समकालीन भारत में शिक्षा UNIT 5 SEMESTER 1 THEORY NOTES शिक्षा के संबंध में संविधान के मूल्य और प्रावधान् Education DU. SOL.DU NEP COURSES

 

समकालीन भारत में शिक्षा UNIT 3 SEMESTER 1 THEORY NOTES शिक्षा के संबंध में संविधान के मूल्य और प्रावधान् Education DU. SOL.DU NEP COURSES

संविधान किसी देश का मूलभूत कानून है, जो सरकार की व्यवस्था, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों, तथा सरकार और नागरिकों के संबंधों को निर्धारित करता है। यह राष्ट्र के उद्देश्यों, मूल्यों और प्रक्रियाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। भारतीय संविधान, जिसे डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में संविधान समिति ने तैयार किया, 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। प्रस्तावना में संविधान के मूल मूल्यों और राष्ट्रीय आकांक्षाओं का उल्लेख है।

संवैधानिक मूल्य

भारत के संविधान की प्रस्तावना हमारे राष्ट्रीय और मानवीय मूल्यों का प्रतिबिंब है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारे जैसे आदर्शों को समर्पित है। यहाँ प्रस्तावना में निहित मूल्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है:

  • संप्रभुता: भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जो बाहरी ताकतों से मुक्त है। यह आंतरिक और बाहरी रूप से अपनी नीतियां स्वयं तय करता है।
  • समाजवाद: यह हर नागरिक को समान अवसर देने और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करता है। समाजवाद आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास करता है।
  • धर्मनिरपेक्षता: राज्य सभी धर्मों का सम्मान करता है लेकिन किसी भी धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करता। नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने या न मानने की पूरी स्वतंत्रता है।
  • लोकतांत्रिक गणराज्य: लोकतंत्र का मतलब है कि सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है। गणराज्य का अर्थ है कि राज्य का प्रमुख, राष्ट्रपति, जनता द्वारा चुना जाता है और यह पद किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं है।
  • न्याय: सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय संविधान का मुख्य उद्देश्य है। यह हर नागरिक को भेदभाव से मुक्त समान अधिकार देता है।
  • समता: हर व्यक्ति को जीवन जीने का समान अवसर दिया जाता है। वंचित वर्गों को विशेष अवसर देकर उनके साथ हुए अन्याय को सुधारा जाता है।
  • समानता: कानून के सामने सभी नागरिक समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, जाति, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
  • स्वतंत्रता: हर नागरिक को अपने विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता है। यह अपने व्यवसाय, शिक्षा और जीवन का चुनाव करने का अधिकार देता है।
  • बंधुत्व: बंधुत्व से भाईचारे की भावना विकसित होती है। यह अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता और अन्य भेदभावों को समाप्त करता है।
  • मानव गरिमा: हर व्यक्ति का सम्मान और गरिमा बनाए रखना प्रस्तावना का मुख्य उद्देश्य है।
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता: राष्ट्र की अखंडता और एकता बनाए रखना सभी नागरिकों का कर्तव्य है।



मौलिक कर्त्तव्य

भारत के संविधान में मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों को राष्ट्र और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का बोध कराते हैं। इन्हें 1976 में 42वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 51A के तहत शामिल किया गया। ये भाग IV-A में उल्लिखित हैं और देश की प्रगति, शांति, और समृद्धि में सहायक हैं।

1. मौलिक कर्त्तव्य:-

  • संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान: संविधान, राष्ट्रध्वज, और राष्ट्रगान का आदर करें।
  • राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों का पालन: स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों को बनाए रखें।
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा: भारत की प्रभुता और अखंडता को संरक्षित करें।
  • राष्ट्र की रक्षा: आवश्यकता पड़ने पर देश की सेवा करें।
  • सामाजिक सौहार्द्र का निर्माण: सभी वर्गों के बीच समानता और स्त्रियों की गरिमा का सम्मान करें।
  • सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण: भारत की सामासिक संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करें।
  • पर्यावरण की रक्षा: वन, जल, वन्यजीव और पर्यावरण का संरक्षण करें।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास: वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद, और सुधार की भावना को बढ़ावा दें।
  • सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा: सार्वजनिक संपत्ति को बचाएं और हिंसा से दूर रहें।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कृष्टता: जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें।
  • शिक्षा का प्रावधान (86वां संशोधन, 2002): माता-पिता या अभिभावक 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करें।


2. महत्त्व

  • राष्ट्रवाद और देशभक्ति को बढ़ावा
  • सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन
  • पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा
  • वैज्ञानिक सोच और मानवतावाद का विकास



शिक्षा के लिए संवैधानिक मूल्यों की प्रासंगिकता 

संवैधानिक मूल्य भारतीय शिक्षा प्रणाली के उद्देश्य और दिशा को निर्धारित करते हैं। शिक्षा इन मूल्यों को विद्यार्थियों में विकसित कर, एक बेहतर और प्रगतिशील समाज का निर्माण करती है। इसकी मुख्य प्रासंगिकताएँ निम्नलिखित हैं:

  • लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास: शिक्षा व्यक्ति को लोकतंत्र में अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझने में मदद करती है।
  • सामाजिक कौशल का विकास: सहिष्णुता, सहयोग, सहानुभूति और विविध संस्कृतियों का सम्मान जैसे मूल्यों को बढ़ावा देती है।
  • नैतिक और आध्यात्मिक विकास: नैतिकता और आध्यात्मिकता के बिना ज्ञान अधूरा है; शिक्षा इन मूल्यों को प्रोत्साहित करती है।
  • व्यावसायिक कौशल का विकास: आर्थिक विकास और कार्य की गरिमा के प्रति सम्मान का भाव विकसित करती है।
  • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा: विविधता में एकता की भावना और राष्ट्रीय चेतना को मजबूत करती है।
  • मानव संसाधन विकास: शिक्षा योग्य नागरिक और सक्षम नेतृत्व के निर्माण में सहायक है।
  • परंपरा और आधुनिकता का समन्वय: परंपरागत मूल्यों को संरक्षित करते हुए, आधुनिक विज्ञान और तकनीक को बढ़ावा देती है।


भारत में शिक्षा पर संवैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है और इसे सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। 42वें संशोधन (1976) और अन्य सुधारों ने शिक्षा को एक मजबूत संवैधानिक आधार प्रदान किया है। यहां शिक्षा से संबंधित प्रमुख प्रावधानों का सार दिया गया है:


1. मौलिक अधिकार और शिक्षा

  • अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता- सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं। जाति, धर्म, लिंग, वर्ग, या जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 15: भेदभाव का निषेध- धर्म, जाति, लिंग, वंश या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है। शैक्षिक अवसरों में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 16: समान रोजगार का अधिकार- राज्य के अधीन नियुक्तियों और रोजगार में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए गए हैं।
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत- अस्पृश्यता का पूरी तरह उन्मूलन और इसे किसी भी रूप में लागू करना अपराध है।
  • अनुच्छेद 19: स्वतंत्रता का अधिकार- नागरिकों को अभिव्यक्ति, संगठन बनाने, और कहीं भी निवास करने व कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई है।
  • अनुच्छेद 21A: शिक्षा का अधिकार- छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। यह आरटीई अधिनियम (2009) के तहत लागू किया गया है।
  • अनुच्छेद 24: बाल श्रम पर प्रतिबंध- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक कार्यों में लगाना निषिद्ध है।


2. राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत और शिक्षा

  • अनुच्छेद 45: प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए शिक्षा और देखभाल प्रदान करने का निर्देश।
  • अनुच्छेद 46: कमजोर वर्गों का संरक्षण- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए विशेष प्रयास।


3. महत्वपूर्ण संशोधन और उनके प्रभाव

  • 42वां संशोधन (1976): शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया, जिससे केंद्र और राज्य दोनों को शिक्षा नीति पर कार्य करने का अधिकार मिला।
  • 86वां संशोधन (2002): अनुच्छेद 21A जोड़ा गया और 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया।


4. शिक्षा के लिए विशेष प्रयास

  • स्त्री शिक्षा: महिलाओं के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान।
  • आरक्षण नीति: अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण।
  • बालश्रम उन्मूलन: बाल श्रम को रोकने और हर बच्चे को विद्यालय भेजने के लिए जागरूकता और नीतियाँ।




भारत में शिक्षा पर संवैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार और सामाजिक विकास का आधार माना गया है। प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

A. समानता का अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

  • अनुच्छेद 14: सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं।
  • अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव वर्जित है।
  • अनुच्छेद 16: सरकारी सेवाओं में सभी को समान अवसर।
  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत।
  • अनुच्छेद 18: कुलीन उपाधियों का निषेध।


2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-21A)

  • अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति, संगठनों, और कहीं भी निवास करने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 21A: 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार।


3. बच्चों के अधिकार (अनुच्छेद 24, 45)

  • अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक काम में लगाने की मनाही।
  • अनुच्छेद 45: 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए देखभाल और शिक्षा का प्रावधान।


4. अनुसूचित जाति/जनजाति और कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 46)

  • इन वर्गों के आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए राज्य विशेष प्रयास करेगा।


5. शिक्षा में समानता

  • 93वें संशोधन के तहत पिछड़े वर्गों को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण।
  • बालिका शिक्षा और वंचित वर्गों के बच्चों को विशेष प्रोत्साहन।


6. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दिशा-निर्देश (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत)

  • अनुच्छेद 45: 1960 तक 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य (अब अधूरा)।
  • सरकार को प्राथमिक शिक्षा के लिए पर्याप्त वित्तीय प्रावधान करने की आवश्यकता।


B. भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार: संवैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान में भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने और शिक्षा में उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। ये अधिकार समानता, स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दिए गए हैं।

1. मुख्य अनुच्छेद और उनके प्रावधान

  • अनुच्छेद 29(1): किसी भी नागरिक समूह को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार। यह अधिकार सभी नागरिकों को प्रदान किया गया है, चाहे वे अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक।
  • अनुच्छेद 29(2): राज्य द्वारा सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश से किसी को धर्म, जाति, भाषा या वंश के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 30(1): भाषा या धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 30(2): राज्य किसी अल्पसंख्यक द्वारा प्रबंधित शैक्षणिक संस्थान को सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 347: यदि भाषाई अल्पसंख्यक मांग करते हैं, तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकते हैं कि उनकी भाषा को किसी राज्य में सरकारी प्रयोजनों के लिए मान्यता दी जाए।
  • अनुच्छेद 350: किसी भी नागरिक को संघ या राज्य में प्रयोग होने वाली भाषा में अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 350A: प्राथमिक स्तर पर बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। यह राज्य और स्थानीय प्राधिकरणों का दायित्व है। राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार राज्यों को निर्देश दे सकते हैं।


2. संविधान संशोधन और भाषाई अधिकार

1. सातवां संशोधन (1956): भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों को अधिक स्पष्टता और मजबूती प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 350A जोड़ा गया।

महत्त्व:

  • भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को बनाए रखने में सहायक हैं।
  • इन प्रावधानों से शिक्षा में समानता और मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित होता है।
  • यह अल्पसंख्यकों के सामाजिक और शैक्षिक सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त करता है।

2. अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार

विशेष अधिकारी की नियुक्ति:-

  • राष्ट्रपति भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगा।
  • यह अधिकारी भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संरक्षण के उपायों की जांच करेगा।

कर्तव्य:

  • संबंधित विषयों पर अध्ययन और राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • रिपोर्ट को संसद और राज्यों की सरकारों के समक्ष रखा जाएगा।

महत्त्व:

  • यह प्रावधान भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की निगरानी और उनकी समस्याओं के समाधान को सुनिश्चित करता है।


3. अनुच्छेद 351: हिंदी का प्रचार

राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का विकास:

  • हिंदी के प्रसार और विकास को बढ़ावा देना संघ का कर्तव्य है।
  • हिंदी को भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना।

उद्देश्य:

  • हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में सुदृढ़ करना।
  • भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करना।

महत्त्व:

  • हिंदी के संवर्धन से भारत की सांस्कृतिक विविधता का समावेशी विकास होता है।
  • यह राष्ट्रीय एकता और शैक्षिक प्रणाली में समरसता लाने में सहायक है।


C. धार्मिक अल्पसंख्यक अधिकार

भारत का संविधान धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें समानता सुनिश्चित करता है। ये अधिकार भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य प्रावधान:-

  • अनुच्छेद 25: हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका आचरण करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता।यह अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 26: हर धार्मिक समूह को संस्थाओं की स्थापना, धर्म का प्रबंधन, संपत्ति का स्वामित्व और उसका प्रशासन करने का अधिकार। यह धार्मिक समूहों के सामूहिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 27: किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जो किसी विशेष धर्म के प्रचार-प्रसार में उपयोग हो। यह धार्मिक भेदभाव को रोकता है और सार्वजनिक धन का तटस्थ उपयोग सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 28: पूर्णतः राज्य निधि से पोषित शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा निषिद्ध। राज्य से सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।

महत्त्व

  • धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी: यह प्रावधान धार्मिक अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक धर्मों से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • शिक्षा का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण: शिक्षा के माध्यम से धार्मिक भेदभाव को कम करने और समानता को बढ़ावा देने पर जोर।
  • धर्मनिरपेक्षता का आधार: इन प्रावधानों से भारत की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता को मजबूती मिलती है।




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