प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय राजनीतिक विचार UNIT 11 CHAPTER 12 SEMESTER 3 THEORY NOTES अबुल फजल : राजशाही POLITICAL DU. SOL.DU NEP COURSES
0Eklavya Snatakदिसंबर 01, 2024
परिचय
अबुल फजल (1551-1602) मध्यकालीन भारत के प्रमुख इतिहासकार और राजनीतिक विचारक थे, जिन्होंने अकबर-नामा और आइन-ए-अकबरी जैसी रचनाओं से मुगल शासन को समझने का एक तार्किक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों को आलोचनात्मक दृष्टि से परखा और प्रशासनिक नीतियों व सामाजिक संरचनाओं का गहन विश्लेषण किया। उनके लेखन ने न केवल मुगलकालीन राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को समझने में मदद की, बल्कि ऐतिहासिक अध्ययन के लिए एक नई पद्धति का भी विकास किया।
राज्य के लिए फजल की राजसी सत्ता
राजसत्ता की महत्ता: अबुल फजल ने राजसत्ता को ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान माना। उनके अनुसार, राजसत्ता प्रजा के आज्ञापालन का कारण और विद्रोह को रोकने का साधन है। उन्होंने "पादशाह" शब्द की व्याख्या करते हुए इसे स्थिरता और प्रभुत्व का प्रतीक बताया। फजल का मानना था कि अगर राजसत्ता न हो, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी और लालच से प्रेरित संघर्षों के कारण दुनिया बंजर हो जाएगी।
शाही न्याय और समाज का स्थायित्व: राजसत्ता के अंतर्गत शाही न्याय समाज में शांति और अनुशासन बनाए रखता है। फजल ने यह भी कहा कि न्याय के प्रकाश में लोग खुशी से आज्ञा का पालन करते हैं, सज़ा के डर से हिंसा से बचते हैं, और ज़रूरत पड़ने पर धार्मिकता का पालन करते हैं।
सच्चे राजा और तानाशाह का अंतर: फजल ने सच्चे राजा और तानाशाह के बीच अंतर स्पष्ट किया। सच्चा राजा उत्पीड़न को कम करता है और समाज में अच्छाई को बढ़ावा देता है। जबकि तानाशाह शक्ति, गर्व और आनंद के बाहरी साधनों से प्रेरित होता है, जिससे समाज में अशांति और कलह फैलती है।
फर्र-ए-इज़िदी( दिव्य प्रकाश):फजल ने राजसत्ता को फर्र-ए-इज़िदी (दिव्य प्रकाश) के रूप में देखा। इस दिव्य प्रकाश से प्रेरित राजा समाज में शांति और न्याय स्थापित करता है। फजल के अनुसार, सम्राट को जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।
अकबर आदर्श सम्राट: फजल ने अकबर को आदर्श राजा बताया। उन्होंने अकबर को "पूर्ण व्यक्ति" कहा, जो कभी गलती नहीं कर सकता। अकबर की नीतियां धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सुधार पर आधारित थीं।
धार्मिक सहिष्णुता और बहुधार्मिक समाज: फजल ने भारत जैसे बहु-धार्मिक समाज में राजा की भूमिका को धर्मनिरपेक्षता से जोड़ा। उनके अनुसार, राजा को सभी धर्मों से ऊपर होना चाहिए। फजल ने विभिन्न धर्मों की वकालत की और धार्मिक एकता के माध्यम से विश्व शांति को बढ़ावा दिया।
फजल का सामाजिक प्रभाग
1. समाज का विभाजन: अबुल फजल ने समाज को चार समूहों में विभाजित किया: योद्धा, शिल्पकार और व्यापारी, सीखा हुआ वर्ग, और अन्य। योद्धाओं को प्रशासन और सैन्य शक्ति का स्तंभ माना गया, जबकि शिल्पकार और व्यापारी आर्थिक गतिविधियों और व्यापार के केंद्र में थे। सीखा हुआ वर्ग ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक था, जिसे अबुल फजल ने सबसे महत्वपूर्ण माना। हालांकि, उन्होंने अपने समय की सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं को देखते हुए इस वर्ग की सीमाओं को भी स्वीकार किया और इसे अपेक्षाकृत कम महत्व दिया।
2. मनुष्यों का वर्गीकरण
फजल ने ग्रीक परंपरा के आधार पर मनुष्यों को उनकी विशेषताओं के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया:
कुलीन: बेहतर बुद्धि, दूरदर्शिता, प्रशासनिक क्षमता, वाक्पटुता और सैन्य पराक्रम वाले लोग।
मध्यवर्ती: विभिन्न व्यवसायों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग।
निम्न: स्व-केंद्रित व्यक्ति, जो मुख्य रूप से अपने लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
3. निम्न वर्ग और उच्च वर्ग पर विचार: सतीश चंद्र के अनुसार, अबुल फजल का निम्न वर्ग के प्रति दृष्टिकोण उनके समकालीन उच्च वर्ग के पूर्वाग्रहों को दर्शाता है। उन्होंने निम्न वर्ग को "आधार" या "अनदेखा वर्ग" कहा। फजल का मानना था कि राज्य का प्रबंधन कुलीन परिवारों और उच्च जातियों तक सीमित रहना चाहिए, और शाही अत्याचार आवश्यक था ताकि इन वर्गों को नियंत्रित किया जा सके।
4. शाही सत्ता और सामाजिक स्थिरता: फजल के अनुसार, सम्राट का मुख्य कार्य सामाजिक स्थिरता बनाए रखना और समाज के संतुलन को बहाल करना था। उन्होंने इसे "फर्र-ए-इज़िदी" (दिव्य प्रकाश) के माध्यम से संभव बताया। सम्राट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई व्यक्ति लालच के कारण अपने व्यवसाय या कर्तव्यों को न छोड़े।
5. अकबर की नीतियां और विचार: अकबर ने यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया कि लोग अपने व्यवसाय या पेशे से जुड़े रहें। उन्होंने शाह तहमास्प के विचारों की सराहना की कि जो कार्य कठिन लगता है, वह इसे अपने प्रयासों से पूरा करता है।
6. विद्रोहियों के प्रति दृष्टिकोण: अबुल फजल ने विद्रोहियों को सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने वाले माना। विद्रोह केवल शाही सत्ता का विरोध नहीं था, बल्कि इसे ईश्वरीय नियति का अपमान समझा गया। उन्होंने विद्रोहियों को मुगल शासन के गौरव को चुनौती देने वाला बताया।
फजल का आदर्श सुल्तान: अकबर
अकबर की विशेषताएं: अबुल फजल ने अपने ग्रंथ अकबरनामा में अकबर को अत्यधिक प्रतिभाशाली, सहिष्णु, और न्यायप्रिय बताया। उन्होंने अकबर को ऐसा शासक माना जो राज्य में स्थिरता लाने, उत्कृष्ट शासन बढ़ाने और अपने लोगों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध था। अकबर ने सभी धर्मों के लोगों को स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का अभ्यास करने का अधिकार दिया, जिससे उनका शासन धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक बना।
राजनीतिक और साम्राज्यवादी नीतियां: अकबर के राजनीतिक विचार स्पष्ट थे। वे न केवल राज्य की सीमाओं का विस्तार करना चाहते थे बल्कि अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के समर्थन में नैतिक तर्क भी पेश करते थे। हरबंस मुखिया के अनुसार, अबुल फजल ने अकबर को पितृसत्तात्मक शासक के रूप में प्रस्तुत किया, जो अपनी प्रजा को सुरक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करता है।
प्रजा के प्रति राजा की जिम्मेदारी: अबुल फजल ने अकबर को "चरवाहा," "माली," और "चिकित्सक" जैसे रूपकों का उपयोग करते हुए एक ऐसा शासक बताया, जो अपनी प्रजा के कल्याण की पूरी जिम्मेदारी लेता है। उन्होंने कहा कि राजा का हर कार्य, चाहे वह मनसब देना हो या पुरस्कार प्रदान करना, उसकी प्रजा के प्रति प्रेम और देखभाल का प्रतीक है।
विभिन्न संस्कृतियों और विचारों का प्रभाव: फजल के विचारों में बौद्ध, ग्रीक-रोमन, प्राचीन मिस्र, असीरियन और बाइबिल दर्शन के तत्व झलकते हैं। उन्होंने शासक की आवश्यक विशेषताओं को मध्यकालीन राजनीतिक चिंतन में एक मूलभूत मुद्दा बताया।
बरनी और बाबर की तुलना: बरनी ने शासक के लिए जीतने और शासन करने की तीव्र इच्छा को सबसे महत्वपूर्ण माना। बाबर के लिए सफल शासन का अर्थ था एक मजबूत राज्य, समृद्ध प्रजा, भरे हुए खजाने, और पर्याप्त संसाधन। वहीं, अबुल फजल ने शासक के लिए पितृ प्रेम, न्याय और प्रजा के कल्याण को प्राथमिकता दी।
संप्रभुता और युग की भावना: फजल के अनुसार, एक सच्चे राजा को युग की भावना को समझना चाहिए और अपनी प्रजा की आवश्यकताओं के अनुसार शासन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शासक को न केवल प्रजा के कल्याण की चिंता करनी चाहिए, बल्कि स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए विवेकपूर्ण नीतियां अपनानी चाहिए।
न्याय का प्रवचन
1. न्याय और राजा की जिम्मेदारी: अबुल फजल के अनुसार, न्याय प्रदान करना राजा की सबसे प्रमुख जिम्मेदारी थी। राजा को प्रजा के प्रति पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए, अपनी प्रजा को बच्चों के रूप में और स्वयं को उनके पिता के रूप में समझना चाहिए। न्याय करते समय उसे दयालु, निष्पक्ष और तटस्थ होना चाहिए। न्याय का उद्देश्य निर्दोषों की रक्षा करना और दोषियों को दंड देना है।
2. न्याय का नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण: अबुल फजल ने कहा कि राजा को धर्म के आधार पर न्याय नहीं करना चाहिए। न्याय को निष्पक्ष और सभी के लिए समान होना चाहिए। उन्होंने जजियाह कर समाप्त करने की वकालत की और इसे अन्यायपूर्ण बताया। उन्होंने अकबर की नीतियों को दार-उल-सुलह (सुलह का मार्ग) के रूप में परिभाषित किया, जिसमें सहिष्णुता और न्याय प्राथमिकता थी।
3. अकबर का प्रशासनिक सुधार: अकबर ने प्रशासन को संगठित और स्थिर बनाने के लिए कई सुधार किए:
प्रशासनिक ढाँचा: राज्य को सूबा, सरकार, और महल में विभाजित किया। हर स्तर पर अधिकारियों की नियुक्ति की गई।
भू-राजस्व प्रणाली: अकबर ने दिल्ली सल्तनत की व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए भू-राजस्व प्रणाली को मजबूत किया।
मनसबदारी प्रणाली: राजा के प्रति उत्तरदायी मनसबदारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया – जात (स्थिति) और सवार (घुड़सवार सेना)।
4. मनसबदारी प्रणाली का महत्व: मनसबदारी प्रणाली ने एक केंद्रीकृत और अनुशासित प्रशासनिक ढाँचा स्थापित किया मनसबदार राजा के प्रति उत्तरदायी थे और सेना व राजस्व संग्रह का कार्य देखते थे। इस प्रणाली में प्रतिभा और योग्यता को महत्व दिया गया।
5. प्रजा की भलाई और शासन का उद्देश्य: राज्य का मुख्य उद्देश्य प्रजा की भलाई सुनिश्चित करना था। राजा को अपराधियों को दंडित करना और अच्छे कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए। न्याय करते समय, राजा को अपराधी की परिस्थितियों को समझकर निर्णय लेना चाहिए।
6. पदानुक्रम और प्रतिभा का महत्व: अबुल फजल ने पदानुक्रम की महत्ता पर जोर दिया, लेकिन इसके साथ ही राज्य में प्रतिभा और योग्यता को प्राथमिकता दी। उन्होंने अकबर की इस नीति की सराहना की कि उन्होंने सभी सामाजिक वर्गों में से प्रतिभाशाली लोगों को पहचाना और पुरस्कृत किया।
7. भारतीय सामाजिक ढाँचे के साथ सामंजस्य: मुगल शासन ने भारतीय जाति संरचना को बाधित नहीं किया। उन्होंने न्याय, अर्थव्यवस्था, और प्रशासन में भारतीय सभ्यता की मौलिक संरचना को अपनाया।
अकबर की सेना और भू-राजस्व व्यवस्था
प्रशासन और भू-राजस्व प्रणाली: अकबर ने प्रशासनिक व्यवस्था को सरकार और परगना में विभाजित किया, जहां प्रत्येक परगना का संचालन शिकदार (प्रशासनिक प्रमुख), आमिल (भूमि मूल्यांकन और कर संग्रह प्रमुख), और कानूनगो (अधिकारियों के रिकॉर्ड की देखरेख) जैसे अधिकारियों द्वारा किया जाता था। भूमि राजस्व के लिए दहसाला प्रणाली लागू की गई, जिसमें पिछले 10 वर्षों के औसत उत्पादन और कीमतों के आधार पर नकद कर वसूला जाता था।हालांकि यह प्रणाली प्रशासनिक सुधार का एक महत्वपूर्ण कदम थी, लेकिन किसानों के लिए यह अक्सर बोझिल साबित हुई। कर न चुका पाने की स्थिति में उन्हें कठोर दंड का सामना करना पड़ता था, जिससे कई किसानों पर भारी दबाव बना।
किसानों के प्रति सुधारात्मक कदम: अबुल फजल के अनुसार, अकबर ने किसानों को उनकी उपज के अनुसार कर चुकाने की अनुमति दी, जिससे कर प्रणाली अधिक लचीली बनी। प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों को राहत प्रदान करने के प्रयास किए गए। हालांकि, जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण जारी रहा। इस समस्या को कम करने के लिए अकबर ने जमींदारों पर सख्त नजर रखी और उनके शोषण को रोकने का प्रयास किया। साथ ही, जरूरतमंद किसानों को मुआवजा देकर उनकी स्थिति सुधारने की पहल की गई।
राजस्व प्रणाली का विस्तार:अकबर की दहसाला प्रणाली को लाहौर, इलाहाबाद, गुजरात, बिहार, और मालवा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में लागू किया गया। इस प्रणाली में किसानों को नकद कर चुकाने का प्रावधान था, लेकिन जरूरत के अनुसार उन्हें फसल बंटवारे का विकल्प भी उपलब्ध कराया गया। यह व्यवस्था क्षेत्रीय आवश्यकताओं और किसानों की परिस्थितियों के अनुसार अधिक लचीलापन प्रदान करती थी।
सैन्य शक्ति: अकबर की सेना एक संगठित और शक्तिशाली संरचना थी, जिसमें घुड़सवार, पैदल सैनिक, तोपखाना, हाथी, और ऊँट शामिल थे। सैनिकों को शाही खजाने से भुगतान किया जाता था, जबकि मनसबदारों को सेना का प्रबंधन और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।1581 तक, अकबर की सेना में लगभग 45,000 घुड़सवार, 5,000 हाथी और बड़ी संख्या में पैदल सैनिक शामिल थे, जो उसकी सैन्य शक्ति और साम्राज्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करते थे।