लोकतंत्र का सिद्धांत और व्यवहार UNIT 2 CHAPTER 2 SEMESTER 3 THEORY NOTES सिद्धांत : उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र, सहभागी लोकतंत्र और विमर्शी लोकतंत्र Political DU. SOL.DU NEP COURSES



लोकतंत्र का सिधांत और व्यवहार UNIT 2 CHAPTER 2 SEMESTER 3 THEORY NOTES सिद्धांत : उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र, सहभागी लोकतंत्र और विमर्शी लोकतंत्र Political DU. SOL.DU NEP COURSES



उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र 

उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा स्वरूप है, जिसमें नागरिक अपने अधिकारों और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखते हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन का संचालन करते हैं। यह प्रणाली उदारवाद और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर आधारित है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता, और लोकप्रिय भागीदारी को प्राथमिकता देती है। इसमें नागरिकों के अधिकारों की रक्षा संविधानों, वैधानिक कानूनों, और नागरिक संस्थानों के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है।

इस लोकतंत्र में सहिष्णुता, बहुलवाद और स्वतंत्र चुनाव महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं, जो विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को समान रूप से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर प्रदान करती हैं। इसका विकास प्रबुद्धता युग में हुआ, जब स्वतंत्रता और अधिकारों के महत्व को स्थापित किया गया। वर्तमान समय में, उदार लोकतंत्र को विभिन्न राजनीतिक विचारधाराएँ अपनाती हैं, जैसे कि सामाजिक लोकतंत्र, रूढ़िवाद, और समाजवाद।

यह प्रणाली संवैधानिक गणतंत्र या संवैधानिक राजतंत्र के रूप में कार्य कर सकती है और समानता व सार्वभौमिक मताधिकार को बढ़ावा देती है। उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था है, जो नागरिकों की स्वतंत्रता, अधिकार, और लोकतांत्रिक भागीदारी के बीच संतुलन स्थापित करती है।

1. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र: उत्पत्ति और विकास

  • उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र की शुरुआत प्राचीन ग्रीस में लोकतंत्र की अवधारणा से हुई। यह 17वीं और 18वीं सदी के प्रबुद्ध युग में विकसित हुआ, जहाँ जॉन लॉक और जीन जैक्स रूसो जैसे दार्शनिकों ने व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत प्रस्तुत किए।
  • 18वीं सदी के अंत में अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों ने इसे लागू किया, जहाँ अमेरिका ने संघीय प्रणाली अपनाई और फ्रांस ने अधिकारों की घोषणा से स्वतंत्रता और लोकप्रिय संप्रभुता को स्थापित किया।
  • आज, उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र व्यापक रूप से स्वीकृत शासन प्रणाली है, जो विभिन्न देशों में उनके सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भों के अनुसार ढलती रहती है।


2. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र की विशेषताएँ

  • संविधानवाद: लिखित संविधान सरकार की संरचना, शक्तियों और नागरिकों के अधिकारों को परिभाषित करता है।
  • शक्तियों का पृथक्करण: सरकार की तीन शाखाएँ—कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका—संतुलन बनाए रखने के लिए अलग-अलग होती हैं।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: नागरिक स्वतंत्र चुनावों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चयन करते हैं।
  • व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: भाषण, धर्म, और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे अधिकार संविधान में संरक्षित होते हैं।
  • कानून का शासन: सभी नागरिक, यहाँ तक कि सरकार भी, कानून के अधीन होते हैं।


3. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रकार

  • राष्ट्रपति लोकतंत्र: राष्ट्रपति सरकार का और राज्य का प्रमुख होता है, जो विधायिका से अलग चुना जाता है। (उदाहरण: अमेरिका, लैटिन अमेरिका)।
  • संसदीय लोकतंत्र: प्रधानमंत्री को संसद द्वारा चुना जाता है। (उदाहरण: यूके, जर्मनी, कनाडा)।
  • संवैधानिक राजतंत्र: राजा या रानी औपचारिक प्रमुख होते हैं, जबकि सरकार का प्रमुख निर्वाचित नेता होता है। (उदाहरण: यूके, स्वीडन, डेनमार्क)।
  • संघीय लोकतंत्र: शक्ति केंद्र और क्षेत्रीय सरकारों के बीच विभाजित होती है। (उदाहरण: अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया)।
  • अर्ध-राष्ट्रपति लोकतंत्र: राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भूमिकाएँ अलग होती हैं। (उदाहरण: फ्रांस, रूस)।
  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र: नागरिक सीधे निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। (उदाहरण: स्विट्जरलैंड)।


4. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र की शक्तियाँ

  • व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: यह प्रणाली नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों को प्राथमिकता देती है, जिससे वे अपनी इच्छानुसार जीवन जी सकते हैं।
  • राजनीतिक स्थिरता: लोकतंत्र की स्थिरता और पूर्वानुमेयता आर्थिक विकास और सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देती है।
  • जवाबदेही: सरकार नियमित चुनावों और अन्य लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से नागरिकों के प्रति जवाबदेह रहती है।
  • नियंत्रण और संतुलन: शक्तियों का पृथक्करण और संतुलन सुनिश्चित करता है कि कोई भी शाखा अत्यधिक शक्तिशाली न हो और सत्ता का दुरुपयोग रोका जा सके।


5. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र की कमियाँ

  • धीमा निर्णय लेना: लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ जटिल और समय लेने वाली होती हैं, जो त्वरित निर्णय लेने में बाधा बन सकती हैं।
  • बहुमत का शासन: बहुमत का प्रभाव अल्पसंख्यकों के अधिकारों को हाशिए पर डाल सकता है।
  • मतदाता उदासीनता: कम मतदान दर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वैधता को कमजोर कर सकती है।
  • राजनीति में धन का प्रभाव: अमीर व्यक्तियों और संगठनों द्वारा चुनाव और नीति-निर्माण पर प्रभाव बढ़ सकता है।
  • ध्रुवीकरण और ग्रिडलॉक: वैचारिक मतभेद और पक्षपात कानून बनाने में बाधा डाल सकते हैं।
  • सीमित भागीदारी: सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अवसर नहीं मिल पाते, विशेषकर हाशिए के समूहों को।
  • प्रतिनिधित्व का अभाव: महिलाएँ, अल्पसंख्यक, और अन्य समूह अक्सर पर्याप्त प्रतिनिधित्व से वंचित रहते हैं।
  • हेरफेर की संभावना: लोकतंत्र की खुली प्रकृति इसे विदेशी हस्तक्षेप और हेरफेर के प्रति संवेदनशील बनाती है।

6. उदारवादी प्रतिनिधि लोकतंत्र पर विभिन्न दार्शनिकों के विचार

  • जॉन लॉक: जॉन लॉक को उदारवाद का संस्थापक माना जाता है। उनका मानना था कि सरकार का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक अधिकारों, जैसे जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा करना है। उन्होंने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से प्रतिनिधियों को चुनने का समर्थन किया। इसके साथ ही, लॉक ने यह भी तर्क दिया कि यदि सरकार अपने कर्तव्यों में असफल रहती है, तो लोगों को नई सरकार बनाने का अधिकार है।
  • जीन जैक्स रूसो: जीन जैक्स रूसो लोकतंत्र को सरकार का एकमात्र वैध रूप मानते थे। उन्होंने व्यक्तिगत हितों को सामुदायिक लाभ के लिए त्यागने पर जोर दिया। उनके विचार में प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का सर्वोत्तम तरीका है, जहां लोग सीधे निर्णय लेते हैं।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल: जॉन स्टुअर्ट मिल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने प्रतिनिधि लोकतंत्र को सर्वोत्तम शासन प्रणाली माना। उनके अनुसार, राजनीतिक प्रक्रिया में सूचित और तर्कसंगत भागीदारी के लिए शिक्षा और सार्वजनिक बहस का विशेष महत्व है।
  • रॉबर्ट डाहल: लोकतंत्र को सरकार की वैधता और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी के लिए आवश्यक बताया गया है। इसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के महत्त्व पर जोर दिया गया है। साथ ही, अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा और सत्ता की एकाग्रता को रोकने के लिए मजबूत संस्थानों और स्पष्ट नियमों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।


 सहभागी लोकतंत्र 

सहभागी लोकतंत्र लोकतंत्र का ऐसा रूप है जो सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर बल देता है। इसमें नागरिक केवल प्रतिनिधियों का चयन करने तक सीमित नहीं रहते, बल्कि नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं।

यह कई रूपों में प्रकट हो सकता है, जैसे टाउन हॉल मीटिंग्स, नागरिक सभाएँ,सहभागी बजटिंग, ई -डेमोक्रेसी, विमर्शी मतदान, ने का अवसर मिलता है जो उनके जीवन पर प्रभाव डालती हैं।

लाभ: नागरिक अधिक सूचित और जिम्मेदार बनते हैं,पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है। भ्रष्टाचार में कमी और जनता के हित में काम सुनिश्चित होता है।


1. लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी का महत्त्व

  • सुशासन: लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी सुशासन की नींव है। इससे सरकार जनता की शिकायतें सुनकर कल्याणकारी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू कर पाती है।
  • प्रतिक्रिया तंत्र: नागरिकों की भागीदारी से सरकार को उनके दृष्टिकोण और आवश्यकताओं को समझने में मदद मिलती है, जिससे नीतियों और कल्याणकारी उपायों को बेहतर तरीके से कार्यान्वित किया जा सकता है।
  • बेहतर नीति कार्यान्वयन: नीतियों का सफल क्रियान्वयन लोगों की भागीदारी पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत अभियान और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम लोगों की सक्रिय भागीदारी से सफल हुए हैं।
  • जवाबदेही: नागरिकों की भागीदारी सरकार को उनके प्रति जवाबदेह बनाती है। यह सरकार और जनता के बीच बेहतर संवाद स्थापित कर पारदर्शिता बढ़ाता है। आरटीआई के माध्यम से लोगों की सक्रिय भागीदारी ने सरकार की जवाबदेही में सुधार किया है।


2. लोगों की भागीदारी बढ़ाने के तरीके

  • मीडिया: स्वतंत्र मीडिया और सोशल मीडिया से जुड़ाव बढ़ता है। टि्वटर जैसे प्लेटफॉर्म से समस्याओं का समाधान आसान हुआ है।
  • कनेक्टिविटी: इंटरनेट और mygov.in जैसे प्लेटफॉर्म नागरिकों को सरकार से जोड़ते हैं और नीतियों पर सुझाव का अवसर देते हैं।
  • प्रोत्साहन: प्रतियोगिताएं और मौद्रिक प्रोत्साहन नागरिकों को सरकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं।


3. सहभागी लोकतंत्र के आलोचक

सहभागी लोकतंत्र, जहाँ नागरिक निर्णय लेने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं, कई आलोचनाओं का सामना करता है:

  • व्यावहारिकता की कमी: बड़े और जटिल समाजों में सभी नागरिकों की भागीदारी असंभव हो सकती है। विदेश नीति और आर्थिक नीति जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जो आम नागरिकों के लिए व्यावहारिक नहीं है।
  • समय और संसाधन-गहन प्रक्रिया: व्यापक परामर्श और बहस के कारण निर्णय लेने में देरी होती है। यह तत्काल मुद्दों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने में अक्षम साबित हो सकता है।
  • विभाजन और ध्रुवीकरण: नागरिकों की बहस और गुटबंदी से समझौता करना कठिन हो सकता है, जिससे राजनीतिक गतिरोध और अस्थिरता उत्पन्न होती है।
  • हेरफेर और असमानता: सभी नागरिकों के पास समान जानकारी और संसाधन नहीं होते, जिससे शक्तिशाली समूह निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • बहुमत का अत्याचार: प्रत्यक्ष लोकतंत्र में बहुसंख्यक अपनी इच्छा अल्पसंख्यकों पर थोप सकते हैं, जिससे उनके अधिकार और स्वतंत्रता प्रभावित हो सकते हैं।
  • लागत और जटिलता: सहभागी लोकतंत्र बड़े पैमाने पर लागू करना महंगा और जटिल हो सकता है, खासकर विविध और बड़े समुदायों में।


4. सहभागी लोकतंत्र पर विभिन्न दार्शनिकों के विचार

  • प्लेटो: प्लेटो सहभागी लोकतंत्र के आलोचक थे। उनका मानना था कि लोग तर्कहीन होते हैं और निर्णय लेने के लिए आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता की कमी होती है। वे लोकतंत्र का नेतृत्व ज्ञानवान अभिजात वर्ग द्वारा किए जाने का पक्षधर थे।
  • अरस्तू: अरस्तू सहभागी लोकतंत्र के प्रति अधिक सकारात्मक थे। उन्होंने एक शिक्षित नागरिक वर्ग को लोकतंत्र की सफलता की कुंजी बताया और सभी नागरिकों की भागीदारी पर जोर दिया।
  • जीन जैक्स रूसो: रूसो सहभागी लोकतंत्र के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने प्रत्यक्ष लोकतंत्र का समर्थन किया, जहाँ नागरिक सामूहिक रूप से निर्णय लेते हैं। उनका मानना था कि यह समानता और न्याय सुनिश्चित करता है।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल: मिल प्रतिनिधि लोकतंत्र के समर्थक थे, लेकिन नागरिकों की अधिक भागीदारी के पक्ष में थे। उनके अनुसार, यह नागरिकों को अधिक सूचित और जिम्मेदार बनाता है।
  • हन्ना आरेंट: आरेंट ने सक्रिय नागरिकता को लोकतंत्र की सफलता की कुंजी माना। उन्होंने लोकतंत्र को केवल सरकार की प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन का एक तरीका बताया, जहाँ नागरिक बहस और चर्चा में शामिल होते हैं।
  • मिशेल फूको: फूको सहभागी लोकतंत्र को सत्ता का विकेंद्रीकरण सुनिश्चित करने का तरीका मानते थे। उनका तर्क था कि इससे सत्ता सभी नागरिकों में समान रूप से वितरित होती है और समाज अधिक न्यायपूर्ण बनता है।
  • अमर्त्य सेन: सेन के अनुसार, सहभागी लोकतंत्र सभी नागरिकों की आवाज़ सुनिश्चित करता है। उन्होंने इसे लोकतंत्र का सही रूप माना, जहाँ नागरिक नीतियों को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।


 विमर्शी लोकतंत्र 

विमर्शी लोकतंत्र लोकतंत्र का एक सिद्धांत है, जो निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सूचित और समावेशी सार्वजनिक विचार-विमर्श के महत्त्व पर जोर देता है। यह केवल प्रतिनिधियों को चुनने तक सीमित नहीं है, बल्कि नागरिकों को तर्कसंगत चर्चा और बहस के माध्यम से नीतियों और निर्णयों को आकार देने का अवसर प्रदान करता है।

मुख्य विचार

  • तर्क और चर्चा का आधार: निर्णय तर्कसंगत और सुविचारित चर्चा के माध्यम से किए जाने चाहिए, जहाँ विभिन्न दृष्टिकोणों और विकल्पों पर विचार हो।
  • प्रतिनिधि लोकतंत्र की सीमा: यह सिद्धांत प्रतिनिधि लोकतंत्र की उन सीमाओं का समाधान है, जिनमें अकसर लोगों के हितों और मूल्यों को प्रतिबिंबित नहीं किया जाता।
  • आवश्यक प्रक्रिया: विमर्शी लोकतंत्र में नागरिक सभा जैसे मंचों का उपयोग होता है, जहाँ विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श के बाद सूचित सिफारिशें दी जाती हैं।

लोकलुभावन और अभिजात्य दृष्टिकोण:

  • लोकलुभावन मॉडल: आम नागरिकों के समूह के बीच विचार-विमर्श, सामाजिक मुद्दों पर प्रामाणिक जनमत बनाने या बाध्यकारी कानून तैयार करने का उद्देश्य रखता है।
  • अभिजात्य मॉडल: निर्णय विधायिका और अदालतों जैसे संस्थानों द्वारा विचार-विमर्श के माध्यम से लिए जाते हैं।
  • संतुलन: फिशकिन के अनुसार, विमर्शी लोकतंत्र आम नागरिकों की राय को प्रतिनिधियों के माध्यम से परिष्कृत करता है, जो निर्णय लेने में बेहतर जानकारी और विशेषज्ञता रखते हैं।


1. विमर्शी लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ

  • समावेशिता: यह सभी सामाजिक समूहों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने पर जोर देता है, चाहे उनकी जातीयता, लिंग या स्थिति कुछ भी हो।
  • तर्कपूर्ण चर्चा: भावनात्मक अपील के बजाय साक्ष्य-आधारित तर्क और बहस पर ध्यान केंद्रित करता है। प्रतिभागियों से तर्कों पर विचार करने और नई जानकारी के आधार पर अपनी राय बदलने की अपेक्षा की जाती है।
  • भागीदारी की समानता: सभी प्रतिभागियों को समान अधिकार दिए जाते हैं, और शक्ति संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जाती है ताकि कोई समूह चर्चा पर हावी न हो।
  • सम्मानपूर्ण संवाद: प्रतिभागियों को दूसरों के विचारों का सम्मान करने और व्यक्तिगत हमलों या अपमान से बचने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • विचार-विमर्श की क्षमता: प्रतिभागियों को पर्याप्त जानकारी, विश्लेषण कौशल, और संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि वे सूचित और तर्कपूर्ण चर्चा में भाग ले सकें।

लाभ

  • बेहतर निर्णय: निर्णय समाज के सभी समूहों के हितों और मूल्यों को प्रतिबिंबित करते हैं।
  • नागरिक जुड़ाव: यह नागरिकों को उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में अधिक स्वामित्व और भागीदारी का अनुभव कराता है।
  • सामाजिक सामंजस्य: विविध पृष्ठभूमि के लोगों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

सीमाएँ

  • यह प्रक्रिया समय और संसाधन लेने वाली हो सकती है, जिससे इसे बड़े पैमाने पर लागू करना कठिन हो जाता है।सभी आवाजों और दृष्टिकोणों को सुनना सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


2. विमर्शी लोकतंत्र पर विभिन्न दार्शनिकों के विचार

विमर्शी लोकतंत्र लोकतांत्रिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में चर्चा और संवाद की केंद्रीयता पर जोर देता है। इसके अनुसार, निर्णय तर्कसंगत विचार-विमर्श के माध्यम से किए जाने चाहिए। विभिन्न दार्शनिकों के दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

  • जरगन हैबरमास: जरगन हैबरमास के अनुसार, लोकतांत्रिक निर्णय तब ही वैध माने जा सकते हैं, जब वे स्वतंत्र और खुले संवाद पर आधारित हों। उनका विचार है कि संवाद को वर्चस्व और हेरफेर से मुक्त होना चाहिए, जिससे नागरिक बिना किसी दबाव के अपनी राय व्यक्त कर सकें और वैकल्पिक दृष्टिकोणों पर विचार कर सकें। हैबरमास यह तर्क देते हैं कि लोकतंत्र केवल पूर्व-निर्धारित वरीयताओं पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह तर्कसंगत विचार-विमर्श और विचारों के आदान-प्रदान पर केंद्रित होना चाहिए। उनका दृष्टिकोण लोकतंत्र में संवाद और संचार के महत्त्व को उजागर करता है।
  • जॉन रॉल्स: जॉन रॉल्स के अनुसार, लोकतांत्रिक निर्णय न्याय के सिद्धांतों और सार्वजनिक तर्क पर आधारित होने चाहिए। उनके विचार में सभी नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में समान भागीदारी का अवसर मिलना चाहिए, जहाँ तर्क पारदर्शी और निष्पक्ष हो। रॉल्स "सम्मान के सिद्धांत" पर जोर देते हैं, जिसके अनुसार निर्णय प्रक्रिया में प्रत्येक नागरिक के समान मूल्य का सम्मान होना चाहिए। यह दृष्टिकोण न्याय, समानता और पारदर्शिता को लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार मानता है।
  • आइरिस मैरियन यंग: आइरिस मैरियन यंग लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया में विविधता और अंतर को शामिल करने पर विशेष जोर देती हैं। उनका मानना है कि संचारी लोकतंत्र के माध्यम से नागरिक संवाद और चर्चा के द्वारा मुद्दों की साझा समझ विकसित कर सकते हैं और सभी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उत्तरदायी समाधान खोज सकते हैं। यंग के अनुसार, निर्णय प्रक्रिया में हर नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो। यह दृष्टिकोण लोकतंत्र को समावेशी और समानता आधारित बनाता है।









एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.