प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय राजनीतिक विचार UNIT 8 CHAPTER 9 SEMESTER 3 THEORY NOTES बसवन्ना नैतिक जीवन और राजनीति POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES

 

प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय राजनीतिक विचार UNIT 8 CHAPTER 9 SEMESTER 3 THEORY NOTES बसवन्ना नैतिक जीवन और राजनीति  POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES

 परिचय 

मानव जीवन में समस्याओं और संघर्षों का सामना करना सदैव एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। इन परिस्थितियों में आध्यात्मिक दृष्टिकोण और मानसिक लचीलापन हमें न केवल संतुलित रहने में मदद करते हैं, बल्कि जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी देते हैं। भारत के महान संतों और विचारकों ने अपने समय में समाज को सही दिशा दिखाने का प्रयास किया, जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। 12वीं शताब्दी के कर्नाटक के महान संत, कवि, और समाज सुधारक बसवन्ना, ऐसे ही प्रेरणादायक व्यक्तित्वों में से एक थे। उनके विचार और कार्य भारतीय समाज में समानता, स्वतंत्रता, और न्याय की स्थापना के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में काम करते हैं।


बसवन्ना: जीवन और विकास 

  • प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि: बसवन्ना का जन्म 1131 ईस्वी में कर्नाटक के बीजापुर जिले के इंगलेश्वर-बागेवाड़ी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उन्होंने बचपन में ही कठोर धार्मिक रीति-रिवाजों और जातिगत भेदभाव को महसूस किया। छोटी उम्र में उन्होंने अपने उपनयन संस्कार का विरोध किया, क्योंकि वे इसे जातिगत प्रभुत्व का प्रतीक मानते थे। उन्होंने यह घोषित किया कि लिंग धारण करना केवल धार्मिक उद्देश्य के लिए होना चाहिए, जाति के लिए नहीं।
  • शैक्षणिक और आध्यात्मिक विकास: बसवन्ना ने कुदालसंगम में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने शैव दर्शन और लिंगधारणा के महत्व को समझा। ईशान्या गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने वेद, उपनिषद, और पुराणों का अध्ययन किया और धार्मिक मान्यताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण किया। उन्होंने वचनों के माध्यम से अपनी भक्ति और सामाजिक समानता के विचार व्यक्त किए।
  • सामाजिक और धार्मिक सुधार: बसवन्ना ने जाति, पंथ, और लिंग के भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में काम किया। उन्होंने अनुभव मंतपा की स्थापना की, जो एक सामाजिक-धार्मिक अकादमी थी। यहाँ विभिन्न संतों और साधकों को एक साथ लाया गया और धर्म के द्वार सभी के लिए खोले गए।
  • समानता और समावेशिता के प्रयास: बसवन्ना ने वर्ण व्यवस्था और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि धर्म और आध्यात्मिकता का अनुभव सभी के लिए खुला होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण के रूप में दिखाया कि जाति और पंथ के बंधनों को तोड़कर भी लोग आध्यात्मिकता के सर्वोच्च स्तर तक पहुँच सकते हैं।
  • राजनीतिक और आर्थिक विचार: हालाँकि बसवन्ना राजनीति में रुचि नहीं रखते थे, लेकिन उन्होंने राजा बिज्जल के दरबार में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने शासन को नैतिकता और करुणा के सिद्धांतों पर आधारित करने पर जोर दिया। उनका दृष्टिकोण यह था कि शासन और समाज को समानता और समावेशिता पर आधारित होना चाहिए।
  • वर्तमान संदर्भ में शिक्षाएँ: बसवन्ना की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने जातिगत और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने, धर्म के नाम पर शोषण को रोकने, और मानव समानता को बढ़ावा देने का संदेश दिया। उनकी विचारधारा स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी और अन्य समाज सुधारकों की शिक्षाओं से मेल खाती है।


 बसवेश्वर का दर्शन: वचनों के माध्यम से 

  • कवि और दार्शनिक: बसवेश्वर एक महान कवि और दार्शनिक थे, जिन्होंने अपने वचनों से समाज सुधार और आध्यात्मिकता को नई दिशा दी। उनकी रचनाएँ जीवन और आत्मिक उन्नति का मार्गदर्शन करती हैं।
  • वचन: साहित्य और भक्ति का मेल:उनके वचन गद्य-गीत की अनूठी शैली में लिखे गए हैं, जो सरल, लयबद्ध, और गहरे विचारों से युक्त हैं।
  • आध्यात्मिकता और संतुलन: बसवेश्वर ने निवृत्ति और प्रवृत्ति के बीच सामंजस्य का संदेश दिया। उन्होंने दिखाया कि सांसारिक जीवन का त्याग किए बिना भी आध्यात्मिक उन्नति संभव है।
  • मानव व्यक्तित्व का दृष्टिकोण: उन्होंने विचार, भावना, और क्रिया को जोड़कर जीवन को आत्मिक विकास का हिस्सा बनाया।


बसवेश्वर के स्वतंत्रता, समानता और धर्म पर विचार

  • स्वतंत्रता: बसवेश्वर के अनुसार, कानून के शासन की स्थापना और अराजकता को समाप्त करने के लिए सभी को स्वतंत्रता प्रदान करना आवश्यक है। उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया। उनके द्वारा स्थापित अनुभव मंडप में सभी जातियों और लिंगों को विचार-विमर्श में भाग लेने की स्वतंत्रता दी गई।उन्होंने महिलाओं को भी बराबरी का स्थान दिया। उदाहरण के लिए, अयडक्की लक्कम्मा ने अनुभव मंडप में अपने पति की आलोचना करते हुए समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने की बात कही। यह बसवेश्वर की स्वतंत्रता और समानता की सोच को दर्शाता है।
  • समानता: बसवेश्वर समानता के प्रबल पक्षधर थे। उनके वचनों में कहा गया है कि भगवान के शिष्य से बड़ा कोई नहीं है। उनके विचार जाति और लिंग के भेदभाव से ऊपर थे। उन्होंने समाज में समतामूलक व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश की और इसे अपने वचनों के माध्यम से प्रचारित किया। महिलाओं को उन्होंने समाज में समान अधिकार दिलाने के लिए प्रोत्साहित किया। अनुभव मंडप में 35 से अधिक महिला सदस्यों की भागीदारी उनकी समानता की सोच को दर्शाती है। उनके लिए जाति या लिंग नहीं, बल्कि चरित्र ही व्यक्ति की पवित्रता का मापदंड था।
  • महिलाओं की मुक्ति: बसवेश्वर ने महिलाओं के लिए धर्म और आध्यात्मिकता के दरवाजे खोले, जो पहले केवल पुरुषों तक सीमित थे। उन्होंने कहा कि धर्म में पुरुष और महिला में कोई भेदभाव नहीं है। उनकी प्रेरणा से कई महिला संतों ने आध्यात्मिकता में उत्कृष्टता प्राप्त की।
  • धर्म और धर्मनिरपेक्षता: बसवेश्वर ने धर्म को पुरोहितों और रीति-रिवाजों से मुक्त किया। उन्होंने वैदिक बलिदानों और कर्मकांडों का विरोध किया, और एकेश्वरवाद का प्रचार किया। उनके अनुसार, सच्चा धर्म प्रेम और निःस्वार्थ भक्ति पर आधारित है, न कि अंधविश्वास और भय पर। उन्होंने "इष्टलिंग" को ईश्वर के प्रतीक के रूप में मान्यता दी और कहा कि भक्त और ईश्वर का संबंध सीधा होना चाहिए, बिना किसी मध्यस्थ के।
  • अंधविश्वास और तर्कवाद: बसवेश्वर ने तर्कहीन विश्वासों और अंधविश्वासों का विरोध किया। उन्होंने भाग्य, ज्योतिष, और शकुन जैसी प्रथाओं को खारिज किया। उनके अनुसार, धर्म और आध्यात्मिकता को तर्क और विवेक के आधार पर होना चाहिए।
  • अनुभव मंडप: धर्मनिरपेक्षता का आदर्श:अनुभव मंडप एक धर्मनिरपेक्ष निकाय था, जहाँ विभिन्न जातियों, लिंगों, और समुदायों के लोग एकत्रित होते थे। मधुवरस (ब्राह्मण), कक्कय्या और चन्नय्या (अछूत), और प्रमुख महिलाएँ जैसे अक्कामहादेवी, नीलंबिके, और मुक्तायक्का, सबने इसमें भाग लिया।
  • कायाका: आध्यात्मिक साधना:बसवेश्वर ने "कायाका" नामक आध्यात्मिक साधना का सिद्धांत दिया, जो मन और आचरण की पवित्रता पर जोर देता था। उनके लिए साधन की पवित्रता और लक्ष्य की प्राप्ति समान रूप से महत्त्वपूर्ण थी।


कायाका: बसवन्ना का श्रम और समानता का दर्शन

  • कायाका का अर्थ: बसवन्ना का कायाका दर्शन ईमानदार श्रम को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का साधन मानता है। इसका उद्देश्य आलस्य और भिखारीपन को समाप्त कर हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक: कायाका ने व्यवसाय की स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा दिया। जातिगत भेदभाव को नकारते हुए, बसवन्ना ने हर काम को समान बताया और ईमानदारी को श्रम का असली मूल्य माना।
  • श्रम और रोजगार की गरिमा: बसवन्ना ने श्रम को गरिमा का प्रतीक बताया और आलस्य व परजीवी जीवन के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने श्रम के माध्यम से आंतरिक क्षमताओं के विकास और समाज में योगदान को महत्त्व दिया।
  • धार्मिक और सामाजिक सुधार: कायाका ने धार्मिक अनुष्ठानों और अंधविश्वासों का विरोध किया। बसवन्ना ने कर्म और समर्पण को आध्यात्मिकता से जोड़कर मुक्ति का मार्ग दिखाया।
  • समानता और सामाजिक न्याय: कायाका समानता और सामाजिक न्याय का प्रतीक है। यह अछूतों और महिलाओं को समान अवसर देकर समतामूलक समाज की स्थापना करता है।
  • आधुनिक प्रासंगिकता: आज भी कायाका स्वावलंबन, समानता, और समावेशिता का संदेश देता है। यह अंधविश्वासों से मुक्ति और समाज में न्यायपूर्ण विकास का मार्गदर्शक है।

1. साम्यवाद और बसवन्ना का कायाका दर्शन

  • कायाका और श्रम का महत्व: बसवन्ना का साम्यवाद, जिसे कायाका कहा जाता है, श्रम पर आधारित है। उनका मानना था कि केवल काम करने वालों को भोजन का अधिकार है। बिना श्रम के अर्जित धन से न तो धार्मिक कार्य सफल हो सकते हैं, न ही यह समाज के लिए उपयोगी है।
  • धन और संपत्ति पर दृष्टिकोण: बसवन्ना ने संपत्ति केवल दैनिक आवश्यकताओं के लिए एकत्र करने का समर्थन किया और कल के लिए धन संचित करने का विरोध किया। उनका विचार था कि अतिरिक्त धन का उपयोग समाज के कल्याण और उन्नति के लिए किया जाना चाहिए, क्योंकि यह समाज की संपत्ति है।
  • धन का वितरण और उपयोग: उन्होंने धन को बुद्धिमानी और समानता से वितरित करने की वकालत की। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को संसाधनों का समान रूप से लाभ मिलना चाहिए।
  • ईश्वर की सेवा और मानव सेवा: बसवन्ना के अनुसार, दूसरों की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा है। उनका साम्यवाद सामाजिक न्याय, श्रम की गरिमा, और समाज के लिए समर्पित जीवन का प्रतीक है।

2. साम्यवाद

  • बसवन्ना ने साम्यवाद का एक अनूठा विचार पेश किया, जिसे उन्होंने 'कायाका' कहा। यह श्रम पर आधारित था, जहाँ केवल काम करने वालों को भोजन और संपत्ति का अधिकार था। उनका मानना था कि बिना श्रम के अर्जित धन किसी भी धार्मिक काम में उपयोगी नहीं है। व्यक्ति को सिर्फ अपनी जरूरत के लिए धन रखना चाहिए और ज्यादा कमाई को समाज की भलाई में लगाना चाहिए। उनके अनुसार, धन सभी का है और इसे समाज में समान रूप से बांटना चाहिए। उन्होंने दूसरों की सेवा को ही सच्ची ईश्वर सेवा माना।

3. गुट-निरपेक्षता और बसवन्ना का दृष्टिकोण

  • भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है, जिसकी प्रेरणा बसवन्ना के गहरे मानवीय सिद्धांतों से ली जा सकती है। उनके वचन के अनुसार, पहले खुद को शांत और संतुष्ट करना चाहिए, दूसरों की कमियों या परेशानियों पर ध्यान देने से पहले।उनका वचन इस बात पर जोर देता है कि दूसरों के दुःख पर विलाप करने से बेहतर है अपने मन और कार्यों को सुधारना। इसे अगर विदेश नीति पर लागू करें, तो यह देशों को एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और अपने विकास को प्राथमिकता देने का संदेश देता है।यह विचार राष्ट्रों को गुटों में बंटने से बचाता है और सभी को स्वतंत्र रूप से वाणिज्य और सहयोग करने का अवसर देता है। बसवन्ना की सोच आज भी भारत की गुट-निरपेक्ष नीति के मूल आदर्शों को प्रेरित करती है।




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