Bhic- 134 Unit- 2 ( स्वतंत्र राज्यो का आविर्भाव ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक


भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 2- Bhic- 134- ignou subject


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परिचय

18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद बहुत सारी नई शक्तियों का उदय हुआ जिसमें शामिल थे बंगाल, अवध, हैदराबाद, पंजाब, कर्नाटक आदि इस Unit में हम 18वीं शताब्दी के राजनीतिक शक्तियों का उदय के बारे में चर्चा करेंगे।


मैसूर का उत्थान 

मैसूर के शासकों को एक और मराठों से चुनौती का सामना करना पड़ा तथा दूसरी ओर हैदराबाद और कर्नाटक के  विस्तारवाद से निपटना पड़ा टीपू सुल्तान अंग्रेजों की बढ़ती ताकत से लड़ने वाला था  टीपू सुल्तान अंग्रेजों का मुख्य शत्रु बन गया। हैदर अली और उसके बेटे टीपू सुल्तान ने मैसूर को दक्षिण भारत की एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया था।


मैसूर में युद्ध और सैन्यीकरण की भूमिका

इतिहासकार स्टाइन ने कहा सैन्यीकरण का महत्व 16वीं सताब्दी से विजयनगर साम्राज्य में दिखाई देता था दक्षिण भारत में सबसे पहले विजयनगर के राजाओं द्वारा दूसरे देशों पर अधिकार स्थापित करने के लिए  बंदूक, पिस्तौल जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।


स्थानीय सरदार

मैसूर के स्थानीय सरदार विशेष रुप से शिकारी संग्रहकरता समूह के वंशज थे इन की सैन्य क्षमता भी उच्च कोटि की थी।


मैसूर का प्रशासन

हैदर और उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने मैसूर के प्रशासन को मजबूत बनाया। उन्होंने पुराने प्रशासनिक ढांचे को किसी प्रकार की कोई हानि पहुंचाए बिना राजस्व से सूचना तक के सभी प्रशासन को 18 विभागों को बनाए रखा


भूमि से प्राप्त राजस्व

भूमि को अलग-अलग वर्गों में बांटकर इसका अलग अलग प्रकार से मूल्यांकन किया जाता था।

1 - भूमि को किरायों पर किसानों को दिया जाता था।

2 - कुछ भूमि पर किराया उत्पादन के हिस्से में से लिया जाता था।

अमलदार राजस्व प्रशासन को नियंत्रण करने का कार्य करता था तथा किराया संबंधित झगड़ों को भी निपटाया करता था।


हैदराबाद एक स्वतंत्र राज्य के रूप में

हैदराबाद के राज्य तंत्र पर मुगल प्रभाव बहुत ज्यादा था । मुगल साम्राज्य के अंतर्गत दक्कन के सूबेदार को हैदराबाद में नियुक्त किया गया था। लेकिन मुगल साम्राज्य के पतन के बाद यह प्रणाली संकट में पड़ गई। उसके बाद हैदराबाद में मुगल अधिकारियों को हटाकर नए अधिकारी नियुक्त किया गया।


भू -राजस्व प्रणाली

हैदराबाद के शासकों ने भू राजस्व प्रणाली का कार्य बिचौलियों को करने दिया था। नईम के अनुसार जमींदारों और गांव के प्रधानों को राज्य के आकलन के आधार पर भू राजस्व देना होता था। उत्पादन का 50% राजस्व के लिए निर्धारित था। खेती करने वालों को राज्य की ओर से कर्ज देकर उनका हौसला बढ़ाया जाता था।ताकि वह ज्यादा से ज्यादा खेती कर सके। साथ ही वह राजस्व दे सके।


वकील

वकील शक्ति और दौलत हथियाने कि इस प्रक्रिया में बिचौलिया का कार्य कर रहे थे। वकील निजाम और सामंतो तो के बीच सामंतो और सामंतो के बीच निजाम और बाहरी ताकतों के बीच दलालों का कार्य कर रहे थे।  यह वकील व्यक्तिगत स्वार्थों के आधार पर काम करते थे यह हमेशा लाभ के लिए कार्य करते थे।


वित्तीय और सैन्य समूह 

जरूरत पड़ने पर वित्तीय और सैन्य सेवा  देने के कारण हैदराबाद की राजनीतिक व्यवस्था में साहूकारों और महाजनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वित्तीय समूह में कुछ मुख्य जाति अग्रवाल और मारवाड़ी भी थे।


सिख राज्य का उदय

रणजीत सिंह ने पंजाब में स्वायत्त राज्य की स्थापना की। रणजीत सिंह सुकर चकिया सरदार महान सिंह का पुत्र थे  1792 में पिता की मृत्यु के समय वह केवल 12 वर्ष का था। उत्तराधिकारी के रूप में उसे गुजरनवाला, वजीराबाद और सियालकोट रोहतास क्षेत्र मिले थे। आगे चलकर लाहौर और अमृतसर जीतने के बाद रणजीत सिंह ने स्वयं को राजा घोषित करते हुए पंजाब में राजतंत्र की नींव रखी।








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