भारत में लोक प्रशासन UNIT - 4 SEMESTER -1 NOTES भारत में प्रौद्योगिकी और लोक प्रशासन Political DU. SOL.DU NEP COURSES

भारत में लोक प्रशासन UNIT - 4 SEMESTER -1 NOTES भारत में प्रौद्योगिकी और लोक प्रशासन Political DU. SOL.DU NEP COURSES



लोकतंत्र का उद्देश्य नागरिकों का कल्याण और उन्हें मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करना है। शासन, जिसमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका शामिल हैं, कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के दौर में, वैश्वीकरण, उदारीकरण, और सूचना-संचार तकनीक के माध्यम से शासन पारदर्शी और सुलभ हो गया है। इसके साथ-साथ बाजार और नागरिक समाज की भूमिका भी बढ़ी है, और ई-गवर्नेस को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है।

सुशासन की अवधारणा

सुशासन का मतलब है जब सरकार, नागरिक समाज, स्थानीय सरकारें, स्वैच्छिक संगठन, सामुदायिक संगठन, हित समूह, मीडिया आदि मिलकर सार्वजनिक नीति निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन में भाग लेते हैं। इसे हम एक समावेशी और नागरिकोन्मुखी प्रक्रिया मान सकते हैं, जिसमें जनभागीदारी, जनकल्याण और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्राथमिकता दी जाती है।

सुशासन को निम्नलिखित तरीके से भी समझा जा सकता है:

  • जटिल संबंध: सुशासन सरकार, बाजार और नागरिक समाज के बीच एक जटिल संबंध है। यह तीनों अभिकर्ताओं का आपसी जुड़ाव और सहयोग है।
  • दीवारों का समाप्त होना: सुशासन में राज्य, बाजार और नागरिक समाज के बीच की दीवारें समाप्त हो जाती हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामूहिक समाधान किया जा सकता है।
  • शक्ति निर्भरता: सुशासन में राज्य, बाजार और नागरिक समाज के बीच शक्ति निर्भरता का संबंध होता है, जो उन्हें सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
  • स्वशासन: सुशासन स्वशासन संस्थाओं का एक रूप है, जहां संस्थाएँ अपने-अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं, लेकिन सामान्य हित के लिए मिलकर कार्य करती हैं।
  • प्रोसेस और यंत्र: सुशासन एक प्रक्रिया है, जो सरकार को समाज, अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी भूमिका निभाने के लिए नए उपकरण और संसाधन प्रदान करती है, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय मान्यता बढ़ती है।


भारत में सुशासन

भारत में रामराज्य के रूप में सुशासन की अवधारणा प्राचीन काल से ही देखी जा सकती है। कौटिल्य ने अपनी रचनाओं, विशेष रूप से अर्थशास्त्र में, सुशासन के संकेतों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा था:

"प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम् नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्"

इसका अर्थ है कि राजा का सुख प्रजा के सुख में निहित है, और राजा को प्रजा के हित में अपने हित को देखना चाहिए। इसके अलावा, वैदिक साहित्य में "सर्वे भवंतु सुखिन," "वसुधैव कुटुंबकम" और "असतो मा सद्गमय" जैसे विचार सुशासन के सिद्धांतों को दर्शाते हैं।

स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान ने सुशासन की अवधारणा को व्यावहारिक रूप दिया और इसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में लागू किया। भारतीय संविधान और शासन व्यवस्था में सुशासन के लक्षण निम्नलिखित रूप में देखे जा सकते हैं:-

  • संविधान की प्रस्तावना: यह लोकतंत्र, गणराज्य, और समानता जैसे सिद्धांतों को स्थापित करती है।
  • मूल अधिकार: यह नागरिकों को उनके अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा प्रदान करता है।
  • पंथनिरपेक्ष शासन की स्थापना और धार्मिक स्वतंत्रता: यह सभी धर्मों को समान अधिकार प्रदान करता है।
  • नीति निर्देशक तत्व: ये सरकार के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं ताकि समाज में समग्र कल्याण सुनिश्चित किया जा सके।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन: यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना: यह न्याय का वितरण और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।


ई-गवर्नेस - सुशासन का एक घटक

ई-गवर्नेस से तात्पर्य है सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का सरकारी कार्यों में उपयोग, ताकि सरकार को स्मार्ट-गवर्नेस में परिवर्तित किया जा सके। ICT के उद्भव ने सरकारी कार्यों को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए तेज़ और बेहतर संचार के साधन प्रदान किए हैं।

1. ई-गवर्नेस के उद्देश्य:

  • सुलभ सेवाएँ: ई-गवर्नेस नागरिकों को सरकारी सेवाओं तक आसानी से पहुँच प्रदान करता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकारी प्रक्रियाओं को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने में मदद करता है।
  • सरकारी कार्यों का पुनर्निर्माण: इससे सरकारी कार्यों और प्रक्रियाओं का सुधार हुआ है, जिससे सरकार अधिक सक्षम और कुशल बन गई है।

2. ई-गवर्नेस के लाभ

  • नागरिकों को बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  • व्यवसायों के साथ बेहतर परस्पर क्रियाएँ।
  • नागरिकों का सशक्तीकरण।
  • सरकारी सूचना का बेहतर प्रबंधन।

विश्व बैंक के अनुसार, ई-गवर्नेस का मतलब है सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरनेट, मोबाइल, और कंप्यूटर) का उपयोग सरकारी कार्यों में, जिससे नागरिकों और सरकार के बीच संबंध बेहतर होते हैं और प्रशासनिक कार्यों में सुधार आता है।


ई-गवर्नेस के आयाम

  • G2G (Government to Government): इसमें सरकारी संगठनों के बीच ICT का उपयोग सूचना और आदेशों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है, जिससे कार्य क्षमता, उत्पादकता और प्रशासन में सुधार होता है। उदाहरण: आंध्र प्रदेश की स्मार्ट सरकार परियोजना।
  • G2C (Government to Citizen): यह नागरिकों को सरकार से 24×7 सेवाएँ प्रदान करता है, जिससे उनकी सरकारी सेवाओं तक पहुँच बेहतर होती है। उदाहरण: ऑनलाइन टैक्स भुगतान और शैक्षिक प्रमाणपत्र प्राप्ति।
  • G2B (Government to Business): इसमें सरकार और व्यावसायिक संस्थाओं के बीच सहयोग बढ़ता है, जैसे ऑनलाइन ट्रेडिंग और टेंडर जारी करना। उदाहरण: ऑनलाइन टेंडर और व्यवसायों के लिए सरकारी परियोजनाएँ।
  • G2E (Government to Employee): इसमें सरकार अपने कर्मचारियों से परस्पर क्रिया करती है, जैसे प्रशिक्षण, वेतन भुगतान और अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाएँ। उदाहरण: कर्मचारियों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण और वेतन भुगतान प्रणाली।


ई-गवर्नेस के मॉडल

  • प्रसारण मॉडल: यह मॉडल सूचना के प्रचार पर आधारित है, जो आई.सी.टी के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध कराई जाती है। इसका उद्देश्य नागरिकों को सही और संगत सूचनाएँ देना ताकि वे शासन के कार्यों का बेहतर मूल्यांकन कर सकें।
  • आलोचनात्मक प्रवाह मॉडल: यह मॉडल लक्ष्य पर आधारित है, जो आई.सी.टी का उपयोग करके दूरियाँ समाप्त करता है और लक्षित समूहों को सही समय पर सूचनाएँ प्रदान करता है।
  • तुलनात्मक विश्लेषण मॉडल: यह मॉडल विकासशील देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसमें ई-गवर्नेंस की सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाया जाता है और अन्य देशों के शासन पद्धतियों से तुलना कर मानक तय किए जाते हैं।
  • समर्थनकारी मॉडल: यह मॉडल स्थानीय समुदायों की राय और समस्याओं को जोड़कर ग्लोबल इंटरएक्शन का निर्माण करता है, जिससे वैश्विक सिविल सोसाइटी को नीति निर्माण में प्रभाव डालने में मदद मिलती है।
  • अन्योन्य सेवा मॉडल: यह मॉडल शासन में नागरिकों की प्रत्यक्ष सहभागिता को बढ़ाता है और आई.सी.टी के माध्यम से निर्णय प्रक्रिया को पारदर्शी बनाता है। इसमें ई-वोटिंग, ऑनलाइन शिकायत निवारण, और ई-लोकतंत्र जैसी सेवाएँ शामिल होती हैं।


भारत में ई-गवर्नेस का विकास

भारत में ई-गवर्नेस की शुरुआत 1970 के दशक से मानी जाती है, जब सूचना और संचार टेक्नोलॉजी का उपयोग योजना, आर्थिक निगरानी, जनगणना, चुनाव, टैक्स प्रशासन आदि क्षेत्रों में आँकड़ों के प्रबंधन के लिए किया गया। 1980 के दशक में इसका विस्तार राज्यव्यापी क्षेत्र में हुआ, जहाँ राज्य स्तर पर एरिया नेटवर्क और संचार टेक्नोलॉजी से जिलों और स्थानीय क्षेत्रों को जोड़ा गया। 1990 के दशक की शुरुआत में, राष्ट्रीय और राज्य सरकारें इस प्रणाली को अपनाने लगीं।

भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 लागू कर इलेक्ट्रॉनिक संवाद को बढ़ावा दिया, जिससे सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग को वैधता मिली और कई राज्य सरकारों ने भी इस प्रकार के कानून बनाए।


1. ई-गवर्नेस के विकास के चरण

  • कंप्यूटरीकरण: इस चरण में पी.सी. (Personal Computer) की उपलब्धता सरकारी कार्यालयों में कराई गई और सरकारी दस्तावेज़, फाइलें, आँकड़े और सूचनाओं का कंप्यूटरीकरण किया गया। इसमें सार्वजनिक सूचना प्रबंधन पर जोर दिया गया।
  • नेटवर्किंग: इस चरण में सरकारी संगठनों को आपस में जोड़ा गया और सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ाया गया। इसके लिए NICNAT (National Informatics Centre & Network) प्रणाली का उपयोग किया गया।
  • ऑनलाइन उपस्थिति: सरकारी विभागों ने वेबसाइट्स और वेबपेज बनाए, और इंटरनेट के माध्यम से अपनी पारदर्शिता और सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कराई।
  • ऑनलाइन परस्पर संपर्क: इस चरण में, सरकारी संगठनों और नागरिकों के बीच खुला संवाद (जैसे E-voting, E-democracy, online Tender, online public forum, online survey) स्थापित हुआ, जिससे सरकारी सेवाओं की सुलभता और पारदर्शिता बढ़ी।


2. ई-गवर्नेंस की विशेषताएँ 

1. SMART सरकार का सिद्धांत :

  • S (Small): नौकरशाही की प्रक्रियाओं को जितना संभव हो, सीमित करना।
  • M (Moral): शासन में नैतिकता की भावना स्थापित करना और भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
  • A (Accountable): लोक सेवाओं में उत्तरदायित्व को बढ़ाना और सरकार से जुड़ी सभी सूचनाओं को जनता के सामने रखना।
  • R (Responsiveness): योजनाओं से जुड़ी जानकारी को सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से जनता तक पहुँचाना और उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करना।
  • T (Transparency): सरकार की नीतियों, निर्णयों, कार्यों और सेवाओं में पारदर्शिता लाना।

2. एकीकरण : ई-गवर्नेंस में शासन, प्रशासन और सूचना प्रौद्योगिकी का एकीकरण होता है।

3. गुणवत्ता में सुधार: ई-गवर्नेंस के माध्यम से शासन की गुणवत्ता में सुधार होता है, जिससे नागरिकों को सूचना, उनके प्रतिनिधित्व और सहभागिता मिलती है।

4. समन्वित रूप: ई-गवर्नेंस शासन, प्रशासन और सूचना तकनीकी का समन्वित रूप है, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता, दक्षता और कुशलता लाना है। इसमें ई-लोकतंत्र, ई-नागरिक और ई-प्रशासन शामिल होते हैं।

5. व्यावहारिक रूप: प्रशासनिक विभागों में इंटरनेट और सूचना तकनीकी का प्रयोग ई-गवर्नेंस का व्यावहारिक रूप है।

6. कागजी कार्यवाही और लालफीताशाही पर नियंत्रण: ई-गवर्नेंस कागजी कार्यवाही और लालफीताशाही पर नियंत्रण करता है और टेलीकॉन्फ्रेंसिंग को बढ़ावा देता है।

7. सरल पहुँच: ई-गवर्नेंस न केवल शासन को सुगम बनाता है, बल्कि नागरिकों तक सरकारी सेवाओं की पहुँच भी सरल बनाता है।


3. ई-गवर्नेंस के लाभ

  • सूचना तक समान पहुँच: सूचना तकनीकी ने सरकार की नीतियों और योजनाओं को सभी के लिए सुलभ बना दिया है, जिससे अब सूचना तक सभी की पहुँच समान हो गई है।
  • सेवाओं की गुणवत्ता: ई-गवर्नेंस ने नागरिकों को गुणवत्ता पूर्ण सेवाएँ सुनिश्चित की हैं और अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण के अंतर को संकुचित कर दिया है।
  • सुदूर क्षेत्रों तक पहुँच: प्रशासन की पहुँच अब सुदूर क्षेत्रों तक हो चुकी है, जिससे शासन और नागरिक दोनों को लाभ हुआ है, और शासन में सरलता, सबलता और क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
  • उत्तरदायित्व और जवाबदेही: ई-गवर्नेंस शासन को अधिक उत्तरदायी और जवाबदेह बनाता है, जिससे शासन में नैतिकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • सेवाओं की युक्तियाँ: नागरिकों को "कहाँ", "कैसे", और "कब" जैसी सेवाओं की युक्तियाँ प्रदान की जा रही हैं, जिससे उन्हें सुविधाएँ आसानी से मिल रही हैं।
  • भ्रष्टाचार में कमी: ई-गवर्नेंस के माध्यम से भ्रष्टाचार में कमी आई है, कर चोरी पर रोक लगी है, और राजस्व में वृद्धि हुई है, जिससे शासन में पारदर्शिता और सुशासन स्थापित हो रहा है।


4. ई-गवर्नेंस की सीमाएँ

  • ई-साक्षरता का अभाव: भारत में साक्षरता दर कम है और ई-साक्षरता प्राप्त लोगों की संख्या भी कम है, जिससे सरकारी सूचनाओं का लाभ सभी तक नहीं पहुँच पाता।
  • आई.सी.टी की आधारभूत संरचना की कमी: भारत में पर्याप्त आई.सी.टी सुविधाओं की कमी के कारण ई-गवर्नेंस का लाभ सभी को समान रूप से नहीं मिल पाता।
  • भाषाई समस्या: सूचना तकनीकी का माध्यम मुख्यतः अंग्रेजी है, और स्थानीय भाषाओं में इसकी उपलब्धता का अभाव है।
  • प्रक्रियाओं और कानूनों का पुनः निर्माण नहीं: आई.सी.टी के बढ़ते प्रयोग के बावजूद, संबंधित प्रक्रियाओं और कानूनों को पुनः परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे क्रियान्वयन में दिक्कतें आती हैं।
  • प्रशासनिक प्रक्रियाओं का सुधार जरूरी: कई ई-गवर्नेंस परियोजनाएँ शासन को सरल नहीं बना पाई हैं, इसके लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं और संगठनात्मक संरचनाओं में सुधार की आवश्यकता है।
  • तकनीकी केंद्रीकरण: अधिकांश परियोजनाएँ तकनीकी केन्द्रीयता पर ध्यान देती हैं, नागरिक केंद्रीकरण की बजाय।
  • सूचना पारदर्शिता की कमी: ई-गवर्नेंस में दी जाने वाली सूचनाएँ अक्सर भ्रामक होती हैं या संक्षिप्त, सरल और बोधगम्य नहीं होतीं।
  • कानूनी मुद्दे: गोपनीयता, बौद्धिक संपदा और वित्तीय हस्तांतरण जैसे मुद्दों के कारण कानूनी विवाद हो सकते हैं।
  • सेवा वितरण में कठिनाई: अधिकांश परियोजनाएँ सिर्फ सूचना प्रसारण तक सीमित हैं, और वास्तविक सेवा वितरण में कठिनाइयाँ आ रही हैं।
  • कुशल मानव संसाधन का अभाव: ई-गवर्नेंस के कुशल कार्यान्वयन के लिए प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है।



भारत में ई-गवर्नेंस की पहल

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: डिजिटल शासन को कानूनी वैधता देने और सरकारी कार्यों में पारदर्शिता व दक्षता बढ़ाने के लिए लागू किया गया।
  • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना 2003: सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में तेजी लाने और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए आई.सी.टी का इस्तेमाल किया गया।
  • इंटरनेट और ब्रॉडबैंड का प्रसार: 749 मिलियन लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं, और 2022 तक 5,50,000 गाँवों तक ब्रॉडबैंड पहुँचने की उम्मीद है।
  • ई-गवर्नेंस की शुरुआत: 1970 के दशक में चुनाव, जनगणना और कर प्रशासन जैसे कार्यों में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ा।
  • आई.सी.टी नेटवर्क का विस्तार: 1990 के दशक में वेब-आधारित प्रौद्योगिकी, डेटा सेंटर और SWAN के माध्यम से आई.सी.टी का उपयोग बढ़ाया गया।
  • स्थानीय सूचना केंद्रों की स्थापना: ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में सरकारी सेवाओं की जानकारी देने के लिए सामुदायिक सूचना केंद्र स्थापित किए गए।


1. भारत सरकार की प्रमुख ई-गवर्नेंस पहलें

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह अधिनियम सरकार और विभिन्न एजेंसियों के बीच इलेक्ट्रॉनिक डेटा विनिमय को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना, 2003: इसका उद्देश्य गति और पारदर्शिता में सुधार करना है, ताकि नागरिकों को बेहतर सेवाएँ और जानकारी मिल सके।
  • सूचना का अधिकार, 2005: इस कानून के तहत, सार्वजनिक संस्थान उन नागरिकों को सूचना प्रदान करने के लिए बाध्य होते हैं जो इसका अनुरोध करते हैं।
  • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना, 2006: इस योजना में 27 मिशन मोड परियोजनाएँ शामिल हैं, जो केंद्र, राज्य और जमीनी स्तर पर नागरिक केंद्रित शासन को सक्षम बनाती हैं।

2. मुख्य परियोजनाएँ:

  • कम्प्यूटरीकृत ग्रामीण सूचना प्रणाली परियोजना: यह योजना ग्रामीण विकास एजेंसियों को कंप्यूटर आधारित सूचना प्रणाली से जोड़ेगी, ताकि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की निगरानी हो सके।
  • ई-चौपाल: यह योजना ग्रामीण कृषकों को तकनीकी साधनों के माध्यम से उनके कृषि उत्पादों के विपणन में सहायता प्रदान करती है।
  • टाटा किसान केन्द्र: इस परियोजना के तहत, किसानों को जल, मृदा और मौसम से जुड़ी समस्याओं का समाधान भौगोलिक सूचना प्रणाली से प्रदान किया जाता है।
  • लोकमित्र: हिमाचल प्रदेश में यह योजना दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
  • ज्ञानदूत:यह परियोजना मध्य प्रदेश में जनजातीय समुदायों के लिए सामुदायिक स्वामित्व वाले सूचना केंद्र स्थापित करती है।
  • दृष्टि: मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में उपभोक्ता वस्तुओं के वितरण और प्रोत्साहन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए ग्रामीण मॉडल पर आधारित नेटवर्क विकसित किया गया है।
  • आकाशगंगा: दुग्ध उत्पादकों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से सुविधाएँ प्रदान करने के लिए इस परियोजना की शुरुआत की गई है।
  • वसुधा केन्द्र: बिहार में स्थित वसुधा केन्द्र ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएँ और अन्य सेवाएँ जैसे रेलवे टिकट और आधार कार्ड प्रदान करते हैं।



डिजिटल इंडिया कार्यक्रम

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम 'संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' की एक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप में सक्षम बनाना और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करना है। इसके अंतर्गत सरकारी प्रक्रियाओं को डिजिटल रूप से सुगम बनाना, सूचना को इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध कराना और नागरिकों तक सरकारी सेवाओं की पहुँच को आसान बनाना है।

भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं का प्रतिशत 90% है, और स्मार्टफोन एक प्रमुख घटक है डिजिटल इंडिया के रूपांतरण में। डिजिटल इंडिया के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं:

1. नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण

2. नागरिक उपकरण के रूप में अवसंरचना का विकास

3. माँग आधारित शासन और सेवाएँ


डिजिटल इंडिया के प्रमुख स्तंभ

  • ब्रॉडबैंड हाइवेज: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच ब्रॉडबैंड नेटवर्क को जोड़ना।
  • मोबाइल तक सबकी पहुँच: सर्वव्यापक मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करना।
  • सार्वजनिक इंटरनेट: इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ाना।
  • ई-गवर्नेंस तकनीकी सुधार: ई-प्रशासन के माध्यम से सरकारी तंत्र में सुधार और स्वचालन।
  • ई-क्रांति सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी: ई-शिक्षा और ई-स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी।
  • सबको सूचना: सरकारी सूचनाओं को नागरिकों तक पहुँचाना और अद्यतन करना।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में शून्य आयात: इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के आयात को शून्य करना।
  • नौकरियों के लिए: आईटी क्षेत्र में रोजगार सृजन, विशेषकर छोटे कस्बों और गाँवों में।
  • अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम: इलेक्ट्रॉनिक ग्रीटिंग्स और बायोमेट्रिक उपकरणों के प्रयोग को बढ़ावा देना।








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