Bhic- 134 Unit- 8 ( औपनिवेशिक शासन का आर्थिक प्रभाव ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक

भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 8- Bhic- 134- ignou subject


bhic- 134 unit- 8- aupniveshik shasan ka arthik prabhav


परिचय

अंग्रेजी द्वारा अपनाई जाने वाली आर्थिक नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था का औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन किया। आत्म- निर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आर्थिक प्रतिमान नष्ट हो चुका था ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था की नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की पारंपारिक संरचना को पूरी तरह से बाधित कर दिया था।


उपनिवेशवाद का प्रथम चरण

उपनिवेशवाद का प्रथम चरण एकाधिपत्य व्यापार का चरण कहलाता है। ब्रिटिश लोगों को यूरोपियन और उनकी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती थी जिसकी वजह से वह भारत से सस्ते मूल्य पर भारतीय माल खरीद कर उसे विश्व भर में अधिक मूल्य पर बेचकर लाभ कमा लेते थे।

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद अंग्रेजों को अलग-अलग भागो पर नियंत्रण करने के लिए एक अच्छा अवसर मिल गया था ब्रिटिश लोगों ने भारतीय बुनकरों को बाजार की कीमत से कम भाव में कपड़ा तैयार करने के लिए बाध्य किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय व्यापार व हस्तशिल्प उत्पादन पर नियंत्रण प्राप्त करके भारतीय व्यापारियों तथा शिल्पकारों  को धीरे- धीरे बर्बाद कर दिया


उपनिवेशवाद का द्वितीय चरण

इसे शोषण का काल भी कहा जाता है क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने अपने आर्थिक हितों के लिए मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया। उपनिवेशवाद के द्वितीय चरण को मुक्त व्यापार का चरण भी कहा जाता है अब ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति शुरू हो गई थी जिसके कारण ब्रिटेन को बड़ी मात्रा में कच्चे माल को तैयार करने तथा भेजने के लिए बाजार की आवश्यकता थी। 

1813 में चार्टर एक्ट के पश्चात शक्ति ब्रिटिश सरकार के पास आ गई और उसने भारत के समस्त आयात करो को काफी कम कर दिया और एक समय ऐसा आया की पूरी तरह हटा दिया जिससे कि ब्रिटिश उत्पाद आसानी से भारत में प्रवेश कर पाए और ब्रिटिश पूंजी पतियों को भारत में चाय, कॉफी तथा नील के बागानों, परिवहन और उद्योग धंधे को विकसित करने के लिए आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई गई


उपनिवेशवाद का तृतीय चरण

उपनिवेशवाद का तृतीय चरण विदेशी निवेश और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का युग कहा जाता है इस काल में वैज्ञानिक आविष्कारों ने औद्योगिकरण को तीव्र किया आधुनिक रासायनिक उद्योग- धंधे पेट्रोलियम का इंधन के रूप में प्रयोग हुआ तथा उद्योगों में बिजली का प्रयोग हुआ यह सभी इस काल में विकसित हुए तीव्र औद्योगिक विकास से शहरीकरण हुआ ।


औपनिवेशिक शासन के आर्थिक प्रभाव

औपनिवेशिक नीतियों ने शिल्पकार, कृषक, व्यापारी यानी कि भारतीय समाज के लगभग सभी वर्गों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया। जब तक अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की दूसरे कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा रही तब तक भारतीय सरकारों को अपने उत्पाद का अच्छा मूल्य प्राप्त हो रहा था। 

लेकिन 18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में अंग्रेजों ने एकाधिकार स्थापित कर लिया जिससे उन्होंने अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया जिसके कारण पहले भारतीय उद्योगों के उत्पादों की कीमत ऊंची होती थी लेकिन अंग्रेजों ने देश के शिल्पकारों को दिया जाने वाला मूल्य को कम कर दिया शिल्पकारों का अत्यधिक शोषण किया गया साथ ही हस्तशिल्प उद्योगों को कमजोर कर दिया गया


औपनिवेशिक भारत में अकाल

उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से भारत में कई अकाल पड़े, जिससे भारतीय कृषकों की स्थिति और भी दयनीय बन गयी। अनुमान के अनुसार, इन अकालों में एक करोड़ 52 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और 29.7 करोड़ लोग इन विभिन्न अकालों से बुरी तरह प्रभावित रहे। यह बड़ी संख्या दर्शाती है कि लगातार संकट की अवस्था बनी रही। सूखा और फसल की बर्बादी इसका कारण रहा होगा।


कृषि का वाणिज्यीकरण

कृषि के वाणिज्यीकरण के अंतर्गत कुछ विशेष फसलों को उगाया गया था। इसका उपयोग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी बिक्री के लिए किया जाता था। वाणिज्यिक फसलें जैसे कपास, जूट, मूंगफली, तिलहन, गन्ना, तम्बाकू, आदि


आधुनिक उद्योग और भारतीय पूंजीपति वर्ग

संरचनात्मक विकास के लिए रेलवे और यातायात प्रणाली विकसित की गयी। इसके अतिरिक्त जूट कारखानों, कोयला खदानों, चाय-कॉफी बागानों में भी विदेशी पूँजी का निवेश हुआ 1854 में मुंबई में पहली भारतीय कपड़ा मिल की स्थापना की गई लेकिन प्रथम विश्व युद्ध तक प्रगति दर धीमी रही लेकिन इसके बाद औद्योगिक पूंजी में तीव्र विकास आया।












Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.