Bhic- 134 Unit- 10 ( राष्ट्रवाद का उद्भव और विकास ) भारत का इतिहास 1707- 1950 ई. तक


भारत का इतिहास- 1707- 1950 ई. तक- Unit- 10- Bhic- 134- ignou subject


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परिचय

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास अंग्रेजी शासन के कारण हुआ था। अंग्रेजी शासन के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में किए गए परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप भारतीय जनता के लगभग सभी वर्गों का अत्यधिक शोषण हुआ था। सामाजिक धार्मिक आंदोलनों ने राष्ट्रवाद की भावना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


मध्यम वर्ग की चेतना का उदय

इस दौरान भारतीय शिक्षित वर्ग मध्यमवर्ग (व्यापारी, वकील, अध्यापक, पत्रकार, डॉक्टर आदि) अंग्रेजी शासन के अंतर्गत कष्टों का सामना कर रहा था। यह वर्ग किसानों और मजदूरों की तुलना में औपनिवेशिक शासन के स्वरूप को समझने में अधिक सक्षम था। शुरुआती समय में में इस वर्ग का विचार था कि संचार साधनों का विकास और रेलवे का विकास आदि भारतीयों के लाभदायक होंगे,  जिसके कारण ही उन्होंने अंग्रेजी नीतियों का समर्थन किया था। 

लेकिन समय के साथ यह स्पष्ट होने लगा कि अंग्रेजों ने वास्तव में अंग्रेजी शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए ही ये आर्थिक नीतियाँ बनायीं थी। इसके बाद विद्रोह शुरू होगी लेकिन मध्यम वर्ग ने किसानों, कामगारों और जन-जातियों की भांति विद्रोह का रास्ता न अपनाते हुए इस प्रकार के तरीको को अपनाया

1. इस वर्ग ने अंग्रेजी नीतियों की आलोचना करते हुए किताबें लिखीं, लेख लिखे और समाचार-पत्रों के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया।

2. इस वर्ग ने विभिन्न संगठनों और समितियों की स्थापना की और उसके अंदर विरोध प्रकट करने का कार्यक्रम चला


राष्ट्रवाद की प्रारंभिक साहित्यिक और संगठनात्मक अभिव्यक्ति

राजा राममोहन राय जैसे महान समाज सुधारक ने सर्वप्रथम बंगला भाषा में एक पत्रिका संबाद कौमुदी प्रकाशित की। इस पत्रिका के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर लेख लिखे जाते थे। दीन बंधु मित्र ने नील दर्पण नामक नाटक में नील की खेती करने वाले किसानों के कष्टों को दर्शाया। बंकिम चंद्र की आनंद मठ ने भी राष्ट्रीय भावना को जागृत करने का प्रयास किया।


कांग्रेस की संरचना और भागीदारी

इतिहासकार अनिल सील के अनुसार, कांग्रेस के पहले अधिवेशन में अधिकतर प्रतिनिधि वकालत के पेशे से थे। पुराना रईस वर्ग जैसे राजा, महाराजा, बड़े जमीदार और धनी व्यापारी इस सम्मलेन का भाग नहीं बने कृषक और मजदूर भी उसकी ओर आकर्षित नहीं हुए। शिक्षित भारतीयों के लिए कम अवसर उपलब्ध होने के कारण ज्यादातर ने कानून से संबंधित काम को ही चुना।


कांग्रेस की उत्पत्ति से संबंधित विवाद

एक अंग्रेज अधिकारी ए.ओ. ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने एक बहुत बड़े विवाद को जन्म दिया। ए.ओ. ह्यूम  इस तथ्य से भलीभांति अवगत थे कि भारतीय जनता के शोषण और बुद्धिजीवी वर्ग के बढ़ते आक्रोश के कारण ब्रिटिश राज को खतरा है। हयूम ने भी कहा था कि उसका उद्देश्य भारतीय आक्रोश को रोकने के लिए एक सुरक्षा का प्रबंध करना था जिससे अंग्रेजों के विरुद्ध किसी बड़े विद्रोह को रोका जा सके। इस आधार पर कांग्रेस की स्थापना एक सुनियोजित षड्यंत्र मानी जा सकती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ह्यूम का उद्देश्य निष्कपट था। उन्होंने कांग्रेस को एक मजबूत और सक्रिय संगठन बनाने के लिए कई वर्षों तक प्रयास किये।


1. नरम दल ( उदारवादी ) मांगे और कार्यक्रम

  • 1885- 1905 में नरम दल वालों की मांगे थी आर्थिक सहायता, नागरिकों के अधिकार, आर्म्स एक्ट को रद्द करना, भूमि कर को उचित निर्धारण करना
  • प्रत्येक वर्ष इन मांगों को दोहराया जाता था लेकिन सरकार ने शायद ही कभी ध्यान दिया हो इसलिए कांग्रेस का यह काल नरम दल का युग (उदारवादियों का युग कहलाता है )

2. गरम दल ( उग्रदल ) का सैद्धांतिक अधिकार

  • 1904- 1905 के आसपास जो समूह कांग्रेस में प्रभावशाली हुआ वह गरम दल कहलाया।
  • वह भारत देश का आत्म-सम्मान पुनः प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने नरम दल (उदारवादियों) को अंग्रेजों का हितैषी मानकर उनका विरोध किया।
  • गरम दल देश के तीन भागों में महाराष्ट्र, बंगाल और पंजाब में अधिक सक्रिय था। 
  • तिलक महाराष्ट्र में, बिपिनचंद्र पाल बंगाल में तथा लाला लाजपतराय पंजाब दल का नेतृत्व कर रहे थे।


गरम दल की कार्रवाई

गरम दल के नेता तिलक ने एक विदेशी सरकार द्वारा जनता के निजी और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करने का विरोध किया। बंगाल के गरम दल के नेता बिपिनचंद्र पाल ने भी लिखा है कि "कांग्रेस भारत में, और लंदन में उसकी ब्रिटिश कमेटी, दोनों ही भिक्षा माँगने वाली संस्थाएं हैं।" 


क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का उदय

किसी भी आंदोलन की सफलता जनता की भागीदारी पर निर्भर करती है इस आंदोलन में इसका अभाव रहा। प्रशासन ने आंदोलन को दबाने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर 'वंदे मातरम' के नारे पर रोक लगाने लगे अप्रैल 1906 में सभा में भाग ले रहे लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। जिन युवाओं की सहनशक्ति समाप्त हो चुकी थी उन्होंने भी हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया। हथियार खरीदने के लिए धन जुटाने के लिए डकैती डालने लगे।

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