Bhic- 134 Unit- 12 ( सांप्रदायिकता: उत्पत्ति, विकास और भारत का विभाजन ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक


भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 12- Bhic- 134- ignou subject


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परिचय

देश के अंदर जनता में एकता बनाए रखना किसी भी देश के लिए सबसे प्रमुख कार्य है सांप्रदायिकीकरण के कारण भारतीय जनता, समाज तथा राजनीति के सामने भयंकर चुनौती पैदा होती जा रही थी। धार्मिक आधार पर लोगों के बीच दरार उत्पन्न हो रहा था। 1940 का दशक सांप्रदायिकता का सबसे संकटकालीन चरण था इसी काल में पाकिस्तान की मांग को सामने रखा गया और (1947 ) में पाकिस्तान का निर्माण भी हुआ।


सांप्रदायिकता क्या है

सांप्रदायिकता व विचारधारा है जिसमें व्यक्ति अपने धर्म को ही सबसे ज्यादा श्रेष्ठ समझता है तथा दूसरे धर्म को अपने धर्म से कम समझता है। इसके अंदर अपने धर्म के प्रति कट्टरता का भाव होता है तथा अपने धर्म को दूसरे धर्म से ऊंचा मानना ही सांप्रदायिकता है।


सामाजिक एवं आर्थिक कारण

भारत में पिछड़ेपन तथा बेरोजगारी जैसी समस्याओं ने अंग्रेजों को सांप्रदायिकता को उभारने का पूरा अवसर प्रदान किया। इन्हीं सभी कारण से सांप्रदायिकता विचारधारा को अपनी जड़ें जमाने के लिए बहुत अच्छा अवसर मिला


ब्रिटिश नीति की भूमिका

सांप्रदायिकता के विकास के लिए ब्रिटिश सरकार काफी हद तक जिम्मेदार हैं 1947 के दंगे और भारत विभाजन के लिए अंग्रेजी सरकार काफी हद तक जिम्मेदार हैं। 1857 के बाद सरकारी नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया अंग्रेजों ने अपनी नीतियों को बदला था। इन सभी चीजों का परिणाम यह हुआ कि सांप्रदायिकता के रूप में यह सारी चीजें सामने आई तथा सांप्रदायिकता के विचारधारा को बढ़ावा दिया गया जिसके कारण भारतीयों में एकता नहीं हो पाई।


राष्ट्रीय आंदोलन की कमजोरियां

सांप्रदायिकता के विकास को एक अखिल राष्ट्रवादी आंदोलन द्वारा ही रोका जा सकता था लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसमें पूरी तरीके से असफल रही कांग्रेस सांप्रदायिकता के स्वरूप को पूरी तरह समझ नहीं सके जिसके कारण वह इससे लड़ने के लिए सही रणनीति तैयार नहीं कर पाई।


बंगाल का विभाजन और मुस्लिम लीग का गठन

ब्रिटिश सरकार ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया। जिसकी वजह से अंग्रेजी सरकार को एक राजनीतिक लाभ भी प्राप्त हुआ। क्योंकि बंगाल को हिंदू बाहुल्य और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बांट दिया गया इस कारण से बंगाल में राष्ट्रवाद कमजोर हुआ 1906 के अंत में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का गठन हुआ। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मुसलमान नौजवानों को कांग्रेस की ओर जाने से रोकना था जिससे कि वह कभी राष्ट्रवादी मुख्यधारा में सम्मिलित ना हो पाए।


नेहरू रिपोर्ट

साइमन कमीशन की नियुक्ति के साथ- साथ ही भारत सरकार के सचिव ने भारतीय नेताओं को यह कार्य सौंपा कि वह अलग-अलग दलों और संप्रदायों की सहमति से एक संविधान को तैयार करें  जिसके बाद इंग्लैंड सरकार उस पर गंभीरता से विचार करेगी भारतीय नेताओं ने इसे स्वीकार किया और साथ मिलकर संविधान का एक प्रारूप तैयार किया मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसका काम था संविधान का एक प्रारूप तैयार करना इस समिति के सचिव जवाहर लाल नेहरू थे इसके अंदर अन्य 9 सदस्य भी थे जिसमें एक सुभाष चंद्र बोस भी थे समिति ने अपनी रिपोर्ट 28- 29 अगस्त 1928 को प्रस्तुत की जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।


ब्रिटिश नीति का अंतिम चरण और विभाजन

अंग्रेजों ने मुस्लिम संप्रदायवादियों की आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सहायता करें और मुस्लिम सांप्रदायिकता को भड़काने का कार्य किया। कांग्रेस ने विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ने की मांग की। लेकिन जवाब में अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग को पाकिस्तान की मांग के लिए प्रोत्साहन दिया कांग्रेस चाहती थी कि युद्ध से पहले सत्ता हिंदुस्तानियों को दे देनी चाहिए। लेकिन अंग्रेज यह चाहते थे कि पहले हिंदू और मुस्लिम हस्तांतरण पर सहमत हो जाए तभी बात आगे बढ़ेगी।


सांप्रदायिक नर- संहार

सीधी कार्यवाही दिवस 16 अगस्त 1946 को सांप्रदायिक दंगे भड़क गए और पूरे देश विशेषकर मुंबई, पूर्वी बंगाल, और बिहार तथा यूपी पंजाब में फैल गए। 3 दिन के अंदर 4000 लोग मारे जा चुके थे और 10,000 से अधिक घायल हो चुके थे यह तो बस शुरुआत थी क्योंकि पूरे 1947 तथा 1948 के शुरू में सांप्रदायिक दंगे निरंतर चलते जा रहे थे। 

जिसमें लाखों की संख्या में लोग मारे गए महिलाओं का अपहरण एवं बलात्कार किया गया। निजी संपत्ति को भारी नुकसान हुआ तथा धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने की बहुत सारी घटनाएं सामने आई। लाखों लोग इस दंगे के कारण शरणार्थी बन गए। कुछ स्थानों जैसे कि पंजाब में अत्यधिक पैमाने पर जनसंख्या विस्थापित हुई।


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