भारत में लोक प्रशासन UNIT - 3 SEMESTER -1 NOTES बजट की अवधारणा और भारत में बजट चक्र,बजट के प्रकार लाइन बजट, प्रदर्शन योजना बजट, शून्य आधारित बजट बजट: वित्त मंत्रालय की भूमिका Political DU. SOL.DU NEP COURSES

भारत में लोक प्रशासन UNIT - 3 SEMESTER -1 NOTES बजट की अवधारणा और भारत में बजट चक्र,बजट के प्रकार लाइन बजट, प्रदर्शन योजना बजट, शून्य आधारित बजट  बजट: वित्त मंत्रालय की भूमिका Political DU. SOL.DU NEP COURSES

 

बजट 

यह लेख आय-व्यय समायोजन और बजट के महत्त्व पर चर्चा करता है। यह बताता है कि न केवल व्यक्तियों, बल्कि सरकारें, व्यावसायिक संगठन और गैर-सरकारी संगठन भी अपने आय और व्यय में संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं। सार्वजनिक व्यय का मुख्य उद्देश्य जन-कल्याण होता है, लेकिन इसके साथ ही करों के माध्यम से करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ भी डाल दिया जाता है। बजट का उद्देश्य प्रशासन के कार्यों को अधिक कुशल बनाना होता है, ताकि सीमित संसाधनों का उपयोग अधिकतम लाभ के लिए किया जा सके।

बजट एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसके माध्यम से प्रशासन भविष्य की योजनाओं का निर्धारण करता है। इसमें पिछले अनुभवों और परिणामों का विश्लेषण कर, आने वाले समय के लिए कार्ययोजना तैयार की जाती है। बजट अब केवल वित्तीय मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया है।

बजट चक्र एक वित्तीय वर्ष के लिए बजट तैयार करने की प्रक्रिया और गतिविधियों को दर्शाता है, जो आमतौर पर 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसे विभिन्न चरणों में विभाजित किया जाता है। बजट न केवल वित्तीय मामलों से संबंधित होता है, बल्कि यह आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी जुड़ा होता है।


बजट का अर्थ एवं परिभाषा

बजट का संबंध आय-व्यय के भविष्यवाणियों से है, जिसमें पिछले कार्यों और आंकड़ों के आधार पर और वर्तमान गतिविधियों का विश्लेषण कर प्रशासन की भविष्य की कार्यनीति तैयार की जाती है। 'बजट' शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द "Bougette" से हुई है। 1733 में इंग्लैंड के वित्तमंत्री द्वारा इसे हाउस ऑफ कॉमन्स में प्रस्तुत किया गया, और तभी से बजट शब्द का प्रयोग सरकारी आय-व्यय के विवरण के लिए किया जाने लगा।

उत्तर-मध्यकाल में, बजट केवल राजा का व्यक्तिगत मामला और राजकीय रहस्य था, लेकिन समय के साथ, विशेष रूप से 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के बाद, 'बिना प्रतिनिधित्व के कोई कर नहीं' का सिद्धांत लागू हुआ। इसके बाद वित्तीय नियंत्रण और बजट का महत्व बढ़ा।

बजट के विभिन्न परिभाषाएँ:

  • रूजवेल्ट (1941): "बजट सरकार द्वारा जनता के लिए किए गए कार्यों का विवरण और जनता द्वारा सरकार को दी जाने वाली धनराशि का विवरण है।"
  • जे. पोइस: "बजट एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सरकारी अभिकरण की वित्तीय नीति निर्धारित की जाती है।"
  • जी. जेज़े: "बजट सरकारी प्राप्तियों और व्ययों का पूर्वानुमान है।"
  • स्टोरम: "बजट एक लेख पत्र है जिसमें सरकारी आय और व्यय का अनुमोदन होता है।"
  • विलोबी: "बजट न केवल सरकारी आय और व्यय का अनुमान है, बल्कि यह एक रिपोर्ट, अनुमान और प्रस्ताव है।"
  • रोबर्ट एस. हर्मन: "बजट एक साधन है जो विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालता है, जैसे अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, व्यापारी और जन सेवक के लिए।"


बजट में सम्मिलित जानकारी

  • प्रस्तावित नई योजनाएँ, परियोजनाएँ और गतिविधियाँ।
  • संसाधनों की स्थिति और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय, जिसमें कर और कर-अतिरिक्त राजस्व भी शामिल हैं।
  • पिछले वर्ष की वास्तविक प्राप्तियाँ और व्यय।
  • सरकारी संस्थाओं और अंगों के वित्तीय कार्यों से संबंधित आँकड़े।


बजट के उद्देश्य

बजट का मुख्य उद्देश्य पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को न्यूनतम लागत पर हासिल करना होता है। इसके अतिरिक्त, बजट विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति में मदद करता है, जैसे:-

  • वित्तीय संसाधन जुटाना: बजट प्रशासन के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटाने में मदद करता है।
  • समन्वय और स्पष्टता: बजट प्रशासन के विभिन्न विभागों की गतिविधियों में समन्वय और स्पष्टता सुनिश्चित करता है।
  • लक्ष्य प्राप्ति: बजट के माध्यम से प्रशासन के विभिन्न विभागों की गतिविधियों में समन्वय स्थापित किया जाता है, ताकि पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को न्यूनतम लागत, समय और प्रयास से प्राप्त किया जा सके।
  • कार्यकुशलता का मापन और नियंत्रण: बजट कार्यकुशलता का मापन और नियंत्रण प्रक्रिया को सुदृढ़ करता है, ताकि कार्यों को सही दिशा में और प्रभावी रूप से संपादित किया जा सके।


बजट की विशेषताएँ

विभिन्न विद्वानों ने बजट की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में रेखांकित किया है:

  • समयावधि से संबंधित: बजट एक निश्चित समयावधि से संबंधित होता है, जो अल्पकालिक, मध्यकालिक या दीर्घकालिक हो सकता है।
  • प्रशासन का महत्त्वपूर्ण उपकरण: बजट प्रशासन के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जो नियोजन और नियंत्रण के कार्यों को अत्यधिक प्रभावी तरीके से सम्पन्न करता है।
  • उद्देश्यों की प्राप्ति का उपकरण: बजट पूर्व निर्धारित उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक प्रमुख साधन है।
  • तुलनात्मक अध्ययन: बजट में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों और वास्तविक कार्य-निष्पादन का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है, जिससे सकारात्मक विचलन स्वीकार किए जाते हैं, जबकि ऋणात्मक विचलन को नकारा जाता है।
  • भावी कार्य-योजना: बजट एक भावी कार्य-योजना है, जो भविष्य में किए जाने वाले कार्यों का विवरण देती है।
  • समन्वय का प्रयास: बजट प्रशासन के विभिन्न विभागों की गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न करता है।
  • पूर्वानुमान: बजट के अंतर्गत आगामी अवधि के लिए पूर्वानुमान निर्धारित किए जाते हैं, ताकि भविष्य में आवश्यक वित्तीय योजना बनाई जा सके।


बजट के महत्वपूर्ण सिद्धांत 

  • प्रचार: बजट का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए, ताकि जनता और मीडिया अपनी राय दे सकें।
  • स्पष्टता: बजट को सरल और स्पष्ट होना चाहिए, ताकि नागरिक आसानी से समझ सकें।
  • परिशुद्धता: बजट के अनुमान सही और ब्योरेवार होने चाहिए, ताकि मूल्यांकन आसानी से किया जा सके।
  • एकता: सभी खचों और सरकार की प्राप्तियों को एक सामान्य निधि में एकत्रित किया जाना चाहिए।
  • विस्तार: बजट में सरकार के सभी आर्थिक कार्यक्रमों का निष्कर्ष होना चाहिए।
  • सत्यशीलता: बजट को उसी भावना से लागू किया जाना चाहिए, जैसे विधायिका ने इसे निर्धारित किया हो।
  • समयबद्धता: बजट का व्यय तय समय तक होना चाहिए, और विधायिका को समय रहते बजट पास करना चाहिए।


बजट के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ

  • आधुनिक समय में बजट किसी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पहले बजट सिर्फ सरकार के आय और व्यय का विवरण था, जिसमें दो प्रमुख उद्देश्य थे: एक, यह कि सरकार को यह तय करना था कि कितने कर एकत्रित किए जाएं, और दूसरा, विधायिका को धन के व्यय की मंजूरी देनी होती थी।
  • लेकिन आजकल, लोक-कल्याणकारी राज्यों के उदय के साथ, बजट एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। यह सार्वजनिक संसाधनों का नियोजन और नियंत्रण करता है, जिससे सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रभाव नागरिकों पर पड़ता है। बजट के माध्यम से नागरिकों को यह पता चलता है कि उन्हें कितने कर चुकाने होंगे और सरकारी योजनाओं से उन्हें क्या लाभ मिलेगा।
  • सरकार की कराधान नीति और बजट का उद्देश्य सामाजिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी और धन के असमान वितरण को कम करना है। इस प्रकार, बजट का सामाजिक-आर्थिक अनुप्रयोग लोक-कल्याणकारी राज्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विकास, उत्पादन, आय वितरण और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करता है।


भारत में बजट व्यवस्था का इतिहास

भारत में बजट व्यवस्था का इतिहास तीन प्रमुख कालखंडों में विभक्त किया जा सकता है: पूर्व औपनिवेशिक काल, औपनिवेशिक काल, और स्वतंत्रता के बाद बजट व्यवस्था।

  • पूर्व औपनिवेशिक काल में बजट व्यवस्था: प्राचीन भारत में भी एक उन्नत बजट व्यवस्था थी, जिसे कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मौर्य काल में प्रशासनिक कार्यों में लेखा-जोखा रखने, प्राप्तियों और व्यय का हिसाब रखने के लिए विस्तृत नियम थे। यह व्यवस्था इतनी सूक्ष्म थी कि प्रत्येक व्यय का सत्यापन किया जाता था, और दंड और पुरस्कार की व्यवस्था भी थी। अकबर और जहांगीर के शासनकाल में भी वित्तीय व्यवस्था मौर्यकालीन व्यवस्था के समान थी।
  • औपनिवेशिक काल में बजट व्यवस्था: ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गई थी। 1833 के चार्टर अधिनियम के बाद वित्तीय नियंत्रण गवर्नर जनरल को सौंपा गया। 1860 में भारत का पहला औपचारिक बजट प्रस्तुत किया गया था, जो ब्रिटिश शासन के हितों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। बजट का उद्देश्य ब्रिटेन के साम्राज्यवादी हितों को बढ़ावा देना था, और भारत की अर्थव्यवस्था में केंद्रित नियंत्रण था।
  • स्वतंत्रता के बाद बजट व्यवस्था: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय वित्तीय प्रशासन में व्यापक परिवर्तन हुए। भारतीय संविधान में बजट प्रक्रिया को संविधान के अनुच्छेद 112 से 117 तक निर्दिष्ट किया गया। भारतीय बजट को संविधान के तहत तीन मुख्य खंडों में बाँटा गया:

1. संचित निधि: सभी सरकारी राजस्व और खर्च यहीं से होते हैं।

2. आकस्मिक निधि: आकस्मिक खर्चों के लिए राष्ट्रपति के नियंत्रण में रखी जाती है।

3. सार्वजनिक खाता: सरकार एक बैंकर की तरह कार्य करती है, जहाँ से अन्य लेन-देन किए जाते हैं।


बजट चक्र

बजट प्रक्रिया को समयबद्धता प्रदान करने के लिए इसे एक चक्र के रूप में व्यवस्थित किया जाता है। यह चार प्रमुख अवस्थाओं में बाँटा जाता है:

  • आगामी वित्तीय वर्ष के लिए आय-व्यय का प्राक्कलन तैयार करना
  • राजस्व अधिनियमों और विनियोग अधिनियमों के रूप में संसद से स्वीकृति प्राप्त करना
  • राजस्व और विनियोग अधिनियमों को लागू करना
  • संसद द्वारा लेखा परीक्षा के माध्यम से वित्तीय क्रियाओं की समीक्षा और नियंत्रण
  • इन अवस्थाओं के बीच विभिन्न चक्र होते हैं और यह एक दूसरे से जुड़े होते हैं, जिनकी कार्यान्वयन अवधि भिन्न हो सकती है।


1. बजट निर्माण

  • भारत में बजट निर्माण प्रक्रिया की शुरुआत वित्त मंत्रालय से परिपत्र प्राप्त होने के साथ होती है। यह परिपत्र सितम्बर/अक्टूबर में जारी होता है और इसमें विभिन्न विभागों से बजट अनुमानों का विवरण मांगा जाता है। बजट अनुमानों का विश्लेषण संबंधित वित्तीय सलाहकार द्वारा किया जाता है। केंद्रीय बजट की योजना, नीति आयोग से परामर्श कर तैयार की जाती है और यह वार्षिक योजना पर आधारित होती है।

2. बजट का विधिकरण

संसद में बजट को पांच अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है :-

  • बजट प्रस्तुतीकरण: बजट का प्रस्तुतीकरण वित्त मंत्री द्वारा संसद में किया जाता है। पहले रेलवे और आम बजट अलग-अलग प्रस्तुत होते थे, लेकिन 2017 से इन्हें एकीकृत किया गया है।
  • आम बहस: यह चर्चा बजट के प्रस्तुतीकरण के कुछ दिनों बाद होती है। संसद के दोनों सदनों में यह आम चर्चा चलती है, जिसमें बजट पर विचार-विमर्श होता है।
  • अनुदान की माँगों पर मतदान: आम बहस के बाद लोकसभा अनुदान की माँगों पर मतदान करती है। इसके तहत सांसद बजट के विभिन्न हिस्सों पर चर्चा कर सकते हैं और कुछ प्रस्तावों को घटाने के लिए 'कटौती प्रस्ताव' भी रख सकते हैं।
  • विनियोग विधेयक को पारित करना: विनियोग विधेयक के तहत भारत की संचित निधि से सरकार द्वारा स्वीकृत अनुदान और प्रभारित व्यय के लिए धन निकाला जाता है। इसे संसद द्वारा पारित किया जाता है और राष्ट्रपति की सहमति के बाद इसे विनियोग अधिनियम बना दिया जाता है।
  • वित्त विधेयक को पारित करना: वित्त विधेयक में अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के वित्तीय प्रस्ताव होते हैं। इसमें विभिन्न करों और शुल्कों का विवरण होता है। यह विधेयक संसद में पेश किया जाता है और इसे 75 दिनों के भीतर पारित और राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत किया जाना चाहिए।


3. बजट का क्रियान्वयन

बजट का क्रियान्वयन कार्यपालिका का उत्तरदायित्व होता है और यह विभिन्न संगठनात्मक स्तरों पर शक्तियों के वितरण पर निर्भर करता है। विनियोग अधिनियम के पास होते ही, वित्त मंत्रालय मंत्रालयों और विभागों को उनकी आवंटित धनराशि की जानकारी देता है। इसके बाद, विभागीय नियंत्रक अधिकारी संवितरण अधिकारियों को धन आवंटित करते हैं।

बजट क्रियान्वयन में शामिल तत्त्व हैं:-

  • नियंत्रण अधिकारी: मंत्रालय या विभाग का प्रमुख।
  • योग्य अधिकारी: जो वित्तीय स्वीकृति प्रदान करते हैं।
  • संवितरण अधिकारी: जो बजट वितरित करते हैं।
  • भुगतान और लेखा व्यवस्था: खर्च और संग्रह का नियंत्रण।

वित्त मंत्रालय का राजस्व विभाग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का संकलन करता है, जो केंद्रीय कर मंडल द्वारा नियंत्रित होता है। राष्ट्रीयकृत बैंक और कोषागार अभिकरण भी वित्तीय संकलन और वितरण का कार्य करते हैं।


4. लेखा परीक्षण

  • बजट चक्र का अंतिम चरण लेखा परीक्षण है, जो सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक धन का व्यय कानूनों और नियमों के अनुसार हुआ है। इसके लिए भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) की व्यवस्था है। यह पद यह सुनिश्चित करता है कि सरकार द्वारा किए गए व्यय का मूल्य प्राप्त हुआ है और इसके लिए सभी दस्तावेज ठीक से संकलित और प्रस्तुत किए गए हैं। यह बजट के क्रियान्वयन में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।



बजट के प्रकार लाइन बजट, प्रदर्शन योजना बजट, शून्य आधारित बजट

 बजट: वित्त मंत्रालय की भूमिका


हमारे जीवन में बजट एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो संसाधनों की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल करने में मदद करता है। बजट न केवल खर्चों को योजनाबद्ध करता है, बल्कि संसाधनों के कुशलतम उपयोग को भी सुनिश्चित करता है। राज्यों ने सदियों से सार्वजनिक वित्त और व्यय को प्रबंधित करने की समस्या का सामना किया, और इसके समाधान में बजट का विकास हुआ, जो अब राज्य के कामकाज के लिए आवश्यक हो गया है।

बजट राज्य की आय और व्यय को परिभाषित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि करों से प्राप्त धन का कुशलतापूर्वक उपयोग नागरिकों के कल्याण के लिए किया जाए। विशेष रूप से लोकतांत्रिक शासन में बजट सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करता है और वित्त के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है। भारतीय संविधान में बजट की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नागरिकों के कल्याण के लिए नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। बजट प्रक्रिया को समझने के लिए हम इसके अर्थ, निर्माण, निष्पादन और विभिन्न रूपों पर चर्चा करेंगे।


बजट की उत्पत्ति, अर्थ और परिभाषा

'बजट' शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द "boucette" (जिसका अर्थ है छोटा चमड़े का बैग या पर्स) से हुई है। यह सांकेतिक रूप से यह दर्शाता है कि एक राष्ट्र की सम्पूर्ण धनराशि बजट के रूप में निहित होती है। 16वीं शताब्दी में 'बजट खोलने' का वाक्यांश इस्तेमाल किया जाने लगा, जिसका अर्थ था कुछ ऐसा प्रकट करना जो पहले गुप्त था। यह वाक्यांश 1733 में ब्रिटिश सरकार के राजस्व और व्यय के बयान के दौरान पहली बार इस्तेमाल किया गया था। 1773 में यह शब्द ब्रिटिश संसद में पहली बार इस्तेमाल किया गया था, जब ब्रिटिश वित्तमंत्री सर रॉबर्ट वालपॉल ने आय-व्यय विवरण प्रस्तुत किया। भारत में पहला बजट 1860 में जेम्स विल्सन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। स्वतंत्रता के बाद, 1947 में आर.के. शनमुखम चेट्टी द्वारा केंद्रीय बजट पेश किया गया।

बजट की परिभाषाएँ

  • रेने स्टॉर्म के अनुसार, बजट वह दस्तावेज है जिसमें "सार्वजनिक राजस्व और व्यय की प्रारंभिक अनुमोदित योजना" होती है।
  • जोसेफ पोइस के अनुसार, बजट वह प्रक्रिया है "जिसके द्वारा किसी सार्वजनिक एजेंसी की वित्तीय नीति तैयार की जाती है, उसे अधिनियमित किया जाता है और क्रियान्वित किया जाता है।"
  • जी जेजे ने बजट को "पूर्वानुमान के रूप में, सभी सार्वजनिक प्राप्तियों और खचों का अनुमान और उन्हें एकत्र करने के लिए प्राधिकरण" के रूप में परिभाषित किया है।


बजट के प्रकार

  • प्रदर्शन बजट: यह 1950 के दशक में अमेरिका में उत्पन्न हुआ, जब यह बजट प्रक्रिया केवल सरकारी आय-व्यय के आंकड़े नहीं, बल्कि इसके उद्देश्य और परिणामों पर भी आधारित थी। भारत में इसे पहली बार 1954 में चर्चा में लाया गया और 1977-78 में यह अधिक मंत्रालयों द्वारा अपनाया गया। इसका उद्देश्य नीति और कार्यक्रमों के वित्तपोषण और परिणामों के बीच संबंध को परखना है।
  • शून्य आधारित बजट: 1969 में विकसित इस पद्धति में हर वर्ष सरकार के सभी कार्यक्रमों और नीतियों की समीक्षा की जाती है, और उन्हें केवल तभी जारी रखा जाता है जब वे लागत और प्रभावशीलता के दृष्टिकोण से सही ठहराए जाते हैं। इस बजट को 2008 के वैश्विक संकट के बाद अधिक लोकप्रियता मिली, क्योंकि यह संसाधनों के औचित्य पर जोर देता है और अनावश्यक खर्चों को समाप्त करता है।
  • कार्यक्रम बजट: इस पद्धति में बजट के प्रत्येक कार्यक्रम और गतिविधि का विस्तार से वर्णन किया जाता है। यह 1965 में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन द्वारा विकसित किया गया था। हालांकि, इसे 1971 में अमेरिकी प्रशासन द्वारा बंद कर दिया गया, क्योंकि इसे अत्यधिक विस्तृत और जटिल माना गया।
  • लक्ष्य आधारित बजट: यह 1981 में अमेरिकी बजट प्रक्रिया का हिस्सा बना, जिसमें केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा विभागों के बजट अनुमान निर्धारित किए जाते हैं। इसमें कार्यक्रमों के लक्ष्यों को प्राथमिकता दी जाती है, और इसे अन्य बजट विधियों जैसे कार्यक्रम और शून्य आधारित बजट के साथ कुछ समानताएँ हैं।
  • आउटकम बजट: इस पद्धति में, सरकार के प्रत्येक कार्यक्रम या नीति के परिणामों का विश्लेषण किया जाता है, यह देखने के लिए कि पूर्व में मंजूर किए गए व्यय का उद्देश्य प्राप्त हुआ या नहीं। यह प्रदर्शन आधारित बजट से अधिक व्यापक है, क्योंकि इसमें गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों परिणामों को समान महत्व दिया जाता है।

बजटीय प्रक्रिया

भारत में बजट प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत निर्धारित की गई है, जो इसे "वार्षिक वित्तीय विवरण" के रूप में परिभाषित करता है। भारतीय संविधान में शक्ति को संघ और राज्य के बीच विभाजित किया गया है ताकि नागरिकों की विविध वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।


बजट बनाने की प्रक्रिया

  • बजट तैयार करना: बजट की प्रक्रिया वित्तीय वर्ष की शुरुआत से छह महीने पहले शुरू होती है (1 अप्रैल से 31 मार्च तक)। केंद्रीय वित्त मंत्रालय बजट को तैयार करता है, जिसमें अन्य मंत्रालयों और विभागों की सहायता ली जाती है।
  • बजट का अधिनियमन: तैयार किए गए बजट को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है और संसद द्वारा इसे अनुमोदित किया जाता है।
  • बजट का निष्पादन: संसद द्वारा बजट को स्वीकृत करने के बाद, सरकार इसे लागू करती है, और मंत्रालयों व विभागों के माध्यम से योजनाओं का कार्यान्वयन किया जाता है।
  • संसद की भूमिका और वित्त पर नियंत्रण: संसद का बजट पर नियंत्रण होता है, और वह सरकार के खर्च और राजस्व की निगरानी करती है।


बजट तैयार करना

भारत में बजट तैयार करने की प्रक्रिया में चार प्रमुख संस्थाएँ शामिल होती हैं:

1. वित्त मंत्रालय

2. सामान्य प्रशासन मंत्रालय

3. नीति आयोग

4. नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG)

  • प्रारंभ: बजट तैयार करने की प्रक्रिया हर साल सितंबर महीने में शुरू होती है। इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग का बजट प्रभाग विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को एक परिपत्र जारी करता है। इस परिपत्र में उन्हें अपने खर्चों का अनुमान एक संरचित प्रारूप में प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित जानकारी दी जाती है:

1. पिछले वर्ष का व्यय ब्यौरा

2. पिछले वर्ष के वास्तविक खर्च

3. चालू वर्ष के लिए स्वीकृत बजट अनुमान

4. चालू वर्ष के संशोधित अनुमान

5. आगामी वर्ष के लिए बजट अनुमान

6. वर्तमान वर्ष की वृद्धि या कमी का स्पष्टीकरण

  • विभागीय अनुमानों की जाँच : इसके बाद, विभागीय अनुमानों की जाँच संबंधित विभागों द्वारा की जाती है और फिर ये अनुमानों को सचिवालय भेजा जाता है। इसके बाद, वित्त मंत्रालय इन अनुमानों की समीक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि महत्त्वपूर्ण वस्तुओं और नीतियों के बारे में सही जानकारी हो।

  • नीति आयोग की जाँच: इसके बाद, नीति आयोग (जो पहले योजना आयोग था) द्वारा योजना प्रस्तावों की जाँच की जाती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रस्ताव मौजूदा नीतियों और योजनाओं से मेल खाते हैं।

  • वित्त मंत्रालय की अंतिम समीक्षा: नीति आयोग द्वारा समीक्षा के बाद, वित्त मंत्रालय इन प्रस्तावों की अंतिम समीक्षा करता है और बजट को अंतिम रूप देने में शामिल होता है। इसके बाद, केंद्रीय वित्त मंत्री प्रधानमंत्री के परामर्श से बजट को अंतिम रूप देते हैं।

  • वित्त मंत्रालय को शक्ति: वित्त मंत्रालय को वस्तुओं की जाँच करने की दो प्रमुख शक्तियाँ दी जाती हैं:

1. जवाबदेही: वित्त मंत्रालय सार्वजनिक धन के व्यय के लिए जिम्मेदार है और यह सुनिश्चित करता है कि करदाताओं का पैसा सही तरीके से खर्च हो।

2. धन प्रबंधन: वित्त मंत्रालय को व्यय के लिए धन का प्रबंधन करना होता है।


1. बजट प्रक्रिया और संसद की भूमिका

भारत में बजट को संसद की स्वीकृति के बिना लागू नहीं किया जा सकता, और यह संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होता है।

बजट प्रक्रिया के प्रमुख चरण:

1. बजट प्रस्तुति : बजट को राष्ट्रपति की सहमति से लोकसभा में केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा पेश किया जाता है। यह प्रस्तुति हर साल फरवरी के पहले दिन होती है। इसके बाद बजट की मुद्रित प्रतियाँ सदन में वितरित की जाती हैं, और राज्यसभा को भी भेजी जाती है। राज्यसभा के पास केवल सिफारिश करने का अधिकार होता है।

2. बजट पर सामान्य चर्चा: बजट की प्रस्तुति के बाद, संसद में तीन से चार दिनों तक सामान्य चर्चा होती है। इसमें सदस्य बजट या इसके हिस्सों पर चर्चा करते हैं, लेकिन इस दौरान कोई प्रस्ताव नहीं रखा जा सकता।

3. विभागीय जाँच: सामान्य चर्चा के बाद, बजट को विभागीय स्थायी समितियों के पास भेजा जाता है, जो विभिन्न मंत्रालयों के खर्च अनुमानों की जाँच करती हैं। 2004 के बाद से, भारत में 24 विभागीय स्थायी समितियाँ हैं, जिनमें लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य शामिल होते हैं।

4. अनुदान की माँग पर मतदान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 113 के तहत, अनुदान की माँग लोकसभा में प्रस्तुत की जाती है, ताकि भारत की संचित निधि से धन निकाला जा सके। इस प्रक्रिया में सामान्य चर्चा के बाद, विभागीय स्थायी समितियाँ रिपोर्ट तैयार करती हैं, जिसे सदन में प्रस्तुत किया जाता है, और इसके बाद सदन उन पर चर्चा करता है और मतदान करता है। अनुदान की माँग में अग्रिम और ऋण, राजस्व, पूंजीगत व्यय और केंद्र और राज्यों को दी जाने वाली सहायता शामिल होती है।

लोकसभा में अनुदान की माँग पर मतदान किया जाता है। हालाँकि, राज्यसभा की इसमें सीमित शक्ति होती है।

  • कटौती प्रस्ताव : इस चरण में सदस्य अपनी आपत्तियाँ या संशोधन पेश कर सकते हैं, जैसे:

A. लिसी कट प्रस्ताव: यदि यह पारित हो जाता है, तो प्रस्तावित राशि को घटाकर 1 रुपया कर दिया जाता है।

B. इकोनॉमी कट मोशन: यह प्रस्ताव खर्च की राशि में कमी करने के लिए होता है, जिससे यह दिखाया जाता है कि व्यय की उपयुक्तता पर संदेह है।

  • टोकन कट मोशन: यह सरकार की जिम्मेदारियों पर सवाल उठाने का एक तरीका है, और इसके पास एक प्रतीकात्मक राशि (100 रुपये) की कटौती होती है।

  • गिलोटिन प्रक्रिया: अगर बजट की सभी माँगों पर चर्चा नहीं हो पाती है, तो लोकसभा अध्यक्ष अंत में सभी माँगों को एक साथ रखता है, इसे गिलोटिन कहा जाता है।
  • विनियोग विधेयक: लोकसभा में अनुदान की माँग पारित होने के बाद, सरकार विनियोग विधेयक पेश करती है, ताकि भारत की संचित निधि से स्वीकृत अनुदान निकाले जा सकें। राज्यसभा को इस विधेयक पर चर्चा का 14 दिनों का समय मिलता है, और वह सिफारिश कर सकती है, लेकिन लोकसभा इसे स्वीकार या अस्वीकार करने का अंतिम अधिकार रखती है।
  • वोट ऑन अकाउंट (लेखानुदान): अगर बजट प्रक्रिया में देरी हो जाती है, तो सरकार को वोट ऑन अकाउंट के माध्यम से एक निश्चित राशि प्राप्त करने की अनुमति दी जाती है ताकि वह अपने दैनिक खर्च जारी रख सके।
  • वित्त विधेयक: वित्त विधेयक सरकार के आय और करों से संबंधित होते हैं। यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है, और इसे पारित करने के बाद राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति मिलती है। इसे पारित करने की प्रक्रिया में 75 दिन का समय होता है।


2. बजट का निष्पादन

वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद, बजट का निष्पादन शुरू होता है। सरकार भारत की संचित निधि से धन निकालकर योजनाओं की वित्तीय आवश्यकता को पूरा करती है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा कर इकट्ठा किया जाता है, और अन्य मंत्रालय बजट के अनुसार खर्च करते हैं। मंत्रियों के सचिव खातों के रिकॉर्ड बनाए रखते हैं, जिनका परीक्षण भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है।

3. संसद का वित्त पर नियंत्रण

बजटीय नियंत्रण संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है। भारत के संविधान के तहत, संसद को कार्यपालिका की माँग पर अनुदान देने की शक्ति है।

  • अनुदान की माँग: वित्तमंत्री बजट में 'अनुदान की माँग' प्रस्तुत करते हैं, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों के खर्च का अनुमान होता है। लोकसभा इस पर बहस करके इसे स्वीकार, अस्वीकार या संशोधित कर सकती है।

  • अप्रत्याशित माँगें: संसद अप्रत्याशित माँगों को भी पूरा करने का अधिकार रखती है, लेकिन इसके लिए विनियोग विधेयक का पारित होना जरूरी है।


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