भारत में लोक प्रशासन UNIT - 1 SEMESTER -1 NOTES भारतीय प्रशासन Indian Administration Political DU. SOL.DU NEP COURSES

भारत में लोक प्रशासन UNIT - 1 SAMESTER -1 NOTES भारतीय  प्रशासन Political DU. SOL.DU NEP COURSES


लोक प्रशासन

लोक प्रशासन एक स्वतंत्र विषय के रूप में लगभग एक सदी पहले स्थापित हुआ। भारत में इसकी शुरुआत 1937 में हुई, जब मद्रास विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू हुआ। 1954 में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) की स्थापना की गई, जो विभिन्न सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसके बाद, राज्यों में लोक प्रशासन संस्थानों और अकादमियों की स्थापना हुई, जैसे 1957 में जयपुर, राजस्थान में हरिश्चंद्र माथुर राज्य लोक प्रशासन संस्थान (HCM RIPA)। आज भारत में 30 राज्य प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान हैं। वुडरो विल्सन के अनुसार, "लोक प्रशासन कानून का व्यवस्थित और विस्तृत अनुप्रयोग है।" यह विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका को समाहित करता है और निजी प्रशासन से भिन्न होता है। राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, जिसे अब लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (LBSNAA) के नाम से जाना जाता है, भारत का प्रमुख प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान है।1986 से संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने लोक प्रशासन को एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता दी, और अब यह राज्यों के लोक सेवा आयोगों में भी एक विकल्प के रूप में शामिल है।


 सिविल सेवाओं की संरचना

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समय, सिविल सेवा संरचना को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था: सैन्य, नौसेना, और वाणिज्यिक सेवाएँ। वाणिज्यिक सेवाओं में कार्यरत लोगों को ही 'सिविल सेवाएँ' कहा गया। गवर्नर जनरल चार्ल्स कॉर्नवालिस ने सिविल सेवाओं को सशक्त बनाया, जिससे उन्हें भारत की सिविल सेवा का जनक माना जाता है। उन्होंने सिविल सेवकों का वेतन बढ़ाया और निजी व्यापार में उनके भाग लेने पर रोक लगाई।

कॉर्नवालिस के तहत सिविल सेवाओं को दो श्रेणियों में बाँटा गया:

  • अनुबंधित (Covenanted) सेवाएँ - उच्च पद, केवल अंग्रेजों के लिए।
  • असंबद्ध (Uncovenanted) सेवाएँ - निचले पद, जिसमें भारतीय भी शामिल हो सकते थे।

रिचर्ड वेलेस्ली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की, जिससे सिविल सेवकों को प्रशिक्षण दिया जा सके। 1853 के चार्टर एक्ट के बाद, सिविल सेवा में भर्ती खुली प्रतियोगिता के आधार पर होने लगी। 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना हुई, और 1855 में सिविल सेवा परीक्षा आयोजित की जाने लगी।

1861 में भारतीय सिविल सेवा अधिनियम पारित हुआ, जिससे भारतीय भी अनुबंधित सेवाओं में प्रवेश पा सके। 1863 में सत्येंद्रनाथ टैगोर इस परीक्षा में सफल होने वाले पहले भारतीय बने। बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ली कमीशन ने सिविल सेवाओं में सुधार और भारतीयों के लिए अवसर बढ़ाने की माँग की, जिससे धीरे-धीरे सिविल सेवाओं में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ा।


औपनिवेशिक विरासत

औपनिवेशिक विरासत भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव की एक स्थायी छाप छोड़ गई। ब्रिटिश शासन ने भारत में लगभग 200 वर्षों तक अपना नियंत्रण बनाए रखा, जिसमें भारतीय समाज, प्रशासन और राजनीति में अनेक परिवर्तन किए गए। यह उपनिवेशवादी व्यवस्था निम्नलिखित प्रमुख घटनाओं से विकसित हुई :-

  • प्लासी का युद्ध (1757): भारत में ब्रिटिश शासन की नींव इस युद्ध में नवाब सिराजुद्दौला की हार के साथ पड़ी, जिससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक शासक शक्ति बन गई।
  • फ्रांसीसियों की हार (1763): ब्रिटिश सेना ने फ्रांसीसियों को पराजित किया और पेरिस की संधि के साथ फ्रांस ने भारत पर अपना प्रभाव खो दिया, जिससे ब्रिटिशों का वर्चस्व बढ़ गया।
  • बक्सर की लड़ाई (1764): मीर कासिम की हार के बाद, कंपनी ने भारत के विशाल हिस्सों पर अधिकार स्थापित कर लिया और 1765 से 1857 तक कंपनी का शासन मजबूत हो गया।
  • 1857 का विद्रोह: इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, परंतु इसकी असफलता के बाद भारत पर प्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन लागू किया गया।

इस उपनिवेशवादी शासन ने भारतीय प्रशासनिक संरचना, न्याय प्रणाली, राजस्व संग्रहण और कई अन्य क्षेत्रों में गहरा प्रभाव डाला, जिसने आधुनिक भारतीय राज्य की नींव रखी।भारतीय संविधान में सिविल सेवाओं की संरचना, नियुक्ति, प्रशिक्षण और पदोन्नति के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं, जो सिविल सेवाओं के कार्य संचालन और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं।


अखिल भारतीय सेवाएँ

अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र और राज्य दोनों के लिए कार्यरत होती हैं, जिनमें प्रमुख सेवाएँ हैं:

1. भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)

2. भारतीय पुलिस सेवा (IPS)

3. भारतीय वन सेवा (IFS)


संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 309: संसद को भर्ती और सेवा शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 310: अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करते हैं।
  • अनुच्छेद 311: सिविल सेवकों को उनके नियुक्तिकर्ता से कम रैंक के अधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 312: नई अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन संसद द्वारा राज्य सभा के प्रस्ताव पर किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 323: प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान, जो सेवाओं से जुड़े विवादों का निपटारा करती है।
  • अनुच्छेद 335: अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के दावों का ध्यान रखा जाएगा।
  • अनुच्छेद 320: सिविल सेवाओं की भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से परामर्श लेना अनिवार्य है।


भर्ती प्रक्रिया

सिविल सेवाओं में भर्ती के तीन तरीके होते हैं:

  • परीक्षा द्वारा सीधी भर्ती: UPSC द्वारा आयोजित परीक्षा तीन चरणों—प्रारंभिक, मुख्य, और व्यक्तित्व परीक्षण में होती है।
  • पदोन्नति: पदोन्नति का अर्थ एक उच्च पद पर जाना होता है।
  • स्थानांतरण: एक ही स्तर पर अन्य कार्यक्षेत्र में स्थानांतरण।


पदोन्नति

पदोन्नति से जिम्मेदारियों और वेतन में वृद्धि होती है। यह मुख्यतः तीन सिद्धांतों पर आधारित होती है:

1. वरिष्ठता पर आधारित पदोन्नति

2. योग्यता पर आधारित पदोन्नति

3. वरिष्ठता-योग्यता पर आधारित पदोन्नति


अन्य पद संबंधी अवधारणाएँ हैं:

  • स्थानांतरण (Transfer): एक ही पद पर अन्य कार्यक्षेत्र में बदलाव।
  • पुनः समनुदेशन (Re-assignment): कार्य का परिवर्तन, बिना रैंक बदलाव के।
  • उन्नति (Advancement): वेतन में वृद्धि।

इन संवैधानिक और प्रशासनिक प्रावधानों का उद्देश्य सिविल सेवाओं के कार्य संचालन, विकास, और सरकार के प्रशासनिक ढाँचे में संतुलन बनाए रखना है।


राज्य में IAS/IPS अफसरों के पद


राज्य में IAS/IPS अफसरों के पद




मंत्रिमंडल सचिवालय की भूमिका

मंत्रिमंडल सचिवालय का उद्देश्य सरकार के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना और नीति निर्माण में सहायक भूमिका निभाना है। यह प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करता है और मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करता है:

  • कैबिनेट समितियों और कैबिनेट को सचिवीय सहायता प्रदान करना: एजेंडा तैयार करना, कार्यसूची के कागजात तैयार करना, निर्णयों की निगरानी करना, और चर्चाओं का रिकॉर्ड रखना।
  • विभागीय समन्वय: प्रत्येक मंत्रालय के बीच सहयोग स्थापित करना और नीतियों के सुचारु कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना।
  • नियमों का अनुपालन: व्यापार नियमों और आवंटन नियमों का पालन सुनिश्चित करना ताकि प्रशासन सुचारू रूप से चल सके।
  • सूचना प्रसारण: राष्ट्रपति, मंत्रियों, और उपराष्ट्रपति को मंत्रालयों की मासिक गतिविधियों से अवगत कराना।


प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की भूमिका

भारत के प्रधानमंत्री केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं और संसदीय लोकतंत्र में सरकारी कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं। प्रधानमंत्री अपने मंत्रिपरिषद् की सहायता से सभी मंत्रालयों के कार्यों का निरीक्षण करते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) उन्हें सचिवीय सहायता प्रदान करता है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव करते हैं। यह कार्यालय भ्रष्टाचार-निरोधक इकाई भी शामिल करता है और कई प्रमुख मामलों में प्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाता है।

PMO की मुख्य भूमिकाएँ:-

1. नीति निर्माण और निगरानी: PMO नीति की समीक्षा, निगरानी, और सुधार में सहायक है। प्रधानमंत्री के निर्देशों पर विशेष एजेंसियों के माध्यम से निगरानी की जा सकती है।

2. प्रमुख मामलों का पर्यवेक्षण:

  • रक्षा और सुरक्षा: रक्षा से जुड़े विषयों पर विशेष ध्यान देना।
  • न्यायिक नियुक्तियाँ: उच्च स्तरीय न्यायिक नियुक्तियों के लिए वरीयता अनुमोदन।


प्रशासनिक सुधार

भारत में प्रशासनिक सुधारों की यात्रा बीते दशकों में काफी अहम रही है। सुधारों का उद्देश्य प्रशासन को पारदर्शी, कुशल और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है।


प्रशासनिक सुधारों की प्रमुख पहल

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (1964) - केंद्र सरकार के कार्यालयों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इसे स्थापित किया गया।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) - पहला आयोग 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में और दूसरा 2005 में के. हनुमंधिया और वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बना। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुधारों की पहचान और कार्यान्वयन करना था।

  • 1999 में राष्ट्रीय विकास परिषद में सुधार का आह्वान - तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नौकरशाही में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्ति पर जोर दिया।


प्रशासनिक सुधारों का उद्देश्य

सुधारों का उद्देश्य प्रशासन को समाज की नई मांगों के अनुरूप ढालना है। प्रशासनिक सुधार समाज में एक धीमी और सतत प्रक्रिया के रूप में लागू किए जाते हैं, ताकि ये व्यवस्थागत सुधार बन सकें।

सुधार के मुख्य प्रकार

  • संरचनात्मक सुधार - नई पद्धतियाँ और प्रणाली शामिल करना।
  • व्यवहारात्मक सुधार - अधिकारियों को जनता के साथ उचित व्यवहार के लिए प्रेरित करना।
  • संगठनात्मक विकास - संगठनों की कार्यक्षमता और प्रभावशीलता को बढ़ाना।


सुधारों के कार्यान्वयन के तरीके

  • राजनीतिक क्रांति - कुछ देशों में क्रांति के माध्यम से सुधार हुए हैं, जैसे रूस और चीन में।
  • कानूनी तरीके - भारत और अमेरिका जैसे देशों में कानूनों के माध्यम से सुधार लागू होते हैं।
  • जनता का दबाव - कई बार जनता का दबाव प्रशासनिक सुधारों का कारण बनता है।


सुधार के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित

  • चुनावी प्रणाली
  • जनसंख्या नियंत्रण
  • सार्वजनिक स्वच्छता
  • नशीली दवाओं पर नियंत्रण
  • विदेशी मामले


सुधारों की चुनौतियाँ

प्रशासनिक सुधारों की सफलता में मुख्य चुनौतियाँ इनका प्रभावी कार्यान्वयन और दीर्घकालिक योजना का अभाव हैं। सुधारों को स्थायी बनाए रखने के लिए जनता की भागीदारी भी आवश्यक है। समाज के विभिन्न वर्गों की अपेक्षाओं में अंतर होने के कारण भी कई बार सुधार असफल हो जाते हैं।

  • सिविल सेवा और प्रशासनिक सुधार: सिविल सेवाओं से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देना।
  • राज्य संबंधी प्रावधान: राज्यों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा और प्रशासनिक मामलों में राज्य न्यायाधिकरणों में नियुक्तियाँ।
  • चुनावी और संवैधानिक नियुक्तियाँ: चुनाव आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, और अन्य संवैधानिक समितियों की नियुक्तियाँ।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते: विदेशी प्रमुखों के साथ समझौते और अनुमोदन प्रक्रिया।




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.