आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन UNIT 6 CHAPTER 6 SEMESTER 5 THEORY NOTES हिंदुत्व और हिंदुत्ववाद : सावरकर POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES

  

आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन  UNIT 6 CHAPTER 6 SEMESTER 5 THEORY NOTES हिंदुत्व और हिंदुत्ववाद : सावरकर POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES


 विनायक दामोदर सावरकर (1883-1966) 

  • प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के पास भागुर गाँव में हुआ। उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन से ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए और 1903 में मित्र मेला की स्थापना की, जो बाद में अभिनव भारत सोसायटी बन गई।

  • विदेश में क्रांतिकारी गतिविधियाँ: सावरकर ने लंदन में कानून की पढ़ाई के दौरान इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसाइटी से जुड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। उनकी पुस्तक "द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस" पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया।

  • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

1. लेखन और विचार: 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर उनकी पुस्तक "द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस" ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई। उन्होंने क्रांति के माध्यम से पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की।

2. कारावास और संघर्ष: 1910 में उन्हें नासिक कलेक्टर जैक्सन की हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया। 50 साल की सजा के तहत उन्हें अंडमान-निकोबार की सेलुलर जेल में भेजा गया। कैद के दौरान भी उन्होंने अपने अधिकारों और स्वाधीनता के लिए संघर्ष जारी रखा।

3. रिहाई: 1924 में उन्हें रिहा किया गया, लेकिन उनकी गतिविधियाँ रत्नागिरी तक सीमित रहीं। 1937 में उनकी बिना शर्त रिहाई के बाद वे राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मुखर हो गए।

4. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद: सावरकर हिंदुत्व विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म को राष्ट्रीय एकता का आधार बताया। उनके विचार "हिंदू राष्ट्र" के सिद्धांत को बल देते हैं, जिसमें उन्होंने हिंदू पहचान और राष्ट्रीय गौरव पर जोर दिया।

  • पत्रकारिता और सामाजिक योगदान: रत्नागिरी में अपने कारावास के दौरान सावरकर ने पत्रकारिता में हाथ आजमाया और जनता के सामने अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने सामाजिक सुधारों पर भी जोर दिया और राष्ट्र के इतिहास और संस्कृति पर चर्चा की।

  • मृत्यु: 26 फरवरी 1966 को, 83 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। वीर सावरकर का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है।

  • सावरकर की प्रमुख रचनाएँ-

1. द इंडियन वार ऑन इंडिपेंडेंस (1909)

2. हिन्दू राष्ट्र दर्शन

3. हिंदुत्व (1922)

4. इनसाइड द एनेमी कैम्प


 हिंदुत्व और हिंदुत्ववाद की संकल्पना 

  • हिंदुत्व की परिभाषा: वीर सावरकर ने हिंदुत्व को धार्मिक संकीर्णता तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे सामाजिक, सांस्कृतिक, और राष्ट्रीय एकता के आधार पर परिभाषित किया। उनके अनुसार, "हिंदू वह व्यक्ति है, जो सिंधु से हिंद महासागर तक की भूमि को अपनी पितृभूमि और पवित्रभूमि मानता है।" (सावरकर, एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व)।
  • हिंदुत्व और हिंदू धर्म का अंतर: सावरकर के विचार में हिंदू धर्म एक धार्मिक परंपरा है, जबकि हिंदुत्व एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान है। उन्होंने इसे भारतीय समाज की आत्मा और एकता का प्रतीक बताया। उनके अनुसार, हिंदुत्व भारतीय समाज की सांस्कृतिक समरसता और राष्ट्रीय अखंडता का प्रतिनिधित्व करता है।
  • हिंदुत्व के उद्देश्य:

1. राष्ट्रीय एकता: सावरकर ने हिंदू समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।

2. अस्पृश्यता का उन्मूलन: उन्होंने जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने की वकालत की और हिंदू समाज को संगठित और सशक्त बनाने पर जोर दिया।

3. सांस्कृतिक गौरव: सावरकर ने भारतीय सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

  • हिंदुत्व का राष्ट्रीय दृष्टिकोण: सावरकर ने हिंदुत्व को भारत की भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक एकता का आधार माना। उन्होंने नागरी लिपि को राष्ट्रीय लिपि और राष्ट्रभाषा को राष्ट्रीय एकता का माध्यम बनाने का समर्थन किया। उनके अनुसार, "हिंदू महासभा" भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को सुरक्षित रखने का माध्यम है।
  • आर्थिक और प्रौद्योगिकीय दृष्टिकोण: सावरकर ने राष्ट्रवादी अर्थव्यवस्था और मशीनीकरण का समर्थन किया। उनके अनुसार, प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास राष्ट्र की समृद्धि और उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
  • हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना: सावरकर का आदर्श हिंदू राष्ट्र एक ऐसा राष्ट्र था, जहाँ एकता, समानता और सामाजिक समरसता हो। उनकी दृष्टि में, एक राष्ट्र, एक धर्म, और एक भाषा का मॉडल भारत को एक सशक्त और संगठित राष्ट्र बना सकता है।
  • आलोचनाएँ और समर्थन: सावरकर के हिंदुत्व विचारों की आलोचना उनकी सोच में समावेशिता की कमी और बहुसंख्यकवाद की ओर झुकाव के लिए होती है। हालांकि, उनके समर्थकों का मानना है कि उनकी परिकल्पना राष्ट्रीय अखंडता और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने में सहायक है।
  • विरासत और प्रभाव: सावरकर के हिंदुत्व ने भारतीय राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित किया। उनकी सोच ने हिंदुत्ववाद की नींव रखी, जो आज भी भारतीय राजनीतिक विमर्श का एक प्रमुख विषय है।

सावरकर के राजनीतिक विचार 

वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और विचारक थे। उनके राजनीतिक विचारों का उद्देश्य भारतीय समाज की सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना था।

  • हिंदुत्व का दर्शन: सावरकर ने हिंदुत्व को भारतीय राष्ट्र की आत्मा के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, हिंदुत्व भारतीय संस्कृति, भाषा, और धर्म के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने का माध्यम है।
  • स्वतंत्रता का आह्वान: सावरकर का मानना था कि भारतीय समाज को स्वाधीनता के लिए अपनी आत्मशक्ति और संघर्ष क्षमता को जागृत करना होगा।
  • राष्ट्रीय एकता: उन्होंने सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को राष्ट्रीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनाया।


 सावरकर के सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्रवाद पर विचार 

  • जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष: सावरकर ने जातिवाद को समाज की प्रगति में बाधा माना। उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और एक हिंदू राष्ट्र के निर्माण के पक्षधर थे, जिसमें जाति के आधार पर विभाजन न हो।
  • सामाजिक बंधनों का विरोध: उन्होंने समाज में मौजूद धार्मिक और सामाजिक बंधनों का विरोध किया। सावरकर ने स्वतंत्रता, समानता, और स्वाधीनता को प्राथमिकता देने के लिए लोगों को प्रेरित किया।
  • शिक्षा में समानता और प्रसार: सावरकर ने शिक्षा को समाज के सभी वर्गों के लिए सुलभ बनाने का समर्थन किया। उन्होंने सभी जातियों और समुदायों के बच्चों को एक साथ पढ़ाने और शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
  • हिंदुत्व का दर्शन: सावरकर का "हिंदुत्व" भारतीय राष्ट्रीयता और सामाजिक समरसता का आधार था। उन्होंने हिंदू धर्म की एकता और महत्व पर जोर देते हुए "एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व" पुस्तक में इसके मूल तत्वों की व्याख्या की।
  • राष्ट्रवाद और स्वराज्य: सावरकर के राष्ट्रवाद में स्वराज्य (स्वशासन) और स्वधर्म (धार्मिक कर्तव्य) केंद्रीय थे। उन्होंने स्वराज्य को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि हिंदू धर्म, संस्कृति, और पहचान की रक्षा के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, स्वधर्म और स्वराज्य एक दूसरे के पूरक थे।
  • सैन्यीकरण और शक्ति पर जोर: सावरकर ने सैन्य प्रशिक्षण और जनता के सशक्तिकरण का समर्थन किया। उन्होंने गाँधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों की आलोचना की और शौर्य व शक्ति के आधार पर समाज को संगठित करने का विचार दिया।



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