BHIC- 133 ( तकनीकी, शिल्प उत्पादन और सामाजिक परिवर्तन ) Unit- 14 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- takaneke, shilp utpadan aur samajik parivartan- unit- 14 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year
परिचय
इस अध्याय में हम मुस्लिम द्वारा लाई गई तकनीक, यंत्र और नई शिल्पकलाओं के बारे में जानेंगे। इसके अलावा 16वीं 17वीं सदी में यूरोपवासियों द्वारा लाई गई तकनीक पर भी ध्यान देंगे। उस समय में औजार, यंत्र , और उपकरण लकड़ी के और मिट्टी के बने हुए होते थे लेकिन कभी- कभी आवश्यकता पड़ने पर लोहे का भी प्रयोग हो जाता था।
कृषि तकनीकी
कृषि से संबंधित मुख्य औजार और तकनीक कुछ इस प्रकार है।
हल
कई सदियों पहले से ही फावड़ा के स्थान पर हल का इस्तेमाल होने लगा। 1469 में एक फारसी शब्दकोश मिफ्ताह- अल फुजाला में एक चित्र था जिसमें दो जूते हुए बैलों और लोहे के फाल को स्पष्ट रूप से दिखाया गया था।
बोआई
कपड़े के थैले में से बीजों को बाहर निकाल कर उन्हें हाथों से इधर-उधर छिड़कने की प्रक्रिया को बोआई प्रणाली कहते हैं।
फसल-कटाई, गुहाई और ओसाई
फसल की कटाई हंसिया द्वारा किया जाता था। गुहाई का कार्य बैलों द्वारा किया जाता था। ओसाई के अंतर्गत भूसी को अन्न-कणों से अलग करने के लिए "पवन-शक्ति" का उपयोग किया जाता था।
सिंचाई के साधन
वर्षा के जल को तालाबों में इकट्ठा किया जाता था । जिससे कि खेतों में सिंचाई किया जा सके। इसके अलावा कुओं का प्रयोग भी सिंचाई के लिए किया जाता था कुआं से पानी निकालने के लिए कुछ तकनीकी प्रचलित थी।
1. रस्सी और बाल्टी द्वारा हाथों से पानी खींचना
2. चरखी का इस्तेमाल करके रस्सी से बाल्टि खींचना
3. मानव शक्ति के स्थान पर बैलों की एक जोड़ी का प्रयोग करना
वस्त्र तकनीकी
सल्तनत काल में तुर्कों द्वारा वस्त्र बनाने में अलग-अलग प्रकार की तकनीकी अपनाई गई थी।
ओटाई, धुनाई और कताई
कपास की खेती कृषि क्षेत्र के अंतर्गत है। कपास से बुनने योग्य धागा प्राप्त करने से पहले इसे ओटाई (बीजों को अलग करना) धुनाई (तंतुओं को ढीला करना) और कताई (सूत बनाना) के चरणों से गुजरना पड़ता है। ओटाई के लिए रोलर और बोर्ड विधि तथा चरखी का प्रयोग किया जाता था। वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में चरखे के आगमन से क्रांतिकारी परिवर्तन आया
भवन निर्माण
इसके अंदर हम तुर्को द्वारा प्रयोग की जाने वाली भवन निर्माण संबंधित तकनीकों के बारे में बात करेंगे चूना- गारा दिल्ली सल्तनत के काल में मुसलमानों द्वारा भारत लाया गया था। चूना- गारा एक तरह की ( कुटी हुई ईंटें ) थी जिसमें दो मुख्य स्रोत जिप्सम और कंकड़ थे जिन्हें भट्टियों में जलाकर अधबुझा चूना प्राप्त किया जाता था इसके पश्चात् गारे को अधिक चिपचिपा बनाने के लिए गोंद का इस्तेमाल किया जाता था
मेहराब और गुबंद/ मेहराबी छत
मेहराब और गुंबद/मेहराबी छत-चूने-गारे के प्रयोग से बनी हुई थी ईंटों ने भवनों को अधिक टिकाऊ बना दिया। इसने मेहराब के निर्माण को सम्भव बनाया। मेहराब के निर्माण में ईंटों व पत्थरों की व्यवस्था होती है चूने- गारे ने इस आवश्यकता को पूर्ण किया।
कागज निर्माण
अरब- मुसलमानों ने कागज निर्माण पहले चीनियों से सीखा इसके बाद वे इस विद्या से चिथड़ों और पुराने मलमल से कागज बनाने लगे। दिल्ली सल्तनत में कागज का प्रयोग बहुत मात्रा में पुस्तकों, फरमानों और विभिन्न दस्तावेजों बनाने में होता था यहाँ तक मिठाइयां भी कागज में पैक होती थी। बंगाल में कागज निर्माण होता था
सैन्य तकनीक
रकाब
प्राचीन भारत के संस्कृत ग्रंथों में रकाब का उल्लेख मिलता है। 6 वी शताब्दी के लगभग चीन में प्रयोग किया जाता था। उसके बाद ईरान और दूसरे इस्लामिक देशों में पहुंचा। रकाब का इस्तेमाल घुड़सवारी के लिए होता है।
नाल
इसे बनाने पर केवल मुस्लिम कारीगरों का एकाधिकार था। इसे बनाने वाले को नलबंद कहा जाता है इसकी सहायता से कठोर धरातल पर घोड़े के खुर सुरक्षित रखे जाते हैं।
बारूद और अग्नि- शास्त्र
बारूद में शोरा, गंधक और चारकोल होता है। इसका आविष्कार चीन में हुआ था। लेकिन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में इसका उपयोग अग्नि शास्त्रों के बजाय केवल आतिशबाजी के लिए होता था। बंदूक और तोपों का सबसे पहले प्रयोग 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा किया गया था। भारतीय शासकों के लिए अलग-अलग आकारों की तोपें बनाई गई थी । अबुल फजल अकबर द्वारा विकसित की गई एक तकनीक के बारे में बताते हैं। जिसकी मदद से एक घोड़ा दबाने से ही एक साथ 17 बंदूको से गोली दागी जा सकती थी।
कांच निर्माण तकनीकी
मुस्लिम के आने के बाद दवा की शीशी, जार और शीशे इस्लामी देशों से भारत आने लगे थे। 16वी से 17 वी सदी में यूरोपवासी अपने साथ कांच से बना काफी सामान लेकर आए जैसे कि कांच का दर्पण, शीशे इत्यादि 15 वी शताब्दी से भारतीयों को रेत की घड़ी बनाने की तकनीक ज्ञात थी। लेकिन मुगलकालीन चित्रों में यूरोप के निर्मित रेत घड़ी को ही दिखाया गया था। भारत में इसका निर्माण सातवीं शताब्दी के बाद से होने की जानकारी मिलती है।
जहाज निर्माण
मध्यकालीन युग में जहाज का निर्माण लकड़ी से होता था। 15 वी शताब्दी के आसपास भारतीय जहाजों में लोहे की कीलों का उपयोग होने लगा। समुद्री यात्राओं के लिए मुसलमानों द्वारा दिशा सूचक (magnetic compass ) का उपयोग भी होने लगा ।
आसवन
मादक पदार्थ मनुष्य के द्वारा लिए जाने वाले नशीले पदार्थ होते हैं। जो मानव शरीर पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। सभी समाजों में मादक पेय पदार्थों का भी निर्माण होने लगा। वैदिक युग में सोमरस नामक मादक का उल्लेख मिलता है। मदिरा बनाने की दो विधियां है। मदिरा चावल, गन्ने के रस, महुआ के फूलों के द्वारा बनाई जाती थी
समय मापन पद्धतियां