आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन UNIT 2 CHAPTER 2 SEMESTER 5 THEORY NOTES राष्ट्र और राष्ट्रवाद स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और गाँधी POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakदिसंबर 18, 2024
प्रस्तावना
19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय राष्ट्रवाद का विकास हुआ। स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, और महात्मा गाँधी ने इसके मजबूत आधार रखे। टैगोर ने साहित्य और संस्कृति के माध्यम से भारतीयता का महत्व बताया, जबकि विवेकानंद ने पश्चिमी शिक्षा और भारतीय आध्यात्मिकता के पूरक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। गाँधी ने अहिंसा, स्वदेशी, और स्वावलंबन पर आधारित राष्ट्रवाद का मार्ग प्रशस्त किया। इन विचारकों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी।
स्वामी विवेकानंद (1863-1902)
जीवन परिचय: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ। बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। गरीबी और संघर्षपूर्ण जीवन के बावजूद वे रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य बने। 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन का गौरव बढ़ाया। 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हुआ।
राष्ट्रवाद और चिंतन: स्वामी विवेकानंद ने भारतीय राष्ट्रवाद को धर्म और संस्कृति पर आधारित किया। उनका मानना था कि भारतीय समाज की एकता का आधार उसकी सांस्कृतिक विरासत है। उन्होंने धर्म को भारतीय राष्ट्रवाद का केंद्र माना और इसे मानवतावाद और सार्वभौमिकता से जोड़ा।
सामाजिक सुधार: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और गरीबों के उत्थान पर बल दिया। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और समाज में समानता लाने के लिए शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता बताई।
राष्ट्रीय एकता: उनके अनुसार, भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि भारत में धर्म ही सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का आधार है। उनका राष्ट्रवाद भौतिकवादी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक था।
महिला सशक्तिकरण:उन्होंने महिलाओं के सम्मान और समानता को देश की उन्नति का आधार बताया। उनका कहना था कि महानता वही देश हासिल कर सकता है, जहाँ महिलाओं को सम्मान दिया जाता है।
रवींद्रनाथ टैगोर (1861-1941)
रवींद्रनाथ टैगोर का साहित्य और दर्शन भारतीय समाज, राजनीति, और आध्यात्मिकता को गहराई से प्रभावित करता है। उन्होंने पारंपरिक राष्ट्रवाद की आलोचना करते हुए विश्ववाद और मानवतावाद को महत्व दिया।
1.रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 9 मई 1861 को कोलकाता, बंगाल में हुआ। उनके पिता, देवेंद्रनाथ टैगोर, ब्रह्म समाज के नेता थे। टैगोर ने घर पर शिक्षा प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड में अध्ययन किया। वे कवि, लेखक, संगीतकार और शिक्षाविद् थे। 1901 में उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो शिक्षा और संस्कृति का अद्वितीय केंद्र बना।
1913 में "गीतांजलि" के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले टैगोर भारतीय साहित्य को वैश्विक मंच पर ले गए। उनके द्वारा लिखा गया "जन गण मन" भारत का राष्ट्रगान बना। उनका निधन 7 अगस्त 1941 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणा देती हैं।
2. टैगोर की राष्ट्रवाद की अवधारणा
टैगोर के राष्ट्रवाद की अवधारणा विशिष्ट और व्यापक थी। उन्होंने राष्ट्रवाद को सीमित राजनीतिक या भौगोलिक विचारधारा के बजाय मानवता, सहयोग, और सह-अस्तित्व के रूप में देखा।
राष्ट्रवाद का विश्लेषण:टैगोर ने राष्ट्रवाद को एक सामाजिक संरचना माना, जहाँ सभी लोग समान अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करते हैं। उन्होंने इसे मानवता की सह-अस्तित्व भावना से जोड़ा। उनकी पुस्तक "नेशनलिज्म" (1917) में उन्होंने इस विचारधारा की सीमाओं और संभावनाओं का विश्लेषण किया।
विश्ववादिता और मानवतावाद: टैगोर का राष्ट्रवाद मानवतावाद और विश्व शांति की दिशा में उन्मुख था। उन्होंने सीमाओं और जातीय भेदभाव से ऊपर उठकर विश्व एकता का संदेश दिया।
यूरोपीय राष्ट्रवाद की आलोचना:टैगोर ने पश्चिमी राष्ट्रवाद की आलोचना करते हुए इसे बाहरी और भारतीय परंपराओं के खिलाफ बताया। उन्होंने इसे आत्म-केंद्रित और मानवीय मूल्यों के विपरीत माना।
राष्ट्रवाद से विमुखता:टैगोर का राष्ट्रवाद से मोहभंग तब हुआ जब उन्होंने इसके हिंसक और मानव विरोधी रूप देखे। उन्होंने शांति, अहिंसा, और सह-अस्तित्व पर आधारित विचारों को अधिक महत्व दिया।
टैगोर का योगदान और विरासत
1. साहित्य: "गीतांजलि," "गोरा," और अन्य कृतियों ने भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
2. शिक्षा: शांतिनिकेतन ने शिक्षा को व्यावहारिक और नैतिक दृष्टिकोण से जोड़ा।
3. समाज सुधार: टैगोर ने महिला सशक्तिकरण, समानता, और विश्वशांति के लिए कार्य किया।
महात्मा गाँधी (1869-1948)
महात्मा गाँधी के राष्ट्रवादी विचार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और विश्व राजनीति में उनके अमूल्य योगदान को दर्शाते हैं। उनका राष्ट्रवाद अहिंसा, सत्याग्रह, और सार्वभौमिक भ्रातृत्व के सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को एक सामाजिक और आर्थिक उत्थान के साथ जोड़ा और इसे मानवता के व्यापक हित से जोड़ा।
1. जीवन परिचय
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ। उनके परिवार ने धार्मिक और नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दी, जिसने उनकी विचारधारा को आकार दिया। 1888 में वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए और 1891 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने रंगभेद और अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया।
1915 में भारत लौटने के बाद गाँधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया और असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे प्रमुख आंदोलनों का नेतृत्व किया। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी। उनका जीवन और विचारधारा आज भी दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत हैं।
2. गाँधी जी का राष्ट्रवाद
आध्यात्मिक राष्ट्रवाद: महात्मा गाँधी ने राष्ट्रवाद को भौतिक आकांक्षाओं पर आधारित न मानते हुए इसे नैतिकता और आध्यात्मिकता के साथ जोड़ा। उनके अनुसार, एक सशक्त राष्ट्र नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
वसुधैव कुटुंबकम का विचार: गाँधी जी का राष्ट्रवाद 'वसुधैव कुटुंबकम' की भावना पर आधारित था। उनका मानना था कि सच्चा राष्ट्रवाद अंतरराष्ट्रीयता और विश्व भ्रातृत्व के विरोध में नहीं, बल्कि उसका सहायक है। उन्होंने कहा, "मैं भारत का उत्थान दूसरे राष्ट्रों के विनाश पर नहीं चाहता।"
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: गाँधी ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अहिंसा पर आधारित विश्व संगठन की कल्पना की। उनका दृष्टिकोण राष्ट्रवाद को सीमित नहीं करता था, बल्कि इसे विश्व शांति और मानवता के व्यापक हित से जोड़ता था।
संकीर्ण राष्ट्रवाद का विरोध: गाँधी ने संकीर्ण और उग्र राष्ट्रवाद का विरोध किया। उन्होंने राष्ट्रवाद को एक व्यापक दृष्टिकोण दिया, जिसमें समाज की प्रगति और मानवता की सेवा को प्रमुखता दी गई।
3. गाँधी जी का राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीयता में सामंजस्य
गाँधी का राष्ट्रवाद केवल भारत के स्वतंत्रता संघर्ष तक सीमित नहीं था। उन्होंने इसे अंतरराष्ट्रीय शांति, सहयोग, और मानवता के व्यापक कल्याण से जोड़ा। उनका आदर्श था कि राष्ट्रों को आत्मनिर्भर होते हुए भी विश्व के साथ सामंजस्य में रहना चाहिए।
4. गाँधी जी की दृष्टि
महात्मा गाँधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मानवता के व्यापक हितों से जोड़ा। उनका उद्देश्य स्वतंत्रता के साथ एक नैतिक और समरस समाज की स्थापना करना था। उनका राष्ट्रवाद मानवता के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता और सार्वभौमिक प्रेम का प्रतीक था।