Today Topic- BHIC- 133 ( आंतरिक व्यापार ) Unit- 12 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133-aantarik vyapar- unit- 12 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year
परिचय
- व्यापार का कार्य किसी एक व्यक्ति द्वारा संपन्न नहीं हो सकता।
- इसलिए इसमें उत्पादनकर्ता से लेकर खरीददार तक कई लोगों की भूमिका रहती है।
- भारत में मध्यकालीन व्यापारिक गतिविधियों में विशेष समुदाय शामिल थे जैसे कि महाजन, हुंडी, बैंकिंग बीमा
दिल्ली सरकार के अधीन व्यापार तथा वाणिज्य
- 13वी- 14वी शताब्दी में बड़े और छोटे नगरों अस्तित्व में आने लगे जिसकी वजह से भोजन और शिल्प उत्पादन के लिए कच्चे माल की मांग बढ़ने लगी।
- साथ ही किसानों को भूमि कर के लिए नगद भुगतान करने के लिए अपनी फसल तुरंत बेचनी पड़ती थी।
- इन्हीं कारणों से आंतरिक व्यापार का विकास हुआ इस प्रकार के व्यापार को प्रेरित व्यापार कहते हैं
(आंतरिक व्यापार )
- छोटे स्तर के व्यापार में मुख्यतः गेहूं, चावल, चना, गन्ना आदि खाद्यान्न तथा कपास जैसी वस्तुओं का व्यापार होता था।
- विभिन्न शहरों के बीच मुख्यतः विलासिता की वस्तुओं का व्यापार होता था
- मेरठ से मलमल (उच्च कोटि का कपड़ा) देवगिरि से आता था।
- स्थलीय भूमि मार्गों की सुविधा के कारण सल्तनत काल में व्यापार का प्रमुख केंद्र मुल्तान था।
(व्यापार से संबंधित वर्ग)
- अनाज का व्यापार करने वाले व्यापारी कारवानी थे जो बड़ी संख्या में एक साथ चला करते थे।
- यही बाद में बंजारे कहलाए और इनके प्रमुख को नायक कहते थे।
- लंबी दूरी का व्यापार मुल्तानी करते थे जो ब्याज और व्यापार दोनों कामों में लगे हुए थे
- ज्यादातर मुल्तानी हिंदू थे लेकिन कुछ मुसलमान मुल्तानी भी थे।
- एक अन्य वर्ग था जिसे दलाल कहकर पुकारा जाता था।
- व्यापार में दलाल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे क्योंकि यह बेचने और खरीदने वालों के बीच संपर्क स्थापित करवाते थे।
- और दोनों पक्षों से ही अपना कमीशन लेते थे।
(परिवहन के साधन)
- माल ढोने के लिए पशु और बैलगाड़ी दोनों का प्रयोग होता था।
- इससे परिवहन का खर्च भी कम होता था।
- नदियों के मार्ग से थोक माल ले जाने के लिए नावों की व्यवस्था की जाती थी
- जबकि समुद्री व्यापार के लिए जहाजों की व्यवस्था थी।
मुगलों के अधीन व्यापार तथा वाणिज्य
- इनके अंतर्गत स्थानीय, प्रांतीय, तटीय और अंतर प्रांतीय स्तर पर व्यापार सम्मिलित था।
आंतरिक व्यापार
- उस समय सभी गांव में चावल, आटा, मक्खन, दूध, चीनी और अलग-अलग प्रकार की मिठाइयों का व्यापार होता था
- गांवों में भेड़, बकरी, मुर्गा आदि का व्यापार होता था।
- शहर में एक बाजार होता था तथा जिसमें रोजमर्रा की वस्तुओं का आदान- प्रदान होता था।
- मुगल प्रांत में एक बड़ा वाणिज्य केंद्र होता था
- पटना, अहमदाबाद, सूरत, आगरा, दिल्ली इन सभी वाणिज्यिक केंद्रों में विदेश से बनी वस्तुएं भी उपलब्ध होती थी
- बाहरी व्यापारियों और यात्रियों के रहने के लिए व्यवस्था की गई थी।
अंतर प्रांतीय व्यापार
- भारत का अंतर प्रांतीय व्यापार भी काफी विकसित हो रहा था लंबी दूरी के व्यापार में विलास की वस्तुएं शामिल थी
- बंगाल पूरे देश को अनाज की पूर्ति करता था ।
- चावल और चीनी पटना से और कश्मीर का केसर भी बंगाल के बाजारों में मिला करता था।
- तटीय प्रदेशों में समुंद्र से वाष्पीकरण द्वारा नमक प्राप्त भी किया जाता था।
- 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में भारत का व्यापार अन्य देशों के साथ समृद्ध अवस्था में था।
- इसके पीछे यूरोपियों का भारत में आना था।
- इससे भारत के व्यापार में कई गुणा वृद्धि हुई।
- इस व्यापार में भारतीय माल का निर्यात बहुत अधिक था, जबकि आयात बहुत कम थे।
आयात
- भारत में आयात कम अथवा गिनी-चुनी वस्तुओं का ही किया जाता था।
- चाँदी, ताँबा, सीसा, पारा, शराब, कालीन, इत्र आदि का आयात किया जाता था।
- सैन्य उपयोग के लिए मध्य एशिया से घोड़ों का आयात भी किया जाता था।
निर्यात
- मुख्य रूप से कपड़ा और नील का निर्यात किया जाता था।
- अफीम और मसाले और अन्य अलग-अलग उत्पाद निर्यात की वस्तुएं थी।
यातायात के साधन
1) थल यातायात
- बैलगाड़ी थल मार्ग के लिए महत्वपूर्ण साधन था बंजारे जानवरों को ढोने के कार्य में इस्तेमाल करते थे
- इसके अलावा ऊँट गाड़ी का भी प्रयोग किया जाता था
- नदी में नौकाओं द्वारा व्यापार होता था।
- भारत में नदियों का जाल-सा बिछा है।
- पटना और हुगली के बीच पटेला नामक नाव पर 120 से 200 टन माल लादा जा सकता था।
- नदी यातायात सस्ता तथा थलमार्ग से कम समय में पहुंचा देता था।
भू- राजस्व के अतिरिक्त अन्य कर
- भू -राजस्व के अलावा हस्तशिल्प उत्पादन कर, बाजार कर, सीमा शुल्क साम्राज्य की आय के मुख्य स्रोत थे।
- व्यापारियों के अलावा कारीगरों को भी अपने उत्पादन पर कर देना पड़ता था।
(सीमा शुल्क कर)
- सीमा शुल्क तथा सड़क कर समय के साथ साथ बदलते रहते थे।
- जहांगीर ने काबुल और कंधार के साथ व्यापार में कुछ वस्तुओं पर कर हटा दिया था
- कई बार विदेशी कंपनियों को शुल्क में छूट दी जाती थी।
- कुछ-कुछ जगह पर छूट दी जाती थी ताकि व्यापार में उन्नति हो
वाणिज्य गतिविधियां
(बैंकिंग, ब्याज की दर और भागीदारी)
- बैंक ब्याज की दर समय-समय पर बदलती रहती थी।
- बैंकर जमा राशि का उपयोग अधिक ब्याज पर ऋण देकर करते थे।
- लेनदेन के प्रति ईमानदारी बरतनी होती थी तभी उनका कार्य चल पाता था।
(ब्याज की दर)
- मध्यकालीन स्रोतों से ब्याज की दर का निर्धारण कठिन है।
- यह ब्याज आवश्यकता एवं माँग पर निर्भर थी जो कि भिन्न-भिन्न होती थी।
- मद्रास में 8% तथा सूरत में 9% थी।
- अंग्रेज जिस प्रदेश में कम ब्याज दर होती थी वहाँ से पैसे लेकर अधिक दर वाले क्षेत्र में लगा देते थे।
व्यापारी, व्यापारिक प्रतिष्ठान और राज्य
- व्यापार तथा वाणिज्य के केन्द्र शहरों में ही होते थे।
- इनके लिए जो नियम बनाते तथा सुरक्षा की मांग करते थे।
- गुजरात में इसे 'महाजन' कहते थे।
- 'नगरसेठ' सबसे प्रभुत्वशाली व्यापारी होता था, जो व्यापारियों के झगड़ों को सुलझाता था
- व्यापारी संगठित और एकजुट थे।इसी कारण ये अधिकारियों के अत्याचार का विरोध करते थे।
- गुजरात के राज्यपाल के अत्याचार के खिलाफ व्यापारियों ने गुजरात छोड़ दिया।
- जो परिवार सहित 8000 सदस्य थे। सारा व्यापार कार्य ठप्प हो गया, तब औरंगजेब को समझौता करवाना पड़ा।
- व्यापारियों के अंदर एकता थी इसलिए उन्होंने अपना संगठन बना कर उन्नति करते गए।