परिचय
अंतरराष्ट्रीय संबंधों (आई.आर.) में पश्चिमी दृष्टिकोण का लंबे समय से प्रभुत्व रहा है, जो मुख्यतः पश्चिमी अनुभवों और हितों पर आधारित है। गैर-पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत (आई.आर.टी.) की अनुपस्थिति इस प्रभुत्व को और स्पष्ट करती है। यह पाठ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैचारिक कारकों का विश्लेषण करता है, जो पश्चिमी प्रभुत्व को बनाए रखते हैं और गैर-पश्चिमी दृष्टिकोणों को हाशिए पर रखते हैं। एशिया जैसे क्षेत्रों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यह समावेशी और विविध अंतरराष्ट्रीय संबंध विद्वता की आवश्यकता पर जोर देता है, जो वैश्विक राजनीति की जटिलताओं और विविधताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित कर सके।
गैर-पश्चिमी परिप्रेक्ष्य को समझना
40 वर्षों पहले वाइट ने यह सवाल उठाया था, "कोई अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत क्यों नहीं है?" इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए, यह सवाल उठता है कि कोई गैर-पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत (IRT) क्यों नहीं है?
- पश्चिमी प्रभुत्व: अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत (IRT) मुख्यतः पश्चिम द्वारा निर्मित है, जहाँ पश्चिमी इतिहास को विश्व इतिहास के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता के बाद, गैर-पश्चिमी राज्यों ने स्वतंत्रता और शक्ति तो प्राप्त की, लेकिन IRT में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है।
- गैर-पश्चिमी IRT की कमी: वाइट का मानना था कि गैर-पश्चिमी राज्यों का आंतरिक स्थिरता पर ध्यान IRT के विकास में बाधा बनता है। जहाँ पश्चिम ने शांति और संस्थागत स्थिरता पर जोर दिया, वहीं गैर-पश्चिम संघर्षों से प्रभावित रहा।
- एशिया पर ध्यान: एशिया शक्ति और धन का प्रमुख गैर-पश्चिमी केंद्र है, जो IRT में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। चीन, जापान, भारत और आसियान जैसे देशों की विशिष्ट विशेषताएँ पारंपरिक IRT को चुनौती देती हैं।
- गैर-पश्चिमी IRT का महत्त्व: गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण स्थानीय इतिहास, संस्कृतियों और संघर्षों की अनूठी समझ प्रदान करता है। यह पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को अधिक समावेशी, समृद्ध और विविध बनाता है।
गैर-पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय संबंध का इतिहास
गैर-पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय संबंध (आई.आर.) पर चर्चा 1990 के दशक में शुरू हुई, लेकिन इसे 2000 के दशक, खासकर 2007 के बाद गति मिली। अमिताव आचार्य इस क्षेत्र के प्रमुख विद्वान हैं, जिन्होंने मौजूदा अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांतों में गैर-पश्चिमी दुनिया की उपेक्षा को उजागर किया।
- पश्चिमी प्रभुत्व की आलोचना: आचार्य और बुजान ने तर्क दिया कि आई.आर. सिद्धांत मुख्यतः पश्चिम के लिए और उसके द्वारा बनाया गया है, जो गैर-पश्चिमी वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है। पश्चिमी इतिहास को विश्व इतिहास के रूप में प्रस्तुत करना अतिसामान्यीकरण और गलत बयानी का कारण बनता है।
- गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण की कमी: भाषा, सांस्कृतिक बाधाएँ और स्थानीय कारक गैर-पश्चिमी सिद्धांतों को हाशिए पर रखते हैं। पश्चिमी प्रभुत्व, आई.आर. सिद्धांत में गैर-पश्चिमी दृष्टिकोणों को शामिल होने से रोकता है।
- आचार्य का योगदान: आचार्य ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में क्षेत्रीय अध्ययन और गैर-पश्चिमी अनुभवों को शामिल करने की वकालत की। उनके नेतृत्व में आई.एस.ए. ने समावेशी और वैश्विक आई.आर. के विकास के लिए प्रयास किए।
- अन्य विद्वानों का योगदान: अर्लीन टिकनर और ओले वेवर ने भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शामिल करने की वकालत की। जॉन हॉब्सन ने पश्चिमी सभ्यता पर पूर्वी प्रभावों को स्वीकार करने और यूरोसेंट्रिज्म की आलोचना पर जोर दिया।
गैर-पश्चिमी 'आई.आर.टी.' के मुख्य विचार
गैर-पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत (आई.आर.टी.) पश्चिमी ढाँचे की सीमाओं को उजागर करते हुए स्थानीय संदर्भों, इतिहास और प्राथमिकताओं को केंद्र में रखते हैं।
1. स्थानीयता और वैकल्पिक दृष्टिकोण:
गैर-पश्चिमी आई.आर.टी. स्थानीय अनुभवों और इतिहास पर आधारित होते हैं, जो उपनिवेशवाद-विरोध, नस्लवाद-विरोध, विकास और क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। यह "उप-प्रणालीगत" और "घरेलू" दृष्टिकोण के माध्यम से क्षेत्रीय विशेषताओं को उजागर करता है।
2.वैश्विक अंतरराष्ट्रीय संबंध (ग्लोबल आई.आर.):
पश्चिम और गैर-पश्चिम के बीच विभाजन को खत्म करने और विविध दृष्टिकोणों को समायोजित करने का प्रयास करता है।
अमिताव आचार्य ने वैश्विक आई.आर. के छह आयामों को रेखांकित किया:
- बहुलवादी सार्वभौमिकता: वैश्विक विविधता को सम्मान देना।
- विश्व इतिहास परिप्रेक्ष्य: ग्रीको-रोमन और यूरोपीय इतिहास से परे वैश्विक इतिहास को शामिल करना।
- सिद्धांतों का समावेश: मौजूदा सिद्धांतों को सुधारना, प्रतिस्थापित नहीं करना।
- क्षेत्रीय अध्ययन: क्षेत्रीय गतिशीलता और क्षेत्रवाद पर ध्यान देना।
- असाधारणवाद अस्वीकार करना: श्रेष्ठता के दावों से बचना।
- एजेंसी की विविधता: भौतिक शक्ति के अलावा अन्य प्रकार की प्रभावशीलता को पहचानना।
3.पश्चिमी प्रभुत्व की आलोचना:
पश्चिमी आई.आर.टी. को यूरोसेंट्रिज्म और अतिसामान्यीकरण का दोषी मानते हुए, गैर-पश्चिमी अनुभवों को हाशिए पर रखने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। वैश्विक इतिहास और पूर्वी सभ्यताओं के योगदान को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
4.साझा भाग्य और परस्पर निर्भरता:
गैर-पश्चिमी आई.आर.टी. वैश्वीकृत दुनिया में परस्पर निर्भरता की महत्ता को रेखांकित करता है और मानवीय दृष्टिकोणों व सभ्यतागत विविधता को समायोजित करने पर जोर देता है।
पश्चिम के प्रभुत्व की व्याख्या
अंतरराष्ट्रीय संबंधों (आई.आर.) में पश्चिम का प्रभुत्व ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और भू-राजनीतिक कारकों से उपजा है। पश्चिमी आई.आर.टी. आधुनिक यूरोपीय इतिहास और पश्चिमी वैश्विक शक्ति के आरोहण से प्रभावित है। हालांकि, गैर-पश्चिमी विद्वानों को पश्चिमी सिद्धांतों के प्रभुत्व वाले बौद्धिक परिदृश्य में चुनौती का सामना करना पड़ता है।
पश्चिमी आई.आर.टी. को अक्सर वैश्विक मानकों का प्रतिनिधि माना गया, लेकिन यह मुख्य रूप से पश्चिमी अनुभवों और संदर्भों में निहित है। इसके परिणामस्वरूप अन्य दृष्टिकोणों और विविधताओं की अनदेखी होती है।
1. पश्चिमी सिद्धांत का सार्वभौमिकता का दावा
पश्चिमी आई.आर.टी. को सार्वभौमिक सिद्धांत माना जाता है, लेकिन यह पश्चिमी इतिहास और संस्कृति में गहराई से निहित है। पहचान, सम्मान, और परंपरा जैसे मुद्दों की अनदेखी इसकी सीमाओं को दर्शाती है।
2. ग्रैम्सियन आधिपत्य
पश्चिमी प्रभुत्व को अक्सर ऐतिहासिक शक्ति गतिशीलता का परिणाम माना जाता है, न कि सिद्धांत की अंतर्निहित सटीकता का। उपनिवेशवाद के प्रभाव और पश्चिमी मानदंडों को अपनाने ने गैर-पश्चिमी दृष्टिकोणों को दबा दिया।
3. गैर-पश्चिमी सिद्धांतों की दृश्यता की कमी
गैर-पश्चिमी आई.आर.टी. के विचार मौजूद हो सकते हैं, लेकिन भाषा और संस्थागत बाधाओं के कारण वे मुख्यधारा में जगह नहीं बना पाते। अंग्रेजी के प्रभुत्व और पश्चिम-केंद्रित पत्रिकाओं की सीमाएँ गैर-पश्चिमी योगदानों को हाशिए पर रखती हैं।
4. स्थानीय परिस्थितियाँ और अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत
अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत (आई.आर.टी.) का निर्माण पश्चिमी शैक्षणिक क्षेत्र के बाहर विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, और संस्थागत कारकों से प्रभावित होता है।
ऐतिहासिक आघात और सांस्कृतिक बारीकियाँ:
पश्चिम में आई.आर.टी. का उदय प्रथम विश्व युद्ध के बाद की शांति और युद्ध की समझ विकसित करने के प्रयास से हुआ। इसी तरह, एशिया जैसे गैर-पश्चिमी समाजों ने भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गहरे संकट झेले, जो सिद्धांत निर्माण की प्रेरणा बन सकते थे।
सांस्कृतिक रूप से, पश्चिम अमूर्त सिद्धांतों को महत्व देता है, जबकि गैर-पश्चिमी समाज अनुभवजन्य दृष्टिकोण और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांतों के भूगोल और प्राथमिकताओं को प्रभावित करता है।
राजनीतिक गतिशीलता और संस्थागत ढाँचे:
लोकतंत्र, अकादमिक स्वतंत्रता के साथ, सैद्धांतिक शोध को प्रोत्साहित करता है, जबकि सत्तावादी शासन विचारों पर नियंत्रण रख सकता है।
संस्थानात्मक कारक जैसे शोध संसाधन, शिक्षकों पर कार्यभार, और कैरियर संरचना भी आई.आर.टी. के विकास को प्रभावित करते हैं। पश्चिम में, शोध को करियर में उन्नति का आधार माना जाता है, जबकि अन्य स्थानों पर शिक्षण और प्रशासनिक कार्य सैद्धांतिक प्रयासों को सीमित कर सकते हैं।