परिचय
17वीं सदी में भारत और यूरोप के व्यापार में भारत का पलड़ा भारी था। भारतीय कपास वस्त्र पश्चिमी देशों में प्रमुख आयात बन गए, जिससे वस्त्र उद्योग को बढ़ावा और रोजगार मिला। प्लासी की लड़ाई (1757) के बाद स्थिति बदल गई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय संसाधनों का शोषण शुरू किया। कंपनी ने स्थानीय बाजारों पर एकाधिकार स्थापित कर उत्पादकों को कम कीमत पर सामान बेचने को मजबूर किया। ब्रिटिश नीतियों और सस्ते आयातित वस्त्रों ने भारतीय शिल्प उद्योग को नुकसान पहुँचाया। भूमि राजस्व और आर्थिक नीतियों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया, जिससे गरीबी और असमानता बढ़ी। इन नीतियों ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना पर गहरा असर डाला।
भारत में ब्रिटिश औद्योगिकीकरण और उसका प्रभाव
ब्रिटिशों ने भारत में औद्योगिकीकरण को व्यवस्थित रूप से लागू किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- स्थानीय उद्योगों का विनाश: ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय उद्योगों को कमजोर किया, खासकर वस्त्र उद्योग। सब्सिडी वाले ब्रिटिश आयातों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को प्रतिस्पर्धा में हरा दिया।
- भारी टैक्स और शुल्क: भारतीय निर्मित वस्तुओं पर भारी कर लगाए गए, जबकि ब्रिटिश उत्पादों को बिना शुल्क के भारत में प्रवेश दिया गया, जिससे भारतीय उद्योगों को नुकसान हुआ।
- कच्चे माल का निष्कर्षण: भारत से कपास, नील, और चाय जैसी नकदी फसलों का निर्यात ब्रिटिश उद्योगों के लिए बढ़ावा दिया गया, जबकि स्थानीय उद्योगों को हतोत्साहित किया गया।
- अवसंरचना विकास: रेलवे और बंदरगाह जैसे अवसंरचना का विकास केवल कच्चे माल के निर्यात और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के लिए किया गया, न कि भारतीय उद्योगों के विकास के लिए।
- आर्थिक नीतियाँ और विनियम: ब्रिटिश नीतियाँ भारतीय उद्यमियों को प्रतिबंधित करती थीं और स्थानीय उद्योगों में निवेश को हतोत्साहित करती थीं, जिससे भारतीय उद्योग कमजोर हुए।
- बाजार नियंत्रण: भारतीय बाजार को ब्रिटिश उत्पादों के लिए अनुकूल बनाया गया, जिससे उपभोक्ताओं को ब्रिटिश वस्तुएँ खरीदने के लिए मजबूर किया गया और स्थानीय उद्योगों को और नुकसान हुआ।
भारत में औद्योगिकीकरण पर विमर्श
भारत में औद्योगिकीकरण पर विमर्श विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करता है और औपनिवेशिक नीतियों के आर्थिक प्रभावों पर गहराई से विचार करता है।
- मॉरिस डी. मॉरिस का दृष्टिकोण: मॉरिस डी. मॉरिस ने तर्क दिया कि ब्रिटिश नीतियाँ भारत में औद्योगिकीकरण का कारण बनीं। हालांकि, उन्होंने भारतीय उद्योगों के व्यवस्थित विघटन और ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के नकारात्मक प्रभाव को भी उजागर किया।
- दादाभाई नौरोजी और आर.सी. दत्त:
1.दादाभाई नौरोजी: अपनी पुस्तक "Poverty and Un-British Rule in India" में उन्होंने ब्रिटिश नीतियों को भारत की गरीबी का मुख्य कारण बताया।
2. आर.सी. दत्त: उनकी "The Economic History of India" ने ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय आर्थिक संरचनाओं पर नकारात्मक प्रभाव को विस्तार से रेखांकित किया।
- आधुनिक दृष्टिकोण: