरिकों की जरूरतों के अनुसार इसे ढालते हुए, भारत ने खुद को दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र साबित किया है।


आधुनिक लोकतंत्र का विकास

आधुनिक लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन यूनान के लोकतांत्रिक विचारों में मिलती हैं। यह शासन प्रणाली ऐसी व्यवस्था है जिसमें सत्ता जनता के पास होती है और वे स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से नीति-निर्माण में भाग लेते हैं। 21वीं सदी में, यह दुनिया भर में एक प्रभावी शासन प्रणाली के रूप में उभरा है।

1. लोकतंत्र के चार मुख्य मॉडल

  • शास्त्रीय लोकतंत्र: शास्त्रीय लोकतंत्र प्राचीन यूनान के एथेंस में विकसित हुआ और प्रत्यक्ष लोकतंत्र का सबसे प्रमुख उदाहरण था। इस मॉडल में नागरिकों को सीधे निर्णय लेने और नीति निर्माण में भाग लेने का अधिकार था। हालांकि, इस प्रक्रिया में केवल योग्य नागरिक ही शामिल हो सकते थे, जबकि महिलाओं, दासों और विदेशियों को इससे बाहर रखा गया था। यह मॉडल लोकतंत्र की शुरुआती संरचना को दर्शाता है, जहां लोगों की सीधी भागीदारी प्रमुख थी।
  • सुरक्षात्मक लोकतंत्र: सुरक्षात्मक लोकतंत्र 17वीं और 18वीं सदी में विकसित हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सरकार की मनमानी और दमनकारी नीतियों से बचाना था। इस मॉडल को जॉन लॉक जैसे विचारकों ने बढ़ावा दिया। यह लोकतंत्र व्यक्तिगत अधिकारों पर जोर देता है, जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को विशेष महत्व दिया गया। इस मॉडल का आधार यह था कि नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार को सीमित और जवाबदेह बनाया जाए।
  • विकासात्मक लोकतंत्र: विकासात्मक लोकतंत्र का विचार जीन जैक्स रूसो ने प्रस्तुत किया। यह लोकतंत्र केवल शासन तक सीमित नहीं था, बल्कि इसे नागरिकों के व्यक्तिगत और सामूहिक विकास का माध्यम माना गया। इसमें राजनीतिक भागीदारी को नागरिकों की स्वतंत्रता और सामूहिक उन्नति के लिए आवश्यक बताया गया। जॉन स्टुअर्ट मिल ने इस विचार को और मजबूत किया, यह मानते हुए कि लोकतंत्र नागरिकों की योग्यता और सामर्थ्य के विकास का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस मॉडल में लोकतंत्र को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा गया, जो समाज और नागरिकों दोनों को बेहतर बनाती है।
  • जन लोकतंत्र: जन लोकतंत्र द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुआ और सोवियत मॉडल से प्रेरित था। इसे मार्क्सवादी लोकतंत्र भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक समानता स्थापित करना और संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व सुनिश्चित करना था। मार्क्सवादियों ने इसे पूँजीवादी लोकतंत्र के विपरीत एक वैकल्पिक मॉडल के रूप में देखा, जो समानता और सामूहिक हितों को प्राथमिकता देता है। इस मॉडल में, लोकतंत्र का उद्देश्य आर्थिक और सामाजिक विषमताओं को समाप्त करना और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करना था।

2. लोकतंत्र के आधुनिक लक्षण

  • प्रतिनिधित्वात्मक लोकतंत्र: आधुनिक लोकतंत्र में नागरिक अपनी शक्ति चुने हुए प्रतिनिधियों को सौंपते हैं, जो उनकी इच्छाओं और जरूरतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्रणाली मताधिकार के जरिए काम करती है, जहां जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है।
  • व्यापक भागीदारी: आधुनिक लोकतंत्र सभी वर्गों और समुदायों को समान अधिकार प्रदान करता है। इसमें महिलाओं, अल्पसंख्यकों और विभिन्न सामाजिक समूहों को भी भागीदारी का अवसर मिलता है, जिससे यह समावेशी और न्यायसंगत बनता है।
  • स्वतंत्रता और अधिकार: लोकतंत्र में नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकार, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मताधिकार और समानता, की रक्षा की जाती है। ये अधिकार लोकतंत्र को हर नागरिक के लिए सुरक्षित और निष्पक्ष बनाते हैं।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: आधुनिक लोकतंत्र में नेता जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। निर्णय और नीतियों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है, ताकि जनता को उनकी कार्यप्रणाली की जानकारी हो और वे अपनी जिम्मेदारी निभा सकें।
  • नियमित चुनाव: लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नियमित और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। ये चुनाव जनता को अपनी सरकार चुनने और बदलने का अधिकार देते हैं, जिससे लोकतंत्र की गतिशीलता बनी रहती है।

3. लोकतंत्र की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

  • चुनौतियाँ: लोकतंत्र को भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएँ न केवल शासन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, बल्कि समाज में विभाजन और असंतोष भी पैदा करती हैं।
  • संभावनाएँ: तकनीकी विकास और नागरिक भागीदारी के नए साधनों ने लोकतंत्र को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म, ई-गवर्नेंस, और जनभागीदारी के नए तरीकों ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने की संभावनाएँ प्रस्तुत की हैं।


आधुनिक विकास

आधुनिक लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धी प्रवृत्तियों के बावजूद, कुछ मौलिक विशेषताएँ स्पष्ट हैं, जो लोकतंत्र को अधिक प्रभावी और समावेशी बनाती हैं।

  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र: नागरिक सीधे नीति निर्माण में भाग लेते हैं, जैसे जनमत संग्रह या इंटरनेट के माध्यम से।
  • इलेक्ट्रॉनिक मतदान: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से मतदान प्रक्रिया सरल और प्रभावी हो गई है।
  • बहुसंस्कृतिवाद और विविधता: अल्पसंख्यकों और विभिन्न समूहों की आवाज़ को मान्यता दी जाती है।
  • विकेंद्रीकरण: स्थानीय सरकारों को शक्तियाँ सौंपकर नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाता है।
  • सोशल मीडिया: नागरिकों को सूचना साझा करने और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है।
  • विमर्शात्मक लोकतंत्र: नागरिक नीतिगत मुद्दों पर सम्मानजनक और संरचनात्मक संवाद करते हैं।
  • सहभागी बजट: नागरिकों को सार्वजनिक धन के उपयोग पर निर्णय लेने का अधिकार मिलता है।
  • खुली सरकार: सरकार को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना, जैसे सरकारी आंकड़े साझा करना।
  • नारीवादी लोकतंत्र: महिलाओं की समानता और निर्णय निर्माण में उनकी भागीदारी पर जोर दिया जाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र: वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक निर्णय-निर्माण को बढ़ावा देना।
  • इन विशेषताओं ने लोकतंत्र को अधिक पारदर्शी, समावेशी और उत्तरदायी बनाया है।

लोकतंत्र के आधुनिक विकास में विभिन्न सिद्धांतकारों के दृष्टिकोण सामने आते हैं, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं और व्यवहारों को नागरिकों की बदलती जरूरतों के अनुसार ढालने की आवश्यकता को दर्शाते हैं:

  • बहुलवाद: यह सिद्धांत कहता है कि उदारवादी लोकतंत्र समाज में विभिन्न हित समूहों के बीच शक्ति का समान वितरण करता है और इन समूहों के प्रतिस्पर्धा से निर्णय निर्माण में मदद मिलती है।
  • श्रेष्ठतावाद: इसके अनुसार, राजनीतिक शक्ति एक छोटे और प्रभावी वर्ग के हाथों में केंद्रित होती है, जो महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं, जबकि व्यापक नागरिक सहभागिता सीमित होती है।
  • निगमवाद: इस सिद्धांत के अनुसार, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सरकार, व्यावसायिक क्षेत्र, श्रमिक संघों और अन्य समूहों के बीच सहयोग होना चाहिए ताकि संतुलन और सामंजस्य बना रहे।
  • नए अधिकार: यह सिद्धांत लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की सीमाओं पर सवाल उठाता है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देता है, साथ ही सरकारी हस्तक्षेप को सीमित करने की बात करता है।
  • मार्क्सवाद: मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, उदारवादी लोकतंत्र पूँजीवादी तंत्र है, जो आर्थिक असमानता बनाए रखता है और शासक वर्ग के हितों को पोषित करता है, जबकि समाजवादी व्यवस्था की आवश्यकता है।
  • यह विकास लोकतंत्र को नागरिकों की बदलती आकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप ढालने का प्रयास है।



प्रक्रियात्मक एवं मौलिक (मूल) लोकतंत्र

प्रक्रियात्मक

प्रक्रियात्मक लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें विशेष नतीजों की बजाय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, नियमों और पद्धतियों पर ध्यान दिया जाता है। इसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों, विधि के शासन, और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा पर बल दिया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय पारदर्शी और सर्वसम्मति से लिए जाएं, और नागरिकों की आवाज़ सुनी जाए। इसके तहत स्वतंत्र न्यायपालिका, शक्तियों का विभाजन और सार्वजनिक भागीदारी जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

  • निष्पक्ष चुनाव: यह नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अवसर प्रदान करता है, और चुनाव की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाता है।
  • विधि का शासन और संविधानवाद: यह सुनिश्चित करता है कि कानून सभी के लिए समान हो और लोकतांत्रिक शासन के लिए कानूनी संरचना हो।
  • व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाती है, जैसे अभिव्यक्ति, सभा, और संघ की स्वतंत्रता।
  • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: सरकारों को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना, ताकि नागरिक जानकारी प्राप्त कर सकें और नेतृत्व से जवाब मांग सकें।
  • शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान: राजनीतिक विवादों को हिंसा के बजाय संवाद और समझौते के माध्यम से हल किया जाता है।
  • हालांकि, प्रक्रियात्मक लोकतंत्र कुछ चुनौतियों का सामना करता है, जैसे चुनावी धोखाधड़ी, धन का प्रभाव, और असमानता को स्थिर बनाए रखना।

मौलिक (मूल)

मौलिक (मूल) लोकतंत्र का ध्यान उन परिणामों पर है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया से प्राप्त होते हैं, जैसे सामाजिक और आर्थिक समानता, और नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षण। इसमें सरकार का उद्देश्य नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देना और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और आवास। मूल लोकतंत्र के तहत, समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए अधिक व्यापक और समावेशी नीति-निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

  • सामाजिक और आर्थिक समानता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान अवसर मिलें, विशेषकर उन वर्गों को जो ऐतिहासिक रूप से बाहर रहे हैं।
  • नागरिक अधिकारों का संरक्षण: इसमें अभिव्यक्ति, सभा सम्मेलन, और धर्म की स्वतंत्रता पर बल दिया जाता है, और सभी को कानून के समक्ष समान अधिकार दिए जाते हैं।
  • राजनीतिक सहभागिता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों, विशेष रूप से उपेक्षित वर्गों, को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिले।
  • समग्र रूप से, मूल लोकतंत्र का उद्देश्य न केवल निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना है, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज के लिए जरूरी परिणाम भी प्राप्त करना है।

मूल लोकतंत्र के प्रमुख सिद्धांत

  • समावेशी भागीदारी: मूल लोकतंत्र नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है, जिसमें सभी वर्गों की आवाज़ को सुना जाता है और उपेक्षित समूहों को अपनी समस्याओं को उठाने का अवसर मिलता है।
  • मानव अधिकार और विधि का शासन: यह सभी नागरिकों के मानव अधिकारों और विधि के शासन की रक्षा करता है, ताकि सभी के लिए न्याय सुलभ हो और राज्य जिम्मेदार रहे।
  • सामाजिक न्याय और समानता: यह सामाजिक असमानताओं को कम करता है और सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने के लिए समावेशी विकास नीतियाँ अपनाता है।
  • सार्वजनिक जवाबदेही और पारदर्शिता: यह पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है, सुनिश्चित करता है कि नेता जनता के प्रति जिम्मेदार हों और निर्णय जनहित में लिए जाएं।

मूल लोकतंत्र का महत्त्व

  • सशक्तीकरण और मानव विकास: मूल लोकतंत्र नागरिकों को उनके अधिकारों और समग्र विकास के अवसर प्रदान करता है, जिससे उनकी योग्यताएँ और कल्याण बढ़ते हैं।
  • सामाजिक सामंजस्य और समावेश: यह सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देता है, विभाजन कम करता है और विभिन्न समूहों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
  • स्थायित्व और संघर्ष समाधान: मूल लोकतंत्र संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान करता है, जिससे सामाजिक अशांति और हिंसा की संभावना घटती है।
  • वैधता और विश्वास: यह राजनीतिक व्यवस्था की वैधता और नागरिकों का विश्वास बढ़ाता है, लेकिन राजनीति में धन का प्रभाव और वैश्विक जुड़ाव जैसी चुनौतियाँ इसके विकास में बाधक हो सकती हैं।

लोकतंत्र में समकालीन नव-परिवर्तन

  • ई-लोकतंत्र: तकनीक का उपयोग जैसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग और ऑनलाइन परामर्श लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक और पारदर्शी बनाता है।
  • विमर्शात्मक लोकतंत्र: विभिन्न समूहों के बीच तर्कपूर्ण और सम्मानजनक संवाद से सूचनाप्रद और विवेकशील नीति-निर्माण को बढ़ावा मिलता है।
  • नागरिक सभाएँ: नागरिकों के समूह महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करते हैं, जिससे अधिक सहभागी लोकतंत्र बढ़ता है।
  • तरल लोकतंत्र: इसमें नागरिक कुछ मामलों में प्रत्यक्ष मतदान करते हैं और कुछ में अपने प्रतिनिधियों को वोट सौंपते हैं।
  • खुली सरकार: सरकारी आँकड़ों और निर्णय-प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाना, ताकि नागरिक सरकार को जिम्मेदार बना सकें।
  • इलेक्ट्रॉनिक मतदान: ई-वोटिंग से वोटिंग अधिक सुविधाजनक और मानवीय गड़बड़ी की संभावना कम होती है।
  • सहभागी बजट: नागरिक सार्वजनिक धन के आवंटन में सीधे भाग लेते हैं और अपनी प्राथमिकताएँ तय करते हैं।
  • सोशल मीडिया: यह नागरिकों को अपनी राय साझा करने और चुनावी प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने का मंच देता है।
  • मुक्त डेटा: सरकारी आँकड़ों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना, ताकि नागरिक जन संस्थाओं को जवाबदेह ठहरा सकें।



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