Bhic- 134 Unit- 13 ( स्वतंत्रता का आगमन: संविधान सभा और गणतंत्र की स्थापना ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक


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परिचय

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और भारत छोड़ो आंदोलन के बाद यह बात तो स्पष्ट हो गई थी कि ब्रिटिश शासन जल्दी ही खत्म होने वाला है क्योंकि एक विशाल साम्राज्य शक्ति के तौर पर ब्रिटेन कमजोर हो गया था। 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन ने एक शक्तिशाली रूप ग्रहण कर लिया था तथा बिहार, बंगाल और मुंबई जैसे अनेक स्थानों में ब्रिटिश सत्ता को समाप्त कर दिया था।


समझौता वार्ता के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण

1944 के अंत तक युद्ध में अंग्रेजो ने  इस बात का अनुमान लग लिया था कि वह ज्यादा समय तक अपना बलपूर्वक अधिकार नहीं रख पाएंगे। अब कांग्रेसी नेताओं से बातचीत का दौर शुरू करना आवश्यक था।


शिमला सम्मेलन

शिमला सम्मेलन 25 जून 1945 को हुआ था। यह शिमला में होने वाला एक सम्मेलन था जिसके अंदर 22 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता थे जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मोहम्मद अली जिन्ना, खान अब्दुल गफ्फार खान  ब्रिटिश भारत की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों में से एक मुस्लिम लीग के जिद के कारण  शिमला सम्मेलन असफल रहा  बाद की घटनाओं से यह पता चलता है कि शिमला समझौता का प्रयास मात्र एक कोरा नाटक था। वास्तव में  हिन्दू मुस्लिम भेदभाव को बढ़ा रहे थे। उन्होंने इसका खूब प्रचार किया कि भारत मे साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान असंभव है।


चुनाव और कैबिनेट मिशन योजना

1945-46 की सर्दियों में हुए चुनाव में ( गैर मुस्लिम ) चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई। जबकि मुस्लिम लीग ने सिंध, पंजाब एवं बंगाल के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में जीत प्राप्त की  लेकिन वह उन मुस्लिम बाहुल्य प्रांतों में सफल नहीं हुई जिन्हें पाकिस्तान में शामिल करने की मांग कर रहे थे इटली सरकार ने बगैर कोई समय नष्ट किए बातचीत का दौर शुरू कर दिया तीन ब्रिटिश कैबिनेट सदस्य का एक उच्च स्तरीय मिशन भारत में समझौते द्वारा शांति तरीके से सत्ता हस्तांतरण करने के तरीके ढूंढने भारत भेजा गया इसे ही कैबिनेट मिशन योजना कहा जाता है।


संविधान निर्माण और संविधान सभा

भारत के लिए एक संविधान तैयार करने की मांग वास्तव में आत्म निर्णय की दिशा में एक अच्छा कदम था अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई थी जिसकी अध्यक्षता मोतीलाल नेहरु जी ने की थी, इस में मौलिक अधिकारों की सिफारिश की गई थी जिसके अंदर ब्रिटिश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया था इसके अंदर मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का प्रावधान था 1940 में वायसराय ने यह स्वीकार किया कि भारत के लिए संविधान निर्माण प्राथमिक रूप से भारतीयों की जिम्मेदारी होगी।


स्वतंत्रता के बाद की राज्य व्यवस्था पर राष्ट्रवादी विरासत का प्रभाव

राष्ट्रवादी नेताओं ने सामाजिक आर्थिक सुधार लागू करने की आवश्यकता पर अत्यधिक बल दिया। उदाहरण के लिए उन्होंने उन कानूनों का विरोध किया जो औपनिवेशिक काल के दौरान नागरिक के स्वतंत्रता को सीमित करता था। उन्होंने भारत में प्रेस और अभिव्यक्ति के आधार को एक उचित स्थान दिया।


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