प्राचीन सभ्यता UNIT- 1 SEMESTER-1 THEORY NOTES सभ्यताओं को परिभाषित करना, इतिहास लेखन, शहरी क्रांति और काँस्य युग, धातु प्रौद्योगिकी से संबंधित वाद-विवाद DU. SolDU. NEP Courses


UNIT- 1 SAMESTER-1 THEORY NOTES सभ्यताओं को परिभाषित करना, इतिहास लेखन, शहरी क्रांति और काँस्य युग, धातु प्रौद्योगिकी से संबंधित वाद-विवाद


सभ्यता शब्द की उत्पत्ति और अर्थ

सभ्यता की परिभाषा को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। इस पर बहस काफी अध्ययन और विचार हुए हैं ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, "सभ्य बनाना" का अर्थ है "बर्बरता से बाहर लाना, जीवन बेहतर और संस्कृति विकसित करना।" अंग्रेजी शब्द "सिविलाइज़ेशन" 16वीं शताब्दी के फ्रांसीसी शब्द "सिविलिस" से आया है, जिसका अर्थ है "सभ्य।" लैटिन शब्द "सिविलिस," "सिविस," और "सिवितास" का भी मतलब "शहर में रहना" होता है। इसलिए, सभ्यता का गहरा संबंध नगरीय जीवन से है।


सभ्यता की विशेषताएँ

सभ्य समाज में पर्याप्त भोजन उत्पादन होता है, जो बड़ी जनसंख्या को सहारा दे सकता है , तकनीकी प्रगति होती है जिससे उत्पादन और संचार में सुधार के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग होता है।, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए एक शासकीय ढाँचा होता है। साथ ही सभ्यता में कला, संगीत, साहित्य आदि का विकास होता है।

जैसे- फ्रांसीसी क्रांति के दौरान "सभ्यता" शब्द का उपयोग मानवता की प्रगति को दर्शाने के लिए किया गया। 


विद्वानों का सभ्यता पर मत 

अल्बर्ट श्चित्जर ने सभ्यता को मानवता की प्रगति के रूप में परिभाषित किया, जो नैतिकता और भौतिकता दोनों को जोड़ता है। 1819 के आसपास "सभ्यताओं" का प्रयोग बहुवचन में शुरू हुआ, जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के जीवन के तरीकों को दर्शाया गया। उन्नीसवीं सदी में विद्वानों ने इसे विकासवाद के सिद्धांत से जोड़ा। लुईस हेनरी मॉर्गन ने मानव विकास के सात स्तर बताए, जबकि मार्क्सवादी सिद्धांतों में शहरी सभ्यता को वर्ग संरचना के साथ जोड़ा गया। आधुनिक पुरातत्व में सभ्यता को शहरीकृत, राज्य-स्तरीय समाजों के रूप में देखा जाता है। क्लॉड क्लखोन ने सभ्यता को 5,000 से अधिक लोगों के शहर, स्मारकीय औपचारिक केंद्र, और एक लिखित भाषा जैसे मापदंडों पर परिभाषित किया।


सभ्यता के उद्भव के कारण

पहली सभ्यताएँ खेती के विकास से ही प्रारंभ हुईं, विशेषकर मेसोपोटामिया, मिस्र, भारत, और चीन में।, कृषि के साथ-साथ शिल्प और व्यापार का विकास हुआ, जिससे विभिन्न क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ा।, सभ्यता का विकास बड़े शहरों में हुआ, जो गाँवों से बड़े और अधिक संगठित थे। सभ्यता को लेखन ने संरक्षित करने और पीढ़ियों तक पहुँचाने में मदद की। इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न संस्कृतियों के लोग मिलकर रहते हैं।


सभ्यता और संस्कृति का अंतर

सभ्यता को एक जटिल राज्य के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें सामाजिक स्तरीकरण, श्रम का विभाजन, और केंद्रीकृत सत्ता जैसी विशेषताएँ होती हैं। संस्कृति और सभ्यता दोनों ही समाज के विकास के लिए आवश्यक हैं, लेकिन सभ्यता एक अधिक संगठित और संरचित रूप है, जो समाज की उन्नति और प्रगति का प्रतीक है।

नृवंशविज्ञानी और मानवविज्ञानी सभ्यता और संस्कृति के बीच अंतर करते हैं। 1874 में एडवर्ड बर्नेट टायलर ने "प्रिमिटिव कल्चर्स" में सभ्यता और संस्कृति की अलग-अलग व्याख्याएँ दीं। उनके अनुसार, सभ्यता यह मानव समाज का एक उन्नत और संगठित स्तर है, जिसमें समाज के उच्च विकास को दर्शाया जाता है और संस्कृति किसी भी समाज के लोगों की आदतों, परंपराओं, और जीवन जीने के तरीके को दर्शाती है।


संस्कृति और सभ्यता की परिभाषाएँ

फर्नांड ब्रूडेल ने संस्कृति को सभ्यता का एक चरण माना, जिसे वह मानव जाति के विकास की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार, सभ्यता संस्कृति से ऊपर का स्तर है, जो अधिक संगठित और संरचित है। ब्रिटिश समाजशास्त्री क्रिस्टोफर डॉसन ने भी सभ्यता को सबसे बड़ी सामाजिक-ऐतिहासिक घटना माना। वहीं, इमैनुएल वालरस्टीन ने जर्मन समाज का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि "सभ्यता" रोजमर्रा की सामान्य बातों को दर्शाती है, जबकि "संस्कृति" परिष्कृत और विशिष्ट चीजों को इंगित करती है।

अमेरिकी मानवविज्ञानी फिलिप बागबी के अनुसार, सभ्यता का संबंध शहरों में पाई जाने वाली संस्कृति से है। उनका मानना है कि एक शहर में श्रम और शिल्प विशेषज्ञता का विभाजन, सभ्यता का प्रमुख तत्व है। फर्नांड ब्रूडेल का कहना है कि कस्बों और शहरों का अस्तित्व सभ्यता का एक प्रमुख हिस्सा है।


वी. गॉर्डन चाइल्ड 

वी. गॉर्डन चाइल्ड एक प्रमुख सामाजिक विकासवादी और पुरातत्वविद् थे, जिन्होंने मानव समाज के विकास में बदलावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत विकसित किए। उन्होंने नवपाषाण क्रांति और शहरी क्रांति की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया ताकि यह समझा जा सके कि शहरीकरण कैसे हुआ। 1950 में उन्होंने "द अर्बन रेवोल्यूशन" नामक एक पेपर प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने इन प्रमुख परिवर्तनों को औद्योगिक क्रांति के समान एक "क्रांति" के रूप में पेश किया। उनके अनुसार, ये परिवर्तन मानव जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करने वाले थे, इसीलिए उन्होंने इनकी व्यापक समझ पर जोर दिया।

सभ्यता का उदय कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों और घटनाओं का परिणाम था। वी. गॉर्डन चाइल्ड ने इसके विकास को दो मुख्य क्रांतियों से जोड़ा – नवपाषाण क्रांति और शहरी क्रांति।

1. नवपाषाण क्रांति

नवपाषाण क्रांति की चाइल्ड की अवधारणा में, शिकार और भोजन संग्रहण से खेती की ओर संक्रमण का विवरण है। इस बदलाव को दुनिया के सात-आठ क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से होता हुआ देखा जा सकता है। इस चरण में जंगली संसाधनों की जगह घरेलू खाद्य पदार्थों का उत्पादन और खपत होने लगी। इससे कई प्रमुख तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन हुए।

2. शहरी क्रांति

शहरी क्रांति ने समाज के ढाँचे को पूरी तरह से बदल दिया। इस चरण में पहले शहर अस्तित्व में आए, जो आर्थिक गतिविधियों, सामाजिक वर्गों, और नए शासकीय ढाँचों के विकास का केंद्र बने। चाइल्ड के अनुसार, केवल शहर ही नहीं, बल्कि कारीगरों और विशेषज्ञों का एक नया वर्ग भी इन जटिल समाजों के निर्माण में महत्वपूर्ण था। मेसोपोटामिया, मिस्र, चीन, भारत, मेसोअमेरिका और एंडीज में सबसे पहले शहरों और राज्यों का उदय हुआ, जो बिना किसी बाहरी प्रभाव के विकसित हुए।


शहरी क्रांति के साक्ष्य और मॉडल

चाइल्ड ने अपने शहरी क्रांति के सिद्धांत के लिए 1920 के दशक में उर में हुई खुदाई के साक्ष्यों का उपयोग किया, जिससे मेसोपोटामिया में शहरी समाज का प्रमाण मिला। इस सिद्धांत को उन्होंने ठोस साक्ष्यों के आधार पर प्रस्तुत किया, जो उनके समकालीनों में दुर्लभ था। चाइल्ड का मानना था कि शहरी क्रांति ने धातु तकनीक और कारीगरों के एक नए सामाजिक वर्ग के उद्भव को भी प्रेरित किया। अपने लेख "टाउन प्लानिंग रिव्यू" में उन्होंने इस विकास को दस विशेषताओं के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे उनका मॉडल अधिक संगठित और स्पष्ट हो गया।

वी. गॉर्डन चाइल्ड ने अपने शहरी क्रांति सिद्धांत में शहर के विकास के दस प्रमुख लक्षण बताए, जो सभ्यता के उन्नत स्तर का प्रतीक हैं। उनके अनुसार, शहर का उद्भव न केवल आकार और जनसंख्या में वृद्धि का संकेत था, बल्कि इसमें कई सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक परिवर्तनों का योगदान था। आइए इन दस लक्षणों को सरल भाषा में समझते हैं:

1. बड़ी और घनी आबादी : पहले शहर गाँवों की तुलना में बड़े और अधिक घनी आबादी वाले होते थे, जो उन्हें विशिष्ट बनाते थे।

2. शिल्प विशेषज्ञता : शहरों में विभिन्न कार्यों के विशेषज्ञ, जैसे कारीगर, व्यापारी, पुजारी और अधिकारी मौजूद थे, जो गाँवों से शहर को अलग करते थे।

3. कर प्रणाली : प्रत्येक उत्पादक को अपने अधिशेष (अतिरिक्त उत्पादन) का एक हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था, जो एक दिव्य राजा या देवता को समर्पित था।

4. स्मारकीय वास्तुकला : शहरों में विशाल भवन और स्मारक बनाए जाते थे, जो सामाजिक अधिशेष की एकाग्रता और शासक की शक्ति का प्रतीक थे।

5. शासक वर्ग : एक विशेष समूह, जिसमें पुजारी, प्रशासक, और सैन्य नेता शामिल थे, समाज में उच्च स्थान रखते थे और शक्ति का संकेन्द्रण उनके हाथों में था।

6. लेखन का उपयोग : प्रशासनिक और संचार उद्देश्यों के लिए लेखन का आविष्कार और उपयोग किया गया, जिससे रिकॉर्ड रखने की परंपरा विकसित हुई।

7. विज्ञान का विकास : शहरों में ज्यामिति, गणित, और खगोल विज्ञान जैसे विज्ञानों का विकास हुआ, जो जटिल समाजों के लिए आवश्यक थे।

8. कला की परिष्कृत शैली : कला की नई और परिष्कृत शैलियाँ विकसित हुईं, जो समाज की सांस्कृतिक उन्नति को दर्शाती थीं।

9. लंबी दूरी का व्यापार : शहरों ने अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए, जो संसाधनों और विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता था।

10. राज्य संगठन : शासक और राज्य संगठन के अंतर्गत सत्ता का केंद्रीकरण हुआ, जो रिश्तेदारी के बजाय निवास के आधार पर समाज को संगठित करता था।


चाइल्ड के शहरी मॉडल पर विद्वानों की मिश्रित प्रतिक्रियाएँ रही हैं। यह मॉडल, जो शुरुआती शहरों और सभ्यताओं के विकास को समझाने के लिए प्रस्तावित किया गया था, पुरातत्व और विकासवादी अध्ययन में व्यापक चर्चा का विषय बना। चाइल्ड ने शहरों के दस लक्षण बताए, लेकिन इस पर कई विद्वानों ने सवाल उठाए और कुछ ने इस मॉडल का समर्थन किया।


मुख्य आलोचनाएँ और बचाव:

रॉबर्ट मैक एडम्स, पाँत व्हीटली, और जेम्स एफ. ओसबोर्न जैसे विद्वानों ने चाइल्ड की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रियाओं को जोड़ने पर पर्याप्त जोर नहीं दिया। एडम्स का तर्क था कि प्रारंभिक शहरों में विशाल अधिशेष का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। 

दूसरी ओर, कॉलिन रेनफू ने चाइल्ड का समर्थन किया और कहा कि चाइल्ड के मॉडल में कार्यात्मक संबंध निहित थे, और ये लक्षण आपस में जुड़े हुए थे। उनके अनुसार, चाइल्ड का मॉडल शहरों के विकास में विभिन्न तत्वों के योगदान को स्पष्ट करता है।

जेन जैकब्स का मानना था कि खेती ही शहरों के विकास के लिए सबसे आवश्यक तत्व नहीं थी, बल्कि शहरों के लिए पहले बड़े पैमाने पर माँग की आवश्यकता थी। उदाहरण के लिए, लेवेंट और अनातोलिया में ऐसे शहर थे जो खेती की बजाय लंबी दूरी के व्यापार के कारण उभरे।

रॉबर्ट मैक एडम्स ने चाइल्ड के मॉडल के साथ सक्रिय रूप से काम किया और अपनी पुस्तक द इवोल्यूशन ऑफ अर्बन सोसाइटी में इस मॉडल को विस्तारित करते हुए सामाजिक प्रथाओं और संस्थानों पर विशेष जोर दिया। इसके अलावा, पेड्रो आर्मिलास और विलियम सैंडर्स जैसे विद्वानों ने चाइल्ड के विचारों को अमेरिका में फैलाने और अन्य क्षेत्रों में लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


शहरी क्रांति पर अनुसंधान और नवाचार

चाइल्ड के समय से अब तक, शुरुआती राज्यों और शहरों के अध्ययन में नई पुरातात्विक पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण तकनीकों के विस्तार ने पुरातत्त्वविदों को समय के साथ बस्तियों के आकार और कृषि पद्धतियों में हुए परिवर्तनों को बेहतर ढंग से समझने में मदद की है। क्षेत्रीय राजनीतिक और आर्थिक गतिशीलता का अध्ययन भी अधिक सटीक हुआ है, जिसमें उपग्रह इमेजरी और भू-आकृति विज्ञान जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।


समकालीन दृष्टिकोण और विविधता का महत्व

हालाँकि चाइल्ड का मॉडल सभी शहरों पर पूरी तरह लागू नहीं होता, उन्होंने यह स्वीकार किया कि प्रत्येक शहर में कुछ अलग और अनोखे तत्व हो सकते हैं। उनका यह अवलोकन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि समकालीन विद्वान शहरी नियोजन में विविधता और विशिष्टता के महत्व को समझते हैं। आधुनिक दृष्टिकोण विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं के भीतर और उनके बीच मौजूद भिन्नताओं को मान्यता देते हुए, इन विविधताओं को शहरी विकास में अद्वितीय मानते हैं।


काँस्य युग

मानव इतिहास को परंपरागत रूप से तीन कालों में बाँटा गया है पहला पाषाण युग इस युग में लोग पत्थर, हड्डी और हाथीदाँत से बने उपकरणों का उपयोग करते थे। दूसरा काँस्य युग इस युग में ताँबा और टिन को मिलाकर काँस्य धातु बनाई गई, जिससे औजार और हथियार अधिक मजबूत और टिकाऊ बने। तीसरा लौह युग इसमें काँस्य का स्थान लोहे ने लिया, जो सस्ता और व्यापक रूप से उपलब्ध था।

पाषाण युग के बाद आया काँस्य युग जो मानव समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसमें औजारों और उपकरणों के निर्माण के लिए काँस्य का उपयोग शुरू हुआ। इसे तकनीकी प्रगति के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों का समय माना जाता है।


काँस्य युग की मुख्य विशेषताएँ

  • इस कल में  प्रौद्योगिकी में प्रगति हुई काँस्य का उपयोग, जो ताँबा और टिन का मिश्रण था, औजारों और हथियारों को मजबूत और टिकाऊ बनाता था। इसने मानव समाज को अधिक उन्नत तकनीक के उपयोग की ओर बढ़ाया।
  • इस नई तकनीक ने समाज को अधिक संगठित किया। कारीगरों का एक वर्ग उभरा, जो विशेष रूप से काँस्य औजारों और हथियारों का निर्माण करता था।
  • इससे आर्थिक प्रभाव बढ़ा जहा काँस्य के उत्पादन और व्यापार से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई। दूर-दराज के क्षेत्रों से टिन और ताँबा प्राप्त करने के लिए व्यापारिक मार्ग विकसित हुए।
  • काँस्य ने  राजनीतिक स्थिरता को बढाया काँस्य से बने हथियारों ने साम्राज्यों और राज्यों को मजबूत किया, क्योंकि अब उनके पास अधिक टिकाऊ और शक्तिशाली हथियार थे।
  • काँस्य युग के दौरान कला और शिल्प में भी उन्नति हुई। काँस्य से बनी मूर्तियाँ, सजावटी वस्त्र, और धार्मिक उपकरण विकसित हुए, जिससे सांस्कृतिक विकास में सहायता मिली।
  • काँस्य की आवश्यकताओं को पूरा करने और व्यापारिक नेटवर्क को नियंत्रित करने के कारण एक अभिजात वर्ग का विकास हुआ, जो समाज में अधिक प्रभावी बन गया। इस वर्ग ने व्यापार और उत्पादन पर अपना नियंत्रण बढ़ाया।
  • काँस्य युग में तकनीकी विकास के साथ-साथ समाज की संरचना में भी बदलाव आया। ताँबे और टिन की आवश्यकता ने इन धातुओं को दूर-दूर से प्राप्त करने की आवश्यकता पैदा की, जिससे समाजों में सहयोग और आदान-प्रदान बढ़ा।
  • काँस्य युग में विभिन्न संस्कृतियों के बीच संबंध और विनिमय प्रणाली के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी वृद्धि हुई। इन संबंधों ने प्राचीन सभ्यताओं को एक-दूसरे से जोड़ने का कार्य किया।

विद्वान शेरीन रत्नागर ने काँस्य युग को विशेष रूप से प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं के संदर्भ में देखा, जो धातु पर निर्भर थीं। उन्होंने कहा कि इन सभ्यताओं के पास आवश्यक धातु स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं थी, इसलिए उन्हें अन्य क्षेत्रों पर निर्भर रहना पड़ा।


काँस्य युग के स्रोत

काँस्य युग की सभ्यताओं से हमें लिखित रिकॉर्ड और भौतिक अवशेषों के रूप में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस समय में, लेखन का व्यापक उपयोग होने लगा था, जैसे कि मेसोपोटामिया की क्यूनिफॉर्म लिपि और मिस्र की चित्रलिपि, जो धार्मिक, प्रशासनिक, और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए लिखी जाती थीं। इन प्राचीन ग्रंथों से उस समय के समाज, प्रशासनिक व्यवस्था, धार्मिक मान्यताओं और आर्थिक गतिविधियों की जानकारी मिलती है।

1. पुरातात्त्विक साक्ष्य

काँस्य युग के पुरातात्त्विक अवशेषों में स्मारकीय वास्तुकला, कला, और रोजमर्रा की वस्तुएँ जैसे औजार, हथियार, मिट्टी के बर्तन, और आभूषण शामिल हैं। समय के साथ कपड़े और लकड़ी जैसे कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो गए, लेकिन मिट्टी के बर्तन, धातु के औजार और अन्य स्थायी वस्तुएँ संरक्षित रह गईं।

2. लिखित ग्रंथों से जानकारी

मेसोपोटामिया और मिस्र जैसी सभ्यताओं के बारे में हमें उनके लिखित ग्रंथों से बहुत सी जानकारी प्राप्त होती है, क्योंकि इन सभ्यताओं की लिपियाँ विद्वानों द्वारा पढ़ी जा सकी हैं। इसके विपरीत, हड़प्पा सभ्यता की लिपि को अब तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, जिससे उस सभ्यता के बारे में जानकारी सीमित है।

3. दफनाने की शैली और पैटर्न

काँस्य युग में दफनाने की प्रक्रिया और कब्रों के पैटर्न भी उस समय के समाज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करते हैं, खासकर समाज के कुलीन वर्ग के बारे में। दफनाने की शैली से पता चलता है कि समाज में वर्ग व्यवस्था और सम्मान का महत्त्व था और कुछ वर्गों का अधिक समृद्धि और संपत्ति पर अधिकार था।



काँस्य युग का महत्व

काँस्य युग मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, विशेष रूप से तकनीकी, सामाजिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से। इस युग में, तांबा और टिन जैसी धातुओं के उपयोग और उनके मिश्रण से काँस्य का निर्माण हुआ, जो पत्थर और हड्डी की तुलना में अधिक टिकाऊ, लचीला और उपयोगी था।

1.  तकनीकी नवाचार

काँस्य युग में पहली बार मनुष्य ने धातु को गर्म करके उसके भौतिक गुणों को बदला। यह एक क्रांतिकारी खोज थी, जिससे धातु को ढालने की प्रक्रिया (ढलाई) का विकास हुआ। इसमें तरल धातु को एक सांचे में डाला जाता था और ठंडा होने के बाद वह मनचाहा आकार ले लेती थी। इस तकनीक ने औजारों और हथियारों के निर्माण में सुधार किया और लोहारों के रूप में विशेष धातुकारों का एक वर्ग उभरा, जो इस जटिल कार्य में माहिर थे।

2. सामाजिक संगठन में बदलाव

काँस्य युग में धातुकारों के लिए भोजन उत्पादन में विशेषज्ञता की आवश्यकता महसूस की गई। इसने समाज में विभिन्न वर्गों के बीच कार्य विभाजन को बढ़ावा दिया, जहाँ कुछ लोग कृषि में लगे रहे, जबकि अन्य धातु उत्पादन में। यह समाज को अधिक संगठित और जटिल बनाने का कारण बना।

3. व्यापार का विकास

ताँबा और टिन आसानी से हर क्षेत्र में उपलब्ध नहीं थे, इसलिए काँस्य युग के समुदायों को लंबी दूरी के व्यापार पर निर्भर रहना पड़ा। इसके कारण समुदायों के बीच आर्थिक आदान-प्रदान और सांस्कृतिक संपर्क बढ़ा। गॉर्डन चाइल्ड के अनुसार, यह नवपाषाण युग से काँस्य युग का एक प्रमुख अंतर था, क्योंकि नवपाषाण समाज अधिक आत्मनिर्भर थे। व्यापार को सुरक्षित रखने के लिए राजनीतिक स्थिरता भी आवश्यक थी, जिससे राज्यों और साम्राज्यों का विकास हुआ।

4. प्रसारवादी दृष्टिकोण

काँस्य युग के प्रारंभिक अध्ययन में प्रसारवादी विचारधारा का समर्थन किया गया, जिसमें माना गया कि धातुकर्म ज्ञान निकट पूर्व से विभिन्न क्षेत्रों में फैला। गॉर्डन चाइल्ड ने इसे "धातुकर्म ज्ञान का प्रसार" कहा, जो पूरे यूरोप और प्राचीन पूर्व में धातु कार्य के समान पैटर्न को समझाने के लिए इस्तेमाल किया गया।

5. सांस्कृतिक विकास

काँस्य युग में समाज में सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ा। धातु के माध्यम से सजावटी वस्त्र, धार्मिक प्रतीक, और अन्य कला शैलियों का विकास हुआ, जो समाज में सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता था।


काँस्य युग में उपकरण, हथियार और आभूषण

काँस्य युग में धातु के उपकरणों और हथियारों का विकास हुआ इन वस्तुओं ने न केवल जीवन को सरल बनाया, बल्कि समाज में एक संरचित वर्गीकरण को भी बढ़ावा दिया।

1. उपकरण और औजार

काँस्य युग के उपकरणों में सबसे आम और महत्वपूर्ण 'सेल्ट' था, जिसमें कुल्हाड़ी, एडेज़ और छेनी शामिल थीं। सेल्ट को लकड़ी के शाफ्ट में लगाकर उपयोग किया जाता था, और यह विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए अनुकूलित था। इसके अतिरिक्त, कांस्य के उपकरण कृषि, निर्माण और दैनिक कार्यों में भी उपयोग किए जाते थे, जैसे हल, नौकायन वाली नौकाएँ, और कटाई के औजार।

2. हथियार

काँस्य युग के दौरान, खंजर, तलवारें, और भाले काँस्य से बनाए गए। खंजर और तलवारें मुख्य रूप से चाकू के रूप में उपयोग होती थीं। काँस्य धातु दुर्लभ और महंगी होने के कारण कई स्थानों पर हड्डी, पत्थर, और सींग का भी उपयोग हथियारों के निर्माण में किया गया।

3. आभूषण

काँस्य युग में धातु का उपयोग केवल उपकरणों और हथियारों तक सीमित नहीं था। इस युग में लोग धातु से बने आभूषण भी पहनते थे, जैसे पिन, अंगूठियाँ, लटकन, और हार। धातु के आभूषण समाज में उच्च वर्ग की पहचान का प्रतीक थे, जो अभिजात वर्ग द्वारा पहने जाते थे।

4. घरेलू वस्तुएँ

काँस्य युग में धातु का उपयोग घरेलू बर्तनों जैसे व्यंजन, कप, और कढ़ाई के निर्माण में भी हुआ। इन वस्तुओं का उपयोग विशेष अवसरों और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता था।

5. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

ताँबा और टिन का आसानी से उपलब्ध न होना एक बड़ी चुनौती थी, जिससे लंबी दूरी के व्यापार की आवश्यकता पड़ी। चूँकि काँस्य युग में धातुओं की कमी थी, इसलिए केवल अभिजात वर्ग और शासक वर्ग ही इन धातुओं पर आधारित व्यापार का संचालन कर सकते थे। शासक वर्ग ने उत्पादन प्रक्रियाओं और संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित किया और अपने प्रभाव को बढ़ाया।

6. राजनीतिक संगठन और व्यापार

काँस्य युग की अर्थव्यवस्थाएँ मुख्य रूप से "बाहरी दिखने वाली" थीं, क्योंकि उनमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर जोर था। काँस्य के व्यापार को शासकों द्वारा संगठित किया गया था, और यह आदान-प्रदान रॉयल्टी के प्रतीकात्मक मूल्यों को बढ़ाने का साधन बना। इसके अलावा, मेसोपोटामिया जैसी सभ्यताओं में मानकीकृत बाटों और मापों का उपयोग भी होने लगा, जो व्यापारिक संबंधों में स्थिरता और विश्वसनीयता का संकेत था।

7. सांस्कृतिक विविधता और विशिष्टता

हालाँकि काँस्य के औजारों और हथियारों में कई समानताएँ थीं, फिर भी मिट्टी के बर्तनों, दफन विधियों, और अन्य सांस्कृतिक विशेषताओं में क्षेत्रीय विविधता दिखाई देती है। ये भिन्नताएँ काँस्य युग की विभिन्न सभ्यताओं के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विविधता को दर्शाती हैं।



धातु प्रौद्योगिकी सम्बंधित वाद-विवाद

  • शेरीन रत्नागर के अनुसार, प्रौद्योगिकी एक सांस्कृतिक घटक है जो समाज को उसके पर्यावरण से जोड़ती है और लोगों की जरूरतों को पूरा करती है, जैसे आश्रय, कपड़े, भोजन, और परिवहन।
  • मार्क्स की प्रगति परिकल्पना के अनुसार, तकनीकी विकास एक रैखिक प्रक्रिया है, जिसमें हर नया आविष्कार पुराने से बेहतर होता है। हालांकि, इस दृष्टिकोण की आलोचना भी होती है क्योंकि सभी तकनीकी बदलाव रैखिक नहीं होते और हर नया आविष्कार पुराने से बेहतर नहीं होता।
  • काँस्य युग में पत्थर के बजाय काँस्य के औजारों का उपयोग एक बड़ी प्रगति थी। यह अधिक टिकाऊ था और इससे उपकरण और हथियारों का निर्माण बेहतर हुआ।

तकनीकी परिवर्तन के दो प्रमुख पहलू

1. प्रौद्योगिकी का विकास : काँस्य के औजारों ने पत्थर के औजारों को बदलकर समाज को अधिक कार्यकुशल बनाया।

2. अनुकूल स्थितियाँ : तकनीकी बदलाव के लिए सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियाँ भी अनुकूल होनी चाहिए थीं, जैसे संसाधन, ज्ञान और राजनीतिक स्थिरता।



काँस्य युग के दौरान धातुकर्म के विकास का समाज पर व्यापक प्रभाव

काँस्य युग में धातुकर्म के विकास ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डाला। इसे तकनीकी, आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है:

1. तकनीकी प्रभाव

काँस्य धातुकर्म ने औजार और हथियार बनाने में क्रांति ला दी। ताँबे को पिघलाकर साँचों में ढालने की प्रक्रिया से बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हुआ। इससे कुशल श्रमिकों और विशेषज्ञों की जरूरत बढ़ी, और धातुकर्म तकनीकों का प्रसार समाज में हुआ।

2. आर्थिक प्रभाव

काँस्य उपकरणों और हथियारों का उत्पादन बढ़ा, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ तेज हुईं। ताँबा और टिन की मांग ने लंबी दूरी के व्यापार को बढ़ावा दिया। इन धातुओं का व्यापार अभिजात वर्ग के नियंत्रण में था और इन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में देखा गया।

3. सामाजिक प्रभाव

धातुकर्म के विकास ने एक नए विशेषज्ञ वर्ग को जन्म दिया, जिसमें कुशल कारीगर और धातुकार शामिल थे। उन्हें समाज में अधिक सम्मान प्राप्त हुआ। काँस्य से बने उपकरणों और आभूषणों का उपयोग वर्ग विभाजन का संकेत बना, जिससे समाज में असमानता बढ़ी।

4. राज्यों और शहरों के विकास में भूमिका

काँस्य की लंबी दूरी के व्यापार के कारण राजनीतिक संगठनों की जरूरत पड़ी। व्यापार को सुरक्षित रखने के लिए शहरों में राज्य संरचनाएँ विकसित हुईं। शहरों में कार्यशालाओं का विकास हुआ, जहाँ धातुकर्म गतिविधियों का संगठन और नियंत्रण राज्य के अंतर्गत था।

5. राज्य संरचना और तकनीकी प्रगति में गिरावट

काँस्य युग में राज्यों और शहरों का विकास हुआ, लेकिन राज्य संरचनाओं के पतन के साथ काँस्य युग में हासिल की गई तकनीकी प्रगति भी कम होने लगी। इस पतन के कारण कई धातुकर्म तकनीकें खत्म हो गईं।








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