भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 7- Bhic- 134- ignou subject
परिचय
भारत पर सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने और बाद में सीधे ब्रिटिश सरकार ने राज किया जिसकी वजह से भारत का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया और वह ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। भारत का अंग्रेजों ने कई प्रकार से शोषण किया और उन्होंने ऐसी नीतियां बनाई जिससे भारत का शोषण कर सके ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य भारत से प्राप्त संसाधनों का इस्तेमाल करके ब्रिटिश आर्थिक हितों को बढ़ाना था।
ईस्ट इंडिया कंपनी का ढांचा
सामान्य किसी व्यवसाय पर एक स्वामी या कुछ स्वामियों की भागीदारी होती है। संयुक्त स्टॉक कंपनियों की प्रकृति इस प्रकार की कंपनियों से थोड़ी अलग होती है। यूरोप की ईस्ट इंडिया कंपनीयां विश्व की शुरुआती संयुक्त स्टॉक कंपनियों में से एक थी। स्टॉक कंपनियां विभिन्न स्रोतों या शेयरधारकों से बड़ी मात्रा में पूंजी को एकत्रित कर सकती है। इस प्रकार से व्यापार काफी लंबे समय तक चलता है।
ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार
एकाधिकार से तात्पर्य व्यापार पर नियंत्रण से है। ईस्ट इंडिया कंपनी को इंग्लैंड की सरकार के द्वारा एकाधिकार प्रदान किया गया था भारत तथा हिंद महासागर के अन्य देशों और इससे आगे पूरब की ओर चीन के साथ होने वाले व्यापार पर इस कंपनी का पूर्ण नियंत्रण था। जिससे निवेशकर्ताओं के लाभों को सुनिश्चित किया जा सके।
कंपनी के व्यापार की प्रकृति
कंपनी के व्यापार की प्रवृत्ति एकाधिकार की थी। एकाधिकार व्यापार वह होता है जिसमें केवल एक व्यापारी या फर्म का सम्पूर्ण बाजार पर अधिकार हो। ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्य व्यापार भारतीय बाजारों से कपड़ों, मसालों और नील को यूरोपीय बाजारों में बेचना होता था। शुरू में उन्हें भारत में काफी संघर्ष व प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा। बाद में 18वीं सदी के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे में लगातार बढ़ोतरी हुई।
इसके कारण निम्नलिखित थे -
- मुगल साम्राज्य के पतन के बाद रियासतें व राजा कमजोर पड़ गए तथा व्यापार के लिए वे विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहने लगे।
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने दूसरी यूरोपीय ईस्ट इंडिया कंपनियों की शक्ति को काफी कम कर दिया। इससे बाजार के एक बड़े हिस्से पर उनका साम्राज्य स्थापित हो गया।
- अंग्रेजों ने किसानों का आर्थिक शोषण किया तथा उन्हें अपना सामान कम कीमत पर ही कंपनी को बेचने के लिए बाध्य किया।
औद्योगिक पूंजीवाद का उदय और कंपनी की वाणिज्य नीतियां