भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 11- Bhic- 134- ignou subject
परिचय
राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का प्रवेश अगला महत्त्वपूर्ण कदम था। शुरुआत में महात्मा गांधी ने चम्पारण, खेड़ा और अहमदाबाद में स्थानीय स्तर पर अपने राजनीतिक तरीके आजमाए। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध गांधी जी का संघर्ष अहिंसात्मक- असहयोग पर आधारित था।
इन तरीकों के जरिए उन्होंने तीन मुख्य संघर्षों का नेतृत्व किया असहयोग आंदोलन (1920-22) सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942 ) उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।
देश को जानना
9 जनवरी 1915 को गांधीजी जब भारत लौटे तो उनका भव्य स्वागत हुआ भारत में उनके राजनीतिक गुरु की भूमिका गोपाल कृष्ण गोखले ने निभाई गोखले जी ने गांधी जी को पहले भारत को समझने के लिए कहा।इसलिए 1915 और 1916 में गांधी जी ने अपना ज्यादातर समय भारत के अलग-अलग स्थानों के दौरे में बिताया सिंध, बनारस, हरिद्वार और रविंद्र नाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन आदि की यात्राओं से गांधीजी ने भारत की स्थिति का पता लगाया 1915 में ही गांधीजी ने अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे अपने आश्रम की स्थापना इस समय तक गांधीजी अधिकांश सभाओं में केवल अपने दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों और उससे संबंधित विचारधारा के बारे में ही बोलते थे।
सत्याग्रह
सत्याग्रह गांधीजी की विचारधारा का सबसे मुख्य पहलू था, जो दक्षिण अफ्रीका में ही रूप ले चुका था गांधीजी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को 'सत्याग्रह' का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध हिंसा के स्थान पर शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था।
अहिंसा
गांधीजी ने अहिंसा को सत्याग्रह का प्रमुख आधार माना है। गांधीजी कहते हैं कि अहिंसा के द्वारा किसी भी शक्ति और आंदोलन को जीता जा सकता है लेकिन गांधीजी का यह भी मानना है कि अन्याय के सामने कायर दिखने की अपेक्षा हिंसा करना बेहतर है।
हिंद स्वराज का विचार
गांधीजी ने अपनी पुस्तक ' हिंद स्वराज' 1909 में यह समझाया कि अंग्रेजों का राजनीतिक प्रभाव भारतीयों का वास्तविक शत्रु नहीं है। बल्कि भारतीयों का वास्तविक शत्रु पश्चिमी सभ्यता है। जिसने भारतीयों को हानि पहुंचाई है। गांधी जी ने कहा है आधुनिकता के प्रभाव में आकर भारत के संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए।
स्वदेशी
गांधीजी ने इंग्लैंड में मशीन से बने कपड़ों के स्थान पर खादी का इस्तेमाल कर स्वदेशी अपनाने का उदाहारण बताया है उनका मानना था कि इसके माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है तथा इससे भारत से इंग्लैंड को हो रही धन की निकासी को भी रोका जा सकता था।
चंपारण में जन लामबंदी का प्रयोग
चम्पारण के किसान उन यूरोपीय उपनिवेशी काश्तकारों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे जो उन्हें नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे। किसान नेताओं में से एक राजकुमार शुक्ला अपनी हालत दिखाने के लिए गांधीजी को आमंत्रित करने लखनऊ तक गए। गांधीजी ने 1917 में इस मामले में खुली जांच करवाना शुरू की। चम्पारण आंदोलन का परिणाम यह हुआ कि 'तिककाठिया' प्रणाली को हटा दिया गया
खेड़ा
1918 के भीषण अकाल के कारण गुजरात के खेड़ा जिले में पूरी फसल बरबाद हो गयी, फिर भी सरकार ने किसानों से लगान वसूलने करने की प्रक्रिया जारी रखी। 'राजस्व संहिता' के अनुसार, यदि फसल का उत्पादन, कुल उत्पाद के एक-चौथाई से भी कम हो तो किसानों का राजस्व पूरी तरह माफ कर दिया जाये किन्तु सरकार ने किसानों का राजस्व माफ करने से इन्कार कर दिया।
गांधीजी ने घोषणा की कि यदि सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दे तो लगान देने में सक्षम किसान स्वेच्छा से अपना लगान अदा कर देंगे। लेकिन सरकार ने कई स्थानों पर किसानों की संपत्ति कुर्क कर ली गयी तथा उनके मवेशियों को जब्त कर लिया गया।
इसी बीच सरकार ने अधिकारियों को गुप्त निर्देश दिया कि लगान उन्हीं से वसूला जाये जो लगान दे सकते हैं। इस आदेश से गांधीजी का उद्देश्य पूरा हो गया तथा आंदोलन समाप्त हो गया।
अहमदाबाद
फरवरी- मार्च 1918 में अहमदाबाद में गांधी जी ने गुजरात के मिल मालिकों और उनके मजदूरों के बीच आंतरिक संघर्ष में मध्यस्थता की मिल मजदूरों और मिल मालिकों के बीच तत्कालीन विवाद प्लेग बोनस को समाप्त करने पर थी। मजदूर विवाद प्लेग बोनस के बदले मजदूरी में बढ़ती हुई महंगाई के भी कारण 50% की वृद्धि की मांग कर रहे थे लेकिन मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि नहीं देना चाह रहे थे।
गांधीजी इस में श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित थे। लेकिन बाद में मिल मालिक अपने वादे से मुकर गए और हड़ताल पर पूरी पाबंदी लगाने की मांग कर दी। गांधीजी ने मजदूरों को राजी किया और मजदूरी में 50% वृद्धि के बदले 35% वृद्धि के लिए मजदूरों को तैयार किया। स्थिति तब बिगड़ गई जब मिल मालिकों ने 22 फरवरी को मिलो में ताले लगाकर मजदूरों को बाहर कर दिया लेकिन अंत में निर्णय यह हुआ कि मजदूरों को 35% की वृद्धि दी जाएगी।
असहयोग आंदोलन
1921 के शुरू में आसहयोग तथा बहिष्कार के लिए आंदोलन जोर शोर पर था। लेकिन आंदोलन के लिए अलग-अलग चरणों में केंद्रीय मुद्दे बदलते रहे
1. जनवरी से मार्च 1921 प्रथम चरण
- इस समय मुख्य मुद्दा था विद्यालय, कॉलेज, कानूनी अदालतों का बहिष्कार और चरखे का प्रयोग
2. अप्रैल 1921 दूसरा चरण
- 20 लाख चरखे लगाना आवश्यक
3. तीसरा चरण जून
- विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, ब्रिटिश राज सिंहासन के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ वेल्स की यात्रा का बहिष्कार, साथ ही खादी की लोकप्रियता को बढ़ाना
4. अंतिम चरण नवंबर 1921
- आंदोलन उग्र हुआ
- गांधीजी ने राजस्व नहीं देने की बात कही।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई कुछ क्षेत्रो में लोगों ने राजस्व देने से इनकार किया बहुत सारे लोगों ने कानूनों का उल्लंघन किया स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस से बातचीत करने का निर्णय लिया। गांधी जी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और आंदोलन को अस्थाई तौर पर वापस ले लिया। लेकिन बाद में बातचीत सफल नहीं हुई और आंदोलन दोबारा से शुरू हो गया
'करो या मरो' का आह्वान और आंदोलन का आरंभ
गांधीजी ने सभी वर्गों को आंदोलन में भाग लेने के लिए कहा “ सभी भारतीय जो आजादी चाहता है उनका संदेश था 'करो या मरो'। इस तरह 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू हो गया। 9 अगस्त की सुबह गांधीजी सहित कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए। गांधीजी ने एक बार फिर अहिंसा पर बल दिया गांधी और उनके साथ अन्य कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी पर देश के विभिन्न भागों में जन- प्रतिक्रिया हुई। शहरों और कस्बों में हड़तालों, जुलूस और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया कांग्रेसी के जेल जाने के बाद स्थानीय स्तरों पर युवा छात्र नेता के रूप में उभर कर आए।