यूरोप का इतिहास : 1789-1870 UNIT 3 CHAPTER 6 SEMESTER 5 THEORY NOTES औद्योगीकरण स्वरूप, काम की बदलती प्रकृति, समाज में परिवर्तन, औद्योगिक शहर में जनजीवन HISTORY DU. SOL.DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakदिसंबर 17, 2024
परिचय
औद्योगिक क्रांति 18वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई और 19वीं शताब्दी तक चली, जिसमें अर्थव्यवस्था कृषि और हस्तशिल्प से मशीन-आधारित उत्पादन की ओर बढ़ी। यह 1760 में ब्रिटेन में शुरू हुई और धीरे-धीरे यूरोप, अमेरिका व अन्य देशों तक फैली। मशीनरी जैसे कताई जेनी, स्टीम इंजन और पावर लूम के विकास से कारखाना प्रणाली का उदय हुआ, जिससे उत्पादन में तेज़ी आई। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पलायन के कारण शहरीकरण बढ़ा और औद्योगिक पूंजीवाद मजबूत हुआ। कपड़ा, लोहा और कोयला खनन जैसे उद्योग इसकी रीढ़ बने, जबकि तकनीकी नवाचारों ने परिवहन और बुनियादी ढांचे में क्रांति लाई।
औद्योगिकीकरण का स्वरूप
19वीं शताब्दी की शुरुआत में औद्योगिकीकरण ने अर्थव्यवस्था और समाज में बड़े बदलाव किए। यह बदलाव कृषि-आधारित अर्थव्यवस्थाओं से औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की ओर हुआ। कारखानों के निर्माण से उत्पादन की गति और क्षमता में बढ़ोतरी हुई।
तकनीकी प्रगति और उत्पादन में बदलाव: तकनीकी प्रगति ने उत्पादन में महत्वपूर्ण बदलाव किए। नई मशीनों के आविष्कार से उत्पादन प्रक्रिया आसान और तेज हो गई। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में स्पिनिंग जेनी और पावर लूम जैसी मशीनों ने कपड़ा उद्योग में क्रांति ला दी, जिससे उत्पादन की लागत में कमी आई और माल तेजी से तैयार होने लगे। इतिहासकार एरिक हॉब्सबॉम ने तकनीकी प्रगति को आर्थिक विकास का आधार बताया है।
शहरीकरण और मजदूर वर्ग का उदय: शहरीकरण के साथ मजदूर वर्ग का उदय हुआ, जब ग्रामीण क्षेत्रों के लोग काम की तलाश में शहरों की ओर गए। छोटे शहर तेजी से बड़े औद्योगिक केंद्र बन गए। उदाहरण के लिए, इंग्लैंड का मैनचेस्टर एक प्रमुख औद्योगिक शहर बन गया। इसके परिणामस्वरूप एक नया मजदूर वर्ग उभरा, जिसने समाज में नई सामाजिक संरचना और श्रम संबंधों को जन्म दिया। इतिहासकार ई.पी. थॉम्पसन ने मजदूर वर्ग को इस नई सामाजिक व्यवस्था का प्रतीक बताया।
परिवहन और बुनियादी ढांचे का विकास: औद्योगिकीकरण के दौरान परिवहन और बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास हुआ, क्योंकि माल और कच्चे माल की आवाजाही आवश्यक थी। इस उद्देश्य के लिए रेलवे और नहरों का विस्तार किया गया। उदाहरण के लिए, लिवरपूल और मैनचेस्टर रेलवे ने प्रमुख शहरों को जोड़ा। इतिहासकार पैट्रिक ओ'ब्रायन के अनुसार, इस विकास से परिवहन की लागत में कमी आई और विभिन्न बाजारों को जोड़ने में महत्वपूर्ण मदद मिली।
सामाजिक बदलाव और चुनौतियाँ: औद्योगिक शहरों में जनसंख्या बढ़ने से भीड़भाड़ और स्वच्छता की कमी हुई। फ्रेडरिक एंगेल्स ने मजदूरों की खराब स्थिति को उजागर किया, जहाँ उन्हें लंबे समय तक काम करना पड़ता था। सुविधाओं की कमी के कारण मजदूरों ने विरोध किया। उदाहरण: लुडाइट आंदोलन, जिसमें मजदूरों ने मशीनों का विरोध किया क्योंकि उनकी नौकरियाँ खतरे में थीं।
कार्य की बदलती प्रकृति
औद्योगिकीकरण के कारण कार्य की प्रकृति में बड़ा बदलाव आया। परंपरागत घर-आधारित और कारीगर उत्पादन की जगह कारखाने-आधारित मशीनीकृत उत्पादन ने ले ली।
कारीगर उत्पादन से कारखाना उत्पादन: औद्योगिकीकरण से कारीगर उत्पादन की जगह कारखाना उत्पादन ने ले ली। पहले उत्पादन घरों में कारीगरों द्वारा हाथों से होता था, लेकिन मशीनीकरण ने बड़े पैमाने पर कारखानों में उत्पादन को संभव बनाया। उदाहरण: कपड़ा उद्योग में स्पिनिंग जेनी और पावर लूम। डेविड लैंड्स के अनुसार, इससे उत्पादन की गति और दक्षता बढ़ी, लेकिन पुराने काम करने के तरीके खत्म हो गए।
श्रम का विभाजन और कौशल में गिरावट: औद्योगिकीकरण के दौरान कारखानों में श्रम का विभाजन हुआ, जहाँ काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दिया गया। एडम स्मिथ ने इसे "श्रम विभाजन" कहा, जिसमें हर मजदूर एक विशेष कार्य करता था। इसका फायदा यह था कि उत्पादन तेज हुआ, लेकिन नुकसान यह हुआ कि श्रमिकों के लिए व्यापक कौशल की आवश्यकता खत्म हो गई और उनकी स्वायत्तता घट गई।
कठोर काम की स्थितियाँ: औद्योगिक कारखानों में मजदूरों को कठोर परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। लंबे काम के घंटे, कम मजदूरी और असुरक्षित कार्य वातावरण आम बात थी। फ्रेडरिक एंगेल्स ने अपनी किताब "इंग्लैंड में मजदूर वर्ग की स्थिति" में इन समस्याओं को विस्तार से उजागर किया।
बाल श्रम का प्रचलन: औद्योगिकरण के दौर में बाल श्रम का प्रचलन बढ़ा क्योंकि मजदूरों की आय कम थी। इससे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य पर गंभीर बुरा असर पड़ा। जेन हम्फ्रीज ने इसे आर्थिक लाभ के बावजूद बच्चों के लिए हानिकारक बताया।
मजदूरी श्रम का उदय: औद्योगिकीकरण के साथ मजदूरी श्रम का उदय हुआ। पहले लोग खेती में काम करते थे और अपनी जरूरत के हिसाब से सामान लेते थे, लेकिन अब औद्योगिक मजदूरों को मजदूरी पर निर्भर रहना पड़ा। कार्ल पोलानी ने इसे पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के विकास से जोड़ा, लेकिन यह आर्थिक असमानता और भेद्यता का कारण भी बना।
श्रमिक आंदोलनों की शुरुआत: औद्योगिकीकरण के दौर में श्रमिक आंदोलनों की शुरुआत हुई, जब मजदूरों ने यूनियनों का गठन कर काम की स्थितियों में सुधार की माँग की। उदाहरण के लिए, टॉलपडल मार्टियर्स नामक मजदूरों को यूनियन बनाने के लिए सजा दी गई थी। ई.पी. थॉम्पसन ने श्रमिक आंदोलनों को मजदूरों के अधिकारों के लिए अहम बताया।
प्राथमिक स्रोत विश्लेषण
19वीं शताब्दी में औद्योगिकीकरण के दौरान हुए बदलावों को समझने के लिए प्राथमिक स्रोत बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये स्रोत हमें उस समय के सामाजिक, आर्थिक और कार्य स्थितियों की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं।
कारखाना रिपोर्ट: ब्रिटिश संसद ने कारखाना निरीक्षकों की रिपोर्ट तैयार करवाई, जिसमें कारखानों की स्थितियों का आकलन किया गया। उदाहरण के लिए, 1833 की फैक्ट्री एक्ट रिपोर्ट में बाल श्रम और खराब कार्य स्थितियों का उल्लेख किया गया। इतिहासकार जेन हम्फ्रीज़ ने इन रिपोर्टों का उपयोग कर बाल श्रम के शोषण को उजागर किया और कानून बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
व्यक्तिगत डायरी और पत्र: श्रमिकों और बच्चों की डायरियाँ उस समय के वास्तविक अनुभवों को दिखाती हैं। उदाहरण के लिए, रॉबर्ट ब्लिंको की डायरी में कारखाने में बच्चों के दर्दनाक अनुभव दर्ज हैं। यह जानकारी सुधार आंदोलनों के लिए उपयोगी साबित हुई। जॉन रुल ने बताया कि इन विवरणों ने जनता को जागरूक किया और श्रम सुधारों की शुरुआत में अहम भूमिका निभाई।
संसदीय गवाहियाँ: संसदीय गवाहियों में सैडलर समिति (1832) की रिपोर्ट महत्वपूर्ण है, जिसमें बाल श्रमिकों और पर्यवेक्षकों की प्रतिकूल परिस्थितियों की गवाही शामिल थी। फ्रेडरिक एंगेल्स ने इन गवाहियों को अपनी किताब "इंग्लैंड में मजदूर वर्ग की दशा" में उद्धृत किया। इससे स्पष्ट होता है कि कैसे पूंजीवाद ने मजदूरों की हालत को और खराब कर दिया।
समकालीन साहित्य: समकालीन साहित्य में लेखकों ने औद्योगीकरण के प्रभावों को अपने उपन्यासों के माध्यम से दर्शाया। उदाहरण के लिए, चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास "हार्ड टाइम्स" में औद्योगिक शहरों की कठोर सच्चाई को उजागर किया गया है। साहित्यिक विद्वान कैथरीन गैलाघर के अनुसार, डिकेंस ने मजदूर वर्ग और उद्योगपतियों पर औद्योगिकीकरण के अमानवीय प्रभावों को प्रभावशाली तरीके से सामने रखा।
उद्योगपतियों के आत्मकथाएँ: उद्योगपतियों की आत्मकथाएँ औद्योगिक प्रगति की तस्वीर प्रस्तुत करती थीं। उदाहरण के लिए, सैमुअल स्माइल्स की किताब "सेल्फ-हेल्प" ने आत्मनिर्भरता और मेहनत पर जोर दिया। इतिहासकार मैक्सिन बर्ग के अनुसार, यह किताब औद्योगिक क्रांति में योग्यता और प्रगति की विचारधारा को बढ़ावा देती है।
समाज में परिवर्तन
19वीं शताब्दी में औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और तकनीकी प्रगति ने समाज में गहरे बदलाव किए। ये बदलाव जीवन के हर क्षेत्र में देखे गए, जैसे कि शहरी जीवन, परिवार की भूमिका, शिक्षा, श्रमिक अधिकार और सांस्कृतिक प्रथाएँ।
ग्रामीण से शहरी जीवन में बदलाव:औद्योगिकीकरण के साथ लोग गाँव छोड़कर मैनचेस्टर और बर्मिंघम जैसे बड़े औद्योगिक शहरों में काम की तलाश में आने लगे। इतिहासकार एरिक हॉब्सबॉम के अनुसार, यह शहरीकरण नई सामाजिक समस्याएँ लेकर आया, लेकिन इससे मजदूरों के बीच सामूहिकता की भावना भी बढ़ी। मजदूरों ने एक-दूसरे के संघर्ष और अनुभवों को साझा करना शुरू किया।
परिवार और लैंगिक भूमिकाओं में परिवर्तन: औद्योगीकरण के बाद परिवार और लैंगिक भूमिकाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। पहले काम और घर का जीवन एक साथ था, लेकिन औद्योगीकरण के चलते पुरुष, महिलाएँ और बच्चे कारखानों में काम करने लगे। लियोनोर डेविडॉफ और कैथरीन हॉल के अनुसार, महिलाओं को घर के कामकाज और नैतिक जिम्मेदारियों तक सीमित कर दिया गया, जबकि पुरुष सार्वजनिक जीवन और आर्थिक गतिविधियों का हिस्सा बने।
शिक्षा और साक्षरता में वृद्धि: औद्योगीकरण के साथ कुशल मजदूरों की जरूरत के कारण शिक्षा का विकास हुआ। पब्लिक स्कूलों की स्थापना हुई, जिससे साक्षरता में वृद्धि हुई। इतिहासकार डेविड विंसेंट के अनुसार, साक्षरता ने श्रमिकों को बेहतर आर्थिक अवसर दिए और एक राजनीतिक रूप से जागरूक नागरिक वर्ग को जन्म दिया।
श्रमिक संघ और राजनीतिक आंदोलन: औद्योगिक कारखानों की खराब परिस्थितियों के खिलाफ मजदूरों ने संगठित होकर संघर्ष करना शुरू किया। ई.पी. थॉम्पसन के अनुसार, मजदूरों ने ट्रेड यूनियन और चार्टिस्ट आंदोलन के माध्यम से बेहतर मजदूरी और सुरक्षा की माँग की। इन आंदोलनों ने भविष्य के सामाजिक सुधारों की नींव रखी।
सांस्कृतिक और उपभोक्ता संस्कृति का विकास:मशीनीकरण के कारण सस्ती वस्तुएँ उपलब्ध होने लगीं, जिससे सांस्कृतिक और उपभोक्ता संस्कृति का विकास हुआ। बड़े डिपार्टमेंट स्टोर खुले और विज्ञापनों का प्रसार बढ़ा। इतिहासकार थॉमस रिचर्ड्स के अनुसार, उपभोक्तावाद समाज का अहम हिस्सा बन गया, जहाँ लोगों की पहचान उनकी सामाजिक संपत्ति और उपभोग की आदतों से जुड़ने लगी।
औद्योगिक शहर में जीवन
19वीं शताब्दी की शुरुआत में औद्योगिक शहरों में जीवन बेहद कठिन था। शहरीकरण के कारण शहरों में भीड़, गंदगी, खराब स्वास्थ्य, और कठोर काम करने की स्थितियाँ आम हो गईं। फिर भी, इन शहरों ने नए सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों को भी जन्म दिया।
भीड़भाड़ और झुग्गी आवास: औद्योगिकीकरण के कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने झुग्गी-झोपड़ियों को जन्म दिया। फ्रेडरिक एंगेल्स ने मैनचेस्टर जैसे शहरों में रहने की गंदगी भरी स्थिति का वर्णन किया, जहाँ सड़कें कीचड़ और गंदगी से भरी थीं। घर छोटे और भीड़भाड़ वाले थे, जिससे मजदूरों के लिए जीवन बेहद कठिन हो गया।
स्वच्छता और स्वास्थ्य समस्याएँ: औद्योगिक शहरों में स्वच्छता की कमी एक गंभीर समस्या थी। इतिहासकार रूथ रिचर्डसन के अनुसार, गंदगी और भीड़भाड़ के कारण हैजा और टाइफाइड जैसे घातक रोग फैलते थे। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग बड़ी संख्या में मरते थे। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारों की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है।
कारखानों में काम करने की स्थितियाँ: औद्योगिक कारखानों में मजदूरों को लंबे घंटे, कम मजदूरी और खतरनाक माहौल में काम करना पड़ता था। इतिहासकार डेविड मॉटगोमरी के अनुसार, कारखाने मजदूरों के लिए "संघर्ष का मैदान" बन गए थे। इन कठिन परिस्थितियों के खिलाफ मजदूरों ने बेहतर वेतन और अधिकारों की माँग के लिए हड़तालें और विरोध प्रदर्शन किए।
सांस्कृतिक और सामाजिक एकजुटता: चुनौतियों के बावजूद मजदूरों ने सांस्कृतिक और सामाजिक एकजुटता का परिचय दिया। कार्ल नाइटिंगेल के अनुसार, मजदूर वर्ग ने अपने समुदायों का निर्माण किया और कठिनाइयों का सामना करते हुए एकजुटता और लचीलापन दिखाया। ये समुदाय एक-दूसरे की मदद करते थे और साझा अनुभवों से मजबूत बनते गए।