परिचय
फ्रांसीसी क्रांति, जो 1789 में शुरू हुई, यूरोपीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने वैश्विक स्तर पर गहरा प्रभाव डाला। यह क्रांति पुराने राजशाही शासन को चुनौती देकर स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित एक नई विचारधारा का उदय लाई। विलियम डॉयल ने अपनी पुस्तक द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ द फ्रेंच रिवोल्यूशन में क्रांति के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों की जटिलताओं का विश्लेषण किया है। उनका कहना है कि समाज में बढ़ते असंतोष, आर्थिक विषमता, और राजनीतिक अन्याय ने इस क्रांति को जन्म दिया। फ्रांसीसी क्रांति लोकतंत्र और नागरिकता के युग की शुरुआत का प्रतीक है, जिसने सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के लिए नए संघर्षों को प्रेरित किया। इसका अध्ययन केवल घटनाओं का नहीं, बल्कि इसके विचार, प्रेरणा, और परिणामों का विश्लेषण है।
फ्रांसीसी क्रांति की पूर्व संध्या पर विश्व
- डच और ब्रिटिश विस्तार: डचों ने मलय लोगों को बागानों में श्रम करने पर मजबूर किया, जबकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नमक, अफीम और शोरा पर एकाधिकार कर स्थानीय बुनकरों का शोषण किया। उपनिवेशवादियों ने स्थानीय जमीनों पर कब्जा किया।
- औपनिवेशिक संघर्ष: औपनिवेशिक संघर्ष ने नए क्षेत्रों की खोज के साथ शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाई। महाद्वीपीय शत्रुता नौसैनिक और औपनिवेशिक युद्धों में बदल गई, जबकि अटलांटिक तक पहुँच रखने वाले देशों ने अधिक लाभ उठाकर अपनी अर्थव्यवस्थाएं मजबूत कीं।
- इंग्लैंड और फ्रांस का संघर्ष: दोनों शक्तियों ने भारत, वेस्ट इंडियन द्वीपों और उत्तर अमेरिका पर प्रभुत्व के लिए संघर्ष किया।अफ्रीका और एशिया में गोरे लोग लाभ कमाने के लिए अस्थायी रूप से रहते थे।
- उपनिवेशों में असंतोष: उपनिवेशों में जन्मे लोग अपने गृह देश के अधिकारों और निर्णयों से असंतुष्ट थे।वे स्वतंत्रता और स्व-शासन की इच्छा रखने लगे।
पूर्व-क्रांतिकारी फ्रांस के तीन वर्ग (थ्री स्टेट्स):
- प्राचीन शासन काल में फ्रांस का समाज तीन वर्गों में विभाजित था पादरी, कुलीन वर्ग और आम जनता। राजा लुई सोलहवें (1774-1792) के समय, पहले दो वर्ग विशेषाधिकार प्राप्त थे, जबकि तीसरा वर्ग, जो 90% से अधिक जनसंख्या का था, अधिकांश करों का भुगतान करता था। इसमें बुर्जुआ (मध्यम वर्ग) और सॅस-क्यूलोट्स (कामकाजी वर्ग) शामिल थे। बढ़ती असमानता ने वर्ग संघर्ष को जन्म दिया, जो फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) का मुख्य कारण बना। मई 1789 में एस्टेट्स-जनरल की बैठक से यह संघर्ष शुरू हुआ और क्रांति का प्रमुख मुद्दा बन गया।
यूरोपीय/फ्रांसीसी समाज का निर्माण
1789 में फ्रांसीसी समाज तीन मुख्य वर्गों या 'एस्टेट्स' में बंटा था:
पहला और दूसरा एस्टेट : पादरी और कुलीनता
- पादरी (पहला एस्टेट): पादरी को व्यापक शक्ति और विशेषाधिकार प्राप्त थे। गैलिकन चर्च ने शिक्षा, सामाजिक सेवाओं, और कानूनी प्रक्रियाओं पर नियंत्रण रखा। चर्च ने करों से छूट पाई और राज्य को "स्वतंत्र उपहार" के रूप में धन दिया। यह फ्रांस की 10% भूमि का मालिक था और दशमांश कर एकत्र करता था।
- कुलीनता (दूसरा एस्टेट): कुलीनों को करों से छूट, सैन्य और प्रशासनिक पदों पर अधिकार, और भूमि से आय मिलती थी। हालांकि, राजा के सत्ता केंद्रीकरण और बुर्जुआ वर्ग के उदय से उनकी शक्ति घटने लगी।
तीसरा एस्टेट: बुर्जुआ और श्रमिक वर्ग
- बुर्जुआ: तीसरे एस्टेट का धनी वर्ग, जो व्यापारी, कारीगर और पेशेवर थे। इन्होंने वाणिज्य और उद्योग के माध्यम से संपत्ति अर्जित की और उच्च सामाजिक स्थिति प्राप्त करने की कोशिश की।
- श्रमिक और किसान: श्रमिक वर्ग और किसानों ने अधिकांश करों का बोझ उठाया। किसानों को भूमि पर उच्च किराए और अनुचित करों का भुगतान करना पड़ता था, जबकि शहरों में श्रमिक रोजगार की कमी और गरीबी से जूझ रहे थे।
- बदलाव और संघर्ष: सामाजिक असमानता और तीसरे एस्टेट पर भारी कर बोझ ने क्रांति के बीज बोए। बुर्जुआ वर्ग का आर्थिक उत्थान और पारंपरिक सामंती व्यवस्था का पतन फ्रांसीसी समाज में बदलाव का मुख्य कारण बना।
एस्टेट्स-जनरल
एस्टेट्स-जनरल फ्रांसीसी समाज के तीनों एस्टेट्स (पादरी, कुलीनता, और आम जनता) के प्रतिनिधियों का एक विधायी और सलाहकार निकाय था। इसे राजा द्वारा आवश्यकतानुसार बुलाया या भंग किया जा सकता था, और इसका मुख्य कार्य वित्तीय मामलों पर सलाह देना और याचिकाएं प्रस्तुत करना था।
- इतिहास: एस्टेट्स-जनरल पहली बार 1302 में राजा फिलिप IV ने बुलाया। 1614 के बाद, बर्बोन राजाओं द्वारा पूर्ण राजशाही स्थापित करने के प्रयास में इसे 175 वर्षों तक निष्क्रिय रखा गया। 1788 में वित्तीय संकट के कारण, लुई XVI ने इसे फिर से बुलाने की घोषणा की।
- सत्ता का असंतुलन: 1789 में बुलाए गए एस्टेट्स-जनरल में प्रत्येक एस्टेट को समान प्रतिनिधित्व दिया गया। तीसरे एस्टेट ने दोगुने प्रतिनिधित्व की माँग की लेकिन हर एस्टेट के पास केवल एक सामूहिक वोट था, जिससे तीसरे एस्टेट के 578 प्रतिनिधि अन्य दो एस्टेट्स के बराबर ही वोटिंग शक्ति रखते थे।
- सियेस की पुस्तिका: जनवरी 1789 में, एबे सियेस ने "तीसरा एस्टेट क्या है?" नामक पुस्तिका में तर्क दिया कि तीसरा एस्टेट ही सबसे वैध एस्टेट है, क्योंकि यह अधिकांश जनसंख्या और करों का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने प्रथम और द्वितीय एस्टेट को "बोझ" मानते हुए समाप्त करने की माँग की। यह विचार क्रांति के पहले महीनों में लोकप्रिय हो गया और सत्ता के असंतुलन पर बहस का केंद्र बन गया।
- महत्व: एस्टेट्स-जनरल ने वित्तीय संकट से समाज में सत्ता के असंतुलन की ओर ध्यान स्थानांतरित किया और फ्रांसीसी क्रांति के आरंभिक चरण का आधार बना।
फ्रांसीसी क्रांति के प्रमुख कारण
1789 की फ्रांसीसी क्रांति राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, बौद्धिक और आर्थिक असंतोष के कारण हुई, जिससे बर्बोन राजवंश का पतन और गणराज्य की स्थापना हुई।
1. राजनीतिक कारण
- निरंकुश शासन: बर्बोन राजाओं ने दैवीय अधिकार के सिद्धांत के तहत सत्ता का केंद्रीकरण किया। संसद (एस्टेट्स-जनरल) 1614 से निष्क्रिय रही, जिससे शाही सर्वोच्चता बढ़ गई।
- कानून और न्यायपालिका: कानूनी प्रणाली अस्पष्ट और असमान थी। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और पक्षपात प्रचलित थे।
- दैवीय अधिकार का सिद्धांत: राजा को दैवीय प्रतिनिधि माना जाता था, जिससे उसकी सत्ता को चुनौती देना असंभव हो गया।
- आक्रामक नीति और प्रशासन: फ्रांसीसी साम्राज्यवाद और युद्धों (जैसे सात साल का युद्ध) ने देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाया। प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अक्षमता ने जनता को और हाशिये पर धकेल दिया।
2. सामाजिक कारण
- सामाजिक असमानता: फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में विभाजित था। पहला और दूसरा एस्टेट विशेषाधिकार प्राप्त थे, जबकि तीसरे एस्टेट (90% जनसंख्या) पर करों का पूरा बोझ था।
- प्रबोधन विचार: रूसे, वोल्टेयर और मोंटेस्क्यू जैसे विचारकों ने समानता, स्वतंत्रता और जनसत्ता के विचारों को बढ़ावा दिया।
3. आर्थिक कारण
- वित्तीय संकट: युद्धों और शाही विलासिता ने देश को कर्ज में डूबा दिया। तीसरे एस्टेट पर कर बढ़ाने से असंतोष बढ़ा।
- द्रास्फीति और गरीबी: मुमहँगाई और खराब फसलों ने किसानों और मजदूरों की स्थिति और बदतर कर दी।
4. धार्मिक कारण
- चर्च का प्रभुत्व: कैथोलिक चर्च ने शिक्षा, समाज और न्याय पर नियंत्रण रखा। पादरी विशेषाधिकार भोगते थे, जबकि धार्मिक उत्पीड़न से प्रोटेस्टेंट और अन्य समूह पीड़ित थे।
5. प्रशासनिक अराजकता
- प्रशासनिक ढाँचा जटिल और भ्रष्ट था। उच्च पदों पर अभिजात वर्ग का कब्जा था, और आम जनता की कोई सुनवाई नहीं थी।
मैरी एंटोनेट
मैरी एंटोनेट (1755-1793), ऑस्ट्रियाई साम्राज्ञी मारिया थेरेसा की पुत्री थीं। फ्रांस और ऑस्ट्रिया के मैत्रीपूर्ण संबंधों को मजबूत करने के लिए उनकी शादी लुई XVI से हुई। विलासिता और अत्यधिक खर्चों के कारण उन्हें "मैडम डेफिसिट" कहा गया। उनकी नीतियों और जीवनशैली ने क्रांति के लिए माहौल तैयार किया।
लुई XVI
लुई XVI ने फ्रांसीसी क्रांति के समय सत्ता संभाली, लेकिन राजनीति में उनकी रुचि कम थी। कमजोर नेतृत्व और दमनकारी नीतियों ने जनता में असंतोष बढ़ाया। उच्च वर्ग के प्रभाव और सुधारों की अनदेखी ने क्रांति को अपरिहार्य बना दिया।
समस्याग्रस्त सामाजिक संरचना
- जगीरदार: समाज के शीर्ष पर थे, जिन्होंने 60% भूमि पर कब्जा किया। करों से छूट और विशेषाधिकारों के कारण वे विलासिता में जीवन जीते थे।
- पादरी: पादरी 20% भूमि के स्वामी थे और टिथेस के रूप में कर वसूलते थे। धार्मिक प्रभाव के बावजूद, उन्होंने उच्च वर्गों का समर्थन किया और आम जनता का शोषण किया।
- तृतीय श्रेणी (आम लोग): 90% जनसंख्या, जिसमें किसान, श्रमिक, डॉक्टर और वकील शामिल थे, कठिन परिस्थितियों में रहते थे। करों और शोषण का पूरा भार उन पर था, जबकि वे समाज में सुधार के लिए क्रांति के नेता बने।
धार्मिक कट्टरवाद
पादरियों ने समाज में बड़ा प्रभाव रखा, लेकिन उनका आचरण प्रायः अनैतिक और स्वार्थी था। कैथोलिक चर्च ने संपत्ति और भूमि पर एकाधिकार किया और प्रोटेस्टेंटों को हाशिए पर रखा। धार्मिक शोषण और विभाजन ने आम जनता में असंतोष को बढ़ावा दिया।
प्रबोधन और बौद्धिक आंदोलन का प्रभाव
- मॉटेस्क्यू: मॉटेस्क्यू (1689-1755), एक फ्रांसीसी दार्शनिक, ने "द स्पिरिट ऑफ लॉज़" (1748) में शक्तियों के पृथक्करण और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की वकालत की। उन्होंने राजशाही, तानाशाही और गणराज्य की संरचनाओं का विश्लेषण करते हुए, संसद आधारित लोकतंत्र को आदर्श शासन प्रणाली माना। उनके विचार फ्रांसीसी क्रांति में प्रेरणा के स्रोत बने।
- फ्रेंकोइस क्वेसने: फ्रेंकोइस क्वेसने (1694-1774) एक चिकित्सक और अर्थशास्त्री थे। उन्होंने कृषि, व्यापार, और वाणिज्य को आर्थिक विकास का आधार बताया और अत्यधिक सरकारी विनियमन का विरोध किया। उनके विचारों ने फ्रांसीसी क्रांति के दौरान आर्थिक सुधारों को प्रेरित किया।
- वाल्टेयर: वाल्टेयर (1694-1778) एक प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। उन्होंने चर्च और पादरियों की विलासिता की आलोचना की और सीमित राजशाही का समर्थन किया। उनकी रचनाओं, जैसे "कैंडाइड", ने राजशाही और धार्मिक भ्रष्टाचार पर प्रहार किया और क्रांति के विचारों को बढ़ावा दिया।
- रूसो: जीन-जैक्स रूसो (1712-1778) ने "द सोशल कॉन्ट्रैक्ट" और "एमिल" जैसे कार्यों के माध्यम से सामाजिक अनुबंध, स्वतंत्रता, और समानता का समर्थन किया। उन्होंने तर्क दिया कि "मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, लेकिन हर जगह वह जंजीरों में है।" उनके विचार फ्रांसीसी क्रांति के बौद्धिक आधार बने।
- दिदरो: डेनिस दिदरो (1713-1784) ने एनसाइक्लोपीडिया के माध्यम से असमानता, धार्मिक असहिष्णुता और आर्थिक शोषण की आलोचना की। उन्होंने राष्ट्रीय विकास के लिए सुधारों की वकालत की, जो क्रांतिकारी विचारों के साथ गहराई से जुड़े।
- कैन: जीन-बैप्टिस्ट कैन ने कृषि और वाणिज्य की मुक्ति पर जोर दिया। उन्होंने आर्थिक प्रगति के लिए स्वतंत्रता और सरकार के न्यूनतम हस्तक्षेप की वकालत की।
आर्थिक कारण
1. सामंती अर्थव्यवस्था
फ्रांस की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी, लेकिन अधिकांश भूमि सामंती प्रभुओं (60%) के नियंत्रण में थी। पादरी और आम लोगों के पास केवल 20% भूमि थी। किसान, जो 80% जनसंख्या का हिस्सा थे, करों का भारी बोझ उठाते हुए सामंती प्रभुओं और पादरियों के खेतों पर बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते थे। कृषि सुधारों की उपेक्षा और शोषण ने किसानों को असंतोष और बदलाव की ओर धकेला।
2. दुखी व्यापारी
फ्रांस के पास व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रचुर संसाधन और बंदरगाह थे, लेकिन सरकार के समर्थन की कमी और उच्च वर्गों द्वारा शोषण ने व्यापारी वर्ग को कमजोर किया।
- अन्यायपूर्ण कर प्रणाली: अभिजात वर्ग को करों से छूट थी, जबकि आम लोगों पर करों का भारी बोझ था, जिसमें कुछ अपनी आय का 80% तक करों में चुकाते थे। कठोर कर संग्रह ने शोषण को और बढ़ा दिया।
3. फ्रांस की आर्थिक विफलता
सरकार की लापरवाही और शाही परिवार के विलासिता भरे खर्चों ने फ्रांस को वित्तीय संकट में डाल दिया।
- राष्ट्रीय दिवालियापन: शाही परियोजनाओं, जैसे वर्साय महल के निर्माण, पर अत्यधिक खर्च ने खजाने को खाली कर दिया।
- करों का बढ़ता बोझ: वित्तीय संकट को हल करने के लिए नए करों की प्रस्तावना ने जनता के आक्रोश को और बढ़ा दिया।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की सफलता
- 1776 से 1783 तक चले अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। फ्रांस, लाफायेट के नेतृत्व में, अमेरिका की सहायता के लिए आगे आया। इंग्लैंड की हार से अमेरिकी स्वतंत्रता ही नहीं मिली, बल्कि फ्रांसीसी सैनिकों को अनुभव और प्रेरणा भी प्राप्त हुई।
- अमेरिका में दमनकारी शासन को उखाड़ फेंकने की सफलता ने फ्रांसीसी सैनिकों और जनता को यह विश्वास दिलाया कि वे भी अपनी सरकार को चुनौती दे सकते हैं। लाफायेट ने अमेरिकी संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने फ्रांसीसी क्रांति में उनकी प्रभावी भूमिका का मार्ग प्रशस्त किया।
- अमेरिकी संघर्ष में फ्रांसीसी भागीदारी ने क्रांतिकारी परिवर्तन की प्रेरणा दी। इसके बाद, लुई XVI द्वारा नए कर लागू करने के फैसले ने जनता में असंतोष को और बढ़ा दिया, जो 1789 में एस्टेट्स-जनरल की बैठक और अंततः फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत का कारण बना।
पूर्व-क्रांतिकारी चरण (1789)
- सामाजिक और आर्थिक असंतोष: 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के पूर्व-क्रांतिकारी चरण को आर्थिक, सामाजिक, और बौद्धिक कारकों ने परिभाषित किया। थर्ड एस्टेट, जिसमें किसान, श्रमिक, और मध्य वर्ग के लोग शामिल थे, गरीबी, असमानता और दमनकारी कराधान का सामना कर रहे थे। दूसरी ओर, कुलीन वर्ग और पादरी विशेषाधिकारों और कर छूट का आनंद ले रहे थे। यह असमानता, बढ़ती महंगाई, और खाद्य संकट के कारण सामाजिक तनाव बढ़ा। राजकोष के खाली होने से स्थिति और बिगड़ गई, जिससे सुधार और बदलाव की माँग तेज हो गई।
- प्रबुद्धता के आदर्श: प्रबुद्धता के विचारों ने स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व की अवधारणाओं को बढ़ावा दिया। इन आदर्शों ने पुराने शासन और सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देते हुए क्रांतिकारी परिवर्तन का वैचारिक आधार प्रदान किया। लोगों ने एक न्यायपूर्ण और प्रतिनिधित्व आधारित शासन प्रणाली की माँग की।
संवैधानिक राजतंत्र (1789-1792)
- नेशनल असेंबली का गठन और टेनिस कोर्ट शपथ: 1789 में थर्ड एस्टेट ने खुद को नेशनल असेंबली घोषित किया और टेनिस कोर्ट शपथ के माध्यम से एक नया संविधान बनाने का संकल्प लिया। इसने पारंपरिक शाही प्रोटोकॉल को चुनौती देते हुए एक नए राजनीतिक आदेश की नींव रखी।
- प्रमुख घटनाएँ और बदलाव: 14 जुलाई 1789 को बैस्टिल पर हमला क्रांति का प्रतीक बन गया, जिसमें जनता ने राजशाही के प्रतीकों को ध्वस्त किया। इसके बाद, मनुष्य और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा के माध्यम से स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के सिद्धांत स्थापित किए गए। 1791 में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई, जिसने राजशाही को सीमित करते हुए क्रांतिकारी शासन प्रणाली की नींव रखी।
- महत्त्व और प्रभाव: पूर्व-क्रांतिकारी चरण और संवैधानिक राजतंत्र ने फ्रांसीसी क्रांति की दिशा तय की। इसने सामाजिक असमानता को चुनौती दी और स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के आदर्शों पर आधारित नए समाज की शुरुआत की। यह चरण फ्रांस और दुनिया भर में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए प्रेरणा बन गया।
1789 की फ्रांसीसी क्रांति के मुख्य चरण
- एस्टेट्स-जनरल की बैठक: 1789 में, राजा लुई सोलहवें ने 178 साल बाद आर्थिक संकट से निपटने के लिए एस्टेट्स-जनरल की बैठक बुलाई। आम लोगों (थर्ड एस्टेट) ने एक समान बैठक की माँग की, जबकि कुलीन वर्ग ने इसका विरोध किया। यह विवाद क्रांति की शुरुआत का कारण बना।
- नेशनल असेंबली का गठन: 17 जून 1789 को, थर्ड एस्टेट ने खुद को नेशनल असेंबली घोषित किया और देश के लिए एक नया संविधान बनाने का फैसला किया। राजा, रानी मैरी एंटोनेट, और कुलीन वर्ग का विरोध बढ़ता गया, जिससे तनाव और गहरा हो गया।
- टेनिस कोर्ट शपथ: 20 जून 1789 को, नेशनल असेंबली के सदस्यों ने टेनिस कोर्ट शपथ ली, जिसमें उन्होंने एक नए और समान संविधान बनाने का संकल्प लिया। कुछ कुलीन सदस्य भी असेंबली में शामिल हो गए। अंत में, राजा ने समझौता करते हुए उनकी संयुक्त बैठक को मंजूरी दे दी।
4 अगस्त की क्रांति
- क्रांति की शुरुआत: 14 जुलाई 1789 को बैस्टिल के पतन ने पूरे फ्रांस में क्रांति की लहर फैला दी। इसने सामंती व्यवस्था के खिलाफ जनता के गुस्से को और भड़काया। क्रांतिकारियों ने सामंती प्रभुओं के खिलाफ हमला किया, उनकी संपत्तियाँ और रिकॉर्ड नष्ट कर दिए।
- 4 अगस्त की ऐतिहासिक बैठक: 4 अगस्त 1789 को, एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई। सामंती प्रभु नोएलेस ने स्वेच्छा से अपने सामंती विशेषाधिकार छोड़ दिए और अन्य प्रभुओं को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। इस बैठक में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुए, जिसने सामंती व्यवस्था के अंत की घोषणा की। इसे 4 अगस्त की सामाजिक क्रांति कहा गया।
- राजा और रानी का विरोध: हालाँकि राजा लुई सोलहवें और रानी मैरी एंटोनेट ने क्रांति का विरोध जारी रखा। उन्होंने क्रांति को कमजोर करने की कोशिश की और राष्ट्रीय ध्वज तक का अपमान किया।
- जनता का वर्साय मार्च: रानी और राजा के रवैये से गुस्साई जनता ने वर्साय तक मार्च किया। क्रांतिकारियों ने राजा और रानी को पकड़कर पेरिस के तुइलरीज पैलेस में नजरबंद कर दिया।
नेशनल असेंबली और 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के प्रमुख चरण
1. मनुष्य और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा (27 अगस्त, 1789): नेशनल असेंबली ने जीन-जैक्स रूसो के विचारों से प्रेरित होकर मानव अधिकारों की घोषणा की। इसने स्वतंत्रता, समानता, सुरक्षा, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकारों के रूप में स्थापित किया। घोषणा ने राजा के दिव्य अधिकार के सिद्धांत को खारिज कर, लोगों की संप्रभुता को मान्यता दी।
2. समानता और सामाजिक सुधार: नेशनल असेंबली ने सामंती विशेषाधिकारों और सामाजिक असमानता को समाप्त किया। सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए गए और कानून के समक्ष समानता को प्राथमिकता दी गई। मनमानी गिरफ्तारी रोकने और निष्पक्ष कानूनी व्यवस्था के लिए उपाय लागू किए गए।
3. निजी संपत्ति का अधिकार: संपत्ति का अधिकार सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार बना। भूमि का पुनर्वितरण करके किसानों को न्यायसंगत हिस्सेदारी दी गई। यह कदम लोकतांत्रिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत थी।
4. 1791 का संविधान
नेशनल असेंबली ने फ्रांस का पहला लिखित संविधान तैयार किया।
- सीमित राजशाही: राजा की शक्तियों को कम कर दिया गया और विधानसभा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।
- सदनीय संसद: दो वर्षों के कार्यकाल के साथ एक सदनीय विधायिका स्थापित की गई।
- कानूनी सुधार: कानून के तहत समानता सुनिश्चित की गई, और राष्ट्रीय स्तर पर एक केंद्रीकृत न्यायपालिका बनाई गई।
5. प्रशासनिक और धार्मिक सुधार: फ्रांस को 83 प्रांतों में विभाजित किया गया, जहाँ शांति बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट और महापौर नियुक्त किए गए। धार्मिक सुधारों के तहत पादरियों की संख्या सीमित की गई और धार्मिक भूमि जब्त कर किसानों के बीच वितरित की गई, जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ।
6. राजा और रानी का भागने का प्रयास (1791): लुई सोलहवें और मैरी एंटोनेट ने ऑस्ट्रिया से मदद लेकर क्रांति से भागने का प्रयास किया। पकड़े जाने के बाद, उन्हें पेरिस में तुइलरीज पैलेस में नजरबंद किया गया। इसके बावजूद, लुई सोलहवें को संविधान के तहत राज्य प्रमुख माना गया।
विधान परिषद (1791-1792)
1791 के संविधान के बाद एक नई विधान परिषद बनाई गई।
- गिरंडिस्ट और जैकोबिन्स: परिषद में दो गुट बने। गिरंडिस्ट मध्यमार्गी थे, जबकि जैकोबिन्स अधिक कट्टरपंथी और गणतंत्र समर्थक थे।
- युद्ध की घोषणा (1792): फ्रांस ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध छेड़ा। राजा और रानी पर ऑस्ट्रिया से मिलीभगत का आरोप लगा, जिससे उनका समर्थन और कमजोर हुआ।
राष्ट्रीय सम्मेलन (1792-1795)
- राष्ट्रीय सम्मेलन ने फ्रांस में राजशाही समाप्त कर गणराज्य की स्थापना की। भूमि का पुनर्वितरण किया गया और आवश्यक वस्तुओं की कीमत स्थिर कर जनता की स्थिति में सुधार लाया गया। सैन्य और शिक्षा क्षेत्रों में सुधार लागू किए गए, जिससे राष्ट्रवाद और सामाजिक समानता को बढ़ावा मिला। यह अवधि फ्रांस में लोकतांत्रिक शासन की नींव का प्रतीक बनी।
आतंक का शासन (1793-1794)
- इस अवधि में जैकोबिन्स के नेतृत्व में व्यापक हिंसा हुई। क्रांतिकारी न्यायालयों ने राजशाही समर्थकों और क्रांति विरोधियों को गिलोटिन पर मौत की सजा दी। लुई सोलहवें और मैरी एंटोनेट को भी फांसी दी गई। रोबेस्पिएरे का कठोर नेतृत्व अंततः उनके साथियों के विरोध का कारण बना, और उनकी हत्या के साथ आतंक का शासन समाप्त हो गया।
डायरेक्टरी और वाणिज्य दूतावास
डायरेक्टरी का शासन (27 अक्टूबर 1795 - 9 नवंबर 1799) फ्रांस में एक विद्वसदनीय विधान परिषद और कार्यकारी परिषद के तहत चला। हालांकि, आंतरिक अव्यवस्था, गुटीय विद्रोह, और प्रशासनिक असफलताओं ने इसे कमजोर कर दिया। इस दौरान, नेपोलियन बोनापार्ट ने बाहरी मोर्चे पर सफलता हासिल की, खासकर इतालवी अभियान में ऑस्ट्रिया को हराकर लोकप्रियता अर्जित की।
डायरेक्टरी के पतन के बाद, 10 नवंबर 1799 को वाणिज्य दूतावास की स्थापना हुई, जिसमें नेपोलियन पहले कौंसिल बने। 18वीं ब्रुमेयर क्रांति के रूप में जानी जाने वाली इस घटना ने केंद्रीकृत शक्ति का मार्ग प्रशस्त किया, जो 1804 में नेपोलियन को सम्राट बनने तक ले गई।
फ्रांस पर फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव
- सिद्धांतों की विजय: स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के सिद्धांत लागू हुए। मानवाधिकारों की घोषणा ने कानून के समक्ष सभी को समानता और न्याय तक सार्वभौमिक पहुँच को सुनिश्चित किया।
- जीवन और धन की हानि: संघर्ष और युद्धों से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हुई। आतंक के शासनकाल में हजारों को मृत्युदंड दिया गया। राजकोषीय नुकसान ने राष्ट्र को कमजोर कर दिया।
- निरंकुश राजशाही का अंत: 1789 की क्रांति ने बर्बोन राजवंश की निरंकुशता को समाप्त कर दिया। राजाओं के दैवीय अधिकार की धारणा खत्म हुई।
- सामंतवाद का अंत: सामंतों के विशेषाधिकार खत्म किए गए। उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई और असमानता समाप्त हुई।
- मध्यम वर्ग का उदय: मध्यम वर्ग ने क्रांति का नेतृत्व किया और राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव बढ़ाया। लोकतांत्रिक आदर्शों को लागू करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही।
- मानवाधिकारों की घोषणा: इसने स्वतंत्रता, समानता, निजी संपत्ति, और मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया। दासता और असमानता को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- धार्मिक सुधार: चर्च की संपत्तियाँ जब्त की गईं, और उनके विशेषाधिकार खत्म कर दिए गए। शिक्षा और धार्मिक संस्थानों को सरकारी नियंत्रण में लाया गया।
- राष्ट्रवाद का उदय: क्रांति ने एकता और राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा दिया। यह भावना बाद में पूरे यूरोप और दुनिया में फैल गई।
- आर्थिक विकास: उच्च वर्ग की भूमि जब्त कर गरीबों में वितरित की गई। कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया गया, जिससे आर्थिक सुधार हुआ।
- संसदीय लोकतंत्र का उदय: नेशनल असेंबली ने संविधान तैयार किया, जिससे संसदीय लोकतंत्र की नींव रखी गई। लोकतांत्रिक संस्थान स्थापित हुए।
- नेपोलियन बोनापार्ट का उदय: नेपोलियन ने क्रांति के परिणामस्वरूप लोकप्रियता हासिल की और 1799 में सत्ता प्राप्त की। उन्होंने फ्रांस को राजनीतिक और सैन्य रूप से मजबूत बनाया।
यूरोप पर फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव
- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत: फ्रांसीसी क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को पूरे यूरोप में फैलाया। इन सिद्धांतों ने निरंकुश राजशाही, सामंतवाद और धार्मिक वर्चस्व को चुनौती दी, और कानून के समक्ष सभी के लिए समानता और न्याय की माँग को बढ़ावा दिया।
- लोकतंत्र का विकास: क्रांति ने सामाजिक-आर्थिक असमानता को समाप्त करने और लोकतांत्रिक शासन की स्थापना में योगदान दिया। इसने दिखाया कि लोग अन्यायपूर्ण शासन को उखाड़ फेंक सकते हैं, और शासकों को जनता का सेवक होना चाहिए। इस विचारधारा ने पूरे यूरोप में लोकतंत्र के विकास को प्रेरित किया।
- सामंतवाद और धार्मिक वर्चस्व का अंत: क्रांति ने सामंती व्यवस्था और पादरियों के विशेषाधिकारों को समाप्त किया। सामंती संपत्तियों को जब्त कर लिया गया और धार्मिक संस्थानों को सरकारी नियंत्रण में लाया गया। यह पुनर्गठन कृषि, व्यापार, और वाणिज्य में प्रगति का कारण बना।
- राष्ट्रवाद का उदय: स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों ने लोगों में एकता और राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया। जर्मनी, इटली और रूस जैसे देशों में एकीकरण और राष्ट्रवादी आंदोलनों को प्रेरणा मिली, जिससे 19वीं शताब्दी में यूरोप राष्ट्रवाद का केंद्र बन गया।
- सुधारों के लिए प्रेरणा: फ्रांस में क्रांतिकारी बदलावों ने अन्य यूरोपीय देशों में सुधारों को प्रेरित किया। उदारवाद और वर्गहीन समाज की दृष्टि ने सामाजिक और राजनीतिक पुनर्गठन को बढ़ावा दिया।
- आधुनिक युग की शुरुआत: फ्रांसीसी क्रांति ने यूरोप को आधुनिक युग की ओर अग्रसर किया। इसने न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए आंदोलनों को प्रेरित किया, जो पूरे महाद्वीप में प्रगतिशील बदलावों का आधार बने।