परिचय
1812 में रूस पर नेपोलियन की हार ने उनके यूरोपीय प्रभुत्व को गंभीर झटका दिया, जिससे रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशिया ने उनके खिलाफ युद्ध छेड़ा। 1813 में लीपज़िग की लड़ाई में उनकी निर्णायक हार हुई।नेपोलियन ने समझौता करने से इनकार किया, लेकिन 1814 में पेरिस के पतन के बाद उन्हें एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया और फ्रांस में बर्बोन राजवंश बहाल हुआ। मित्र राष्ट्रों ने यूरोप में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समझौते किए और नेपोलियन युग का अंत करते हुए एक नए संतुलन की शुरुआत की।
वियना कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता
- मेटरनिख (ऑस्ट्रिया): वियना कांग्रेस के अध्यक्ष और ऑस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख, यूरोपीय राजनीति में 1806 से 1848 तक प्रभावशाली रहे। उन्होंने नेपोलियन को ऑस्ट्रिया का कट्टर विरोधी मानते हुए उनके पतन में अहम भूमिका निभाई। मेटरनिख ने घोर राष्ट्रवाद, उदारवाद, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विरोध किया, जिससे वे एक रूढ़िवादी नेता के रूप में पहचाने गए।
- जार अलेक्जेंडर I (रूस): रूस के जार अलेक्जेंडर ने वियना कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने रूस पर नेपोलियन के आक्रमण के नुकसान के बाद स्थिरता और मुआवजे की माँग की। उनकी दृष्टि ईसाई सिद्धांतों पर आधारित यूरोपीय एकता को बढ़ावा देने की थी, जिससे कांग्रेस में उनका प्रभाव बढ़ा।
- केस्टलेरीघ (ब्रिटिश विदेश मंत्री): ब्रिटिश विदेश मंत्री केस्टलेरीघ ने नेपोलियन के खिलाफ यूरोपीय गठबंधन बनाने और उनके शासन को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने वियना कांग्रेस में इंग्लैंड के समुद्री वर्चस्व और दास व्यापार को समाप्त करने का समर्थन किया।
- टेलेरैंड (फ्रांस): फ्रांस के टेलेरैंड, लुई XVIII के प्रतिनिधि के रूप में वियना कांग्रेस में शामिल हुए। उन्होंने नेपोलियन के पतन के बाद फ्रांस के लिए सम्मानजनक स्थिति सुनिश्चित करने की कोशिश की। कुशल राजनयिक होने के बावजूद, विजयी शक्तियों ने एक पराजित राष्ट्र के दूत के रूप में उनकी अवहेलना की।
- हार्डनबर्ग (प्रशिया): प्रशिया के हार्डनबर्ग ने कांग्रेस में प्रशिया के सैन्य और राष्ट्रीय हितों का समर्थन किया। राष्ट्रवाद और सैन्यवाद में उनके विश्वास ने उनकी कूटनीति को प्रेरित किया। उन्होंने प्रशिया की सैन्य शक्ति के विस्तार और क्षेत्रीय मुआवजे पर जोर दिया।
प्रथम पेरिस संधि (1814)
30 मई, 1814 को मित्र राष्ट्रों और फ्रांस के बीच पहली पेरिस संधि पर हस्ताक्षर हुए। फ्रांसीसी राजनेता टेलेरैंड ने फ्रांस के लिए अनुकूल शर्तों को सुनिश्चित किया।
- मुख्य प्रावधान: 1792 की स्थिति में फ्रांस की सीमाएँ स्थिर रहीं और 1789 की सीमाओं को संरक्षित रखा गया। फ्रांस को युद्ध क्षतिपूर्ति देने की आवश्यकता नहीं पड़ी, न ही नेपोलियन द्वारा लूटी गई कलाकृतियों को लौटाने की बाध्यता थी। भारत में अपनी व्यापारिक चौकियों को बनाए रखते हुए, फ्रांस ने मॉरीशस इंग्लैंड को सौंप दिया। वेस्ट इंडीज के कुछ क्षेत्र इंग्लैंड और स्पेन को दिए गए, लेकिन इसके बावजूद फ्रांस ने अपनी व्यावसायिक समृद्धि को काफी हद तक बनाए रखा।
- टेलेरैंड की कूटनीति: मित्र राष्ट्रों ने फ्रांस पर कठोर शर्तें थोपने के बजाय उदार दृष्टिकोण अपनाया, जिसे टेलेरैंड की कुशल कूटनीति का परिणाम माना गया।
यूरोपीय नेताओं की चुनौतियाँ
फ्रांस के साथ समझौते के बाद, मित्र राष्ट्रों ने यूरोपीय मानचित्र के पुनर्गठन और नेपोलियन के बाद की समस्याओं को हल करने के लिए वियना कांग्रेस बुलाई।
प्रमुख समस्याएँ:
- नेपोलियन युद्धों का प्रभाव: नेपोलियन युद्धों के परिणामस्वरूप कई राज्यों की सीमाएँ बदली गईं और कुछ राज्य पूरी तरह से विलुप्त हो गए। इन युद्धों ने उदारवाद और राष्ट्रवाद जैसी नई शक्तियों को जन्म दिया, जो भविष्य में यूरोप के राजनीतिक और सामाजिक ढाँचे को गहराई से प्रभावित करने वाले सिद्ध हुए।
- शक्ति संतुलन: यूरोप में शक्ति संतुलन भंग हो गया था।पुराने आदेश की बहाली और विस्थापित राजाओं व रईसों का पुनर्वास करना चुनौतीपूर्ण था।
- वियना कांग्रेस: कांग्रेस की मेजबानी ऑस्ट्रिया ने की, जिसकी अगुवाई चांसलर मेटरनिख ने की। यूरोपीय नेताओं ने पुराने शासन को बहाल करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर प्रयास किए।
वियना कांग्रेस समझौता:
- वियना समझौते के प्रमुख सिद्धांत: वियना कांग्रेस तीन मुख्य सिद्धांतों पर आधारित थी—पुनर्स्थापन, मुआवजा और वैधता। पुनर्स्थापन का उद्देश्य यूरोप में फ्रांसीसी क्रांति और नेपोलियन के दौरान बदली गई सीमाओं और सत्ता को उनकी पूर्व स्थिति में लाना था। इसके तहत, यूरोपीय देशों की सीमाएँ और शासक परिवारों को उनकी पूर्व स्थिति में बहाल किया गया।
- फ्रांस में बर्बोन राजवंश की पुनर्स्थापना: नेपोलियन के पतन के बाद, फ्रांस में बर्बोन राजवंश की पुनर्स्थापना हुई और लुई XVI के भाई लुई XVIII को सिंहासन सौंपा गया। हालाँकि, उन्होंने फ्रांस की खोई हुई महिमा को वापस लाने और जनता के समर्थन में चुनौतियों का सामना किया। इस दौरान "सफेद आतंक" का उदय हुआ, जिसमें नेपोलियन समर्थकों के खिलाफ हिंसा हुई।
- यूरोप में शाही परिवारों की बहाली: वियना कांग्रेस ने पुराने शाही परिवारों को उनकी स्थिति में बहाल करने का प्रयास किया। स्पेन, नेपल्स और सिसिली में बर्बोन्स की वापसी हुई। हाउस ऑफ ऑरेंज को हॉलैंड में, सावॉय परिवार को पीडमॉन्ट और सार्डिनिया में बहाल किया गया। पोप को उनके राज्य लौटाए गए और जर्मन राजकुमारों को उनके क्षेत्र वापस दिए गए।
- फ्रांस का हाशिए पर होना: नेपोलियन के युद्धों ने यूरोप में अस्थिरता और हिंसा फैलाई, जिससे आर्थिक और राजनीतिक संकट गहरा गया। परिणामस्वरूप, यूरोपीय शक्तियों ने फ्रांस को कमजोर करने और उसे हाशिए पर रखने का प्रयास किया।
- युद्ध प्रभावित देशों को मुआवजा: नेपोलियन युद्धों के दौरान प्रभावित देशों को मुआवजा दिया गया। ग्रेट ब्रिटेन ने दक्षिण अफ्रीका, सीलोन और केप कॉलोनी जैसे क्षेत्रों को प्राप्त किया। हॉलैंड को ऑस्ट्रियाई नीदरलैंड सौंपा गया, और फिनलैंड को रूस को दिया गया। प्रशिया, स्वीडन और सार्डिनिया जैसे राज्यों को भी मुआवजा देकर संतुलन बनाए रखा गया।
- क्रांतिकारी विचारधाराओं पर सतर्कता: फ्रांसीसी क्रांति के बाद उत्पन्न उदारवादी और क्रांतिकारी विचारों को नियंत्रित करने के लिए सतर्कता बढ़ाई गई। जर्मनी में 38 राज्यों का 'जर्मन परिसंघ' बनाया गया, जिसे ऑस्ट्रिया के प्रभाव में रखा गया। कांग्रेस के दौरान गुटबाजी और मतभेद सामने आए, लेकिन अंततः 1815 में नेपोलियन को वाटरलू में हराने के बाद समझौते को अंतिम रूप दिया गया।
पेरिस की दूसरी संधि (1815)
नेपोलियन ने एल्बा से भागकर फ्रांस में सत्ता वापस हासिल की और 100 दिनों तक शासन किया, जो वाटरलू की लड़ाई (18 जून, 1815) में उसकी हार के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद, मित्र राष्ट्रों ने 20 नवंबर, 1815 को पेरिस की दूसरी संधि लागू की। इस संधि के तहत:
- फ्रांस को युद्ध मुआवजा देना पड़ा।
- लूटी गई कलाकृतियां लौटानी पड़ीं।
- सीमाएं 1790 के स्तर पर घटा दी गईं।
- मित्र देशों की सेना ने 1818 तक फ्रांस पर नियंत्रण रखा।
- फ्रांस ने अलसैस और लोरेन को खोने से बचा लिया।
नेपोलियन ने एल्बा से भागकर फ्रांस में सत्ता वापस हासिल की और 100 दिनों तक शासन किया, जो वाटरलू की लड़ाई (18 जून, 1815) में उसकी हार के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद, मित्र राष्ट्रों ने 20 नवंबर, 1815 को पेरिस की दूसरी संधि लागू की। इस संधि के तहत:
- फ्रांस को युद्ध मुआवजा देना पड़ा।
- लूटी गई कलाकृतियां लौटानी पड़ीं।
- सीमाएं 1790 के स्तर पर घटा दी गईं।
- मित्र देशों की सेना ने 1818 तक फ्रांस पर नियंत्रण रखा।
- फ्रांस ने अलसैस और लोरेन को खोने से बचा लिया।
वियना कांग्रेस के उद्देश्य (1814-1815)
15 सितंबर 1814 से 9 जून 1815 तक चली वियना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य नेपोलियन युद्धों के बाद यूरोप में शांति और स्थिरता स्थापित करना था। इसके प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित थे:
वियना कांग्रेस के कार्य और उद्देश्य:
- वियना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य 1789 से पहले की वैधता और स्थिरता को पुनर्स्थापित करना था। इसके तहत शाही राजवंशों और सीमाओं को पारंपरिक शासन और अधिकारों के अनुरूप बहाल किया गया। स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए विजयी राष्ट्रों को क्षेत्रीय और आर्थिक मुआवजा दिया गया।
- जर्मनी का पुनर्गठन कांग्रेस का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें जर्मनी में स्थिरता लाने के लिए जर्मन परिसंघ का गठन किया गया। फ्रांस की भविष्य की आक्रामकता को रोकने के लिए उसे शक्तिशाली पड़ोसी राज्यों से घेरा गया।
- इसके अलावा, यूरोपीय शक्ति संतुलन को प्राथमिकता दी गई, ताकि कोई भी राष्ट्र अत्यधिक प्रभावी न हो सके। इन उपायों का उद्देश्य दीर्घकालिक शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना था।
1. वैधता का सिद्धांत
- वैधता का सिद्धांत नेपोलियन और फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व के वैध शासकों को बहाल करने पर केंद्रित था। इसके तहत फ्रांस, स्पेन, दो सिसिली में बर्बोन राजवंश, हॉलैंड में हाउस ऑफ ऑरेंज, सार्डिनिया-पीडमॉन्ट में हाउस ऑफ सेवॉय, जर्मन राजकुमार, पोप राज्य और स्विस परिसंघ को उनकी भूमि लौटाई गई।
2. फ्रांस के बारे में समझौते
- 1815 में वियना कांग्रेस में फ्रांस के भविष्य को लेकर मतभेद थे। मेटरनिख ने फ्रांस को कमजोर करने और इसके पुनरुत्थान को रोकने के लिए कठोर सजा का समर्थन किया, जबकि ब्रिटिश विदेश मंत्री कैसलेरीघ ने शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाया। कैसलेरीघ और तलिइरलैंड के प्रयासों से फ्रांस व्यापक विनाश से बच गया।
- समझौते के तहत फ्रांस ने 1789 की क्रांति के बाद नेपोलियन द्वारा अधिग्रहित क्षेत्रों को खो दिया। इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन, स्पेन, पीडमॉन्ट, सार्डिनिया, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन सहित शक्तियों का एक गठबंधन बनाया गया ताकि फ्रांस को घेरकर उसकी आक्रामकता को रोका जा सके और यूरोप में स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
3. यूरोप में पर्याप्त परिवर्तन
- ऑस्ट्रिया: ऑस्ट्रिया को वियना कांग्रेस में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय लाभ प्राप्त हुए। इसे वेनेत्सिया, लोम्बार्डी, टायरॉल, वोरार्लबर्ग, और जर्मन परिसंघ का नेतृत्व मिला। हैब्सबर्ग राजकुमारों को इटली के पर्मा, मोडेना और टस्कनी क्षेत्रों पर अधिकार दिया गया, जिससे ऑस्ट्रिया का प्रभाव बढ़ा।
- प्रशिया: प्रशिया ने अपने खोए हुए जर्मन क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया और स्वीडिश पोमेरानिया, सैक्सोनी के बड़े हिस्से, वेस्टफेलिया और राइनलैंड पर अधिकार किया। इन क्षेत्रों ने प्रशिया की रक्षा को मजबूत किया और इसे औद्योगिक विकास में बढ़त दी।
- रूस: रूस ने फिनलैंड और बेस्सारबिया पर अधिकार किया और वारसॉ का ग्रैंड डची प्राप्त किया। इन अधिग्रहणों ने रूस की सीमा का विस्तार किया और इसे यूरोप में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।
- ग्रेट ब्रिटेन: ब्रिटेन ने हेलिगोलैंड, माल्टा, आयोनियन द्वीप समूह, दक्षिण अफ्रीका, सीलोन और केप कॉलोनी पर अधिकार किया। इन क्षेत्रों ने ब्रिटेन के समुद्री और वैश्विक प्रभाव को और मजबूत किया।
- इटली: इटली को विभाजित रखा गया। वेनेत्सिया और लोम्बार्डी को ऑस्ट्रिया को सौंपा गया, जबकि पीडमॉन्ट और सावॉय को सार्डिनिया में मिला दिया गया। यह विभाजन इटली की राष्ट्रीय एकता की आकांक्षाओं को दबाने और रूढ़िवादी शासन को बनाए रखने का प्रयास था।
- जर्मनी: जर्मनी में राइन परिसंघ को भंग कर, 29 राज्यों का जर्मन परिसंघ बनाया गया। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रिया को दी गई, जिससे यह क्षेत्रीय मामलों में प्रमुख बना। हालांकि, परिसंघ कमजोर था और जर्मन एकता की आकांक्षाओं को पूरा करने में विफल रहा।
- नॉर्वे: नेपोलियन के साथ डेनमार्क के सहयोग के परिणामस्वरूप, नॉर्वे को स्वीडन को सौंपा गया। इससे नॉर्वे की स्वायत्तता कम हो गई और इसे स्वतंत्र राष्ट्रवाद की आकांक्षाओं को दबा दिया गया।
राजनयिक शक्ति संतुलन दृष्टिकोण
- वियना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य यूरोप में शक्ति संतुलन स्थापित करना था। इस लक्ष्य को पाने के लिए "रिंग-बाड़" रणनीति अपनाई गई, जिसमें फ्रांस के चारों ओर मजबूत राज्यों का घेरा बनाया गया।
- बेल्जियम और हॉलैंड को मिलाकर एक नया राज्य बनाया गया ताकि फ्रांस की उत्तरी सीमा सुरक्षित हो।
- सार्डिनिया साम्राज्य को जेनोआ, पीडमॉन्ट, सावॉय और नीस के साथ मजबूत किया गया।
- प्रशिया को राइन प्रांत, सैक्सोनी का हिस्सा, वेस्टफेलिया, पोलैंड (पोसेन), और स्वीडिश पोमेरानिया देकर उसकी ताकत बढ़ाई गई।
- इस रणनीति का उद्देश्य फ्रांस की भविष्य की आक्रामकता को रोकना और यूरोप में स्थिरता बनाए रखना था।
वियना कांग्रेस का मूल्यांकन:
प्रोफेसर फ़ेफ़े के अनुसार, वियना कांग्रेस इतिहास में शांति और संतुलन स्थापित करने के प्रयास के लिए महत्वपूर्ण थी। इसका उद्देश्य केवल क्षेत्रीय वितरण नहीं, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना था।
- उदारता और समझौता: वियना कांग्रेस में फ्रांस को 1791 की सीमाओं तक सीमित किया गया, लेकिन उसे पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। नेपोलियन द्वारा लूटी गई कला और संपत्ति को लौटाने का आदेश दिया गया, और युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 700,000,000 फ्रैंक का भुगतान निर्धारित किया गया। यह दृष्टिकोण मित्र राष्ट्रों की अपेक्षाकृत उदार नीति को दर्शाता है।
- छोटे राष्ट्रों की अनदेखी: प्रमुख शक्तियों (बड़े पांच) ने छोटे देशों के हितों को नज़रअंदाज कर अपने स्वार्थ पूरे किए।
- लघु अवधि की व्यवस्थाएँ: वियना कांग्रेस की नीतियाँ अल्पकालिक थीं। क्षेत्रीय विभाजन और समझौतों का आधार प्रमुख शक्तियों की सुविधा थी, जो समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरा।
- अधूरी आकांक्षा: हेज़ेन ने कांग्रेस को एक अधूरी सफलता कहा, क्योंकि इसका सपना शांति बहाल करना था, लेकिन वह स्थायी नहीं हो सका
वियना कांग्रेस की कमजोरियाँ:
वियना कांग्रेस ने यूरोप में स्थिरता और शांति बहाल करने का प्रयास किया, लेकिन इसकी कई सीमाएँ थीं। यह मुख्य रूप से अभिजात वर्ग और शक्तिशाली देशों के स्वार्थों की पूर्ति पर केंद्रित रही, जिससे आम जनता और छोटे राष्ट्रों के हितों की उपेक्षा हुई।
- अप्राकृतिक एकीकरण: बेल्जियम और हॉलैंड का जबरन एकीकरण, जो धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भिन्न थे, 1830 के विद्रोह का कारण बना। इसी प्रकार, नॉर्वे को स्वीडन के नियंत्रण में देकर उसकी स्वतंत्रता छीन ली गई। पोलैंड को विभाजित किया गया, और फिनलैंड को रूस के अधीन कर दिया गया, जिससे इन क्षेत्रों में असंतोष बढ़ा।
- राष्ट्रीयता की उपेक्षा: वियना कांग्रेस ने फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों—स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—को दरकिनार कर शाही राजवंशों को बहाल किया। इटली को विभाजित किया गया और जर्मनी को एक परिसंघ के तहत ऑस्ट्रिया के प्रभुत्व में रखा गया। इसने राष्ट्रवाद और एकता की आकांक्षाओं को कुचल दिया।
- फ्रांस पर कठोर रवैया: फ्रांस की सीमाओं को 1791 तक सीमित कर दिया गया और नेपोलियन द्वारा जीते गए सभी क्षेत्र उससे छीन लिए गए। हालांकि यह अन्य देशों की सुरक्षा के लिए था, लेकिन यह फ्रांस के लिए अपमानजनक था।
- छोटे राष्ट्रों की अनदेखी: छोटे देशों के हितों को "बिग फाइव" (इंग्लैंड, रूस, ऑस्ट्रिया, प्रशिया, और फ्रांस) ने नजरअंदाज किया। छोटे राष्ट्रों की भूमिका और योगदान को महत्वहीन समझा गया। इसने छोटे देशों में असंतोष और विभाजन को बढ़ावा दिया।
- पूर्वी यूरोप के विवादों को हल करने में विफलता: कांग्रेस ने पूर्वी यूरोप के विवादों, विशेष रूप से ओटोमन साम्राज्य के पतन से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज किया। इससे इस क्षेत्र में अस्थिरता और तनाव बरकरार रहा।
- ऑस्ट्रिया का अत्यधिक प्रभाव: ऑस्ट्रिया ने मेटरनिख के नेतृत्व में अपनी शक्ति बढ़ाई और राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, इसने आर्थिक सुधारों और प्रगति पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया।
- पवित्र रोमन साम्राज्य का अंत: नेपोलियन द्वारा राइन क्षेत्र के अधिग्रहण और वियना कांग्रेस के फैसलों ने पवित्र रोमन साम्राज्य का अंत सुनिश्चित किया। यह यूरोप के पुराने राजनैतिक ढांचे में एक बड़ा परिवर्तन था।
वियना कांग्रेस की उपलब्धियाँ
- यूरोप में शांति की पुनर्स्थापना: वियना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य नेपोलियन के युद्धों के बाद यूरोप में शांति स्थापित करना था। कांग्रेस के प्रयासों से 1854 तक पूरे महाद्वीप में कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ, जो इसे शांति बहाली के क्षेत्र में एक प्रभावी कदम साबित करता है।
- यूरोप का पुनर्निर्माण: नेपोलियन के पतन के बाद, वियना कांग्रेस ने यूरोप की राजनीतिक और भूगोलिक संरचना का पुनर्निर्माण किया। छोटे राष्ट्रों की संप्रभुता को बहाल किया गया, लेकिन कांग्रेस राष्ट्रवादी और उदारवादी भावनाओं को संबोधित करने में असफल रही। इसके परिणामस्वरूप इटली, जर्मनी, पोलैंड और बेल्जियम जैसे क्षेत्रों में असंतोष बढ़ा। इटली का विभाजन और जर्मन परिसंघ का निर्माण वियना कांग्रेस के सबसे विवादास्पद निर्णयों में से थे, जो भविष्य की अस्थिरता का कारण बने।
- जर्मनी का पुनर्गठन: हालाँकि वियना कांग्रेस जर्मनी के पूर्ण एकीकरण में विफल रही, लेकिन इसने 38 राज्यों से मिलकर एक जर्मन परिसंघ का निर्माण किया। यह आगे चलकर 1870-71 में जर्मनी के एकीकरण के लिए एक आधार बना।
- दासता के खिलाफ संकल्प: यूरोप में दासता के उन्मूलन की दिशा में वियना कांग्रेस ने महत्वपूर्ण कदम उठाए। ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, और हॉलैंड जैसे प्रमुख देशों ने दासों की खरीद-बिक्री को गैरकानूनी घोषित करने के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की। यह कदम सामाजिक असमानता को कम करने और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयास का हिस्सा था।
वियना कांग्रेस का आकलन
1. उद्देश्य और सीमाएँ
वियना कांग्रेस (1815) का उद्देश्य क्रांतिकारी और नेपोलियन युद्धों के बाद यूरोप को पुनर्गठित करना था। हालाँकि, सीडी हेजेन के अनुसार, यह मुख्यतः शाही परिवारों और अभिजात वर्ग के हितों पर केंद्रित रही, जिससे राष्ट्रीयता और लोकतंत्र जैसी उभरती अवधारणाओं की अनदेखी हुई। जनता की आकांक्षाओं और राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा के कारण इसके समझौते और संरचनाएँ अल्पकालिक साबित हुईं।
2. अस्थायी समझौतों की प्रकृति