सभ्यता और शहरीकरण
सभ्यता का विकास मानव इतिहास की एक लंबी और जटिल यात्रा रही है। ‘सभ्यता’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘Civilis’ से हुई है, जिसका अर्थ है नागरिक। बाद में, इसका प्रयोग ‘Civilize’ के रूप में किया जाने लगा, जो एक समाज के संगठन और उसके विकास को दर्शाता है। मानव सभ्यता का विकास शहरीकरण के साथ जुड़ा है और कैसे पुरातत्वविद इस प्रक्रिया को समझते हैं।
क्या है सभ्यता और शहरीकरण का संबंध?
शहरीकरण और सभ्यता का गहरा संबंध है। आधुनिक पुरातत्त्वविद् आमतौर पर सभ्यता को शहरीकरण, राज्य-निर्माण, और सामाजिक-आर्थिक संगठन जैसी विशेषताओं से जोड़ते हैं। शुरुआती सभ्यताएँ जैसे मेसोपोटामिया, मिस्र, और भारत की हड़प्पा सभ्यता, एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थीं और इनमें कृषि के साथ-साथ गैर-कृषि गतिविधियाँ भी थीं। इन समाजों में राज्य कराधान के माध्यम से पूंजी का संचय करता था और सामाजिक संरचना में भी जटिलता पाई जाती थी।
वी. गॉर्डन चाइल्ड का शहरीकरण और सभ्यता का सिद्धांत
प्रारंभिक सभ्यता के अध्ययन में वी. गॉर्डन चाइल्ड का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि मानव इतिहास में नवपाषाण क्रांति के बाद एक शहरी क्रांति हुई, जिसने अधिक घनी आबादी वाले शहरों का विकास किया। चाइल्ड ने सभ्यता के दस लक्षण बताए, जो हर शहरी समाज में देखे जा सकते हैं:-
1. घनी आबादी वाले शहर
2. विशेषज्ञ वर्ग (जैसे कारीगर और व्यापारी)
3. खाद्य अधिशेष
4. केंद्रीकृत प्राधिकरण और शासन
5. पूंजी संचय और संपत्ति का संग्रह
6. वर्ग-स्तरीकृत समाज
7. लेखन, विज्ञान और गणित का विकास
8. लंबी दूरी का व्यापार
9. एकीकृत धर्म
10. स्मारकीय वास्तुकला
ये लक्षण शुरुआती शहरों को संगठित और व्यवस्थित समाजों में बदलते हैं, जहाँ एक स्थायी और सुव्यवस्थित जीवन शैली पनप सकती है। मिस्र, मेसोपोटामिया, और हड़प्पा जैसे क्षेत्रों में ये लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।सभ्यता और शहरीकरण मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। वी. गॉर्डन चाइल्ड के सिद्धांत ने हमें यह समझने में मदद की है कि कैसे सभ्यता का विकास शहरीकरण और सामाजिक संगठन के साथ जुड़ा है। प्राचीन सभ्यताएँ आधुनिक समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं और हमें यह सिखाती हैं कि कैसे संगठन, नवाचार और एकता समाज के विकास में सहायक हो सकते हैं प्राचीन सभ्यताओं की योजना, जल प्रबंधन, और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ हमें बताती हैं कि सभ्यता का विकास एक दीर्घकालिक और सतत प्रक्रिया है।
मेसोपोटामिया (सुमेरियन और अक्कादियन काल)
मेसोपोटामिया का नाम ग्रीक शब्दों ‘मेसोस’ (Mesos) और ‘पोटामोस’ (Potamos) से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘दो नदियों के बीच की भूमि’। यह क्षेत्र यूफ्रेट्स और टाइग्रिस नदियों के बीच फैला है, जो वर्तमान में इराक और सीरिया के कुछ हिस्सों को कवर करता है। मेसोपोटामिया की सभ्यता को इन दोनों नदियों की देन माना जाता है और इसे दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में जाना जाता है।
भूगोल
मेसोपोटामिया में कई शहर-राज्य थे जो अक्सर सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करते थे। इस क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व बड़े शहरी केंद्रों में केंद्रित था। मेसोपोटामिया के भूगोल ने इसके विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। यह क्षेत्र विभिन्न पारिस्थितिक स्थितियों के कारण उत्तरी और दक्षिणी भागों में विभाजित था:
1. उत्तरी मेसोपोटामिया: यहाँ अधिक वर्षा होती थी, जो दोनों मौसमों में खेती का समर्थन करती थी। इस क्षेत्र को असीरिया के नाम से जाना जाता था।
2. दक्षिणी मेसोपोटामिया: इस क्षेत्र में कम वर्षा होती थी, लेकिन यहाँ टाइग्रिस और यूफ्रेट्स नदियों के जलोढ़ मैदानों के कारण मिट्टी अत्यंत उपजाऊ थी। इसे अक्कड़ और सुमेर के नाम से जाना जाता था। बाद में, दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में, सुमेरिया और अक्कड़ को संयुक्त रूप से बेबीलोनिया कहा जाने लगा, जहाँ बेबीलोन प्रमुख राजनीतिक केंद्र बन गया।
कृषि और पशुचारण
उत्तरी मेसोपोटामिया में वर्षा आधारित खेती होती थी, जबकि दक्षिण में जलोढ़ मैदानों की उपजाऊ मिट्टी पर खेती होती थी। पशुचारण कृषि का पूरक था, जिससे ऊन और दूध जैसे उत्पादों का उत्पादन होता था। ऊन एक प्रमुख निर्यात वस्तु थी, जबकि मछलियाँ और दुग्ध उत्पाद जैसे खाद्य स्रोत भोजन के सुरक्षित भंडार के रूप में कार्य करते थे।
सभ्यता का विकास
मेसोपोटामिया की भूगोल ने इस क्षेत्र में सभ्यता के विकास में सहयोग दिया, लेकिन इसके विशेष लक्षणों जैसे शिल्प कौशल, राज्य व्यवस्था, वर्ग विभाजन, व्यापार, लेखन और स्मारकीय इमारतों का उदय, मानव हस्तक्षेप और संगठन के कारण संभव हो सका।
उत्तर और दक्षिण मेसोपोटामिया का क्रमिक विकास
मेसोपोटामिया में सभ्यता का विकास क्रमिक रूप से हुआ। लगभग 6000 ईसा पूर्व, उत्तरी मेसोपोटामिया में खाद्य उत्पादन के विकास से तीन प्रमुख संस्कृतियाँ उभरीं: हसुना, समारा, और हलफ।
उत्तरी मेसोपोटामिया की संस्कृतियाँ
1. हसुना संस्कृति (6000-5500 ईसा पूर्व): इराक के टाइग्रिस नदी के तट पर स्थित हसुना में, अलग-अलग कमरों वाले घर मिले हैं। ज्यामितीय डिज़ाइनों वाले मिट्टी के बर्तन व्यापार की ओर संकेत करते हैं।
2. समारा संस्कृति (5500-5000 ईसा पूर्व): इस संस्कृति ने सिंचाई की अल्पविकसित प्रणाली शुरू की, जो जटिल सामाजिक संगठन का प्रारंभिक संकेत है।
3. हलफियन संस्कृति (5500-4500 ईसा पूर्व) : हलफ संस्कृति में ताँबे के मोती और उच्च गुणवत्ता वाले मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
दक्षिणी मेसोपोटामिया में सभ्यता का उदय
दक्षिणी मेसोपोटामिया में 5000 ईसा पूर्व के बाद बसने की प्रक्रिया शुरू हुई। यहाँ सिंचाई नहरों के निर्माण से उपजाऊ भूमि का उपयोग संभव हुआ, जिससे यह क्षेत्र प्रारंभिक काँस्य युग सभ्यता का केंद्र बना।
दक्षिणी संस्कृतियाँ :
1. अल-उबैद संस्कृति (5000-4000 ईसा पूर्व): सिंचाई प्रणाली का विकास और खेती की शुरुआत।
2. उरुक संस्कृति (4000-3200 ईसा पूर्व): शहरीकरण का आरंभ और जटिल संरचनाओं का उदय।
3. जमदत नस्र संस्कृति (3200-3000 ईसा पूर्व) : इस संस्कृति ने लेखन, सामाजिक संगठन, और कला को बढ़ावा दिया।
अल-उबैद संस्कृति
अल-उबैद संस्कृति दक्षिणी मेसोपोटामिया की पहली संगठित सभ्यता के रूप में जानी जाती है, जिसने कठोर वातावरण के अनुकूल होने और संसाधनों का उपयोग करने के प्रयास किए।
1. कृषि
प्रारंभिक बस्तियाँ मछली पकड़ने पर आधारित थीं, लेकिन इसके बाद कृषि की शुरुआत हुई। गेहूँ और जौ उगाए जाते थे, बकरियाँ और भेड़ें पाली जाती थीं, और मछली को फरात और दजला नदियों से प्राप्त किया जाता था। इस संस्कृति में ताँबे का उपयोग आरंभिक चरण में ही हो चुका था, जिससे धातुकर्म की तकनीक में निपुणता के संकेत मिलते हैं।
2. सामाजिक संरचना और भवन निर्माण
अल-उबैद संस्कृति के लोग कई-कमरों वाले आयताकार घरों में रहते थे। घरों का आकार और निर्माण सामग्री अलग-अलग थी, जो सामाजिक स्तरीकरण का संकेत देती है। धूप में सुखाई गई ईंटों का उपयोग घर बनाने के लिए किया जाता था। दफन स्थलों से प्राप्त विदेशी कच्चे माल से बनी कलाकृतियाँ भी सामाजिक वर्ग भेद की ओर इशारा करती हैं।
3. मिट्टी के बर्तन और विनिमय संबंध
हाथ से बनाए गए मिट्टी के बर्तन चीनी मिट्टी से बने होते थे। इन बर्तनों की व्यापक उपस्थिति व्यापार और विनिमय संबंधों की पुष्टि करती है।
4. सिंचाई और सामूहिक संगठन
अल-उबैद संस्कृति सिंचाई पर आधारित थी, जो सामूहिक योजना और सहयोग की मांग करती थी। सिंचाई व्यवस्था के लिए आवश्यक श्रम संगठन और बाढ़ प्रबंधन के लिए सामाजिक संरचना का उच्च स्तर विकसित हुआ।
5. धार्मिक और राजनीतिक केंद्र
अल-उबैद संस्कृति में मंदिरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो बाद में सुमेरियन सभ्यता के राजनीतिक और आर्थिक केंद्र बने। एरिड्डु के स्थल पर मिट्टी-ईंट से बने एक विशाल मंदिर का पता चला है, जो धार्मिक और सामाजिक जीवन का केंद्र था।
उरुक संस्कृति
उरुक संस्कृति मेसोपोटामिया के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसमें जनसंख्या में वृद्धि, गाँवों का विस्तार और कई तकनीकी और सांस्कृतिक नवाचार देखे गए। यह संस्कृति सुमेरियन सभ्यता की ओर बढ़ते हुए सभ्यता के प्रमुख तत्वों का आधार बनी।
प्रमुख विशेषताएँ
1. पहिए की शुरुआत: उरुक संस्कृति में पहली बार पहिए, हल और लेखन का उपयोग देखा गया। पहिए का उपयोग पहले बर्तन बनाने में हुआ और बाद में परिवहन के लिए। धातु के औजारों, जैसे कुल्हाड़ियों और आरी, ने लकड़ी को गोल आकार में काटने में मदद की।
2. कृषि का विस्तार : हल ने खेती को आसान और कम श्रम-साध्य बना दिया। पारंपरिक खेती के मुकाबले हल अधिक प्रभावी साबित हुआ, जो धातुकर्म की प्रगति पर निर्भर था।
3. लेखन की शुरुआत : लेखन का उदय उरुक संस्कृति का एक प्रमुख विकास था। आर्थिक गतिविधियों की रिकॉर्डिंग की आवश्यकता ने लेखन प्रणाली को जन्म दिया। क्यूनिफॉर्म लिपि का विकास मंदिरों में आर्थिक लेन-देन का रिकॉर्ड रखने के लिए किया गया, और इसे चित्रात्मक प्रतीकों के रूप में विकसित किया गया।
4. स्मारकीय सार्वजनिक कार्य : उरुक संस्कृति में कई शिल्प कार्य, जैसे मिट्टी के बर्तन बनाना और धातु विज्ञान में सुधार, समाज के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
5. शहरीकरण की ओर बढ़ता कदम : इस संस्कृति के अंत में कई बस्तियाँ बड़े शहरी केंद्रों में बदल गईं, जो बाद में "शहरी क्रांति" के रूप में सामने आया।
सांस्कृतिक विकास और हस्तशिल्प
उरुक संस्कृति में सिलेंडर सील और स्टैम्प का उपयोग बढ़ा। सिलेंडर सील पर पौराणिक और रोजमर्रा के जीवन के दृश्य उकेरे जाते थे और इन्हें मिट्टी पर रोल करके पहचान के लिए इस्तेमाल किया जाता था। उरुक संस्कृति सुमेरियन सभ्यता के उद्भव का अंतिम चरण था, जिसमें तकनीकी नवाचारों के साथ सामाजिक संगठन और व्यापार में भी विस्तार हुआ। यह संस्कृति उन्नति के नए स्तर पर पहुँचकर, सभ्यता की ओर ले गई, जिसे गॉर्डन चाइल्ड "शहरी क्रांति" के रूप में संदर्भित करते हैं।
जमदत नस्र संस्कृति
जमदत नस्र संस्कृति दक्षिणी मेसोपोटामिया के अक्कड़ क्षेत्र में विकसित हुई और सुमेरियन सभ्यता के उन्नति के अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व करती है।जमदत नस्र संस्कृति ने सुमेरियन सभ्यता की नींव रखी, जिससे एक संगठित समाज का विकास संभव हुआ।
मुख्य विशेषताएँ :
1. चित्रित मिट्टी के बर्तन : सुंदर बर्तन जिन पर ज्यामितीय पैटर्न और जानवरों की आकृतियाँ उकेरी गई थीं।
2. धातु और मुहरें : ताँबे की वस्तुएँ और मुहरें, जिन पर मानव और जानवरों के चित्र, व्यापार और पहचान के लिए उपयोगी थीं।
3. सिंचाई और व्यापार : उन्नत सिंचाई और व्यापार से कृषि और शिल्प उत्पादन में वृद्धि।
4. शहरीकरण : कई गाँव शहरी केंद्रों में बदले, जो बाद में बड़े शहर बने।
मेसोपोटामिया में सभ्यता और शहरीकरण का विकास
मेसोपोटामिया, खासकर दक्षिणी क्षेत्र सुमेरिया में, सभ्यता का विकास एक अद्भुत कहानी है। इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी, सामाजिक संगठन और आर्थिक प्रगति ने मानवता की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक को जन्म दिया। हालाँकि उत्तरी मेसोपोटामिया में भी सभ्यता के विकास की सभी शर्तें मौजूद थीं, लेकिन उन्नत सभ्यता वास्तव में दक्षिणी मेसोपोटामिया में सुमेरिया के क्षेत्रों में पनपी। यहाँ व्यापार, धातु विज्ञान, अधिशेष उत्पादन, सामाजिक वर्गीकरण, राज्य गठन और संगठित धर्म जैसी सभ्यता की विशेषताएँ उभरकर सामने आईं, जिनका उल्लेख वी. गॉर्डन चाइल्ड जैसे विद्वानों ने किया है।
शहरीकरण ने बस्तियों में जनसंख्या, श्रम विभाजन और कौशल विशेषज्ञता को बढ़ावा दिया। साथ ही, शहरों में राजनीतिक संगठन और कानून-व्यवस्था का भी विकास हुआ। लगभग 3000 ईसा पूर्व, उर, उरुक, और लगश जैसे शहर बड़े शहरी केंद्र बने, जो व्यापार, उत्पादन और पुनर्वितरण के केंद्र थे और प्रवासियों के लिए आकर्षण का स्थान बन गए।
मेसोपोटामिया में धातुकर्म का विकास
1. मेसोपोटामिया में बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों और खाद्य अधिशेष की आवश्यकता थी, जिसे धातु के हल और बैलों के उपयोग से पूरा किया गया। वी. गॉर्डन चाइल्ड ने शहरीकरण, धातु विज्ञान, और काँस्य युग सभ्यता के विकास के बीच कड़ी को महत्वपूर्ण बताया है।
2. धातुकर्म की उन्नति ने विशेषज्ञों के एक अलग वर्ग को जन्म दिया, जो विशेष रूप से धातु उत्पादन में संलग्न थे और कृषि पर निर्भर थे। ताँबा और टिन जैसी धातुओं के लिए लंबी दूरी पर व्यापार भी इसी अधिशेष पर आधारित था।
3. चाइल्ड के अनुसार, धातुकर्म ने शिल्प विशेषज्ञता और सामाजिक जटिलता को बढ़ावा दिया, जिससे मेसोपोटामिया में संगठित राज्य की आवश्यकता पड़ी।
मेसोपोटामिया में राज्य संगठन का विकास
1. मेसोपोटामिया में राज्य का विकास मंदिरों के इर्द-गिर्द हुआ, जो राजनीतिक और आर्थिक केंद्र थे। मंदिर सिंचाई व्यवस्था और अधिशेष खाद्य पुनर्वितरण का प्रबंधन करते थे, इसलिए इसे 'मंदिर-राज्य' कहा गया। मंदिरों की शक्ति ने पुजारियों की स्थिति को मजबूत किया।
2. राजशाही का उदय राजाओं की भूमिका धीरे-धीरे बढ़ी, और युद्धों में उनकी जीत से उनका प्रभाव बढ़ा। अंततः राजाओं ने मंदिरों की शक्ति को पीछे छोड़ते हुए शासन संभाल लिया।
3. सरगोन और एकीकरण 2350 ईसा पूर्व में, सरगोन ने अक्कड से मेसोपोटामिया को एकजुट किया, जिससे पहली बार पूरे क्षेत्र पर एक ही शासक का नियंत्रण हुआ। इससे राजशाही और अधिक संगठित हुई।
4. उर का स्वर्ण युग तीसरे राजवंश के अंतर्गत उर शहर का स्वर्ण युग शुरू हुआ, जहाँ शाही कब्रों में कीमती वस्तुएँ और धातुओं की खोज हुई, जो उस समय की समृद्धि को दर्शाती हैं।
मेसोपोटामिया : लेखन का आरंभ और सभ्यता का विकास
मेसोपोटामिया दुनिया की पहली सभ्यता थी जिसने लेखन प्रणाली विकसित की। उरुक संस्कृति के दौरान चित्रात्मक लिपि में लेखन की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य मुख्यतः आर्थिक लेन-देन का रिकॉर्ड रखना था। मंदिरों ने व्यापार और संसाधनों का प्रबंधन करने के लिए लिखित रिकॉर्ड बनाने की शुरुआत की।
यह लिपि धीरे-धीरे "क्यूनिफॉर्म" में बदल गई, जिसमें चित्रों के साथ-साथ ध्वनियों को दर्शाने वाले प्रतीक भी शामिल होने लगे। लेखन के विकास से एक नए वर्ग—लेखकों—का उदय हुआ, जो प्रशासनिक और आर्थिक रिकॉर्ड बनाए रखते थे।
मेसोपोटामिया की इस लेखन प्रणाली ने न केवल आर्थिक जरूरतों को पूरा किया बल्कि सभ्यता के इतिहास और संस्कृति को सहेजने में भी अहम भूमिका निभाई।
मेसोपोटामिया में सामाजिक स्तरीकरण
मेसोपोटामिया में नवपाषाण काल से काँस्य युग की ओर बढ़ते हुए, शिल्प विशेषज्ञता के साथ सामाजिक स्तरीकरण का विकास हुआ। शिल्प विशेषज्ञता और केंद्रीकृत सत्ता ने एक वर्ग-आधारित समाज को जन्म दिया, जिसमें शक्ति और धन कुछ लोगों, जैसे राजा, पुजारियों और अभिजात वर्ग के हाथों में केंद्रित हो गए।
उत्पादन और पुनर्वितरण पर नियंत्रण रखने वालों को अधिक संसाधन मिलते थे, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ी। इस प्रकार, मेसोपोटामिया में वर्ग भेदभाव का उदय हुआ, जिसमें सत्ता और संपत्ति के असमान वितरण ने समाज में ऊँच-नीच का आधार स्थापित किया।
मेसोपोटामिया में मंदिर और धर्म
मेसोपोटामिया में धर्म के बारे में जानकारी क्यूनिफॉर्म लिपि में लिखी मिट्टी की टेबलेट्स और पुरातात्त्विक कलाकृतियों से मिलती है। इसे दुनिया का सबसे पुराना धर्म माना जाता है, हालांकि यह एकीकृत नहीं था। यहाँ के प्रत्येक शहर का अपना देवता था, और मंदिरों को देवताओं का घर माना जाता था, जिनकी देखभाल के लिए कई मंदिर कर्मचारी नियुक्त किए गए थे।
शहरों में बड़े जिगगुराट मंदिर होते थे, जैसे उरुक का मंदिर, जो भगवान अनु को समर्पित था। सुमेरियन पुजारियों ने धार्मिक पंथों का निर्माण किया और निप्पुर शहर को सुमेरिया का धार्मिक केंद्र बनाया। प्रमुख देवताओं में एन (संप्रभु भगवान), एनिल (ब्रह्मांड के संरक्षक), और एनकी (पृथ्वी के स्वामी) थे। प्रजनन की देवी इन्ना जैसे महिला देवताओं का भी पंथ था।
मेसोपोटामिया का धर्म सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों से गहराई से जुड़ा था, और शहर-राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा का प्रभाव देवताओं की पूजा में भी दिखता था।
स्मारकीय सार्वजनिक कार्य : सुमेरियन सभ्यता में वास्तुकला का योगदान
सुमेरियन सभ्यता में मंदिरों, महलों और अन्य सार्वजनिक इमारतों का निर्माण एक महत्त्वपूर्ण पहलू था। वी. गॉर्डन चाइल्ड के अनुसार, स्मारकीय सार्वजनिक कार्य, जैसे मंदिर और महल, प्राचीन सभ्यताओं का एक मुख्य लक्षण है। इन इमारतों का उपयोग मिलन स्थल, प्रशासनिक केंद्र और धार्मिक स्थल के रूप में किया जाता था।
प्रारंभिक काल में, मंदिर सभी गतिविधियों का केंद्र थे और उच्च स्थानों पर बनाए जाते थे। बड़े मंदिरों में गोदाम, अन्न भंडार और कार्यशालाएँ थीं, जो धातुकर्मी, कुम्हार और कपड़ा श्रमिकों के लिए अनाज भंडारित करते थे। धीरे-धीरे, महलों का निर्माण शुरू हुआ और ये राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र बन गए, जिससे राजा की शक्ति में वृद्धि हुई। मंदिरों के बजाय महल अब प्रभुत्व की ओर बढ़ने लगे थे।
मेसोपोटामिया में किश का महल इसका उदाहरण है, जिसमें दो बड़े भवन और संकरी गलियाँ थीं। इस प्रकार, स्मारकीय वास्तुकला, जिसमें मंदिर और महल शामिल थे, सुमेरियन समाज में सत्ता और प्रशासन के प्रतीक बने।
मेसोपोटामिया में व्यापार का विकास
यूफ्रेट्स और टाइग्रिस नदियों की निकटता ने मेसोपोटामिया में व्यापार को बढ़ावा दिया। यहाँ अंतर-क्षेत्रीय व्यापार केंद्रीकृत एजेंसियों द्वारा संचालित था, जो अनाज, मछली, और जानवरों का विनिमय करते थे। प्रशासनिक अधिकारियों को माल के परिवहन और नहरों की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया था।
साक्ष्य बताते हैं कि यहाँ लंबी दूरी के व्यापार की भी व्यवस्था थी, जिसे मंदिर और बाद में महल आयोजित करते थे। सुमेरियों के पास ताँबा, कीमती पत्थर, और निर्माण सामग्री जैसी चीजों की कमी थी, जो शिल्प और निर्माण के लिए आवश्यक थीं। इसलिए, सुमेरियों ने युद्ध के बजाय विनिमय के माध्यम से इन संसाधनों की खरीद को प्राथमिकता दी। उन्होंने ईरान, सीरिया, अनातोलिया और भारत जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए। प्रारंभ में, मंदिर इस व्यापार का आयोजन करते थे, लेकिन बाद में राज्य ने इस भूमिका को अपने हाथ में ले लिया।
मिस्र की सभ्यता
भूगोल का प्रभाव
मिस्र की प्राचीन सभ्यता का उदय मेसोपोटामिया के समान, अपनी प्राकृतिक परिस्थितियों के आधार पर हुआ, और नील नदी की प्रमुख भूमिका रही। मिस्र की भौगोलिक विशेषताओं में नील नदी का योगदान रहा है
1. नील नदी की अहमियत : यूनानी भूगोलवेत्ता हेकेटियस ने मिस्र को "नील का उपहार" कहा। नील नदी की वार्षिक बाढ़ ने मिट्टी में उपजाऊ गाद जमा की, जिससे मिस्र में कृषि फली-फूली और एक समृद्ध सभ्यता का निर्माण हुआ।
2. बाढ़ और उपजाऊ भूमि : मिस्र में नील की वार्षिक बाढ़ ने उर्वरता बढ़ाई और खेतों को पोषक तत्वों से समृद्ध किया। मिस्रवासी इस उपजाऊ काली मिट्टी को 'केमेट' (Kemet) कहते थे। इन बाढ़ के मैदानों में बसी मिस्र की सभ्यता ने कृषि के आधार पर अपनी अर्थव्यवस्था को स्थापित किया।
3. रेगिस्तानों से घिरा : मिस्र के दोनों ओर स्थित अरब और सहारा रेगिस्तान ने इसे प्राकृतिक सुरक्षा दी। इन रेगिस्तानों ने मिस्र को बाहरी आक्रमणों से बचाए रखा और एक संरक्षित वातावरण प्रदान किया, जहाँ समाज का विकास हो सका।
4. संसाधनों की समृद्धि : मिस्र में सोना, ताँबा और कीमती पत्थरों के विशाल भंडार थे, जो इसके आर्थिक विकास में सहायक बने।
5. आसान नौवहन मार्ग : नील ने माल और वस्तुओं की आवाजाही के लिए एक आसान और शांतिपूर्ण नौवहन मार्ग प्रदान किया। इसके शांत जल ने मिस्र के भीतर और बाहरी क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंधों को स्थापित करने में मदद की।
6. ऊपरी और निचला मिस्र का विभाजन : नील नदी ने मिस्र को दो भागों में विभाजित किया- ऊपरी मिस्र और निचला मिस्र। यद्यपि सभ्यता का आरंभ ऊपरी मिस्र से हुआ, लेकिन बाद में डेल्टा क्षेत्र कृषि का मुख्य केंद्र बन गया।
मिस्र का सभ्यतागत विकास
मिस्र में सभ्यता का विकास नील नदी की देन था। यहाँ के लोगों ने इस उपजाऊ और सुरक्षात्मक भूमि में कृषि, व्यापार, कला, और वास्तुकला का विकास किया। मिस्र की प्राचीन सभ्यता ने न केवल अद्भुत पिरामिड बनाए बल्कि ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति और समाज के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान दिया।
मिस्र में सभ्यता का संक्रमणकालीन चरण
मिस्र में नवपाषाण युग से काँस्य युग की ओर तेजी से विकास हुआ, और लगभग 5000 साल पहले पूरा क्षेत्र एक राजनीतिक इकाई में बदल गया। इस समय के संक्रमण में कई संस्कृतियों का योगदान रहा:
प्रारंभिक नवपाषाण बस्तियाँ
1. फयूम और मेरिमडे : फयूम में लोग मछली पकड़ते, शिकार करते, और अनाज उगाते थे। मेरिमडे में लोग व्यवस्थित घरों में रहते थे, खेती करते और जानवर पालते थे।
2. मादी संस्कृति (निचला मिस्र, 3900-3500 ईसा पूर्व): निचले मिस्र के डेल्टा क्षेत्र में फैली इस संस्कृति में लोग अनाज की खेती और भेड़-बकरी पालने पर निर्भर थे। यहाँ चूल्हा, जार, और पत्थर के बर्तन जैसे उपकरण भी मिले हैं। मादी संस्कृति ने मेसोपोटामिया और भूमध्यसागरीय क्षेत्र के साथ व्यापार संबंध भी स्थापित किए।
3. नक़ादा संस्कृति (ऊपरी मिस्र)
इस संस्कृति के चार प्रमुख चरण थे
1. बदेरियन : इस चरण में खेती, मवेशी पालन, और मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन शुरू हुआ।
2. अमराटियन (एल-अमरा) : इस चरण में ताँबे के औजारों का उपयोग और नील नदी की बाढ़ का कुशल उपयोग बढ़ा।
3. गर्जियन (एल-गर्जे): लोग सिंचाई के कृत्रिम साधनों का उपयोग करने लगे। अतिरिक्त उत्पादन और जनसंख्या वृद्धि हुई, और इस समय से ताँबे की वस्तुएं बनने लगीं।
नक़ादा III : यह ऊपरी मिस्र का अंतिम चरण था, जिसमें राज्य गठन, शहरीकरण और सामाजिक स्तरीकरण की शुरुआत हुई। इसी दौरान मिस्र में लेखन का सबसे पहला प्रमाण भी मिला।
प्रमुख बदलाव
1. कृषि का विकास : लोग नील नदी की उपजाऊ भूमि का उपयोग करके कृषि के अधिक कुशल साधन अपनाने लगे।
2. व्यापार : मिस्र के लोगों ने भूमध्यसागरीय और अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
3. शहरीकरण और राज्य निर्माण : नक़ादा III के दौरान प्रमुख शहर-राज्यों का उदय हुआ, जिसने मिस्र में एक संगठित सभ्यता की नींव रखी।
4. लेखन का प्रारंभ : इस चरण में मिस्र में लेखन का सबसे पहला प्रमाण मिलता है, जिससे शासकों के नाम और सामाजिक व्यवस्था की झलक मिलती है।
शहरीकरण
1. शहरों का विकास : नक़ादा III या मिस्र के पूर्व-वंशीय चरण में नेखेन, अब्दु, और नक़ादा जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों का विकास हुआ। नेखेन, जिसे "फाल्कन शहर" भी कहा जाता है, 3100 ईसा पूर्व तक मिस्र के सबसे बड़े शहरी केंद्रों में से एक बन गया।
2. शहरों की संरचना : लोग मिट्टी की ईंटों और प्लास्टर से बने घरों में रहते थे। घरों के विभिन्न आकारों से सामाजिक भेदभाव का संकेत मिलता है, जिसमें व्यापारी और कारीगर बड़े घरों में रहते थे। यह वर्ग विभाजन और व्यापारिक गतिविधियों की ओर संकेत करता है।
3. सामाजिक भेदभाव : कब्रों में चीनी मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औजार, और आभूषण जैसी वस्तुओं की उपस्थिति भी सामाजिक स्तर का संकेत देती है। भेड़ और बकरी पालन का भी प्रमाण मिलता है।
4. धार्मिक स्थल : नेखेन मिस्र के सबसे पुराने मंदिर के प्रमाण भी प्रदान करता है, जिससे धार्मिक गतिविधियों का भी पता चलता है। साथ ही, नहरों के साक्ष्य दर्शाते हैं कि सिंचाई प्रणाली द्वारा बड़ी आबादी का समर्थन किया जा रहा था।
लेखन
1. प्रारंभिक लेखन प्रणाली : मिस्र में सबसे शुरुआती लेखन प्रणाली को "चित्रलिपि" या "पवित्र नक्काशी" कहा जाता था, जिसे यूनानी शासकों ने 332 ईसा पूर्व में "हाइरोग्लिफ़िक्स" कहा। चित्रलिपि में चित्र और ध्वन्यात्मक संकेतों का संयोजन था और इसे मंदिरों, मकबरों और पत्थरों पर उकेरा गया।
2.मेसोपोटामिया का प्रभाव : ऐसा माना जाता है कि मिस्र की चित्रलिपि प्रणाली मेसोपोटामिया की चित्रात्मक लेखन शैली से प्रेरित थी।
3. पेपिरस पर लेखन : मिस्र में लिखने के लिए पेपिरस का भी उपयोग होता था। प्रशासनिक कार्यों, धार्मिक मान्यताओं और कब्रों की सजावट में इसका प्रमुख उपयोग था।
4. नर्मर पैलेट : नर्मर पैलेट मिस्र की चित्रलिपि का एक प्रारंभिक उदाहरण है, जिसमें नेखेन के राजा नर्मर के जीवन के दृश्यों को उकेरा गया है।
मिस्र में राज्य और शाही व्यवस्था
1. मनेथो की ऐतिहासिक रचना : मनेथो, एक मिस्री पुजारी, ने मिस्र के 31 राजवंशों का संकलन किया, जो मिस्र के राजनीतिक इतिहास को समझने का मुख्य आधार है। इसमें प्राचीन काल से लेकर सिकंदर महान के विजय तक का विवरण है।
2. राज्य का विकास और एकीकरण : नर्मर (मेनस) नामक शासक ने ऊपरी और निचले मिस्र का एकीकरण किया। इस दौरान, मिस्र में बाईस "नोम्स" (प्रशासनिक इकाइयाँ) स्थापित हुईं। एकीकरण के प्रतीक के रूप में नर्मर ने मेम्फिस को राजधानी बनाया। इन राजवंशों को थिनाइट राजवंश भी कहा जाता है, और इनके शासन के दौरान मिस्र में शक्ति का केंद्रीकरण हुआ।
3. शासन संरचना और फिरौन की भूमिका: फिरौन राज्य का सर्वशक्तिमान सम्राट था और मिस्र में सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक था। उसे दैवीय शक्ति से युक्त माना जाता था। प्रांतीय सरदारों और छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर प्रशासनिक इकाइयाँ (नोम्स) बनाई गईं। सिंचाई की देखरेख, कर संग्रह, और अधिशेष का पुनर्वितरण फिरौन की मुख्य जिम्मेदारियाँ थीं। इसे केंद्रीकृत नौकरशाही, विशेषकर 'एडजमेर' नामक अधिकारी द्वारा समर्थन प्राप्त था।
4. पुराना साम्राज्य और शाही पूजा का विकास : पुराना साम्राज्य मेम्फिस से शासित था, जहाँ पिरामिड और महलों का निर्माण हुआ।पाँचवें राजवंश तक फिरौन को 'रे का पुत्र' माना गया और उसे देवता की तरह पूजा जाने लगा। फिरौन की मृत्यु के बाद उसे ओसिरिस (मृतकों का देवता) माना जाता था। महान पिरामिड का निर्माण उसकी अमरता का प्रतीक है, जो स्वर्ग तक पहुँचने का मार्ग माना गया था।
मिस्र की सभ्यता में स्मारकीय सार्वजनिक कार्य
1. शाही मकबरों का निर्माण : मिस्र में भवन निर्माण की शुरुआत पुरातन काल के शासकों के तहत शाही मकबरों के निर्माण से हुई।पहले राजवंश के शासकों के मकबरे मिले हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मकबरा सक्कारा में स्थित है।
2. पहला पिरामिड - जोसर का स्टेप पिरामिड : तीसरे राजवंश के दौरान, जोसर ने सक्कारा में स्टेप पिरामिड का निर्माण करवाया। यह मकबरा एक विशाल प्रांगण में पत्थर की मोटी दीवार से घिरा था और यह चूना पत्थर से बना पहला शाही मकबरा था।
3. गीज़ा का महान पिरामिड और सच्चे पिरामिड का उदय : पुराने राजवंश के दौरान पिरामिड निर्माण अपने चरम पर पहुँच गया और गीज़ा के सच्चे पिरामिडों का निर्माण हुआ।सबसे ऊँचा पिरामिड चेप्स (Cheops) द्वारा बनवाया गया, जिसके अंदरूनी डिज़ाइन में अंतिम संस्कार कक्ष की ओर जाने वाले गलियारे शामिल थे।
4. पिरामिड निर्माण में गिरावट : चौथे राजवंश के बाद पिरामिड निर्माण में गिरावट आई, जो राज्य में आर्थिक संकट की ओर संकेत करता है।
5. अधिकारियों के कब्रिस्तान : फिरौन के आसपास उच्च-स्तरीय अधिकारियों के कब्रिस्तान थे, जो उनकी मृत्यु के बाद भी राजा के प्रभाव और नियंत्रण का प्रतीक थे।
मिस्र में धर्म और समाज
प्राकृतिक शक्तियों की पूजा
मिस्र के धर्म में प्रकृति की शक्तियों जैसे पौधे, जानवर, सूर्य, जल और आकाश की पूजा होती थी। प्राकृतिक शक्तियों और पूर्वजों की पूजा धार्मिक जीवन का प्रमुख हिस्सा थी।
राज्य द्वारा धर्म का नियंत्रण
धर्म को राज्य द्वारा संस्थागत और नियंत्रित किया गया, और राजा को सर्वोच्च देवता के रूप में माना जाने लगा। पुरोहित वर्ग ने राजा की ईश्वरीय स्थिति को स्वीकार्यता दी, जिससे राजा का सत्तावादी चरित्र और बढ़ गया।
1. मृत्युपरांत जीवन में विश्वास : मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास ने मृतकों के अवशेषों के संरक्षण और विस्तृत अंतिम संस्कार की परंपराओं को जन्म दिया।
2. देवताओं के पंथ : एकीकृत मिस्र में भी कई अलग-अलग पंथों का पालन जारी रहा, लेकिन धीरे-धीरे महिला देवताओं का महत्व कम हुआ और पुरुष देवताओं के साथ जोड़ दिया गया। यह पितृसत्तात्मक समाज का संकेत था, जैसे कि देवी सेखमत और आइसिस को क्रमशः देवताओं पट्टा और ओसिरिस की साथी के रूप में पूजा गया। धार्मिक पंथों का केंद्र राजा था, और उसने राज्य के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में केंद्रीय भूमिका निभाई। सूर्य देव 'रे' की पूजा को राज्य द्वारा प्रोत्साहित किया गया, जिससे राजा की स्थिति एक धर्मिक नेता के रूप में और भी मजबूत हुई।