Today Topic- BHIC- 133 ( समुद्री व्यापार ) Unit- 13 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- samudre vyapar- unit- 13 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year
परिचय
- भारतीय समुद्री व्यापार का अध्ययन तटीय व्यापार और समुद्री व्यापार के अंतर्गत आता है।
- समुद्री व्यापार - समुंद्री मार्गों के माध्यम से होने वाला व्यापार।
दिल्ली सल्तनत के अधीन समुद्री व्यापार
( समुद्री और तटिय व्यापार )
- खिलजी के समय जब गुजरात पर अधिकार किया गया तो दिल्ली सल्तनत, फारस की खाड़ी और लाल सागर के बीच व्यापारिक संबंध बढ़ने लगे
- समुद्री व्यापार में मसाले, कपड़े, मछली आदि का व्यापार होने लगा।
आयात व निर्यात
- सल्तनत काल में घोड़े और कीमती धातुएं आयात की जाने वाली दो प्रमुख वस्तुएं थी।
- जबकि अनाज, सूती वस्त्र, दास, नील इत्यादि निर्यात किए जाते थे।
(पुर्तगालियों का आगमन)
- बड़े स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों के बाद भी विदेशी व्यापार में भारतीय व्यापारी की भागीदारी बहुत कम थी
- हिंद महासागर की फारस की खाड़ी से संचालित होने वाले व्यापार पर अरब व्यापारियों का वर्चस्व था
- भारत से केवल गुजराती बनिया का एक वर्ग, दक्षिण के चेट्टी और कुछ मुस्लिम व्यापारी इस व्यापार में सम्मिलित थे।
- 1998 में पुर्तगाली व्यापारियों के आने से स्थिति में परिवर्तन आया उन्होंने शीघ्र एशिया के व्यापार पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
- पुर्तगालियों ने समुद्री मार्ग पर अधिकार कर लिया। इन्होंने ( आज्ञा पत्र ) की परंपरा की शुरुआत कर दी।
- जिसके कारण समुद्र में जहाजों के आने जाने के लिए एक निश्चित धनराशि ली जाती थी ।
- आज्ञा पत्र ना होने पर माल लूटकर जहाज जप्त कर लिया जाता था
- इन्हीं नीतियों के कारण भारतीय तथा अरब व्यापारियों को भारी हानि हुई।
मुगलों के अधीन समुद्री व्यापार
- इस काल में पुर्तगालियों के अलावा कई यूरोपीय देशों के व्यापारी भी जैसे- फ्रांसीसी, डच और अंग्रेज व्यापारिक गतिविधियों में शामिल हुए।
समुद्री मार्ग
- अरब सागर और बंगाल की खाड़ी प्रमुख समुद्री मार्ग थे।
- उत्तर से आने वाला समुद्री मार्ग खंभात, सूरत, थट्टा से होकर फारस की खाड़ी और लाल समुंद्र में मिलता था।
- दूसरा मार्ग- दाभोर , कोचीन और कालीकट से होकर एडन और मोचा पहुंचता था
पुर्तगालियों का आगमन
(निर्यात और आयात की वस्तुएं )
- पुर्तगालियों ने पूर्वी देशों के व्यापार में इसलिए प्रवेश किया था
- क्योंकि काली मिर्च और अन्य भारतीय मसालों की यूरोपीय देशों में बहुत मांग थी।
(मालाबार और कोंकण तट )
- मालाबार और कोंकण से सबसे ज्यादा काली मिर्च का निर्यात होता था
- इसके अलावा अदरक, दालचीनी और लाल चंदन की लकड़ी में पुर्तगाल को निर्यात की जाती थी।
- इमली, सुपारी, हाथी के दांत, हल्दी और दातों का भी निर्यात होता था।
(उत्तर-पश्चिम भारत)
- उत्तर-पश्चिमी भारत से नील, कई प्रकार के कपड़े रेशम, कछुए के खोल से बने हस्तशिल्प आदि कुछ महंगी वस्तुओं का निर्यात पुर्तगाल किया जाता था।
- उत्तर- पश्चिमी तट पर तांबा, कपड़े आयात किया जाता था
(पूर्वी तट)
- पूर्वी तट -भारत के पूर्वी तट से मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के कपड़ों के अलावा मोती व चंदन की लकड़ी का निर्यात होता था।
- सूखा अदरक, मक्खन, तेल, मोम और चावल भी बंगाल से प्राप्त किए जाते थे।
पुर्तगाली व्यापार के लिए पूंजी निवेश
- एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष व्यापार करने के लिए पुर्तगाल का राजा केवल एक चौथाई हिस्सा देता था।
- बाकी की सभी राशि पूंजी निवेशकों और व्यापारियों से प्राप्त की जाती थी।
(यूरोपीय पूंजी निवेशक)
- 16वी शताब्दी में यूरोपीय पूंजी निवेशकों में इतालवी और जर्मनी पूंजी निवेशक शामिल थे।
- पूर्वी व्यापार में तांबे की बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती थी।
- जिनका यूरोप में तांबे के उत्पादन पर एकाधिकार था उनका स्वागत किया जाता था।
भारतीय शासक और यूरोपीय कंपनियां
(ईस्ट इंडिया कम्पनी)
- डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1602 ई. में हुई
- यह कम्पनी व्यापारिक गतिविधियों में लगी हुई थी
- 1606 में इसने अपना पहला कारखाना कोरोमंडल में पेटापूली में स्थापित की।
- मसाले के व्यापार में रुचि लेने वाली इस कम्पनी का झुकाव कपड़े के व्यापार की ओर हुआ
- डचों की बढ़ती शक्ति से अंग्रेजों को खतरा महसूस हुआ और इनके बीच हितों का संघर्ष आरंभ हो गया।
- डचों ने अंग्रेजी जहाज पर हमला किया तथा क्षति पहुँचाई।
- इस प्रकार अंग्रेजों ने पुर्तगालियों से हाथ मिलाकर डचों को पराजित किया।
- 1795 ई. में डच पूरी तरह से भारत से बाहर हो गये।
(फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी)
- फ्रांसीसी भारत में देर से पहुंचे। 1664 ई. में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई।
- पहला कारखाना 1668 ई. में सूरत में स्थापित किया।
- अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों में संघर्ष भारत में ही नहीं यूरोप में भी चल रहा था।
- यह संघर्ष अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
- भारत में तीन कर्नाटक युद्ध हुए
1749-54
1758-63
- जिसमें फ्रांसीसियों की हार हुई और उनके भारत में लगभग सभी अड्डे समाप्त हो गए।
- अंग्रेजों का वर्चस्व पूरे भारत पर हो गया तथा पुर्तगाली गोवा आदि क्षेत्रों तक ही सीमित रह गए।