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Bhic- 134 Unit- 5 ( 1857 का विद्रोह ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक

 

भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 5- Bhic- 134- ignou subject


bhic- 134 unit- 5 -1857-ka vidroh


परिचय

1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण विद्रोह में से एक है। इस विद्रोह ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी। यह एक सिपाही विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था लेकिन शीघ्र ही इसने उत्तर भारत के विस्तृत क्षेत्र की जनता और किसान वर्ग को भी शामिल कर लिया।इस Unit- में हम विद्रोह की प्रणाली और प्रसार साथ ही उस वक्त की घटनाओं और नए विद्रोही संस्थाओं के उदय के बारे में वर्णन करेंगे।


1857 के कारण

1857 के विद्रोह का मुख्य कारण था अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनता का शोषण करना ब्रिटिश सरकार निरंतर रूप से भारतीयों का शोषण कर रही थी साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी का खजाना भर रही थी। ईस्ट इंडिया कंपनी खुद को समृद्ध बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी।


किसानो का शोषण

किसानों से अत्यधिक कर वसूला जाता था। कर ना चुका पाने की स्थिति में उनकी जमीनों को दूसरे के हाथ बेच दिया जाता था। किसानों को सदैव अपनी हैसियत से ज्यादा लगान भरने के लिए मजबूर किया जाता था जिसकी वजह से उन्हें महाजनों से कर्ज लेना पड़ता था साथ ही भारी ब्याज भी चुकाना पड़ता था प्रशासन के अधिकारी भी इन गरीब किसानों से छोटे-छोटे बहाने बनाकर पैसे ऐंठ लिया करती थी। किसानों को कहीं पर भी न्याय नहीं मिलता था, अच्छी फसल होने पर किसानों को पुराना कर्ज चुकाना होता था और खराब फसल होने पर कर्ज का बोझ दोगुना हो जाता था। ऐसी स्थिति में कृषक बहुत परेशान हो चुके थे और इस सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए अवसर की तलाश में रहते थे।


रियासतों का विलय

ईस्ट इंडिया कंपनी ने विभिन्न प्रकार की संधियों को जबरन थोपकर अपने सहयोगियों के राज्य को भी हड़प लिया करती थी लॉर्ड डलहौजी द्वारा अवध को भी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कर लिया गया जिससे अभिजात वर्ग के हजारों लोग अधिकारी, और सैनिक बेरोजगार हो गए। इस विलय से इन राज्यों के शासक अंग्रेजों के कट्टर दुश्मन बन गए।


अंग्रेजी शासन का विदेशीपन

ब्रिटिश शासन कभी भी भारतीयों से मेलजोल नहीं बढ़ाती थी। साथ ही उच्च वर्ग के भारतीयों का भी तिरस्कार करती थी  वह सिर्फ भारत से अपने देश में पैसा ले जाना चाहते थे उन्होंने कभी भी भारतीयों के साथ मित्रता नहीं बढ़ाई।


सिपाहियों का विद्रोह

1857 के विद्रोह की शुरुआत भी सिपाही विद्रोह से ही हुई थी। एक भारतीय सिपाही को ब्रिटिश सिपाही की तुलना में काफी कम वेतन दिया जाता था उनको सिर्फ 7 से ₹8 मासिक वेतन दिया जाता था  इसके बाद भी ब्रिटिश अधिकारी भारतीय सिपाहियों के साथ बुरा व्यवहार करते थे। इन सभी कारणों के कारण ही भारतीय सिपाहियों में असंतोष बढ़ता जा रहा था।


तात्कालिक कारण

उस समय का माहौल ही ऐसा बन गया था। कि विद्रोह पर उतरने के लिए केवल एक चिंगारी ही काफी थी। उस समय की तत्कालिक कारणों में यह अफवाह थी कि 1853 की राइफल के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी का ग्रीज लगा हुआ है  यह अफवाह हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। राइफल की कारतूसें जिन्हें सेना में लाया गया था उनको ढकने के लिए ग्रीज लगा पेपर होता था जिसे राइफल में भरने से पहले दांतों से काटना होता था। जोकि कई बार गायब सूअर की चर्बी से बना होता था इससे हिंदू और मुस्लिम सिपाही क्रोधित हो उठे उन्हें लगने लगा कि सरकार जानबूझकर उनका धर्म नष्ट करना चाहती है। यही बात उस समय विद्रोह का तत्कालीक कारण बनी।


विद्रोह का उद्भव

27 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे नाम का एक सैनिक था जिसने ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों पर हमला कर दिया। लेकिन ब्रिटिश सैनिकों ने इस सैनिक विद्रोह को दबा दिया साथ ही ब्रिटिश अधिकारियों ने मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया इस कारण से सभी सिपाहियों में असंतोष बढ़ गया और इस घटना के 1 महीने के अंदर ही 24 अप्रैल को मेरठ में सेना के 90 लोगों ने चर्बी लगे कारतूसों को इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया विरोध करने वाले सैनिकों को बर्खास्त कर दिया और उन्हें 10 साल की सजा सुना दी गई। इस वजह से भारतीयों ने जोरदार प्रतिक्रिया भी की और अगले दिन 10 मई को मेरठ में तैनात पूरी भारतीय फौज ने विद्रोह कर दिया।


जन विद्रोह 

चर्बी लगे कारतूस, आटे में हड्डी चूर्ण की मिलावट और जबरदस्ती ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की अफवाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध जनता के असंतोष को विद्रोह में परिवर्तित करने का काम किया। बहुत सारे लोग एक स्थान पर इकट्ठा होकर सरकारी संपत्ति को लूटने की योजनाएं बनाया करते थे। लगभग 30 से 60 गांव के लोग एक साथ मिलकर मुख्यालय पर आक्रमण करते थे। पुलिस और महाजनों पर आक्रमण किया गया उन्हें लूटा गया साथ ही कैदियों को रिहा भी किया गया। इसी तरीके से भी रेलवे पर आक्रमण किया गया। विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने विद्रोह में शामिल लोगों को बड़े से बड़ा लालच दिया लेकिन कोई भी लालच इस समय काम नहीं आया।


विद्रोह के पश्चात

नई सैन्य रणनीति और तालुकदारों के आत्मसमर्पण के कारण  1857 के विद्रोह का दमन किया जा सका अंग्रेजों का भारत पर दोबारा से नियंत्रण हो गया।


राजा- महाराजा

राज्यों को हड़पने की ब्रिटिश नीति के कारण बहुत से भारतीय राजा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए जिनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब और अवध की बेगम हजरत महल प्रमुख थी। केनिंग ने महसूस किया कि अगर ग्वालियर, हैदराबाद, पटियाला, रामपुर और रीवा जैसे राजाओं का साथ न मिला होता तो 1857 के विद्रोह में भारत से ब्रिटिश सत्ता का विनाश भी हो सकता था। सभी शासकों को उनका स्वयं का उत्तराधिकारी घोषित कर लेने का अधिकार दे दिया गया।







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