प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 3 CHAPTER 3 SEMESTER 3 THEORY NOTES धर्म में उथल-पुथल (यूरोप में धार्मिक परिवर्तन) History DU. SOL.DU NEP COURSES

प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में सांस्कृतिक परिवर्तन UNIT 3 CHAPTER 3  SEMESTER 3 THEORY NOTES धर्म में उथल-पुथल (यूरोप में धार्मिक परिवर्तन) History DU. SOL.DU NEP COURSES


परिचय

पुनर्जागरण ने यूरोप में व्यापक परिवर्तन किए, जो इतालवी राज्यों में शुरू होकर पूरे महाद्वीप में फैले। यह प्राचीन यूनानी-रोमन विचारों, कला, और विज्ञान के पुनरुद्धार का युग था, जिसने मानवतावाद, तर्कवाद, और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा दिया। इसने कैथोलिक चर्च की सत्ता को चुनौती दी और धार्मिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। पुनर्जागरण के दौरान सुधार आंदोलन दो चरणों में विकसित हुआ—पहला, प्रोटेस्टेंट क्रांति और राष्ट्रीय चर्चों का गठन; दूसरा, कैथोलिक चर्च के भीतर प्रति-धर्म सुधार।


 धर्म में उथल-पुथल 

1. पोपतंत्र और उसके आलोचक

मध्यकालीन यूरोप में ईसाई धर्म का प्रभुत्व था। रोमन कैथोलिक चर्च ने समाज, राजनीति और धर्म पर गहरा नियंत्रण स्थापित किया। पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था, और चर्च को "सुप्रा-स्टेट" (सर्वोच्च राज्य) का दर्जा प्राप्त था। इस व्यवस्था में पोप, राजा, और प्रजा एक धर्म के अनुयायी थे, लेकिन धीरे-धीरे चर्च के भ्रष्टाचार और अत्याचार ने विरोध को जन्म दिया।

A. पोपतंत्र की ताकत और प्रभाव

  • पोप का आधिपत्य: पोप को मध्यकालीन यूरोप में ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था, और वेटिकन को चर्च का केंद्र। पोप ने न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप किया। चर्च की परंपराओं का आधार सेंट पीटर को माना गया, जिन्हें चर्च का संस्थापक कहा जाता था। कैथोलिक परंपराएँ सात मुख्य संस्कारों (जैसे बपतिस्मा, विवाह, तपस्या, आदि) पर आधारित थीं, जिन्हें आध्यात्मिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।
  • चर्च और राज्य: कैथोलिक चर्च के नियम राज्य के कानूनों के रूप में लागू किए जाते थे, और राजा सीमित शक्तियों के साथ चर्च के अधीन रहते थे। चर्च के आदेश सर्वोपरि माने जाते थे, और उनका पालन अनिवार्य था। असंतोष और विरोध को चर्च "विधर्म" करार देता था, जिसे गंभीर अपराध माना जाता था। विरोधियों को कठोर दंड दिया जाता था, जिसमें उन्हें सार्वजनिक रूप से जलाकर मारने जैसे क्रूर तरीके शामिल थे।
  • धार्मिक एकता: मध्यकालीन यूरोप में ईसाई समुदाय का अधिकांश हिस्सा कैथोलिक था, और कैथोलिक चर्च का व्यापक प्रभाव था। हालाँकि, रूस और बाल्कन क्षेत्रों में रूढ़िवादी चर्च विकसित हुए, जो ग्रेट स्किज्म (1054) के बाद कैथोलिक चर्च से अलग हो गए थे। वहीं, स्पेन और पुर्तगाल में मुस्लिम अल्पसंख्यक रहते थे, जो धार्मिक विविधता का हिस्सा थे।


B. पोपतंत्र की आलोचना

  • भ्रष्टाचार और अनैतिकता: पोप और बिशप धर्म के आध्यात्मिक कर्तव्यों से भटककर धन-संपत्ति और विलासिता में लिप्त हो गए थे। पोप अलेक्जेंडर VI अपने परिवार के हितों और निजी लाभ के लिए कुख्यात थे, जबकि पोप लियो X ने रोम में सेंट पीटर बेसिलिका के पुनर्निर्माण के लिए अनुचित तरीकों से धन संग्रह किया। इन कार्यों ने चर्च के प्रति जनता में असंतोष और आलोचना को जन्म दिया।
  • पाप मोचन पत्र (Indulgences): चर्च ने "पाप मोचन पत्र" (Indulgences) बेचने की प्रथा शुरू की, जिसमें धन के बदले मृत्यु के बाद पापों की सज़ा में कमी का वादा किया जाता था। यह प्रथा लोगों के धार्मिक विश्वासों का फायदा उठाकर आर्थिक शोषण का साधन बन गई, जिससे चर्च के प्रति जनता का असंतोष और बढ़ गया।
  • पादरियों का पतन: पादरियों ने अपने धार्मिक कर्तव्यों की उपेक्षा करते हुए राजनीति और भोग-विलास में अधिक रुचि दिखानी शुरू कर दी। धार्मिक सेवाओं के लिए आम लोगों से भारी धन वसूला जाता था। साथ ही, चर्च में रिश्वतखोरी और मठों का दुरुपयोग आम हो गया, जिससे चर्च की साख को गहरा धक्का लगा।


C. पुनर्जागरण और विरोध का उदय

  • मानवतावाद और नए विचार: पुनर्जागरण काल में प्राचीन ग्रीक और रोमन विचारधारा के प्रति रुचि बढ़ी, जिससे तर्क और ज्ञान पर आधारित सोच का विकास हुआ। मानवतावाद ने चर्च के पारंपरिक विचारों को खारिज कर धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। इसके परिणामस्वरूप समाज में मठवासी जीवन के प्रति आकर्षण कम होने लगा, और लोग धार्मिक स्वतंत्रता की ओर प्रेरित हुए।
  • प्रमुख आलोचक: जॉन विक्लिफ (इंग्लैंड) और जेन हस (बोहेमिया) जैसे सुधारकों ने चर्च की आलोचना की।
  • मार्टिन लूथर ने "पाप मोचन पत्र" की बिक्री के खिलाफ आवाज उठाई और प्रोटेस्टेंट सुधार आंदोलन की नींव रखी।
  • आर्थिक और सामाजिक बदलाव: मध्यवर्ग (बुर्जुआ वर्ग) के उदय और राष्ट्रीय राजशाहियों के विकास ने कैथोलिक चर्च के प्रभुत्व को गंभीर चुनौती दी। साथ ही, चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिक्षित और जागरूक वर्ग को चर्च के खिलाफ खड़ा कर दिया, जिससे धार्मिक और सामाजिक बदलाव की लहर तेज हो गई।


D. प्रोटेस्टेंट क्रांति की ओर अग्रसरता

  • पोप लियो X द्वारा "पाप मोचन पत्र" की बिक्री चर्च के विरोध का अंतिम कारण बनी। 1517 में, मार्टिन लूथर ने अपनी 95 धारणाएँ लिखकर पोप और चर्च की नीतियों का कड़ा विरोध किया। इसका परिणाम प्रोटेस्टेंट सुधार (Reformation) के रूप में हुआ, जिसने यूरोप की धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था को हमेशा के लिए बदल दिया।




2.उत्तरी यूरोप में प्रोटेस्टेंट संप्रदायों का प्रसार

16वीं शताब्दी में मार्टिन लूथर के सुधार आंदोलन ने उत्तरी यूरोप में प्रोटेस्टेंट संप्रदायों के विस्तार की नींव रखी। उनका विरोध कैथोलिक चर्च की भ्रष्ट प्रथाओं के खिलाफ धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन का कारण बना।

A. मार्टिन लूथर और उनका विरोध

  • लूथर का उदय: मार्टिन लूथर ने 1517 में चर्च की "पाप मोचन पत्रों" की बिक्री का विरोध करते हुए विटेनबर्ग चर्च पर 95 धारणाएँ चिपकाईं। उन्होंने सात संस्कारों में से केवल बपतिस्मा, यूचरिस्ट, और विवाह को महत्त्वपूर्ण माना। यह प्रोटेस्टेंट सुधार का आधार बना।
  • पोप और सम्राट का विरोध: पोप ने लूथर को बहिष्कृत किया, लेकिन उन्होंने पापल बुल को जला दिया। वर्म्स की संसद में उन्हें नियम-विरोधी घोषित किया गया। फ्रेडरिक सैक्सोनी के संरक्षण में उन्होंने बाइबिल के नए नियम का जर्मन में अनुवाद किया, जिससे आम लोग धर्मग्रंथ समझने लगे।


B. लूथरन धर्म का विस्तार

  • धार्मिक और सामाजिक अपील: लूथर की शिक्षाओं ने सभी वर्गों को प्रभावित किया। धार्मिक वर्ग को चर्च के हठधर्म से मुक्ति मिली, जबकि राजकुमारों ने चर्च की संपत्तियाँ हथियाकर अपनी स्थिति मजबूत की।
  • लूथरन आंदोलन का प्रभाव: लूथरवाद मध्य और उत्तरी जर्मनी में तेजी से फैला। जर्मन राजकुमार कैथोलिक और लूथरन गुटों में बँट गए। लूथरन राजकुमारों ने श्मालकाल्डेन लीग बनाकर कैथोलिक सम्राट का विरोध किया, जिससे धार्मिक और राजनीतिक तनाव बढ़ा।


C. धार्मिक युद्ध और ऑग्सबर्ग की शांति

  • धार्मिक गृहयुद्ध: 1546-1555 के बीच कैथोलिक और लूथरन गुटों के बीच युद्ध हुआ। ऑग्सबर्ग की शांति ने इसे समाप्त किया।
  • ऑग्सबर्ग की शांति के परिणाम: इस समझौते से राजकुमारों को अपने क्षेत्रों में कैथोलिक या लूथरन धर्म अपनाने की स्वतंत्रता मिली। लूथरनवाद को वैध धर्म मान्यता मिली, लेकिन अन्य प्रोटेस्टेंट संप्रदायों को नहीं।


D. प्रोटेस्टेंटवाद का प्रभाव

  • मार्टिन लूथर के सुधार ने उत्तरी यूरोप की धार्मिक व्यवस्था बदल दी। इसने कैथोलिक चर्च की सत्ता को चुनौती दी और धार्मिक स्वतंत्रता व राज्य-सत्ता के विकास की नींव रखी। इससे यूरोप में धर्म और राजनीति का एक नया युग शुरू हुआ।



3. अन्य देशों में लूथरवाद और प्रोटेस्टेंटवाद का प्रसार

मार्टिन लूथर के सुधार आंदोलन ने न केवल जर्मनी बल्कि पूरे उत्तरी और पश्चिमी यूरोप में व्यापक प्रभाव डाला। लूथरन धर्म के साथ-साथ प्रोटेस्टेंटवाद के अन्य स्वरूपों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई।

A.स्कैंडिनेवियाई देशों में लूथरवाद

  • डेनमार्क: डेनमार्क में लूथरवाद का प्रचार फ्रेडरिक I (1523-1533) के शासनकाल में शुरू हुआ, जब लूथर के शिष्य हंस तौसेन ने इसे फैलाया। इसके बाद, क्रिश्चियन III (1534-1559) ने लूथरन सिद्धांत को राज्य धर्म घोषित किया, जिससे डेनमार्क में प्रोटेस्टेंट सुधार को मजबूती मिली। जोहान बुगेनहेगन, जो मार्टिन लूथर के घनिष्ठ मित्र थे, ने डेनमार्क और नॉर्वे में लूथरन चर्चों को संगठित किया। डेनमार्क के अधीन नॉर्वे में भी लूथरवाद का विस्तार हुआ, हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में कैथोलिक धर्म का प्रभाव लंबे समय तक बना रहा।
  • स्वीडन: गुस्तावस वासा (1496-1560) के नेतृत्व में स्वीडन ने न केवल डेनमार्क से स्वतंत्रता पाई, बल्कि कैथोलिक चर्च से भी अलगाव किया। 1527 में वास्टरस संसद ने रोम के अधिपत्य से अलग होने और लूथरन सिद्धांतों को अपनाने का निर्णय लिया। स्वीडन में पेट्री बंधु, जो लूथर के शिष्य थे, ने लूथरन विचारधारा का प्रचार किया और इसे स्वीडिश समाज में स्थापित किया। यह परिवर्तन स्वीडन की धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बना।


B. प्रोटेस्टेंटवाद के अन्य स्वरूप

  • प्रोटेस्टेंट सुधार की कट्टरपंथी शाखा, एनाबैप्टिस्ट आंदोलन, ने वयस्क बपतिस्मा और धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया। इस आंदोलन का नेतृत्व थॉमस मुंटजर ने किया, जो जर्मनी में किसान युद्ध (1524-1525) के दौरान सामाजिक और धार्मिक सुधारों के पक्षधर थे। हालाँकि, मार्टिन लूथर ने मुंटजर के विचारों और किसान विद्रोह दोनों की कड़ी आलोचना की, क्योंकि ये उनकी धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से मेल नहीं खाते थे। यह आंदोलन राजाओं और मुख्यधारा के प्रोटेस्टेंट नेताओं के विरोध का सामना करता रहा।

1. स्विट्जरलैंड में केल्विनवाद: स्विट्जरलैंड में हल्द्रेइच जिंगली ने प्रोटेस्टेंट सुधार की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने चर्च की पारंपरिक प्रथाओं और सिद्धांतों को चुनौती दी। उनके विचारों ने सुधार आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की। इस आंदोलन को जॉन केल्विन ने सशक्त बनाया, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त कर सका। उनके नेतृत्व में केल्विनवाद एक प्रमुख प्रोटेस्टेंट शाखा बन गया।

2. फ्रांस: केल्विन के अनुयायी ह्यग्नॉट्स कहलाए।

3. स्कॉटलैंड और इंग्लैंड: इसे प्रेस्बिटेरियनिज़्म के नाम से जाना गया।

3.इंग्लैंड में एंग्लिकन चर्च: हेनरी VIII: 1534 में पोप के अधिकार को अस्वीकार कर एंग्लिकन चर्च की स्थापना की। यह पोप द्वारा कैथरीन से तलाक की अनुमति न देने का परिणाम था।

C. प्रोटेस्टेंटवाद का प्रभाव

  • धार्मिक स्वतंत्रता: प्रोटेस्टेंट धर्म ने धार्मिक, राजनीतिक, और सामाजिक स्तर पर स्वतंत्रता के विचार को बढ़ावा दिया।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: चर्च की शक्ति सीमित हुई, और शैक्षिक और धार्मिक सुधारों का प्रसार हुआ।
  • राष्ट्रीय पहचान: कई देशों ने धार्मिक सुधारों को अपनाकर अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ किया।


4.कैथोलिक सुधार और धार्मिक संघर्ष     

  • कैथोलिक सुधार: कैथोलिक सुधार आंदोलन 16वीं सदी में पोप पॉल III के समय में शुरू हुआ। ट्रेंट की परिषद (1545-1565) ने चर्च में सुधार किए, जैसे पाप मोचन पत्रों की बिक्री पर रोक, पुजारियों के प्रशिक्षण के लिए सेमिनारों की स्थापना, और सख्त अनुशासन लागू करना। इन सुधारों का उद्देश्य चर्च की स्वच्छता और आध्यात्मिक मजबूती को बढ़ाना था।
  • जेसुइट्स का गठन: 1534 में इग्नाटियस लोयोला द्वारा जेसुइट्स का गठन हुआ। यह धार्मिक आदेश चर्च की रक्षा और प्रोटेस्टेंट सुधारों के खिलाफ काम करता था। जेसुइट्स ने शिक्षा, धार्मिक प्रचार और मिशनरी कार्यों के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रसार किया।
  • धार्मिक संघर्ष: कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच संघर्षों ने यूरोप में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल मचाई। कुछ देशों ने धार्मिक सहिष्णुता अपनाई, जैसे फ्रांस में हेनरी चतुर्थ ने 1598 में नैनटेस आदेश जारी किया, जो प्रोटेस्टेंटों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता था। पोलैंड में भी सामंजस्य की नीति अपनाई गई, जिससे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा मिला।


5. सुधार का आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव: सुधार ने यूरोप के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में बदलाव किए, और राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा दिया। लूथरवाद ने जर्मनों और स्कैंडिनेवियाई लोगों में एक साझा पहचान बनाई। इंग्लैंड में एग्लिकनवाद और नीदरलैंड व स्कॉटलैंड में कैल्विनवाद ने भी राष्ट्रीय एकता को बढ़ाया। आर्थिक दृष्टि से, सुधार ने सामंतवाद का अंत किया और पूँजीवाद को प्रोत्साहित किया। चर्च की संपत्तियाँ सम्राटों द्वारा जब्त की गईं, जिससे कुलीन वर्ग की संपत्ति बढ़ी और पूँजीवाद को बढ़ावा मिला।
  • कैथोलिक चर्च के धर्मशास्त्र और संरचनाएँ: ईसा मसीह ने बारह शिष्यों को चुना, जिनमें पीटर प्रमुख थे। पीटर को चर्च का पहला पोप माना जाता है। रोमन कैथोलिक चर्च ने पीटर से अपनी विरासत का दावा किया। शुरू में यह गुप्त पंथ था, लेकिन बाद में यह रोमन साम्राज्य और अन्य क्षेत्रों में फैल गया। 313 ईस्वी में सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने ईसाई धर्म को कानूनी मान्यता दी, और 380 ईस्वी में इसे आधिकारिक धर्म बनाया। चर्च की संरचना को 325 ईस्वी में निसाई परिषद ने औपचारिक रूप दिया। 1054 में ग्रेट ईस्ट-वेस्ट विभाजन हुआ, जिससे चर्च की दो शाखाएं अलग हो गईं।
  • सुधार, चर्च और लोकप्रिय संस्कृति: सुधार के बाद, यूरोप में सांस्कृतिक प्रथाओं में बदलाव आया। अभिजात वर्ग ने धार्मिक प्रथाओं को नियंत्रित किया और त्योहारों की भूमिका कम की। युद्ध, आर्थिक संकट और महामारियों ने पारंपरिक समुदायों को प्रभावित किया। प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक के बीच संघर्षों ने धार्मिक अनुष्ठानों को नियंत्रित किया और सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगाया गया। राज्य ने नए अनुशासन और अधिकारों के माध्यम से समाज में हस्तक्षेप किया, जिससे सार्वजनिक व्यवहार में एकरूपता आई।








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